मेघदूतम्

 मेघदूतम् के लेखक महाकवि कालिदास हैं। यह एक खंडकाव्य है। यह पूर्व एवं उत्तर मेघ के रूप में दो भागों में विभाजित है। पूर्वमेघ में 63 श्लोक तथा उत्तरमेघ में 52 श्लोक हैं। कुछ संस्करणों में श्लोकों की संख्या में अन्तर देखने को मिलता है। इसमें लगभग 15 प्रक्षिप्त श्लोक प्राप्त होते हैं। कवि ने इसमें मंदाक्रांता" छन्द का प्रयोग किया है।  

इस संदेश-काव्य में एक विरही यक्ष द्वारा अपनी प्रिया के पास मेघ (बादल) से संदेश प्रेषित किया गया है। वियोग-विधुरा कांता के पास मेघद्वारा प्रेम-संदेश भेजना कवि की मौलिक कल्पना का परिचायक है। इसमें गीति काव्य व खंडकाव्य दोनों के ही तत्त्व हैं। अतः विद्वानों ने इसे गीति प्रधान खंडकाव्य कहा है। इसमें विरही यक्ष की व्यक्तिगत सुख-दुःख की भावनाओं का प्राधान्य है, एवं खंडकाव्य के लिये अपेक्षित कथावस्तु की अल्पता दिखाई पड़ती है। 

"मेघदूत" की कथावस्तु इस प्रकार है-

     धनपति कुबेर ने अपने एक यक्ष सेवक को, कर्तव्य-च्युत होने के कारण एक वर्ष के लिये अपनी अलकापुरी से निर्वासित कर दिया है। कुबेर द्वारा अभिशप्त होकर वह अपनी नवपरिणीता वधू से दूर हो जाता है, और भारत के मध्य विभाग में अवस्थित रामगिरि नामक पर्वत के पास जाकर निवास करता है। वह स्थान जनकतनया के स्नान से पावन तथा वृक्षछाया से स्निग्ध है। वहां वह निर्वासनकाल के दुर्दिनों को वेदना-जर्जरित होकर गिनने लगता है। आठ मास व्यतीत हो जाने पर वर्षाऋतु के आगमन से उसके प्रेमकातर हृदय में उसकी प्राण-प्रिया की स्मृति हरी हो उठती है, और वह मेघ के द्वारा अपनी कांता के पास प्रणय-संदेश भिजवाता है।

    यह कथा बीज " 'आषाढ कृष्ण एकादशी (योगिनी) माहात्म्य कथा" से मिलता जुलता है। उसमें नव विवाहित यक्ष हेममाली अपनी नववधू विशालाक्षी से रममाण रहकर मानस सरोवर से कुबेर के लिये कमल फूल न लाने की भूल करता है। उसे कुबेर द्वारा दण्ड मिलता है- एक वर्ष तक प्रिया का विरह तथा श्वेतकुष्ठ । हिमालय में विचरण करते हुए उसे मार्कण्डेय ऋषि से उपदेश तथा शाप-निवारण मिलता है। इस कथा में काव्य की उपयुक्तता से उचित हेर फेर महाकवि कालिदास ने किये हैं। प्रिया के वियोग में रोते-रोते काव्य नायक का शरीर कृश होने के कारण उसके हाथ का कंकण गिर पड़ता है। आषाढ के प्रथम दिवस को रामगिरि की चोटी पर मेघ को देख कर उसकी अंतर्वेदना उद्वेलित हो उठती है और वह मेघ से संदेश भेजने को उद्यत हो जाता है। वह कुटज-पुष्प के द्वारा मेघ को अर्ध्य देकर उसका स्वागत करता है, तथा उसकी प्रशंसा करते हुए उसे इन्द्र का "प्रकृति-पुरुष" एवं "कामरूप" कहता है। इसी प्रसंग में कवि ने रामगिरि से लेकर अलकापुरी तक के भूभाग का अत्यंत काव्यमय भौगोलिक चित्र उपस्थित किया है। इस अवसर पर कवि मार्गवर्ती पर्वतों, सरिताओं एवं उज्ययिनी जैसी प्रसिद्ध नगरियों का भी सरस वर्णन करता है। इसी वर्णन में पूर्व मेघ की समाप्ति हो जाती है। पूर्वमेघ में महाकवि कालिदास ने भारत की प्राकृतिक छटा का अभिराम वर्णन कर बाह्य प्रकृति के सौंदर्य एवं कमनीयता का मनोरम वाङ्मय चित्र निर्माण किया है। 

