वाल्मीकि रामायण की टीका परम्परा और गोविन्दराज

       
आजकल मै प्रतिदिन प्रातः वाल्मीकि रामायण का स्वाध्याय कर रहा हूँ। वर्ष
1990 के आसपास भी इसका नियमित पाठ करता था। तब मैं इसका मूल पाठ करता था। एक बार 2011 में संस्थान द्वारा प्रकाशित सटीक वाल्मीकि रामायण के हिन्दी अनुवाद पर चर्चा शुरु हुई। इसके अनुवाद के लिए रामायण पढ़े एक संस्कृत के विद्वान के नाम पर मैं सहमत हो गया था। आज 2014 में मुझे ज्ञान हुआ 2011 वाला निर्णय मेरे अल्पज्ञान का परिणाम था। दरअसल नौकरी पा जाने के लिए पढ़ना तथा ज्ञान हेतु पढ़ने में महान भेद है।
            संस्कृत विद्या के क्षेत्र में विद्यार्जन तथा शैक्षणिक प्रमाण पत्र अर्जन में और भी ज्यादा दूरी है। कला और प्राच्य विद्या, गुरु की कृपा के बिना पल्लवित पुष्पित नहीं होती है। थोड़े बहुत कौशल आ जाय अलग बात है। प्राच्य विद्या का क्षेत्र बहु आयामी है। उदर पूर्ति की लालसा लिये तदनुरुप शिक्षा ग्रहण कर रहे शिक्षार्थियों से यह आशा कभी नहीं की जा सकती कि वह वाल्मीकि रामायण के टीकाओं का अनुशीलन करे। कम संस्कृत पढ़े लिखे तथा जिसने गुरुमुख से यथापरम्परा प्रस्थान त्रयी की व्याख्या अर्जित न किया हो, जिसने व्याकरण न पढ़ा हो। शास्त्र परम्पराओं (उत्तर तथा दक्षिण भारत के साहित्य तथा अन्य परम्परा) का ज्ञान न हो, वह उपजीव्य काव्यों तथा इनकी टीकाओं के मर्म को नहीं जान सकता। मैंने यत्र तत्र टीका परम्परा की बहुतेरी आलोचना की है, कि यह केवल चीड़ फाड़ है और स्वतंत्र ज्ञान को आगे नहीं बढ़ने देती। प्रस्तुत प्रसंग में मैं ऐसा भी महसूस कर रहा हूँ कि टीका वह दीपक है, जिससे हम मूल पाठ के अर्थ को ढूढ़ते हैं।
          0 प्र0 संस्कृत संस्थान ने वाल्मीकि रामायण का तिलक, गोविन्दराजीय आदि कई टीकाओं सहित प्रकाशन किया है।
वाल्मीकि रामायण के तीन पाठ प्राप्त होते हैः-
1. दाक्षिणात्य पाठ
2. गौडीय पाठ
3. पश्चिमोत्तरीय पाठ या काश्मीरिक संस्करण (अमृत कतक टीका)
        इन तीन पाठों में केवल पाठ भेद ही नही प्राप्त होते अपितु कहीं-कहीं इसके सर्ग भी भिन्न -भिन्न है। इसकी 30 टीकाएं प्राप्त होती है। प्रमुख टीकाओं मेंः-
टीका का नाम                            टीकाकार
1. रामानुजीयम् 
2. सर्वार्थ सार 
3. रामायण दीपिका 
4. बृहद विवरण 
5. लघु विवरण 
6. रामायण तत्वदीपिका (महेश्वरतीर्थी)  महेश तीर्थ
7. भूषण (गोविन्दराजीय )        गोविन्दराज
8. वाल्मीकि हृदय                     अहोबल
9. अमृत कतक                     माधवयोगी
10. रामायण तिलक 
11. रामायण शिरोमणि 
12. मनोहर 
13. धर्माकूतम्                 त्र्यम्बक मखिन्
14. तनिश्लोकी                पेरियर वाचाम्बिल्लै
15. विषम पद विवृति
16. रामायण भूषण        प्रबल मुकुन्दसूरि
गोविन्दराज ने वाल्मीकि रामायण पर रामायण भूषण नाम से व्याख्यान लिखा है। इसे गोविन्दराजीय या भूषण के नाम से भी कहा जाता है। जैसा कि उन्होंने अपनी टीका के प्रस्तावना श्लोक में लिखा है-
