क्या तुम वही व्यास हो,
जिसकी मां मत्स्यगंधा और पिता पराशर थे।
कहा जाता है कि एक द्वापरयुगीन काला वर्ण वाला,
यमुना के द्वीप में पैदा हुआ। बाद में वह
बदरी वन में तपस्या किया। यदि तुम वही व्यास हो तो निश्चित है, तुम्हारा नाम पाराशर्य और कृष्णद्वैपायन रहा होगा। वेदों को
विभाजित करने के कारण लोगों ने तुम्हारा नाम वेद व्यास रखा होगा। कहा जाता है कि
तुमने ही अठ्ठारह पुराण, ब्रह्मसूत्र सहित एक लक्ष वाले महाभारत
की भी रचना कर डाली। तुम जरूर क्रान्तिदर्शी रहे होगे परन्तु यह देखो, तुम्हारे नाम पर कितना बवाल उठ खड़ा हुआ है। लोगों ने तुम्हारे
नाम व्यास को पद नाम मान लिया, क्योंकि कुछ सुयोग्य लोग तुम्हारे ही नाम
से अनेकों पुराण, उप पुराण तथा औपोपपुराण लिख डाले। सब ने
तुम्हारे कृतियों का व्यास किया। जहां चाहा,
जिस रूप में चाहा, अपनी रचना धुसेर डाली। उस समय वह जरूर व्यास बने फिरते होंगें, जैसे आज लोग अनधिकृत होते हुए भी लालवत्ती वाली गाड़ी लिये
घूमते हैं। मनु तो मनुस्मृति। याज्ञवल्क्य तो याज्ञवल्क्य स्मृति। बहुतेरे ऋषियों
ने आचार संहिता बनायी, फिर तुम भी तो आज कल के लोगों की तरह
युगद्रष्टा जो ठहरे। इस चक्कर में काशी चले गये। अपने नाम से स्मृति ग्रन्थ लिखने।
तुमने इतनी सारी पोथी लिखी उसमें धर्म,
राजनीति, आचार, भूगोल सबका वर्णन किया, बखूवी किया। यहां तक किया कि महाभारत मानवता का विश्वकोश हो
गया।
अष्टादशपुराणानि
कृत्वा सत्यवतीसुतः।
पश्चात्
भारतमाख्यानं चक्रे तदुपबृंहितम्॥ मत्स्य पु053/70
देखो न,
लोग कहते फिर रहे हैं यन्न भारते तन्न भारतम्। व्यासोच्छिष्टं
जगत्सर्वम्।
अचतुर्वदनो
ब्रह्मा द्विबाहुरपरो हरिः ।
अभाललोचनः
शम्भुर्भगवान् बादरायणः ॥
भगवान बादरायण
व्यास के चार मुख नहीं हैं, फिर भी वे ब्रह्मा है; दो बाहु है, फिर भी हरि है; मस्तिष्क पर तीसरा नेत्र नहीं है, फिर भी वे शम्भु है ।
धर्मे
चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।
यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत क्वचित्।।
हे भरत श्रेष्ठ इस ग्रंथ में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के संबंध में जो बात है, वही अन्यत्र भी है,
जो इसमें नही है, वह कहीं भी नही है।
फिर
तुम काशी क्यों गये? क्या इसलिए कि पण्डितों के सामने
पण्डिताई बघारते। इसलिए कि काशी में प्रतिष्ठित होने पर तुम्हारी रचना को भारतीय
जनमानस मार्गदर्शक मान लेता। आचार शास्त्र सर्वमान्य होता। लेकिन हा हत भाग!
तुम्हें वहां से खदेड़ दिया गया। अरे चिरंजीवी तुम तो जान ही गये होगे। यहाँ पर तुलसी
दास भी प्रताडि़त हुए थे। रामानन्द ही एक ऐसा वैरागी साधू निकला, जिसने अपने स्थानीय शिष्य और जिस जाति के लोग वहां आज भी
बहुसंख्यक हैं के साथ झंडा ऊँचा किया। जाति पाति पूछे नहि कोई। हरि को भजै सो हरि
का होई! मैं दावे के साथ कहता हूं तुम यदि मत्स्यगंधा पुत्र थे तो धीवर बन्धुओं को
साथ ले लिये होते। कोई भी बाल वाॅका नही कर पाता। तुम्हें काशी छोड़कर राम नगर की
ओर नहीं जाना पड़ता। तुम चिरंजीवी हो। अब सब कुछ जान समझ रहे होगे कि प्रजातंत्र
में भी संख्या बल का ही महत्व है। बुद्धिबल आज भी हार जाता है।
वैसे भी तुम्हारे कर्मक्षेत्र पर बहुत
विवाद है। आज तुम सर्वाधिक विवादित लेखकों में से एक होते जा रहे हो। लोग लाख सफाई
देते फिरें परन्तु तुम्हारा जन्म जिस ग्रह नक्षत्रों में हुआ होगा, उसमें सर्वक्षेत्र विवाद सहित का भी योग रहा होगा। तुम्हारे
अविवादित मां पिता तथा जन्म, स्थान, रचना विवादित होने से समस्त कार्य विवाद के घेरे में है।
सर्व प्रथम तुम्हारे जन्म तिथि पर ही
विवाद कोई मोक्षदा एकादशी तो कोई गुरू पूर्णिमा को। दावे तो बहुत बड़े किये जाते
हैं कि तुम्हारे जन्म के समय सभी ग्रह लग्न अनुकूल थे। यदि ऐसा था तो अपनी
जन्मतिथि बताओ। तुमसे सम्भव नहीं तो ज्योतिषी को बुलाकर गणना करा डालो। पांच हजार
वर्ष कोई ज्यादा पुराना समय थोड़े ही है। वैसे रहने दो तुम्हारे जयन्ती पर ही अब
कौन विचार करते हैं ?
