हुलासगंज के संत (हुलासगंज संस्मरण 3)

मैं सन् 26 जनवरी 1983 को संस्कृत अध्ययन के लिये हुलासगंज आया था, तब हुलासगंज में रामानुज सम्प्रदाय के अनेक संत विद्यमान थे। उस समय वहाँ मुख्य मन्दिर,विद्यालय को छोडकर बाकी भवन कच्चे  थे. हालांकि श्रद्धालु उन दिनों भी आते हैं। हमने अपने मित्रों से हुलासगंज के बारे मे पूछा तो  उन्होंने हमें तमाम जानकारियाँ और कई कथाएँ सुनाईं। उन्होने कहा था कि यहाँ बहुत कुछ परिवर्तन हो गया है। अनेक संत परमपद प्राप्त कर चुके हैं। तभी हमने हुलासगंज जाने का निश्चय कर लिया। सौभाग्यवश 11-8-2012 को हुलासगंज पहुँचने का अवसर मिला।  यहाँ 12-8-2012 को जन्माष्टमी होने वाला है। इस वर्ष जन्माष्टमी 2012 में जब मैं वहाँ गया तो मुझे वह स्थान देखकर बेहद खुशी हुई। हुलासगंज के तत्कालीन संतों के संस्मरण हेतु यहाँ  उनके नाम एवं पता दिये गये है।

एक-एक  संतों का विस्तृत जीवनवृत्त,कृतित्व एवं रोचक कथानक विस्तारित कर प्रस्तुत करता रहूँगा।

हुलासगंज के संत -1

नाम-                          मुक्खी सिंह
वैष्णव नाम-                माधवाचार्य
हुलासगंज में  नाम-    मुक्खी बाबा
पता-                         ग्राम-भरतपुरा,पालिगंज,जिला-पटना
दीक्षा गुरु-                  स्वामी परांकुशाचार्य जी महाराज
परमपद-                     वर्ष 2002


हुलासगंज के संत -2

 नाम-                           कमलनयन शर्मा
वैष्णव नाम-                 कमलनयनाचार्य
हुलासगंज में नाम-        कमलनयन बाबा
पता-                            ग्राम-कंचनपुर खडगपुर,बिहटा,जिला-पटना
दीक्षा ग्रहण-                 1955
गुरु-                           स्वामी परांकुशाचार्य जी महाराज
हुलासगंज में आगमन-1966-1968
परमपद-                     वर्ष 1997

हुलासगंज के संत -3

हुलासगंज में नाम-        महाबीर बाबा
पता-                           ग्राम-सुरदासपुर,मोदनगंज,जिला-जहानाबाद
दीक्षा ग्रहण-                 1972
गुरु-                            स्वामी परांकुशाचार्य जी महाराज
हुलासगंज में आगमन-   1975
परमपद-                   वर्ष

हुलासगंज के संत -4

वैष्णव नाम-       राम एकबालाचार्य
हुलासगंज में नाम-  क्यौरी बाबा
पता-             ग्राम-बेलसार,मेहेन्दिया,जिला-जहानाबाद
दीक्षा ग्रहण-        1955
गुरु-               स्वामी परांकुशाचार्य जी महाराज
हुलासगंज में आगमन-1990
परमपद-                   वर्ष लगभग 2000 पटना में। ब्रेन हेमरेज के कारण।
हुलासगंज के संत -5

वैष्णव नाम-       राम मिश्र स्वामी
हुलासगंज में नाम-  नकुल बाबा
पता-              ग्राम-करौता,शकूराबाद,जिला-जहानाबाद
दीक्षा ग्रहण- 1971
गुरु-               स्वामी परांकुशाचार्य जी महाराज
हुलासगंज में आगमन-1976

परमपद-           वर्ष 2008

हुलासगंज के संत -6

वैष्णव नाम-        लक्ष्मीनारायणाचार्य
हुलासगंज में नाम-  लक्ष्मी स्वामी
पता-              ग्राम-सरौती,रामपुर चौरम,जिला-जहानाबाद
दीक्षा ग्रहण-  आजन्म वैष्णव
गुरु-               स्वामी परांकुशाचार्य जी महाराज
स्वामी परांकुशाचार्य जी महाराज का सान्निध्य 1957 से
हुलासगंज में आगमन-1990

परमपद-             ओडविगहा यज्ञ के वर्ष

हुलासगंज के संत -7

वैष्णव नाम-        राजेन्द्राचार्य
हुलासगंज में नाम-   राजेन्द्र स्वामी
पता-              ग्राम-क्याल, करपी,जिला- अरबल
दीक्षा ग्रहण-        1957
गुरु-               स्वामी परांकुशाचार्य जी महाराज
स्वामी परांकुशाचार्य जी महाराज का सान्निध्य 1960 से
हुलासगंज में वर्तमान