    उत्तरमेघ में अलका नगरी का वर्णन, यक्ष के भवन एवं उसकी विरह-व्याकुल प्रिया का चित्र खींचा गया है। तत्पश्चात् कवि ने यक्ष के संदेश का विवेचन किया है जिसमें मानव-हृदय के कोमल भाव अत्यंत हृदयद्रावक एवं प्रेमिल संवेदना से पूर्ण हैं। 'मेघदूत" की प्रेरणा, कालिदास ने वाल्मीकि रामायण से ग्रहण की है। उन्हें वियोगी यक्ष की व्यथा में सीता हरण के दुःख से दुःखित राम की पीडा का स्मरण हो आया है। कवि ने स्वयं मेघ की तुलना हनुमान् से तथा यक्ष-पत्नी की समता सीता से की है । (उत्तरमेघ 37) । इसकी प्रशंसा आचार्य क्षेमेंद्र ने अपने ग्रंथ "सुवृत्ततिलक" में की है। मल्लिनाथ की टीका के साथ "मेघदूत" का प्रकाशन 1849 ई. में बनारस से हुआ और ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने 1869 ई. में कलकत्ता से स्वसंपादित संस्करण प्रकाशित किया। इसके आधुनिक टीकाकारों में चरित्रवर्धनाचार्य एवं हरिदास सिद्धांतवागीश अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। इन टीकाओं के नाम हैं- चारित्र्यवर्धिनीव "चंचला"।

मेघदूत के टीकाकार- ले.- (1) कविचन्द्र, (2) लक्ष्मीनिवास,(3) चरित्र्यवर्धन, (4) क्षेमहंसगणी, (5) कविरत्न, (6) कृष्णदास, (7) कृष्णदास, (8 जनार्दन, (9) जनैन्द्र, (10) भरतसेन, (11) भगीरथ मिश्र, (12) कल्याणमल्ल, (13) महिमसिंहगणि, (14) राम उपाध्याय, (15) रामनाथ, (16) वल्लभदेव, (17) वाचस्पति- हरगोविन्द, (18) विश्वनाथ, (19) विश्वनाथ मिश्र, (20) शाश्वत, (21) सनातनशर्मा, (22) सरस्वतीतीर्थ, (23) सुमतिविजय, (24) हरिदास सिद्धान्तवागीश, (25) मेघराज, (26) पूर्णसरस्वती, (27) मल्लीनाथ, (28) रामनाथ, (29) कमलाकर, (30) स्थिरदेव, (31) गुरुनाथ, काव्यतीर्थ, (32) लाला मोहन, (33) हरिपाद चट्टोपाध्याय, (34) जीवानन्द, (35) श्रीवत्स व्यास, (36) दिवाकर, (37) असद, (38) रविकर, (39) मोतिजित्कवि, (40) कनककीर्ति, (41) विजयसूरि  (42)  ओड़िशा निवासी नरहरि उपाध्याय कृत ब्रह्म प्रकाशिका टीका तथा कुछ अज्ञात टीकाकार। 

मेघदूतम् के आधार पर अनेक दूतकाव्य लिखे गये। इन काव्यों में प्लबंग, हंस, मानस, चेतस्, मनस्, चन्द्र, कोकिल, तुलसी, पवन, मारुत, आदि संदेश वाहक बने। कहीं केवल अनुकरण, कहीं कथावस्तु में वृद्धि, कहीं धार्मिक रूप देकर अपने गुरु को संदेश (विशेषतः जैन कवि) तो कहीं बिडम्बनात्मक रचना, जैसे काकदूतम्, मुद्गरदूतम् आदि।

और पढ़ने के लिए कालिदास की कृतियों से परिचय पर क्लिक करें।

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मृच्छकटिकम्

 मृच्छकटिकम् महाकवि शूद्रक विरचित प्रकरण है । इसमें चारुदत्त एवं वसंतसेना नामक वेश्या का प्रणय-प्रसंग, 10 अंकों में वर्णित है।

