1. संस्कृत
प्रसारक संस्थाएँ अपने भवन के प्रत्येक कक्ष का नामकरण संस्कृत के महापुरुषों के
नाम से करें। प्रत्येक कक्ष के द्वार पर महापुरुषों के नाम लिखाये जायें।
2. प्रचारक
संस्थाओं में स्थित वनस्पतियों, पेड़ों आदि के नाम संस्कृत
में लिखवाकर प्रदर्शित करें।
3. अपने-अपने
परिसर में प्रेरणादायी संस्कृत सूक्तियों की पट्टिकाएं यत्र-तत्र प्रदर्शित करें।
4. संस्कृत केे
प्रति वहां के कर्मचारियों में दृष्टि विकसित करने हेतु संस्कृत वैचारिक अधिष्ठान
प्रशिक्षण कराये जाये, ताकि उनमें संस्कृत के प्रचार-प्रसार
के प्रति दृष्टि, लक्ष्य, संसाधनों के
समुचित प्रयोग के निर्णय का सामथ्र्य विकसित हो सके। वे वैचारिक अधिष्ठान के रुप
में कार्य कर सके। संस्कृत जगत उनसे सुपरिचित हो तथा इस क्षेत्र की ऐतिहासिकता,
घटनाओं के बारे में इन्हें पुष्ट जानकारी रहे।
5. यथासंभव
संस्कृत के विद्वानों के साथ संस्कृत में पत्राचार किया जाय। उन विषयों को छोड़कर,
जिसमें वित्तीय व्यवस्था सम्मिलित हो। यथा- सूचना, आमंत्रण विषयक आदि।
6. संस्थाएं
अपने अपने प्रदेश के संस्कृत के शैक्षणिक संगठन एवं विद्वानों का भौगोलिक आधार पर
विवरण तैयार कराये।
7. देश के
संस्कृत सेवी संस्थाओं, विद्वानों,इस
क्षेत्र में कार्यशील व्यक्तियों की सूची तैयार करायी जाय, जिसमें
उनके कार्यस्थल एवं आवास के पते, दूरभाष संख्या, ई-मेल, वेबसाइट (यदि संचालित कर रहे हों तो) का
एकत्र संग्रहण कराया जाय।
8. संस्थान के
गतिविधियों के प्रचार-प्रसारार्थ (सूचनाओं के प्रसारण) व्यवस्था निर्मित की जाय।
इन्हें जन सम्पर्क, संस्था सम्पर्क, पत्रकारिता
के क्षेत्र में सम्पर्क (विशेषतः संस्कृत एवं आॅनलाइन प्रसारित होने वाली) की
व्यवस्था निर्मित की जाय।
9. जिस लक्ष्य
को लेकर कार्य किये गये उसके परिणाम का विश्लेषण तथा अनुवर्तन।
10.कार्यक्रमों
को अलग-अलग मंडलों में आयोजित किया जाना।
सार्वजनिक उपयोग
के लिए ई बुक्स, अन्तर्जाल पर लेखन, संस्कृत के अप्लीकेशन, टूल्स निर्मित करने वाले को पुरस्कृत किया
1. प्रकाशन
1.1 पुस्तक
प्रकाशन
1.1.1 संस्कृत
वाङ्मय के विविध विषयों पर अलग-अलग छात्र संस्करण पुस्तक लिखाया जाय। कई विषयों के
उपविभाग की भी आवश्यकता है।
1.1.2 संस्कृत
के लगभग सभी विषयों की एकत्र जानकारी देने वाला एक पुस्तक प्रकाशित हो।
1.1.3 संस्कृत
षड्दर्शन पर एक पुस्तक प्रकाशित हो।
1.1.4 संस्कृत
शास्त्रों पर पुस्तकें प्रकाशित करायी जाय।
1.1.5 लेखकों से
संस्कृत पुस्तकों के प्रकाशनार्थ पाण्डुलिपियां आमंत्रित हो।
1.1.6 बच्चों के
उपयोगी संस्कृत हिन्दी, हिन्दी संस्कृत कोश प्रकाशित हो।
1.2 उपर्युक्त
का ई-बुक्स भी तैयार कराये जायें।
1.3 पुस्तकों के
आॅनलाइन विक्रय की व्यवस्था पर विचार किया जाय।
1.4 प्रकाशित