हुलासगंज के संत -8

वैष्णव नाम-        लक्ष्मीप्रपन्नाचार्य
हुलासगंज में नाम-   
लक्ष्मी प्रपन्न स्वामी
पता-              ग्राम-बलवापर, प्रखंड-जहानाबाद  जिला- जहानाबाद
दीक्षा ग्रहण-        स्वामी रंगरामानुजाचार्य
गुरु-               स्वामी रंगरामानुजाचार्य
स्वामी रंगरामानुजाचार्य जी महाराज का सान्निध्य  से
हुलासगंज/ पुरी/ वृन्दावन में वर्तमान

हुलासगंज के संत -9

मूल नाम-        रमेश शर्मा
वैष्णव नाम-     हरेराम स्वामी
हुलासगंज में नाम-   
हरेरामाचार्य (छोटे स्वामी जी)
पता-              ग्राम- सरबानी चक,  जिला- पटना
दीक्षा ग्रहण-        स्वामी रंगरामानुजाचार्य
गुरु-               स्वामी रंगरामानुजाचार्य
स्वामी रंगरामानुजाचार्य जी महाराज का सान्निध्य  से
हुलासगंज/ पुरी/ वृन्दावन में वर्तमान


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हुलासगंज का जन्माष्टमी महोत्सव 2012 (हुलासगंज संस्मरण 4)



          गत 20 वर्षों के बाद इस बार जन्माष्टमी महोत्सव पर मुझे हुलासगंज जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हुलासगंज का जन्माष्टमी काफी प्रसिद्ध है। प्रसिद्ध धार्मिक व आध्यामिक नगरी हुलासगंज में जन्माष्टमी महोत्सव पर खूब चहल-पहल है। यहां 12 अगस्त 2012 को जन्माष्टमी का महोत्सव मनाया जाना है। आश्रम में दो दिन पूर्व से हीं दूर-दराज से श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगना शुरु हो जाता है। रविवार को संस्थान में आरा, बक्सर, पटना, नवादा, रोहतास, गया एवं अन्य कई जिलों के श्रद्धालुओं का आना शुरु हो गया था। सभी आगंतुकों को संस्थान की ओर से आवासीय व खाने-पीने की सुविधा मुफ्त में उपलब्ध है। यहां प्रतिवर्ष राज्य भर के विभिन्न जिलों के पचास हजार से भी अधिक श्रद्धालु जन्माष्टमी महोत्सव में हिस्सा लेने पहुंचते है। स्वामी रंगरामानुजाचार्य जी महाराज के अनुसार श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व उदयकालीन रोहिणी नक्षत्र में ही मनाना चाहिए। दरअसल पूरे वैष्णवपंथी श्रद्धालु हीं इस वर्ष शास्त्रों के विधान का हवाला देकर रविवार को हीं जन्माष्टमी मना रहे हैं। सुबह से हीं दोनों संस्थानों में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ रहा था। खासकर हुलासगंज में तो माहौल में सुबह से हीं एक अद्भूत पवित्रता पसरी थी। श्रद्धालुओं में महिलाओं की संख्या भी उल्लेखनीय रही। इधर परिसर के आसपास के इलाके में अस्थायी दुकानों की रेलमपेल, झूलो व तमाशे वालों से माहौल एकदम जीवंत व उत्सवी लग रहा था। एक ओर जहां गोपुरम मंदिर की ओर से बाहर से आने वाले लोगों को ठहरने के लिए प्रसाद का भी इंतजाम था। इस बड़े त्योहार के अवसर पर शांति कायम रखने के उद्देश्य से प्रशासन के स्तर पर भी व्यापक इंतजाम किए गए थे। बड़ी संख्या में सशस्त्र बलों के अलावा लाठी पार्टी तथा महिला पुलिस की व्यवस्था की गयी थी। हुलासगंज जहानाबाद मुख्य मार्ग पर भी एक ओर जहां विभिन्न प्रकार की दुकानें सजी थी, वहीं श्रद्धालुओं की भी भारी भीड़ जमी थी। ध्वनि विस्तारक यंत्र के माध्यम से व्यवस्थापकों द्वारा लगातार जानकारी दी जा रही थी। लोगों दूर दराज से आने वाले लोगों के लिए दिन में भी प्रसाद का इंतजाम था। किसी को किसी प्रकार की कठिनाई नहीं हो इस पर व्यवस्थापक नजर रख रहे थे।
      दोपहर बारह बजे अखंड हरिनाम की गुंज से मंदिर परिसर गुंज उठा। संध्या में परम विभूषित स्वामी रंगरामानुजाचार्य जी महाराज का प्रवचन आरंभ हुआ तो श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। सुबह में भजन के बाद खुद स्वामी रंगरामानुजाचार्य जी महाराज श्रद्धालु नर नारियों को गुरुदीक्षा देने में दोपहर बाद तक व्यस्त रहे। उन्होंने हजारों श्रद्धालुओं को गुरुदीक्षा देकर सदाचारी जीवन की शपथ दिलायी। तत्पश्चात गीता भवन सभागार में विद्वानों के प्रवचन व भक्ति संगीत के एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियों से माहौल में भक्तिरस की खुशबू बिखरती रही। खुद स्वामीजी तथा उनके सहयोगी शिष्यों व विद्वानों ने भी कृष्ण जीवन लीला दर्शन से श्रद्धालुओं का मार्गदर्शन किया। रात्रि बारह बजे के पूर्व महाआरती हुयी और बाल भगवान के प्रकट होते ही जयकारे से जन्माष्टमी का विधान विधिवत संपन्न हुआ। रात्रि बारह बजे के बाद एक विशाल भंडारे का आयोजन हुआ जिसमें लगभग पचास हजार लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। इस पूरे आयोजन में पुलिस प्रशासन की सक्रियता व तैयारी भी सराहनीय रही। 
     सम्पूर्ण आयोजन की विडियोग्राफी कर मैंने अपने यूट्यूब पर उपलब्ध करा दिया है। 


