व्यापार
करने वाला वणिक् होता है। व्यापार वस्तु का हो या ज्ञान का फर्क विल्कुल नहीं है।
दोनों अपने लाभ के लिए कार्य करते है। संस्कृत क्षेत्र में ज्ञानपण्यों की कमी
नहीं। मैंने संस्कृत से जुडे कार्यक्रमों
में इनसे सहयोग की अपेक्षा की। आशा थी जिस प्रकार इन्होनें अपने गुरु से निःशुल्क
शिक्षा प्राप्त की वैसे ही निःशुल्क वितरण भी करेंगें। किन्तु यह क्या ये तो ज्ञानपण्य
हो गये।
संस्कृत सम्भाषण का प्रशिक्षण देश में निःशुल्क
दिया जा रहा है। उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान में भी सम्भाषण प्रशिक्षण कार्यक्रम
रखा गया। परंतु हा धिक् विद्वद्गण सेवा की अपेक्षा लाभ की दृष्टि से इसे देखने लगे
हैं। अलं विस्तरेण।
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