वैशेषिक दर्शन में
पदार्थों का विश्लेषण किया गया है। यह दर्शन भौतिक शास्त्र का आद्य प्रवर्तक है,
जिसमें पदार्थों के विशिष्टतत्व एवं पार्थक्य को दर्शाया गया है।
कणाद द्वारा प्रणीत होने के कारण इसे कणाद दर्शन तथा प्रकाश का अभाव ‘तम’ को प्रतिपादित किया जाने से औलूक दर्शन से भी
अभिहित किया गया। श्री हर्ष अपने नैषधीयचरितम् में इसे इस प्रकार उल्लेख करते
हैं।
ध्वान्तस्य
वामोरु विचारणायां वैशेषिकं चारु मतं मतं मे।
औलूकमाहुः
खलु दर्शनं तत्क्षमं तपस्तत्वनिरुपणाय।।
रचना
काल
बौद्व ग्रन्थ ललित विस्तार, मिलिन्द प्रश्न तथा लंकावतार सूत्र में वैशेषिक का उल्लेख प्राप्त होता
है। चरक संहिता (ई0 80) में गुण, धर्म
का विवेचन वैशेषिक के अनुसार प्राप्त होता है। अतः बौद्व के पूर्ववर्ती होने से इस
दर्शन का समय ई0 पूर्व0 5 वीं शताब्दी
हो सकती है।
ग्रन्थकार
वायु पुराण के अनुसार वैशेषिक दर्शन के
प्रर्वतक कणाद का जन्म द्वारिका के समीप प्रभास क्षेत्र में हुआ था। कणाद नाम के
पीछे अनेक जनश्रुतियां प्रचलित है। खेतों से फसल काट लेने के पश्चात् बचे अन्न को
एकत्र कर खाने के कारण तथा परमाणु की विवेचना करने के कारण इन्हें कणाद कहा गया।
आँखें बन्द कर पदार्थ चिन्तन करते हुए विचरण
करने वाले इस ऋषि को लोगों ने अक्षपाद नाम से भी अभिहित किया। राजशेखर के अनुसार
भगवान् शिव उलूक रुप धारण कर इन्हें वैशेषिक दर्शन का उपदेश दिया अतः इस दर्शन का
नाम औलुक्य दर्शन पड़ा।
वैशेषिक दर्शन के प्रतिपाद्य विषय
वैशेषिक सूत्र दश अध्यायों में विभक्त है
प्रत्येक अध्याय में दो आह्निक है। इसमें कुल 370 सूत्र है।
इसमें द्रव्य,
गुण, कर्म, विभाग तथा
सामान्य का निरुपण प्रथम अध्याय तक इन्हीं पदार्थों का उपविभाग है।
प्रशस्तपाद (500-600ई0)
प्रशस्तपाद ने
वैशेषिक सूत्र पर स्वतंत्र भाष्य की रचना ‘पदार्थधर्मसंग्रह’
नाम से किया है। व्योमशिखाचार्य ने पदार्थधर्मसंग्रह पर व्योमवती
टीका लिखी। श्रीधराचार्य ने भी पदार्थधर्मसंग्रह पर न्यायकन्दली नाम से टीका लिखी।
अभाव को सप्तम पदार्थ के रुप में प्रतिष्ठित
करने वाले उदयनाचार्य (1200 ई0) ने
किरणावली नामक टीका लिखी। इसके अतिरिक्ति वल्लभाचार्य की लीलावती टीका, चन्द्रानन की वृत्ति टीका, मिथिला विद्यापीठ से
प्रकाशित मिथिला वृत्ति, शंकर मिश्र की वैशेषिक सूत्रोपस्कार
भाष्य, जगदीश भटृाचार्य का भाष्यसूक्ति शिवादित्य मिश्र का
सप्तपदार्थी तथा लक्षणमाला, पद्नाम मिश्र की सेतु नाम्नी
टीका प्रसिद्ध है। उपर्युक्त टीकाएँ वैशेषिक सूत्र अथवा प्रशस्तवाद भाष्य पर की
गयी।
16वीं शताब्दी तक आते-आते वैशेषिक सिद्वान्त
में कुल 7 पदार्थ मान लिये गये थे द्रव्य, गुण कर्म, सामान्य विशेष, समवाय
और अभाव।
16 शताब्दी के अनन्तर विश्वनाथ पंचानन ने
वैशेषिक दर्शन पर 17 वीं शतीं में भाषा परिच्छेद नामक ग्रन्थ
की रचना की। इसमें 168 कारिकाएँ है, इसी
का विशदीकरण न्याय सिद्वान्त मुक्तावली नाम्नी टीका में किया गया। आज
न्यायसिद्वान्तमुक्तावली का पाठ-पाठन अनेक विश्वविद्यालयों में किया जाता है।
मुक्तावली पर दिनकरी तथा रामरुद्री दो
प्रसिद्व टीकाएँ प्राप्त होती है। बाद में किरणावली सहित अनेक संस्कृत तथा हिन्दी
में टीकाएँ की गयी। बालानां सुखबोधाय अन्नं भटृ ने तर्क संग्रह ग्रन्थ की रचना कर
स्वयं इस पर दीपिका टीका भी लिखी। तर्क संग्रह पर न्यायबोधिनी, सिद्वान्तचन्द्रोदय, पदकृत्य, नीलकण्ठी,
भास्करोदया आदि सहित एक साथ कुल 16 टीकाएँ भी
प्रकाशित की गयी है।
वैशेषिक का पदार्थ विश्लेषण
जैसा कि हम पूर्व में कह चुके है वैशेषिक
द्रव्यादि 6 भाव पदार्थ एवं सप्तम अभाव को पदार्थ माना गया।
पुनः द्रव्यादि पदार्थों का प्रविभाग किया गया। यथा
द्रव्य- पृथ्वी,
जल, तेज, वायु, आकाश, काल, दिक्, आत्मा, मन।
शेष पदार्थ
विश्लेषण की चर्चा अग्रिम लेख में। शुभमस्तु।
वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक को कणाद क्यों कहा गया है?
जवाब देंहटाएंवैशेषिक दर्शन को विस्तृत में लिखें!
जवाब देंहटाएंवैशेषिक दर्शन कितने अध्यायो में विभक्त है ,कितने सूत्र हैं एवं अहनि्क सहित बताइए!
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