संस्कृतज्ञ
कहते हैं कि संस्कृत में सभी ज्ञान विज्ञान हैं। जहाँ तक मैं पढ़ लिख रहा हूँ मुझे
अभी तक आज के समाज के लिए उपयोगी कुछ ज्ञान विज्ञान वहाँ प्राप्त नहीं हो रहा।
प्रयोजनमूलक ज्ञान जैसे पुलिस सुधार, कैदी सुधार पर मुझे
अभी तक कुछ खास ज्ञान संस्कृत ग्रन्थों में नहीं मिल सका है। रंगो के बारे में
कुछ-कुछ ज्ञान मिले है। परिधान निर्माण की विधियों पर सामग्री प्राप्त नहीं हो
सका। भवन निर्माण में प्रयुक्त होने वाली सामग्री का एकत्र वर्णन बहुत कम मिलता
है। मयमतम् एवं शिल्पशास्त्रम् में जो वर्णन आया है वह प्राचीन भवन मरम्मत के लिए
उपयोगी है। भवन निर्माण के पदार्थों एवं उनके मिश्रण के बारे में संस्कृतज्ञों
द्वारा निरन्तर शोध नहीं हो सका। आज सिमेंट निर्माण की जो प्रविधि है यह पश्चिम से
आया। भारतीय शास्त्रों में इस प्र्रकार के पदार्थ निर्माण की विधि पूर्व में नहीं थी।
आज विश्व गृह कीटों के
दुष्प्रभाव से पीडि़त है। इससे आर्थिक एवं स्वास्थ्य की क्षति हो रही है। कीट
घरेलू सामग्री को नष्ट कर रहे है। प्रदूषित कर रहे है। तमाम कम्पनियां इसके रोकथाम
के लिए दवाएँ बना रही है। एक बहुत बड़ा समूह इस व्यवसाय में लगा है। संस्कृत ग्रन्थ
में घरेलू कीट के पहचान, भेद, उसकी
आदतें, उसके दुष्प्रभाव से अपिरिचित नहीं रहा होगा। संस्कृत
ग्रन्थों में इसके रोकथाम के लिए एकत्र वर्णन नहीं है। तिलचटृा, दीमक आदि की उत्पत्ति मानव सभ्यता के पहले हो चुकी है। चिटियों के
वर्गीकरण, उनके स्वभाव पर आज प्रभूत गवेषणा कर अनेक ग्रन्थ
लिखे जा चुके है। संस्कृतज्ञों द्वारा कहीं भी घरेलू कीट की पहचान एवं इसके रोकथाम
के उपायों के लिए शोध नहीं किया जा रहा है। बृहत्संहिता के अध्याय 54 में अनेक जगह दीमक की वांवी (वल्मीक) को आधार मानकर जल के परिज्ञान का
वर्णन मिलता है परन्तु कीटों के पहचान एवं उपचार का वर्णन नहीं मिलता है।
अंत में बस इतना हीं कि
यदि हम जीवन को सरल एवं सहज करने वाले उपचारात्मक ज्ञान संस्कृत ग्रन्थों में खोज
सकें तो जन-जन इस भाषा के अध्ययन को प्रेरित होगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें