गुरुदेव नहीं
रहे। सुबह उठते ही फेसबुक पर पढ़ने को मिला। विश्वास ही नहीं हो रहा था। मित्र
सुब्रह्मण्यम् को फोन किया। दुखद समाचार की पुष्टि हो गयी। फेसबुक पर जब-जब शोक
समाचार पढ़ रहा हूं, असहज हो उठता हूं । गुरुदेव के जाने से पूरा सेशलमीडिया रो
रहा है। जब भी कोई लिखते हैं श्रद्धाञ्जलि। सहसा गुरुदेव का चित्र सामने खड़ा हो
आता है। तब वे दाढी नहीं रखते थे।
उन्होंने मुझे शिक्षाशास्त्री में पढ़ाया था । राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के पुरी परिसर में आचार्य रामानुज देवनाथन् से मेरा परिचय हुआ। उनके अनेकों संस्मरण आज भी याद है। नियमित कक्षा में आकर पढाना। नियत समय पर कक्षा में प्रवेश और समय पर पाठ खत्म करना। इतना नियमित अध्यापक मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा । पढ़ाने की शैली इतनी अच्छी कि एक बार जो पढ़ा दें,वह सदा के लिए स्मरण रह जाता था। वह मुझे शिक्षा मनोविज्ञान पढ़ाया करते थे और मैं उनका प्रिय छात्र था। आप संस्कृत, हिन्दी, तमिल, तेलगू, उड़िया, कन्नड, मलयालम और अंग्रेजी भाषाओं के ज्ञाता थे। आपका जन्म Aheendrapuram, Cuddalore District, तमिलनाडू में 2 अप्रैल 1959 को हुआ था। आपके माता का नाम कनकावली और पिता का नाम एस. रामानुजाचार्य था। वे जितने अच्छे विद्वान् शिक्षाशास्त्र के थे,उतने ही अच्छे वेदांत और व्याकरण के भी थे । वे एक कुशल वक्ता थे। मुझमें संस्कृत बोलने का अभ्यास उन्हीं से आया। एक बार समय से लेशन प्लान न बनाने पर गुरुदेव ने मुझे डांट दिया था। मैं तत्कालीन शिक्षाशास्त्र विभागाध्यक्ष आदरणीय प्रोफेसर सच्चिदानंद जी से आगे शिक्षाशास्त्र में नहीं पढने की बात कही। गुरुदेव ने स्नेह पूर्वक मुझे समझाया था। मैं छात्र अवस्था में बहुत ही चंचल था। गुरुदेव बार-बार मुझे गंभीर होने की नसीहत देते रहते थे । समय का पालन,कठोर अनुशासन मैंने गुरुदेव से ही सीखा है। शिक्षाशास्त्र की कक्षा के छात्रों को सामुहिक नसीहत देने से नहीं चूकते थे। एक बार राजस्थान के एक छात्र को उन्होंने व्यंग्य भरे लहजे में बोला, आज कल तुम बहुत तेल पी रहे हो। शाम को उन्होंने उस छात्र के हाथ में एक बोतल देख लिया था। उस समय टेलीविजन की कम ही उपलब्धता थी। टेलीविजन पर आने वाले समाचारों की चर्चा करते हुए कहा करते थे कि काश छात्रों को भी यह ज्ञान देने वाली सुविधा उपलब्ध हो पाती। एक छात्र, किसी छात्रा को प्रपोज करने के लिए पत्र लिखा था। उसमें लिखा था आई लव यू। मैंने वह पत्र उनके टेबल के नीचे रख दिया। कक्षा में आते ही उन्होंने उस पत्र को निकाला और उस छात्र का नाम लेते हुए बोले मैं तुमसे प्यार नहीं करता। पूरा कक्ष ठहाकों से गूंज उठा । पुरी से मैं भी वापस आ गया। वहाँ से आप तिरुपति चले गए। वहां की भी सूचना मुझे निरंतर मिलती रही। जब आप राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान में कुलसचिव होकर लौटे,उस समय भी और जब आप जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय में कुलपति के पद पर आसीन थे। तब भी आप से दूरभाष पर मेरा निरंतर संपर्क बना रहा। हर एक काम में आपका मार्गदर्शन मिलता रहा। संस्कृतसर्जना पत्रिका की वेबसाइट बनवाते समय Home का संस्कृत आपने मुझे बताया था । twitter पर मैं आपको फॉलो करता था और मैं आपके हर tweet को पढ़ा करता था। आज भी आपके ट्वीटर पर 380 चित्र 13.8 हजार tweet उपलब्ध हैं। आपके tweet को बहुत ही पसन्द किया जाता है। 31 दिसम्बर 16 को twitter पर आपका अंतिम श्लोकबद्ध tweet आया।