पुस्तकों के परिचायत्मक विवरण सहित सूची पत्र प्रकाशित किया जाय। 1.5 पुस्तक क्रेताओं को सूचीबद्व कर निःशुल्क पुस्तक सूची भेजी जाय। अन्य प्रकाशकों के ई-मेल आई0डी0 पर पुस्तक के चित्र के साथ परिचायत्मक विवरण,
मूल्य, छूट आदि के विवरण भेजे जायें।
1.5.1 अन्तः
कार्य के क्रम 7 की सूची की अनुसार उन्हें भी नवीन पुस्तक,
पत्रिका प्रकाशन की सूचना, लेख आमंत्रण आदि
प्रेषित किया जायें।
1.6 संस्कृत में
उपलब्ध बाल कथा साहित्य को हिन्दी भाषा में अनुदित कराया जाय।
1.7 अन्य भाषा
में उपलब्ध बाल कथा साहित्य को संस्कृत में अनुवाद हेतु 30
वर्ष से कम आयु वर्ग के छात्रों को विज्ञापन के माध्यम से आमंत्रित किया जाय।
योग्य पाये जाने पर प्रति पृष्ठ की दर से पारिश्रमिक देकर प्रकाशन कराया जाय।
2. संस्कृत के अध्येता ही नहीं, आग्रहकर्ता का भी निर्माण हो।
2.1 संस्कृत के हित चिन्तकों को चिहिनत कर उनके
चिन्तनधारा का प्रायोगिक परीक्षण किया
जाय। परानुभूति का लाभ लें।
3 अन्तर्जाल पर संस्कृत को बढ़ावा देने वाले
व्यक्तियों, संस्थाओं को सूचीबद्ध कर प्रोत्साहन दिया जाय।
3.1 ऐसे व्यक्ति जो अन्तर्जाल द्वारा संस्कृत के
संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में कार्य कर
रहे हों उन्हें पुरस्कार प्रक्रिया में सम्मिलित किया जाय।
3.2 बेवसाइट को जनोपयोगी बनायें। इसमें अध्ययन सामग्री
को भी जोड़ें । (सम्प्रति यह केवल
सूचनात्मक है।)
3.3 वेबसाइट पर संस्कृत के प्रशिक्षण (ट्यूटर) पुरोहित,
ज्योतिषी आदि को सूचीबद्ध करने
के लिए उनका परीक्षण करा लिया जाय।
3.4 संस्था में उपलब्ध पुस्तकों एवं पाण्डुलिपियों की
सूची को आॅनलाइन किया जाय।
4. संस्कृत सम्भाषण शिविर
4. संस्कृत सम्भाषण शिविर के लिए अनुकूल क्षेत्र
विशेष को चिहिनत किया जाय।
4.1 अनुकूल एक क्षेत्र के निवासियों में तब तक सम्भाषण
शिविर चलाये, जबतक कि 70 प्रतिशत से अधिक आबादी संस्कृत बोलने में सक्षम न हो
जाय।
4.2 संस्कृत सम्भाषण शिविर के उदेश्यों की पूर्ति एवं
जन उपलब्धता के लिए दृश्य श्रव्य संसाधन
अन्य टूल्स विकसित किये जायें। सहज और सरल साहित्य आदि भी (यथा संस्कृत की पत्रिकाएं आदि) उपलब्ध कराये
जायें।
4.3 संस्कृत सम्भाषण प्रशिक्षण पाठ्यक्रम एवं
पाठ्योपकरण का निर्माण हो।
4.4 प्रशिक्षित प्रशिक्षकों को सुनिश्चित अवधि (दीर्घ
अवधि तब तक के लिए जब तक कि लक्ष्य
प्राप्त न हो जाय) के लिए नियोजित किया जाय।
संस्कृत के प्रचार-प्रसार एवं संरक्षण के
बारे में यदि आपने कोई सर्वहितकारी कार्ययोजना बनायी है और विश्वास हो कि न्यून
जन धन संसाधन के वावजूद यदि इसे लागू किया जाय तो इसके टिप्पणी अनुच्छेद में
जाकर अनुमानित व्ययाकलन के साथ अपनी कार्य योजना से अवगत करायें।
जगदानन्द झा
जगदानन्द झा
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