संस्कृत भाषा की समृद्ध परंपरा में वाचन (Reading) की अपेक्षा कण्ठस्थीकरण (Memorization) को अधिक महत्व दिया गया है।
पारंपरिक संस्कृत शिक्षण में छात्रों से श्लोकों, सूत्रों या पद्यों को स्मृति में रखने की अपेक्षा की जाती है, किंतु वाचन के माध्यम से भाषा के प्रयोग, भावबोध एवं व्यावहारिक ज्ञान की जो संभावनाएँ हैं, वे अभी तक व्यापक रूप से विकसित नहीं हो सकी हैं।
वाचन अभ्यास का महत्व
संस्कृत वाचन अभ्यास केवल शुद्ध पढ़ने की कला नहीं है, बल्कि यह भाषा को समझने, शब्द भण्डार को समृद्ध करने तथा निहित ज्ञान-विज्ञान
को आत्मसात करने की एक सशक्त प्रक्रिया है। वाचन अभ्यास के मुख्य तीन लाभ इस
प्रकार हैं—
- शुद्ध-शुद्ध
पढ़ने का अभ्यास: उच्चारण की स्पष्टता तथा स्वर, व्यञ्जन, सन्धि इत्यादि का यथोचित
प्रयोग।
- शब्दावली
का विस्तार: नए शब्दों एवं प्रयोगों से परिचय।
- ज्ञानार्जन: विषयवस्तु के माध्यम से विविध
ज्ञानक्षेत्रों की जानकारी।
यदि बालकों एवं आरंभिक शिक्षार्थियों के समक्ष सरल, रोचक एवं ज्ञानप्रद साहित्य प्रस्तुत किया जाए, तो वाचन की स्वाभाविक रुचि उत्पन्न की जा सकती है।
संस्कृत में वाचन अभ्यास की वर्तमान स्थिति
वर्तमान में संस्कृत भाषा के पाठ्यक्रमों में गद्य की तुलना में पद्य को
अधिक स्थान प्राप्त है। यह प्रवृत्ति प्रायः वाचन के मार्ग में बाधा बनती है
क्योंकि पद्य भाषा में छन्द, अनुप्रास, और अलंकारों की प्रधानता होती है, जो आरंभिक शिक्षार्थियों के लिए जटिल हो जाती है।
इसके अतिरिक्त संस्कृत में संधि, समास और प्रत्ययों की अधिकता के कारण पदों की रचना अत्यंत संश्लिष्ट हो
जाती है। इससे नवशिक्षार्थी भ्रमित होते हैं और उच्चारण में कठिनाई का अनुभव करते
हैं। अतः आवश्यक है कि बोलचाल की भाषा के निकट सरल और सुबोध संस्कृत वाचन सामग्री
तैयार की जाए।
वर्तमान पाठ्यक्रमों की सीमाएँ
संस्कृत विद्यालयों में आज भी अम्बिकादत्त व्यास कृत शिवराजविजयम् जैसी कठिन भाषा युक्त पुस्तकों को पढ़ाया जाता है।
जबकि आवश्यकता इस बात की है कि हितोपदेश या पंचतन्त्र की शैली में लिखित सरल गद्य साहित्य को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाए।
हिन्दी और अंग्रेजी माध्यमों के विद्यालयों में इसी दिशा में प्रयत्न किए जा रहे
हैं।
उपयुक्त वाचन सामग्री का सुझाव
यदि संस्कृत वाचन अभ्यास को सम्यक् रूप से विकसित करना है, तो इसके लिए निम्नलिखित प्रकार की नूतन सामग्री
उपयोगी सिद्ध हो सकती है—
1. आधुनिक गद्य साहित्य - भाषण एवं संवाद
संस्कृत में भाषण अथवा व्याख्यान की विधा एक
नवप्रवर्तन है। पूर्वकाल में शास्त्रीय प्रवचन प्रचलित थे, जो टीका और भाष्य के रूप में सुरक्षित हैं। आज के समय
में सार्वजनिक भाषणों का संकलन संस्कृत में भी उपलब्ध है।
- प्रो.
आजाद मिश्र कृत राजपाथेयम् — इसमें बलराम जाखड़ के विविध विषयक भाषणों का
संस्कृत अनुवाद है।
- यह
शैली छात्रों को समसामयिक भाषा एवं विषयों से जोड़ती है और वाचन के लिए
उपयुक्त सामग्री उपलब्ध कराती है।
2. पत्रकाव्य - एक विवेचन
- प्रो.
सत्यव्रत शास्त्री द्वारा रचित पत्रकाव्यम् नामक ग्रंथ में पत्र लेखन को
पद्य रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह शैली कृत्रिम प्रतीत होती है क्योंकि
पत्र प्रायः गद्य में ही प्रभावी होते हैं।
- यदि
यही पत्रकाव्य गद्य शैली में होता, तो यह छात्रों के वाचन अभ्यास हेतु अधिक उपयुक्त
बनता।
3. कथा साहित्य
वर्तमान में कुछ लेखकों ने अत्यंत सराहनीय प्रयास किए हैं, जिनकी रचनाएं संस्कृत वाचन के लिए विशेष उपयुक्त हैं—
- बनमाली
विश्वाल — जिजीविषा
- प्रभुनाथ
द्विवेदी — अन्तर्ध्वनिः
- ओम
प्रकाश ठाकुर — ईसप् कथानिकुञ्जम्
- प्रशस्य
मित्र शास्त्री — अनाघ्रातं पुष्पम्, आषाढस्य प्रथमदिवसे
- पद्म
शास्त्री — विश्वकथाशतकम्
- केशव
चन्द्र दाश — शिखा
इन पुस्तकों की भाषा सरल, विषय रोचक
तथा शैली संवादपरक है। ये वाचन के साथ-साथ बालकों के विचारों को भी विस्तार प्रदान
करती हैं।
4. संस्कृत पत्रिकाएं
वर्तमान समय में कई संस्कृत पत्रिकाएं ऐसी हैं जिनकी भाषा प्रवाहपूर्ण और
विषयवस्तु समसामयिक है—
- कथा
भारती (इलाहाबाद) द्वारा प्रकाशित कथा सरित
- श्री
निवास विद्यापीठ, दिल्ली की संस्कृत वाणी
- संस्कृतभारती द्वारा प्रकाशित सम्भाषण सन्देशः
- डा.
बुद्धदेव शर्मा सम्पादित वाक् पत्रिका (देहरादून से प्रकाशित)
- संस्कृत
चन्द्रिका (दिल्ली संस्कृत अकादमी)
इन पत्रिकाओं का नियमित वाचन संस्कृत भाषा की सरलता, प्रवाह एवं नवीनता का अनुभव कराता है।
उपसंहार
संस्कृत भाषा में वाचन अभ्यास की परंपरा को सुदृढ़ करने के लिए आवश्यक है
कि—
- सरल
एवं आधुनिक शैली में रचित गद्य साहित्य विकसित किया जाए।
- शिक्षार्थियों
को विविध विषयों पर रोचक पाठ उपलब्ध कराए जाएँ।
- पत्रिकाओं
और संवादमूलक साहित्य के माध्यम से वाचन की स्वाभाविक आदत डाली जाए।
इस दिशा में यदि संगठित प्रयास हों, तो संस्कृत भाषा न केवल वाचनीय बनेगी, अपितु वह जन-सामान्य में एक बार पुनः लोकप्रिय हो सकेगी।
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