उन्होंने मुझे शिक्षाशास्त्री में पढ़ाया था । राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के पुरी परिसर में आचार्य रामानुज देवनाथन् से मेरा परिचय हुआ। उनके अनेकों संस्मरण आज भी याद है। नियमित कक्षा में आकर पढाना। नियत समय पर कक्षा में प्रवेश और समय पर पाठ खत्म करना। इतना नियमित अध्यापक मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा । पढ़ाने की शैली इतनी अच्छी कि एक बार जो पढ़ा दें,वह सदा के लिए स्मरण रह जाता था। वह मुझे शिक्षा मनोविज्ञान पढ़ाया करते थे और मैं उनका प्रिय छात्र था। आप संस्कृत, हिन्दी, तमिल, तेलगू, उड़िया, कन्नड, मलयालम और अंग्रेजी भाषाओं के ज्ञाता थे। आपका जन्म Aheendrapuram, Cuddalore District, तमिलनाडू में 2 अप्रैल 1959 को हुआ था। आपके माता का नाम कनकावली और पिता का नाम एस. रामानुजाचार्य था। वे जितने अच्छे विद्वान् शिक्षाशास्त्र के थे,उतने ही अच्छे वेदांत और व्याकरण के भी थे । वे एक कुशल वक्ता थे। मुझमें संस्कृत बोलने का अभ्यास उन्हीं से आया। एक बार समय से लेशन प्लान न बनाने पर गुरुदेव ने मुझे डांट दिया था। मैं तत्कालीन शिक्षाशास्त्र विभागाध्यक्ष आदरणीय प्रोफेसर सच्चिदानंद जी से आगे शिक्षाशास्त्र में नहीं पढने की बात कही। गुरुदेव ने स्नेह पूर्वक मुझे समझाया था। मैं छात्र अवस्था में बहुत ही चंचल था। गुरुदेव बार-बार मुझे गंभीर होने की नसीहत देते रहते थे । समय का पालन,कठोर अनुशासन मैंने गुरुदेव से ही सीखा है। शिक्षाशास्त्र की कक्षा के छात्रों को सामुहिक नसीहत देने से नहीं चूकते थे। एक बार राजस्थान के एक छात्र को उन्होंने व्यंग्य भरे लहजे में बोला, आज कल तुम बहुत तेल पी रहे हो। शाम को उन्होंने उस छात्र के हाथ में एक बोतल देख लिया था। उस समय टेलीविजन की कम ही उपलब्धता थी। टेलीविजन पर आने वाले समाचारों की चर्चा करते हुए कहा करते थे कि काश छात्रों को भी यह ज्ञान देने वाली सुविधा उपलब्ध हो पाती। एक छात्र, किसी छात्रा को प्रपोज करने के लिए पत्र लिखा था। उसमें लिखा था आई लव यू। मैंने वह पत्र उनके टेबल के नीचे रख दिया। कक्षा में आते ही उन्होंने उस पत्र को निकाला और उस छात्र का नाम लेते हुए बोले मैं तुमसे प्यार नहीं करता। पूरा कक्ष ठहाकों से गूंज उठा । पुरी से मैं भी वापस आ गया। वहाँ से आप तिरुपति चले गए। वहां की भी सूचना मुझे निरंतर मिलती रही। जब आप राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान में कुलसचिव होकर लौटे,उस समय भी और जब आप जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय में कुलपति के पद पर आसीन थे। तब भी आप से दूरभाष पर मेरा निरंतर संपर्क बना रहा। हर एक काम में आपका मार्गदर्शन मिलता रहा। संस्कृतसर्जना पत्रिका की वेबसाइट बनवाते समय Home का संस्कृत आपने मुझे बताया था । twitter पर मैं आपको फॉलो करता था और मैं आपके हर tweet को पढ़ा करता था। आज भी आपके ट्वीटर पर 380 चित्र 13.8 हजार tweet उपलब्ध हैं। आपके tweet को बहुत ही पसन्द किया जाता है। 31 दिसम्बर 16 को twitter पर आपका अंतिम श्लोकबद्ध tweet आया।
भूयाच्छुभदे
व्यावहारिके प्रत्ने फलदे पश्चिमावहे ।
अब्दे सततं
मङ्गलं सुखं राष्ट्रं परमां वृद्धिमाप्नुयात् ॥
॥Happy VyAvahArika New Year॥
हमें सुखी रहने और राष्ट्र की समृद्धि की कामना कर आप नहीं रहे। मैं किस से मार्गदर्शन लूंगा और संस्कृत के उत्थान की प्रेरणा किससे प्राप्त करूंगा। अच्छा नहीं लगा गुरुदेव। असमय आप चले गए। बहुत शोकाकुल हूँ। शब्द नहीं हैं। लिखने का भी मन नहीं करता। यह नहीं होना चाहिए था।
एक अच्छा गुरु सर्वव्यापी और सर्व समर्थ होता है। हमें सभी प्रकार से शिक्षित करता है। कौन कहता है मेरे गुरु मेरे बीच नहीं हैं। उनका ज्ञान शरीर हमारे बीच है।
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