पूर्वाचार्यकृतप्रबन्धजलधेस्तात्पर्यरत्नावली-
ग्राहंग्राहमहं शठारिगुरुणा संदर्शितेनाघ्वना।
अन्यव्यकृतिजातरूपशकलैरायोज्य सज्जीकृतैः।
                        श्रीरामायणभूषणं विरचये पश्यन्तु निर्मत्सराः।। प्रस्तावना श्लोक 5।।
गोविन्दराज ने दाक्षिणात्य पाठ के आधार पर रामायण की व्याख्या की है। गोविन्दराज कांची निवासी कौशिक गोत्र में उत्पन्न वरदराज के पुत्र थे। इनके गुरु का नाम शठकोपदेशिक था। शठकोपदेशिक अहोविलनामक मठ के छठवें उत्तराधिकारी थे। इनका समय छठी शताब्दी माना गया है। ये विजय नगर के शासक रामराय के समकालीन थे। अपने व्याख्यान के प्रस्तावना श्लोक 2 में उन्होनें लिखा है कि
श्रीमत्यत्यंजनभूधरस्य शिखरे श्रीमारुतेः सन्निधा-
वग्रे वेंकटनायकस्य सदनद्वारे यतिक्ष्माभृतः।
नानादेशसमागतैर्बुधगणै रामायणव्याक्रियां
विस्तीर्णां रचयेति सादरमंह स्वप्नेस्मि संचोदितः।।प्रस्तावना श्लोक 2।।
मैं स्वप्न में भगवान वेंकटेश की प्रेरणा पाकर रामायण की व्याख्या कर रहा हूँ।
            गोविन्दराजीय व्याख्यान से पता चलता है कि गोविन्दराज बड़गलइ मत, जो रामानुजीय संम्प्रदाय का एक अंग है से प्रभावित थे और उस मत के आचार्य वेदान्त देशिक के प्रति अत्यन्त श्रद्धालु थे। तिरूपति के पास रहते हुए गोविन्द राज रामायण का व्याख्यान सुनाते थे।
            अपने व्याख्यान के मंगलाचरण श्लोकों में ये शठकोप, लक्ष्मण योगी तथा अन्य मुनियों का स्मरण किया है। मैं स्वयं रामानुजीय परम्परा में दीक्षित हूँ। भगवान रामानुज और आलवारों के प्रति मेरी भी गहरी आस्था है। जब भी गुरु परम्परा से जुड़े तथ्य या रचनाएं मेरे सम्मुख होता है, पढ़ने और लिखने को आतुर हो जाता हूँ।
 यदि ये टीकाएँ वाल्मीकि रामायण के साथ न हो तो हम यह नहीं जान सकते कि प्रसिद्व वैयाकरण नागेश भटृ की तिलक टीका में मूल रामायणम् में 100 श्लोकों का पाठ है, जबकि गोविन्दराज अपनी भूषण टीका में 97 श्लोक हीं मानते हैं। भूषण टीका के रहस्य (गूढ़ार्थ) को जानने के लिए प्रबन्ध साहित्य का ज्ञान आवश्यक है।
सुस्पष्टमष्टादशकृत्व एत्य श्रीशैलपूर्णाद्यतिशेखरोयम्।
शुश्राव रामायणसंप्रदायं वक्ष्ये तमाचार्यपरंपरात्तम्।। प्रस्तावना श्लोक 6।।
वाल्मीकि रामायण की टीका एवं टीकाकार                                                      विशेष प्रतिपाद्य
1. भूषण                                  गोविन्द राज                         रामानुजीय सिद्वान्त के   अनुसार व्याख्या
2. तिलक                                  नागेश भटृ                                  व्याकरण तथा कतक मत,
3. रामायण शिरोमणि                                                               पुराणों से प्रमाण दिये गये हैं।
                                                                                           रामानन्द परम्परा, भूषण का  खण्डन
4. रामायण तत्वदीपिका         महेश्वर तीर्थ                     प्रतिकूल वचनों का अनुकूल  अर्थ किया गया है।

