मैं
शिक्षा आध्यात्म एवं चिकित्सा को त्रिकोण के रुप में देखता हूँ। स्व0
जे0
के0
त्रिवेदी,
मनो
चिकित्सक के पुत्र और मेरे परम मित्र मोहित द्विवेदी ने मनश्चिकित्सा में संस्कृत
की स्वर लहरियों, आध्यात्म को साथ लेकर चिकित्सा में
मेरे सहयोग की इच्छा की थी, जिस पर
कार्य हो रहा है। आयुर्वेद के पारिभाषिक कोष निर्माण में
संस्कृत व्याकरण के विद्वद्जनों का सहयोग लिया जा रहा है, क्योंकि
अब आयुर्वेद चिकित्सक संस्कृत श्लोकों की गुत्थी या उसमें छिपे रहस्य को समझने में
अपने को असमर्थ पा रहें है।
सर्वप्रथम
महाभारत में डिप्रेशन का जिक्र (अवसाद) प्राप्त होता है। अर्जुन के अवसाद ग्रस्त
होने पर उनकी साइकोथैरेपी, काउंसलिंग
श्री कृष्ण द्वारा किया गया।
योगवासिष्ठ
में मनोदशा का वर्णन निम्न प्रकार से आया है-
क्षणमानन्दितामेति
क्षणमेति विषादिताम्।
क्षणं
सौम्यत्वमायाति सर्वस्मिन्नटन्मनः।
यहाँ मन की स्थित नट के सामान दर्शाया गया है।
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः। बन्धन एवं मोक्ष का कारण मनुष्य का मन ही
है। मन की अवस्थाओं के परिवर्तन से अनेक दैहिक रोगों की उत्पत्ति होती है।
आयुर्वेद में मन एवं तन से स्वस्थ व्यक्ति को स्वस्थ कहा गया है।
तनाव एक मनोरोग है। यह बीमारी आमतौर पर व्यक्ति
को जीवन के पूर्वार्ध के वर्षों में खासकर किशोरावस्था व युवावस्था में अपना शिकार
बनाती है,
यदि
मनोरोग खासकर तनाव का समय से उपचार न कराया जाये तो विकलांगता,
बेरोजगारी,
दुर्व्यवहार,
जेल
की यातना सहने,
आत्महत्या
करने या एकाकी जीवन व्यतीत करने जैसी घटनाएँ सामने आती है।
आर्थिक
दबाव,
कमजोर
होती सामाजिक सहयोग और समाज में हो रहे तेजी से परिवर्तन के कारण मानव मन आज गहरे
संकट में आ गया है। रोजगार के तौर तरीकों में आयें बदलाव, शहरीकरण,
संयुक्त
परिवार के विखराव आदि के कारण मानसिक मनोदैहिक समस्याएँ बढ़ रही है। समस्याएँ पहले
भी थी। उस समय संस्कृत शिक्षा का सशक्त औजार हमारे पास था। आज तनाव,
डिप्रेशन,
दुश्चिन्ता,
एंडजाइटी,
स्किजोफे्रनिया
आदि से निपटने के लिए संस्कृत शिक्षा, वैदिक
ध्वनियाँ,
दैवीय
बल प्राप्त होने के एहसास के लिए स्तोत्र गायन (कवच) के साथ-साथ आयुर्वेद में
वर्णित भारत की धारा से प्रसूत मनोचिकित्सा की बेहतर एवं व्यापक सुविधाओं के
साथ-साथ परम्परा से प्राप्त आधारभूत शास्त्रों के उपदेशों को लेकर लोगों को जागरुक
बनाने की जरुरत है। ऐसी विकट परिस्थिति में भगवान् धन्वन्तरि द्वारा उपदिष्ट आचार
व्यवहार और उपचार को अपना कर हम तन एवं मन को स्वस्थ रख सकते है। कभी चिकित्सकों
को अत्यन्त आदर की दृष्टि से देखा जाता रहा है। भगवान धन्वन्तरि को तथा अन्य
चिकित्सकों को पीयूष पाणि (जिनके हाथ में अमृत हो) कह कर आदर दिया गया। वे जन जन
के वैद्य थे बिना शुल्क लिये रोगियों की चिकित्सा को अपना धर्म मानते थे।
कालान्तर में सशुल्क चिकित्सा आरम्भ किये जाने पर मनु ने इसे निकृष्ट कर्म की
संज्ञा दी।
आज कोई भी व्यक्ति तनाव से अछूता नहीं है। आधुनिक जीवन में तनाव अनेक रोगों का
जन्मदाता बन चुका है। इसके अनेक लक्षण हैः दिल
की धड़कन अचानक तेज हो जाना, पसीने आना,
पेट
में ऐंठन महसूस करना, मुंह सूखना, बेचैनी,
चिड़चिड़ापन,
एकाग्रता
में कमी,
घबराहट
आदि तनाव के कारण अल्सर, उच्च
रक्तचाप,
गठिया,
दमा,
दिल
की तथा मानसिक बीमारियां हो सकती है। तनाव जब इतना ज्यादा बढ़ जाय कि वह अन्य
भावना अनुभवों पर हावी होने लग जाय, लगातार
घबराहट,
बेचैनी,
अनमनेपन
में डूबा रहे तो तनाव पर काबू पाना आवश्यक हो जाता है।
तनाव
पर संक्षिप्त रिर्पोट-
-
समाज
में अंधविश्वास के कारण मनोरोगियों को ओझाओं के पास ले जाते है कुछ लोग दैवीय प्रकोप मानते हैं। इस
तरह इनसे सामाजिक भेद भाव होता रहा है।
-
अन्तरराष्ट्रीय
श्रम संगठन,
विश्व
स्वास्थ्य संगठन ने मानसिक एवं व्यवहार सम्बन्धी विकृतियों से पीडि़त लोगों की
बढ़ती संख्या पर चिंता जतायी है। 2020 तक
डिप्रेशन दूसरी सबसे बड़ी सामान्य बीमारी होगी तथा मानसिक विकलांगता आएगी।
-
महिलाओं
में आत्मविश्वास की कमी, समाज
परिवार में उत्पीड़न, सम्मान न मिलने,
आत्मकेन्द्रित
स्वभाव के कारण डिप्रेशन पैदा होता है।
बेरोजगारी,
निर्धनता,
संयुक्त
परिवार का विघटन, घरेलू समस्या एवं शारिरिक अस्वस्थता
भी तनाव को बढ़ाता है।
-
दुर्भाग्य
से भारत में मानसिक स्वास्थ कार्यकर्ताओं का अभाव है।
- मानसिक चिकित्सा की प्रमुख विधियां
अधोलिखित है।
1. मनोचिकित्सा
(काउंसलिंग) 2.
आहार
3.
व्यायाम
4.
औषध
5.
शारिरिक
6. स्वचिकित्सा
7.
आध्यात्मिक
8.
एक्यूपंचर
9.
जैव
10.
रंग
11.
क्रिएटिव
आर्ट
12. खेल 13.
सुगंध
14.
आयुर्वेद
15.
होम्योपैथ
सहित 61
प्रकार की विधियाँ है।
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