‘रामसेतु’ भारत के गौरवशाली इतिहास का अभिन्न व बहुमूल्य अंग है। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के बीच जहाज़ों को 400 समुद्री मीलों की यात्रा कम करने तथा समुद्री मार्ग की सीधी
आवाजाही के लिए रामसेतु को न तोडें। राम कथाओं में
वर्णित ‘‘रामसेतु’’ किसी के लिए मिथकीय कल्पना है और किसी के
लिए पूरा का पूरा आख्यान। हिन्दु धर्म अनुयायियों के अनुसार आज से लगभग साढ़े सत्रह लाख
वर्ष पूर्व भगवान श्री राम और उनकी वानर सेना ने इसी सेतु से समुद्र पार किया था, और लंका पर विजय प्राप्त की थी।
वर्तमान परिवेश में सेतु के अस्तित्व पर उठने वाले प्रश्नों तथा
उनके उत्तरों को ढूँढना मानने और न मानने वालों के बीच का मत है। मेरे लिए तो
विभिन्न राम कथाओं में वर्णित यह सेतु हमारी प्राचीन उन्नत विज्ञान तकनीकि का
अपूर्व प्रमाण, तथा प्रबन्धन के विभिन्न स्तरों का
अद्वितीय उदाहरण है।
‘‘रामसेतु’’ जिसका वर्णन न केवल संस्कृत भाषा अपितु अन्य भाषाओं की रामकथाओं, पाषाण खण्डों, सिक्कों तथा मानचित्रों आदि में हुआ है, वह मात्र असत्य पर सत्य की विजय का श्री द्वार ही नहीं, वरन् तत्कालीन सभ्यता की कुशलता का परिचायक है।
भगवान श्री राम द्वारा त्रेतायुग में
निर्मित ‘‘रामसेतु’’ की कालान्तर में उपस्थित के विषय में
अनेक तथ्य प्राप्त होते है। सेतु अस्तित्व के अनेक प्रमाण धर्म ग्रन्थों, साहित्यों तथा बौद्ध धर्म के इतिहास में है, कि पुरातन काल में रामसेतु उपस्थित था तथा उसका प्रयोग भारत
तथा लंका के मध्य आवागमन हेतु होता था। बौद्ध धर्म के इतिहास में इस बात का वर्णन
है, कि आज से लगभग 2300 वर्ष पूर्व राजा अशोक के बौद्ध धर्म
स्वीकार ने के बाद बौद्ध धर्म को प्रचार-प्रसार करने के लिए उसकी पुत्री एवं पुत्र
महेन्द्र इसी सेतु मार्ग द्वारा भारत से श्रीलंका पहुँचे थे।
साहित्यिक रचनाओं में रामसेतु -
वैदिक साहित्य से लेकर लौकिक साहित्य तक
तथा वाल्मीकि से लेकर कालिदास, भास,
भवभूति, प्रवरसेन आदि कवियों की रचनाओं व भाषाओं, इससे इतर जैनसाहित्य, प्राकृत, अपभ्रश आदि सभी में रामकथा की सत्ता प्राप्त होती है। इन रामकथा साहित्यों
में ‘रामसेतु’ का वर्णन मुख्यतः वाल्मीकि कृत रामायण, महाकवि कालिदास रचित रघुवंशम्, अध्यात्म रामायण तथा स्कन्दपुराण व पद्मपुराण आदि में प्राप्त होता है।
वाल्मीकि रामायण में तो ‘रामसेतु की आधारशिला ही है। छठी शताब्दी के महाकवि कालिदास
द्वारा रचित रघुवंश में भी रामसेतु का बहुत ही सुन्दर चित्रण हुआ है, जो वर्तमान में अमेरिकीय अंतरिक्ष एजेन्सी (नासा) द्वारा दिए
गए चित्रों के समान प्रतीत होता है।
वैदैहि पश्यामलयाद्विभक्तं मत्सेतुना
फेनिलमम्बुराशिम्।
छायापथेनैव शरत्प्रसन्नमाकाशमविष्कृत
चारूतारम्।।
हे सीते! फेन से भरे हुए इस समुद्र को देखो जिसे मेरे बनाये
हुए पुल ने मलय पर्वत तक इस प्रकार दो भागो में बांट दिया है जिस प्रकार सुन्दर
ताराओं से भरे हुए शरद ऋतु के खुले आकाश को आकाशगंगा दो भागो में बांट देती है।
संस्कृत साहित्य के साथ-साथ प्राकृत साहित्य में भी ‘‘रामसेतु’ आधारित रचनाएं प्राप्त होती है। जिनमें