    प्रथम अंक में प्रस्तावना के पश्चात् चारुदत्त के निकट उसका मित्र मैत्रेय (विदूषक) अपने अन्य मित्र चूर्णवृद्ध द्वारा दिये गये जातीकुसुम से सुवासित उत्तरीय लेकर जाता है । चारुदत्त उसका स्वागत करते हुए उत्तरीय ग्रहण करता है। वह मैत्रेय को रदनिका दासी के साथ मातृ-देवियों को बलि चढाने के लिये जाने को कहता है, पर वह प्रदोष काल में जाने से भयभीत हो जाता है। चारुदत्त उसे ठहरने के लिये कह कर पूजादि कार्यों में संलग्न होजाता है। इसी बीच वसंतसेना का पीछा करते हुए शकार, विट और चेट पहुंच जाते हैं। शकार की उक्ति से वसंतसेना को ज्ञात होता है कि पास में ही चारुदत्त का घर है। मैत्रेय दीपक लेकर किवाड खोलता है और वसंतसेना शीघ्रता से दीपक बुझा कर भीतर प्रवेश कर जाती । इधर शकार, रदनिका को ही वसंतसेना समझ कर पकड़ लेता है, पर मैत्रेय डांट कर उसे छुड़ा लेता है। शकार विवाद करता हुआ मैत्रेय को धमकी देकर चला जाता है। विदूषक एवं रदनिका के भीतर प्रवेश करने पर वसंतसेना पहचान ली जाती है। वह अपने आभूषणों को चारुदत्त के यहां रख देती है और मैत्रेय तथा चारुदत्त उसे घर पहुंचा देते हैं। इस अंक में यह पता चल जाता है कि वसंतसेना ने जब चारुदत्त को सर्वप्रथम कामदेवायतनोद्यान में देखा था, तभी से वह उस पर अनुरक्त हो गई थी।

    द्वितीय अंक में वसंतसेना की अनुरागजन्य उत्कण्ठा दिखलाई गई है। इस अंक में संवाहक नामक व्यक्ति का चित्रण किया गया है जो पहले पाटलिपुत्र का एक संभ्रांत नागरिक था, पर समय के फेर से दरिद्र होने के कारण उज्जयिनी आकर संवाहक के रूो में चारुदत्त के यहां सेवक बन गया था। चारुदत्त के निर्धन हो जाने से उसे बाध्य होकर वहां से हटना पड़ा और वह जुआडी बन गया। जुए में 10 मोहरें हार जाने और उनके चुकाने में असमर्थ होने के कारण वह छिपा-छिपा फिरता है। उसका पीछा द्यूतकार और माथुर करते रहते हैं। वह एक मंदिर में छिप जाता है, और वे दोनों एकांत समझकर वहीं पर जुआ खेलने लगते हैं। संवाहक भी वहां आकर सम्मिलित होता है, पर द्यूतकार द्वारा पकड लिया जाता है। वह भाग कर वसंतसेना के घर छिप जाता । द्यूतकार व माथुर उसका पीछा करते हुए वहां पहुंच जाते हैं। संवाहक को चारुदत्त का पुराना सेवक जान कर वसंतसेना उसे अपने यहां स्थान देती है, और द्यूतकार को रुपये के बदले अपना हस्ताभरण देती है जिसे प्राप्त कर वे दोनों संतुष्ट होकर चले जाते हैं। संवाहक विरक्त होकर बौद्ध भिक्षु बन जाता है। तभी वसंतसेना का चेट एक बिगडैल हाथी से एक भिक्षुक को बचाने कारण चारुदत्त द्वारा प्रदत्त पुरस्कार स्वरूप एक प्रावारक लेकर प्रवेश करता । वह चारुदत्त की उदारता की प्रशंसा करता है, और वसंतसेना उसके प्रावारक को लेकर प्रसन्न होती है।

    तृतीय अंक में वसंतसेना की दासी मदनिका का प्रेमी शर्विलक, उसे दासता से मुक्ति दिलाने हेतु, चारुदत्त के घर से चोरी कर लाये वसंतसेना के आभूषण मदनिका को दे देता है। चारुदत्त जागने पर प्रसन्न और चिंतित दिखाई पड़ता है। चोर के खाली हाथ न लौटने से उसे प्रसन्नता है, पर वसंतसेना के न्यास को लौटाने की चिंता से वह दुःखी है। उसकी पत्नी धूता, उसे अपनी रत्नावली देती है, और मैत्रेय उसे लेकर वसंतसेना को देने के लिये चला जाता है।