जब चाहा जहां चाहा तुम्हारी जयन्ती मना
डाली। मेरठ में अलग तो उत्तराखण्ड,बुन्देलखण्ड और वाराणसी में अलग-अलग। तुम्हारे सोच के विपरीत लोग तुम्हारे ही
नाम पर राज्याश्रय से चिपके हैं।
तुम्हें भी वहां वहां धुमायेंगें जहां-जहां तुम्हारे चरण रज पड़े होगें। अब तो
गंगा का जल दूषित हो गया हैं। यमुना सर्वाधिक प्रदूषित है। गंगा यमुना त्रिवेणी
धाम में आकर प्रदूषण को और गहरा कर गया। क्या ये कम है कि गंगा यमुना संस्कृति के
किनारे लोग तुम्हारे नाम पर गीत गायें। ज्ञान के प्रतीक अब तो उस कमण्डल को रखना
छोड़ दो। तुम्हारा कमण्डलू भगीरथ का तो हो भी नहीं सकता, कितना कुछ रखने को मिलेगा उस कमण्डल में ? जाओ व्यास जाओ,
बदरिकाश्रम चले जाओ, वहां-वहां जाओ जहां-जहां लोग स्वयं को विस्तीर्ण करना चाहते
हैं और तुम्हें संकुचित।
कुछ कथावाचक रोज रोज ऊँचे सिंहासन पर
बैठकर ध्वनियंत्र से तुम्हारे संदेश का विस्तार कर रहे है। कुछ विद्वान् लिख लिख
कर तुम्हें बढ़ा रहे हैं। लेकिन तुम हो कि संकुचित हुए जा रहे हो। व्यास कथा के
नाम पर ठीक उसी प्रकार की कथा होने लगी जैसे सत्यनारायण व्रत कथा। लीलावती, कलावती की कथा तो सुनायी जाती है, परन्तु एक पंक्ति में तुम्हें समेट कर फिर से दूसरी कथा शुरू
कर दी जाती है।
देखो तुम्हारे लिखे संदेश को जन-जन तक
पहुंचाने के लिए कितने लोग लगे हैं कैसे-कैसे उद्यम करते है? बड़े-बड़े होर्डिंग,
वैनरों से पटा शहर, विशाल मंच, बड़े नामधारी आयोजक, पगड़ी बांधे सबसे आगे बैठते हैं। जैसे सर्पदंश की भविष्य वाणी
उनके लिये ही की गयी हो। तितीक्षा के प्रतिमूर्ति आयोजक खूब धन धान्य सुतान्वितः
का आशीर्वाद पाते हैं। लो मैं भी न अपनी काली कलम से मन को भी काला कर बैठा।
तुम्हारी तरह तन काला मन गोरा थोड़े मेरा और उनका होगा।
अब इस फैशन के दौड़ में तुम शास्त्र से
उपर उठ चुके हो। लोग तुम्हें भी आधुनिक देखना चाहते हैं। बदरिकाश्रम न जा सको तो
आओ तुम भी साथ हो जाओ। कुछ लोग मिलकर तुम्हारे नाम से (व्यास जी) अपना धंधा
चमकायें। अवसर मिला कुछ कमाये। फिर ये मौका मिले न दुबारा।
Vyas ji ka samman kar rahe ha ya apman ye samaj nahi aa raha
जवाब देंहटाएंबादरायण वेदान्त के न्याय-प्रस्थान के प्रवर्तक ‘ग्रन्थ ब्रह्मपुत्र के रचयिता थे। जितने ब्रह्मसूत्र उपलब्ध हैं, उनका रचयिता एक ही व्यक्ति था और वे बादरायण थे। वाचस्पतिमिश्र (वाचस्पतिमिश्र-भारत के विविध आस्तिक दर्शनों को वाचस्पतिमिश्र का महत्त्वपूर्ण योगदान है। न्याय, मीमांसा, सांख्य-योग तथा अद्वैत वेदांत, इन सब दर्शनोंमें वाचस्पतिमिश्र ने व्याख्या ग्रन्थ लिखे हैं। इससे उन दर्शनों का विशदीकरण बहुत अच्छी तरह हुआ है। इस कारण दर्शनशास्त्र के विद्यार्थियों के लिए दर्शनों का रहस्य जान लेने के लिए वाचस्पति के ग्रन्थों का अध्ययन आवश्यक सा हो गया है।(के समय से बादरायण को 'व्यास' भी कहा जाने लगा था, किन्तु ब्रह्मसूत्रकार बादरायण वेदव्यास या महाभारत के रचयिता 'कृष्ण द्वैपायन' से भिन्न व्यक्ति थे।
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