5. अहोबल स्वामी       तनिश्लोकी                                रहस्य एवं पाण्डित्य, द्रविड़ भाषा में लिखे                                                                                                                    रामायण की  व्याख्या का अनुवाद

रामकथा  पर लिखित साहित्य

१- महारामायण- इसमें ३, ५०००० श्लोक हैं। शङ्कर-पार्वती के संवादरूप इस रामायण में कनकभवन विहारी राम की ९९ रासलीलाओं का वर्णन है।

२- संवृत रामायण- नारदकृत इस रामायण में २४,००० श्लोक हैं। इसमें स्वायम्भुव मनु और शतरूपा की तपस्या तथा उनका दशरथ कौसल्या के रूप में आविर्भाव वर्णित है ।

३- लोमश रामायण ३२,००० श्लोकों की यह लोमश ऋषि की कृति है। इसमें राजा कुमुद और वीरवती के दशरथ कौसल्या के रूप में जन्म का वर्णन है ।

४- अगस्त्य रामायण - यह १६,००० श्लोकों का ग्रन्थ है। इसमें मानुप्रताप अरिमर्दन की कथा है तथा राजा कुन्तल और सिन्धुमती का दशरथ कौसल्या के रूप में जन्म वर्णित है।

५- मञ्जुल रामायण - सुतीक्ष्ण कृत १.२०,००० श्लोकों की यह कृति है। इसमें भानुप्रताप अरिमर्वन की कथा तथा शबरी के प्रति राम द्वारा नवधा भक्ति का वर्णन है ।

६- सौपद्म रामायण - अत्रि कृत इस रामायण में ६२,००० श्लोक हैं। इसमें वाटिका प्रसङ्ग वर्णित है ।

७- रामायण महामाला- शिव-पार्वती संवादरूप यह रचना ५६,००० श्लोकों की है। इसमें भुशुण्डि द्वारा गण्ड-मोह का निवारण किया गया है ।

८- सौहार्द रामायण - शरभङ्गा की यह कृति ४०,००० श्लोकों की है । इसमें राम और लक्ष्मण का वानरी भाषा समझने और बोलने का उल्लेख है ।

९- रामायण मणिरल-३६,००० श्लोकों की इस कृति में वसिष्ठ अरुन्धती का संवाद है। इसमें श्रीराम द्वारा मिथिला- अयोध्या में वसन्तोत्सव मनाने का उल्लेख है ।

१०- सौर्य रामायण - ६२,००० श्लोकों की इस कृति में हनुमान् का संवाद वर्णित है। इसमें शुकचरित्र तथा शुक का रजक बनकर सत्याग में कारण बनना वर्णित है ।

११- चान्द्र रामायण - ७५,००० श्लोकों वाली इस कृति में केवट के पूर्व जन्म की कया विशेषरूप से वर्णित है

१२- मैन्द रामायण - इसमें ५२,००० श्लोक तथा मेन्द-कौरव का संवाद है । बाटिका प्रसङ्ग का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है ।

१३- स्वायम्भुव रामायण - १८,००० श्लोकों की इस रामायण में ब्रह्मा नारव का संवाद है। इसमें मन्दोदरी के गर्भ से सीता के जन्म का वर्णन है ।

१४- सुब्रह्म रामायण - इसमें ३२,००० श्लोक हैं ।

१५- सुवर्च रामायण - इसमें १५,००० श्लोक तथा सुग्रीव-तारा का संवाद है। इसमें सुलोचना की कथा, धोनी-घोविन-संवाद, रावण चित्र के कारण शान्ता की चुगली शान्ता के प्रति सीता का शाप, उसे पक्षी योनि की प्राप्ति एवं महारावण का वध वर्णित है ।

१६- देवरामायण- इन्द्र मोर जयन्त के संवादरूप इस रामायण में १,००००० श्लोक हैं ।

१७- श्रवण रामायण- इसमें इन्द्र-जनक संवाद तथा १,२५,००० श्लोक हैं । इसमें मन्थरा की उत्पत्ति तथा चित्रकूट में भरत की यात्रा के समय जनक का आगमन वर्णित है।

१८- दुरन्त रामायण - इसमें ६१,००० श्लोक तथा वसिष्ठ-जनक संवाद है। इसमें भारत की महिमा वर्णित है । १९- रामायण चम्पू - १५,००० श्लोकों की इस कृति में शिव नारद का संवाद है। इसमें शोलनिधि राजा के यहां स्वयंवर का वर्णन है ।

संस्कृत साहित्य में रामकथा (महाकाव्य)