महाकवि प्रवरसेन द्वारा (7 वी0 से 12 वी0 सदी के बीच) रचित महाकाव्य ‘रामसेतु का उल्लेख किया है।इसी क्रम में मद्रास की सरकारी
प्रेस के सुपरिंटेडेंट द्वारा सन् 1903 ईस्वी में प्रकाशित पुस्तक ‘‘द मैन्युअल आफ द एडमिनिस्टिेडेंट आफ मद्रास प्रेसीडेंसी में
लंका और भारत के बीच 1480 तक श्री रामसेतु द्वारा पैट्रोल आवागमन
का उल्लेख है।
इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि
रामसेतु केवल त्रेतायुग तथा कुछ प्राचीन रचनाओं तक ही अस्तित्व में न था बल्कि
उसके प्रमाण आधुनिक साहित्यों में भी प्राप्त होते हैं।
1. गजेटियस एवं सिक्कों में अंकित रामसेतु -
सन् 1803 में मद्रास प्रेसिडेंसी द्वारा जारी एक
गजेटियस में यह उल्लेख किया गया है,
कि 15 वीं शताब्दी के मध्य तक रामसेतु का
प्रयोग तमिलनाडु से श्रीलंका जाने के लिए किया जाता था, परन्तु बाद में एक भयंकर तूफान से इस पुल का बड़ा भाग समुद्र
में डूब गया। इसमी प्रति आज भी सरस्वती महल पुस्तकालय से सुरक्षित है।
प्राचीन सिक्के तथा ताम्रपत्र ‘‘रामसेतु’’ अस्तित्व के श्रेष्ठ प्रमाण हैं।
पुरातात्विक खोजों में ऐसे बहुत से सिक्के व ताम्रपत्र प्राप्त हुए है, जिनमें रामसेतु के चिन्ह अंकित है। ‘‘सेतु’’ नाम से एक डेढ़ हजार वर्ष पुराने तो बहुत
से सिक्के अनेकों संग्रहालयों में संग्रहित है। दक्षिण भारत में ऐसे बहुत से
सिक्के प्राप्त हुए है, जिनमें ‘‘सेतु’’ शब्द तमिल भाषा में लिखा हुआ है। इन
सिक्कों के हजारों वर्षों तक चलने के प्रमाण प्राप्त होते हैं।
यहां यह बात स्पष्ट करना आवश्यक है कि
किसी भी काल में शासकों द्वारा प्रचलित सिक्कों व अन्य समग्रियों पर उस काल के
प्रसिद्ध वस्तुओं के ही चिन्ह अंकित होते है और विभिन्न कालों के सिक्कों आदि पर ‘‘रामसेतु’’ चिन्ह प्राप्ति उसके तत्कालीन उपस्थिती
को प्रमाणित करते है।
सिक्कों तथा ताम्रपत्रों में सेतु के अस्तित्व के संदर्भ
में पूर्व प्रशासनिक अधिकारी ज्ञी वी0 सुदंरम ने बहुत शोध किया है। इनका यह
महत्वपूर्ण कार्य, एक वेबसाईट पर उपलब्ध है।
2. मानचित्रों तथा प्रतीकों में रामसेतुः-
सिक्कों
आदि के बाद मानचित्रों तथा अन्य प्रतीकों ‘‘रामसेतु’’ की भारत तथा श्रीलंका के मध्य स्थिति को
अनेकों प्राचीन मानचित्रों में दर्शाया गया है। जो आज भी संग्रहलायों में सुरक्षित
है। इनके में 16 वीं तथा 17 वीं शताब्दी में बने दो डच मानचित्र तथा फंे्रच मानचित्रों में एडम्स
ब्रिज अर्थात् रामसेतु को रामेश्वरम् तथा तलाईमन्नार श्रीलंका के बीच क्रियात्मक
भूमार्ग दर्शाया गया है।
इसी प्रकार 1747 में नीदरलैंण्ड के मानचित्र में विद्वान मलावार रोवेन ने
रामसेतु को राम केविल (मंदिर) के नाम से दर्शाया था। यह मानचित्र आजतक सरस्वती महल
पुस्तकालय में सुरक्षित है। इससे पता चलता है कि रामसेतु के विषय में नीदरलैण्ड के
निवासी भी भली भांति परिचित है।
आस्ट्रलियाई वनस्पतिशास्त्री जे0 रेनाल ने भी 1 जनवरी 1998 में एक मानचित्र बनाया था,
जिसमें रामसेतुको ‘‘रामाटेम्पल’’ व ‘‘रामार ब्रिज’’ के नाम से सम्बोधित कर दर्शाया गया है। इसी क्रम में मेजर
