शोध
छात्र संगोष्ठी-
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अखिल भारतीय व्यास महोत्सव के शोध
छात्र संगोष्ठी में भारत के विश्वविद्यालयों से कोई भी छात्र भाग ले सकता है।
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इस संगोष्ठी में भाषा एवं ज्ञान
के क्षेत्र का काई बंधन नहीं हैं।
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प्रतियोगिता का विषय सर्वग्राही
एवं सर्वस्पर्शी रखी गई है, ताकि
ज्ञान के समस्त क्षेत्र के शोधार्थी इसमें भाग ले सकें।
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प्रतिवर्ष की भॉंति इस वर्ष भी एक
सुनिश्चित इतिहास के कालखण्ड में रचित/सम्पादित/उद्भूत/प्रकट,
ज्ञान
के क्षेत्र पर व्यास साहित्य के प्रभाव को खोजना है।
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रचित गवेषणा पत्र (शोध पत्र)
तैयार करने के पूर्व गवेषक के लिए अति आवच्च्यक है कि वह व्यास रचित साहित्य के
बारे में सम्यक् जानकारी प्राप्त कर ले।
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व्यास को महर्षि व्यास,
वेद
व्यास, कृष्णद्वैपायन आदि अनेक नामों से
अभिहित किया गया है।
1- व्यास
वाड्मय को पॉच भागों में प्रविभक्त किया जाता है।
2- वेद
एवं उसकी शाखाएं
3- दर्शन
(ब्रह्मसूत्र, उपनिषद्, गीता)
4- पुराण
5- इतिहास
(महाभारत)
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धर्मशास्त्र (विष्णुस्मृति)
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भारतीय धर्मशाखाओं का उत्स ब्रह्मसूत्र
है। इससे अद्वैत, विशिष्टाद्वैत,
द्वैताद्वैत
आदि अनेक सिद्धान्तों का प्रादुर्भाव हुआ। आचार्य शंकर से लेकर अब तक अनेक धर्मशाखाओं
एवं तत्सम्बद्ध साहित्य का सृजन होता आ रहा है।
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आचार्य शंकर के प्रादुर्भाव के पश्चात्
रचित अनेक भारतीय साहित्य का स्त्रोत व्यास का वाड्मय है। यथा- हिन्दी साहित्य
में जयशंकर प्रसाद का कामायनी
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पुराणों में वेदों द्वारा
प्रतिपादित सिद्धान्तों की उपकल्पना तथा कथानकों द्वारा विस्तार प्रदान किया गया।
परवर्ती भारतीय भारतीय साहित्य पर एवं जीवन पद्धति को लक्ष्य कर रचित रचनाओं पर
व्यास का प्रभाव अक्षुण्ण रहा।
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पुराण में वर्णित कथाओं से अनेक
लोक कथाओं, लोक गायन शैलियों,
शिल्पों
का प्रादुर्भाव हुआ। भारत ही नहीं एशिया महाद्वीप के प्रत्येक काल खण्ड में इसका
प्रभाव पड़ा है।
कहा जाता हैं यन्न भारते तन्न भारते। जो
महाभारत में नहीं, वह भारत में नहीं। भारत
में जो कुछ ज्ञात है, उसका किसी न किसी रूप में
महाभारत में वर्णन जरूर प्राप्त हैं। जो महाभारत में नहीं है वह भारतीय नहीं। यह
समस्त ज्ञान राशि का आकर ग्रन्थ है।
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राजनैतिक सिद्धान्त (विदुर,
शुक्र
आदि नीति) का यह उद्गम स्थल है। रामायण एवं महाभारत को परवर्ती साहित्य का उद्गम
स्थल माना गया है।
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व्यास ने युगानुकुल विष्णु स्मृति
की रचना कर पूर्ववर्ती स्मृतियों (विधिसंहिता) में नया आयाम स्थापित किया।
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स्म्तियॉं में आचार दण्ड का
वर्णन प्राप्त होता है। यह भारतीय विधिशास्त्र है, जिससे
प्रजा शासित होती थी।
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उपर्युक्त विषयों पर महर्षि व्यास
के अवदान को सम्मुख रखकर (मुगलकालीन) प्रदत्त कालखण्ड में उद्भुत ज्ञान के समस्त
क्षेत्र, किस रूप में किस अंश तक
प्रभावित हुआ को सिद्ध करना है।
उपर्युक्त से सुस्पष्ट है कि शोध
विषय अत्यन्त व्यापक हैं तथा सभी क्षेत्र के छात्र इसमें भाग ले सकते हैं।
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चित्रकला प्रतियोगिता-
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निर्धारित विषय का वर्णन व्यास
सहित्य में प्राप्त होता है।
उपर्युक्त
साहित्य तथा उससे प्रभावित रचनाओं में प्रदत्त विषय को जिस रूप एवं भाव में
चित्रित किया गया, उसे फलक पर उकेरना है।
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