संस्कृत क्षेत्र में संस्कृत वाचन अभ्यास की परम्परा लगभग न के बराबर है।
यहां कण्ठस्थीकरण पर आज भी जोर है। आज भी पद्य के अपेक्षा गद्य में बहुत कम लेखन
होता है। समसामयिक विषयों पर कुछ स्फुट काव्य दिख जाते हैं। ये प्रौढ़ साहित्य हैं
तथा वाल्यावस्था में इनसे वाचन का अभ्यास नहीं कराया जा सकता। वाचन अभ्यास केवल
वाचन सीख लेने तक की ही प्रक्रिया नहीं होती,
अपितु वाचित सामग्री में निहित
ज्ञान-विज्ञान का बोध होना भी आवश्यक होता है। वाचनाभ्यास से मोटे तौर पर तीन लाभ
होते हैं-
1. शुद्ध-शुद्ध पढ़ने का अभ्यास।
2. शब्दकोश में वृद्धि या नवीन शब्दों से परिचय।
3. ज्ञानार्जन
बच्चों के समक्ष रूचिकर एवं ज्ञानप्रद साहित्य उपलब्ध होने पर
वाचन की रूचि उत्पन्न होगी। इस विषय की चर्चा हम इसलिए भी कर रहे हैं कि अधिकांश
संस्कृत क्षेत्र के लोगों में वाचन का अभ्यास ही नहीं होता जैसे हम हिन्दी या अन्य
तमाम भाषाओं के पुस्तकों, पत्रिकाओं का वाचन सहजतया करते हैं। वह
प्रवाह संस्कृत भाषा में नहीं आ पाता।
संस्कृत में सन्धि, प्रत्यय और समास के कारण इसके पदो में अत्यधिक परिवर्तन हो
जाता है। इससे नयें छात्र भ्रमित हो उठते है। इसकी पदावली अत्यन्त कठिन भी हो जाती
है जिससे उच्चारण करना सहज नहीं होता।
आवश्यकता है संस्कृत में संश्लिष्ट पदों के स्थान पर सरल शब्दों के प्रयोग किये
जायें, जैसा कि बोलचाल की भाषा में किया जाता है।
आज भी संस्कृत
विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में अम्बिकादत्त व्यास रचित शिवराजविजयम् पुस्तक
पढ़ाया जाता है। जिसकी भाषा अत्यन्त ही कठिन है। आवश्यकता है कि हितोपदेश की शैली
में लिखित पुस्तकें पाठ्यक्रम में रखी जायें। हिन्दी या अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में इस पर जोर दिया
जाता है।
यदि आप संस्कृत वाचन का
अभ्यास करना चाहते हैं तो आपके लिए अधोलिखित सामग्री उपयोगी हो सकती है-
1. आधुनिक संस्कृत साहित्य की एक विधा भाषण (व्याख्यान) को भी मान
लेना चाहिए। प्राक्काल में शास्त्रीय प्रवचन होते थे। जिन्हें टीका या भाष्य के
रूप में उसी विषय में सम्मिलित कर लिया गया। आज सार्वजनिक भाषण का संकलन संस्कृत में उपलब्ध होने लगा है उदाहरणार्थ प्रो. आजाद मिश्र का राजपाथेयम्। इसमें विविध विषयों पर प्रदत्त बलराम जाखड़ के भाषणों का संस्कृत अनुवाद है।
पत्रकाव्य विधा पर लिखित प्रो0 सत्यव्रत शास्त्री की पुस्तक
पत्रकाव्यम् की शैली गद्यात्मक न होकर पद्यात्मक है। ऐसा प्रतीत होता है कि लेखक
ने पत्र लेखन की प्रचलित गद्य शैली को न अपनाकर जानबूझकर पद्य शैली को अपनाया। यहाँ कृत्रिमता स्पष्ट है। पद्य शैली में पत्र लिखने का उदाहरण
प्राप्त नहीं होता है। कवि मन यदा कदा पद्यों में अपने भावों की अभिव्यक्ति करता
है, परन्तु संदेश प्रेषण (पत्र) के लिये नहीं। अच्छा होता कि लेखक पत्र
काव्य में गद्य शैली को अपनाते हुये पाठ्य सामग्री उपलब्ध कराते।
2. कथा साहित्य
बनमाली विश्वाल का जिजीविषा, प्रभुनाथ द्विवेदी का अन्तर्ध्वनिः, ओम प्रकाश ठाकुर का ईसप् कथानिकुंजम्, प्रशस्य मित्र शास्त्री का अनाघ्रातं पुष्पम् एवं आषाढस्य प्रथमदिवसे, पद्म शास्त्री का विश्वकथाशतकम्, केशव चन्द्र दाश का शिखा आदि पुस्तकें रोचक सरल और ज्ञान
वर्द्धक है। इससे संस्कृत भाषा पढ़ने का अभ्यास करना चाहिए।
3. संस्कृत पत्रिकाएं
कथा भारती, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित कथा सरित, श्री निवास विद्यापीठ दिल्ली से प्रकाशित संस्कृत वाणी, संस्कृतभारती द्वारा प्रकाशित सम्भाषण सन्देशः, डा0 बुद्धदेव शर्मा द्वारा सम्पादित और
देहरादून से प्रकाशित पाक्षिक वाक् पत्रिका,
दिल्ली संस्कृत अकादमी की पत्रिका संस्कृत चन्द्रिका आदि पत्रिकाओं की भाषा सरल एवं प्रवाह युक्त है। इसमें
नूतन विषयों की जानकारी भी होती है। इससे संस्कृत भाषा पढ़ने का अभ्यास करना
चाहिए।
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