  

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जगदानन्द झा (Jagdanand Jha)

                                        
                   जगदानन्द झा 

नाम- जगदानन्द झा
 (जन्म : 30 दिसम्बर 1973 )
पिता का नाम- श्री धर्मनाथ झा
दादा का नाम- श्री हरिहरनाथ झा
गोत्र- भारद्वाज
मध्यमा- 1987
व्याकरणाचार्य- 1994
उपाधियां ( बी.एड, बी. एल आई एस सी, नेट )
 संस्कृत पुस्तकालय के वर्गीकरण पद्धति के परिष्कर्ता। संस्कृत पुस्तकालय के कम्प्यूटरीकरण पर इनका अधिक अधिकार है। ये विश्वविख्यात शैवागम परम्परा के विद्वान्  पं0 रामेश्वर झा के पौत्र हैं।
जन्म ग्राम-पटसा, जिला-समस्तीपुर, बिहार, भारत में हुआ ।

इन्होंने अपने ज्येष्ठ भ्राता विमलेश झा से संस्कृत की प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की। विद्यालयीय शिक्षा के इतर विद्याओं का अध्ययन किया, जिनमें व्याकरणशास्त्र के गुरु पं. रामप्रीत द्विवेदी, वाराणसी, पं. शशिधर मिश्र, वाराणसी, न्यायशास्त्र के गुरु महामहोपाध्याय प्रो. वशिष्ठ त्रिपाठी, वाराणसी, जगद्गुरुरामानन्दाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य, वाराणसी आदि है। संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी,मैथिली, उड़िया, बंगाली भाषा पर इनका असाधारण अधिकार है। कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय,दरभंगा से वर्ष 1994 में नव्य व्याकरण विषय पर आचार्य की उपाधि प्राप्त की। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी से ग्रन्थालय एवं सूचना विज्ञान विषय से बी.लिव की उपाधि प्राप्त की। उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ के पुस्तकालय में सहायक पुस्तकालयाध्यक्ष पद पर 1999 से कार्य करते हुए पाण्डुलिपि विवरणिका, व्यावहारिक संस्कृत प्रशिक्षक, पौरोहित्य कर्म प्रशिक्षक, लखनऊ के पुस्तकालय आदि अनेक ग्रन्थों का सम्पादन किया। संस्कृत के डिजिटलाइजेशन में अहम योगदान है। अब तक पुस्तकालय संदर्शिका तथा स्कूल लोकेटर नामक दो ऐप बना चुके हैं। इसके अतिरिक्त हिन्दी संस्कृत शब्दकोश ऐप का निर्माण वर्ष 2020 में किया। 2011 से संस्कृतभाषी ब्लॉग लेखन आरम्भ किया। 2015 में संस्कृतसर्जना त्रैमासिकी ई-पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया। अबतक 100 से अधिक राष्ट्रीय स्तर के शैक्षिक कार्यक्रमों, कवि सम्मेलनों, नाटकों सहित विविध प्रकार की कार्ययोजनाओं का संचालन सफलता पूर्वक कर चुके हैं, जिसमें वाराणसी में आयोजित अखिल भारतीय व्यास महोत्सव एक है। गत वर्ष के संस्कृत सप्ताह के अवसर पर संस्कृत सब्जी मंडी की अवधारणा को लेकर काफी चर्चित रहे। संस्कृत क्षेत्र में रोजगार के सृजन, भाषायी प्रचार-प्रसार, प्राचीन ज्ञान सम्पदा के संरक्षण की दिशा में नित्य संलग्न रहते हुए ऩई नई युक्तियों तथा योजनाओं का निर्माण किया।

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