जेम्स रेन्तेल (1742-1880) ने 1804 में बनाये एक मानचित्र में रामसेतु को ‘‘रामारब्रिज’’ लिखा है।
3. कलाकृतियों में रामसेतुः--
भारत में अनेक क्षेत्रों से रामायण-विषयक
जो प्राचीन कलाकृतियाँ उपलब्ध हुई है,
उनमें रामकथा के अनेक रोचक दृश्य
प्रदर्शित है, जिनमें शूर्पणखा द्वारा प्रलोभन, सीता हरण, अशोक वाटिका में सीता, वानरों द्वारा सेतु निर्माण आदि उल्लेखनीय है। ये कलाकृतियों
मध्यप्रदेश के नचना (जिला पन्ना) से प्राप्त हुई है। झाँसी जिले के देवगढ़ नामक
स्थान के प्रसिद्ध दशावतार-मन्दिर में रामकथा के कई शिलापट्ट मिलें है। कला की
दृष्टि में ये शिलापट्ट उच्च कोटि के है। इनके अतिरिक्त भी बहुत से स्थानों से
रामकथाओं के चिन्ह प्राप्त हुई है।
4. रामसेतु पर यात्रियों तथा विद्वानों के विचारः-
‘‘रामसेतु’’ की उपस्थिति के विषय में हमें अनेक यात्रियों तथा विद्वानों के मत व विचार
भी प्राप्त होते हैं। इन में विदेशी विद्वानों तथा यात्रियों के विचारों का
विस्तृत शोध पत्र ‘‘वी. सुदंरम’’ द्वारा तैयार किया गया है। जिसके कुछ मुख्य अंश इस प्रकार है-
कोरिया के राजासूर्यवंशी कहलाते थे। आज
से लगभग दो हजार साल पहले एक कोरियाई राजा का नाम किम सूरो था, जो सिंह सूर्य का अपभ्रंश है। इसका विवाह भारत के अयोध्या की
राजकुमारी हूँ के साथ हुआ था। सन् 2001 में कोरिया से प्रो0 बी0 एम0 किम इस वैवाहिक संस्कार पर अनुसंधान
करते हुए अयोध्या आये थे। उनका कहना था कि ‘‘कोरियाई इतिहास में न केवल अयोध्या की
राजकुमारी का वर्णन है, बल्कि रामसेतु का भी उल्लेख है।
फाह्यान ने अपनी भारत यात्रा के दौरान
रामसेतु और अशोक के भवन को देखकर लिखा था कि ये निर्माण कार्य निश्चय ही देवताओं
द्वारा सम्पन्न हुए है।
मार्को पोलों ने अपनी यात्रा विवरण में
रामसेतु का उल्लेख किया है। उनके समय में रामसेतु द्वारा श्रीलंका से आना जाना
जारी था।
सर विलियम जोंस ने भारतीय सभ्यता व
संस्कृति के बारे में जितना अनुसंधान किया,
शायद ही किसी अन्य विदेशी ने किया हो।
उन्होंने कई पुस्तकों में रामसेतु का उल्लेख किया है। उनके अलावा ईस्ट इंडिया
कम्पनी के अनेकों कर्मचारियों ने रामसेतु का अपने लेखन में समय-समय पर उल्लेख किया
है।
5. आधुनिक अनुसंधानः-
रामसेतु के विषय में अमेरिकी
अंतरिक्ष संगठन (नासा) द्वारा 10 अक्टूबर 2002 में सेटेलाईट माध्यम से उपलब्ध अनेकों चित्रों का प्रकाशन किया गया है।
चित्रों के साथ एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की गयी, जिसमें यह कहा गया था कि भारत के
दक्षिण में धनुषकोटि तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिम में पम्बन के मध्य समुद्र में
48 किमी चौड़ी पट्टी के रूप में उभरे एक भू-भाग (द्वीपों) की रेखा दिखती है, उसे ही आज रामसेतु माना जाता है। परन्तु नासा ने इसके ‘‘रामसेतु’’ नाम न देकर ‘‘एडम्स ब्रिज’’ कहा है। साथ ही वे इसे मानव निर्मित न
मानकर प्राकृतिक संरचना स्वीकार करते है।
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