रघुवंश, रावणवध या सेतुबन्ध, भट्टिकाव्य, जानकीहरण, अभिनन्दकृत रामचरित, रामायणमञ्जरी, दशावतारचरित, उदारराघव, जानकी परिणय, रामलिङ्गामृत, जानकीरामक्रीडाह्निक, राघवोल्लास और राम रहस्य में लाघव गौरव तथा संकोच विकास के साथ राम कथा का वर्णन किया गया है ।

संस्कृत नाटक में रामकथा

उत्तररामचरित, कुन्दमाला, प्रतिमानाटक, मैथिलीकल्याण, दूताङ्गद, उन्मत्तराघव, अभिषेकनाटक, महावीरचरित, उदात्तराघव, अनर्घराघव, बाल रामायण, हनुमन्नाटक, आश्चर्यचूडामणि, रामानन्द, कृत्यारावण, प्रसन्नराधव, उल्लाघराघव, अञ्जनापवनञ्जय, रामाभ्युदय तथा अद्भुतदर्पण नाटकों में रामकथा का विविध रूप में विकास देखा जाता है ।

संस्कृत के स्फुट काव्य में रामकथा

 श्लेषकाव्य, राघवपाण्डवीय, राघवनैषधीय, सन्नीतिरामायण, रामकृष्णविलोमकाव्य, यादवराघवीय, रामलीलामृत, चित्रबन्धरामायण, हंससन्देश, भ्रमरदूत, कपिदूत, कोकिलसन्देश, चन्द्रदूत, रामगीतगोविन्द, गीतराघव, रामविलास, जानकी गीता, सङ्गीतरघुनन्दन, राघवविलास, रामशतक, रामार्याशितक तथा आर्यारामायण

संस्कृत कथा साहित्य एवं चम्पू काव्य में रामकथा

वसुदेवहिन्डी, कथासरित्सागर, भोजकृत चम्पूरामायणम्, उत्तररामायणचम्पू तथा रामकल्पद्रुम।

संस्कृत में अन्य रामकथा

सत्योपाख्यानम्, अग्र रामायण, अद्भुत रामायणम्, तत्वार्थ रामायण, योग वासिष्ठः, भुशुण्डि रामायण,             चीन रामायणम्, कृतिवास रामायण, कम्ब रामायण, अध्यात्म रामायण, लघु योगवासिष्ठः, अद्भुत रामायणम्,             मंजुरामायणम्, भुशुण्डि रामायण,  श्री वशिष्ठ रामायणम्, रामायण काकाविन्, मन्त्ररामायणम्, रामाभ्युदय यात्रा, आनन्दरामायणम्, रामायण मंजरी, बालरामायणम्, चित्रबन्धरामायणम्, उभय प्रबोधक रामायण,         तमिल कम्ब रामायण, सत्योपाख्यानम्, आञ्जनेयरामायणम् 

आज भी संस्कृत में रामकथा पर आधारित अनेक काव्यों, कथासाहित्य एवं नाटकों की रचना हो रही है। उनका विवरण यहाँ शीघ्र दिया जाएगा।

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10 टिप्‍पणियां:

  1. 🙏🙏🙏 आचार्य श्री जी आजकल कुछकेक विद्वान मानते हैं, कि बाल्मीकि रामायण में मिलावट है,
    उत्तर काण्ड कभी था ही नहीं, और सीता जी का पुनः वनगमन,( धोबी की बात पर परित्याग हुआ ही नहीं) व लवकुश का जन्म वन में नहीं हुआ, कृपया 🙏🙏🙏🙏 अपना मत दें।

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  2. Awesome Information

    This valuable information is NOT found anywhere else on internet

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. कृपया हमे वाल्मीक रामायण का टीका उपलब्ध करायें 9519110371

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  5. वाल्मीकि के उपजीव्य महाकाव्य ग्रंथों के तुलनात्मक समीक्षाओं के ग्रंथों की सूची व इन्हें उपलब्ध कराने की महती कृपा करें। आशीष अविरल चतुर्वेदी 9415748862

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  6. Sir Ji namaskar ham valmiki Ramayana chahate ha
    Sanskrit with Hindi anuvad chahiye

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  7. Kripya valmikiya ramayan bhushan ki tika ramyan bhushan kaha available hai. Kripya contact share kare

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