    चतुर्थ अंक में राजा के साले शकार की गाडी, वसंतसेना के पास उसे लेने के लिये आती है। वसंतसेना की मां उसे जाने के लिये कहती है, पर वह नहीं जाती। शर्विलक वसंतसेना के घर पर जाकर मदनिका को चोरी का वृत्तांत सुनाता है। मदनिका, वसंतसेना के आभूषणों को देख कर उन्हें पहचान लेती है, और उन्हें अपनी स्वामिनी को लौटा देने के लिये कहती है। पहले तो शर्विलक उसके प्रस्ताव को अमान्य करता है, किन्तु अंततः उसे मानने को तैयार हो जाता है। वसंतसेना छिपकर दोनों प्रेमियों की बातचीत सुनती है, और प्रसन्नतापूर्वक मदनिका को मुक्त कर शर्विलक के हवाले कर देती है। रास्ते में शर्विलक को, राजा पालक द्वारा गोपालदारक को बंदी बनाये जाने की घोषणा सुनाई पड़ती है। अतः वह रेभिक के साथ मदनिका को भेजकर, स्वयं गोपालदारक को छुड़ाने के लिये चल देता है। शर्विलक के चले जाने के बाद, धूता की रत्नावली लेकर मैत्रेय आता है और वसंतसेना को बताता है कि चारुदत्त आपके आभूषणों को जूए में हार गया है, इसलिये रह रत्नावली उसने बदले में भिजवाई है। वसंतसेना मन-ही-मन प्रसन्न होकर रत्नावली रख लेती है, और संध्या समय चारुदत्त से मिलने संदेश देकर मैत्रेय को लौटा देती है। (इस प्रकरण के चतुर्थ अंक तक की कथा भासकृत चारुदत्त के समान है पर मृच्छकटिक में सज्जलक का नाम शर्विलक है) ।

    पंचम अंक में वसंतसेना चेटी के साथ चारुदत्त के घर जाती है। वसंतसेना सुवर्णभांड (हार इत्यादि आभूषण) चारुदत्त को देती है तभी शर्विलक कृत चोरी का सारा रहस्य खुलता है।

    षष्ठ अंक में वसंतसेना चारुदत्त के पुत्र को सोने की गाडी बनवाने के लिए आभूषण देती है। वसंतसेना प्रवहणके बदल जाने से शकार की गाड़ी में बैठ के उद्यान में चली जाती है और चारुदत्त की गाडी में कारागृह से भागा हुआ आर्यक आता है। वह उसके बंधन कटवा कर उसे विदा करता है।

    अष्टम अंक में शकार वसंतसेना का गला दबा कर उसे मारता है और उसके शरीर को पत्तों के ढेर में छिपाकर चला जाता है। बाद में भिक्षु को इस बात का पता चलता है। वह वसंतसेना को विहार में ले जाता है। । 

    नवम अंक में शकार चारुदत्त पर वसंतसेना के वध का अभियोग लगाता है जिसमें चारुदत्त को मृत्युदण्ड देने की घोषणा होती है। 

    दशम अंक में भिक्षु उक्त घोषणा को सुन कर वसंतसेना को लेकर वधस्थल पर पहुंचता है और चारुदत्त को मुक्त करता है। शर्विलक भी आकर आर्यक के राजा बनने की सूचना देते हैं। चारुदत्त वसंतसेना को पत्नी के रूप में स्वीकार करता है। इस प्रकरण में कुल आठ अर्थोपक्षेपक हैं।

    इनमें सात चूलिकाएं और 1 अंकास्य है। मृच्छकटिकयह नाम प्रतीकात्मक है, और असंतोष का प्रतीक हैं। इस नाटक के अधिकांश पात्र अपनी स्थिति से असंतुष्ट है। वसंतसेना धनी शकार से प्रेम न कर, सर्वगुणसंपन्न चारुदत्त को चाहती है। चारुदत्त का पुत्र मिट्टी की गाड़ी से संतुष्ट नहीं है, वह सोने की गाड़ी चाहता है। इसमें कवि ने यह दिखाया है कि जो लोग अपनी परिस्थितियों से असंतुष्ट होकर एक-दूसरे से ईर्ष्या करते हैं, वे जीवन में अनेक कष्ट उठाते हैं। इस प्रकार इसके पात्रों का असंतोष सर्वव्यापी है जिसके कारण प्रत्येक व्यक्ति को कष्ट उठाना पड़ता है। अतः इसका नाम सार्थक एवं मुख्य वृत्त का अंग है।

     "मृच्छकटिक" एक ऐसा प्रकरण है, जिसमें वसंतसेना के प्रेम का वर्णन किया होने से श्रृंगार अंगी है। इसमें हास्य और करुण रस की भी योजना की गई है। शूद्रक के हास्य वर्णन की अपनी विशेषता है जो संस्कृत साहित्य में विरल है। इस प्रकरण में हास्य, गंभीर, विचित्र तथा व्यंग के रूप में मिलता है । कवि ने हास्यास्पद चरित्र एवं हास्यास्पद परिस्थितियों के अतिरिक्त विचित्र वार्तालापों एवं श्लेष पूर्ण वचनों से भी हास्य की सृष्टि की है।

 "मृच्छकटिक" में सात प्रकार की प्राकृत भाषाओं का प्रयोग हुआ है, और इस दृष्टि से यह संस्कृत की अपूर्व नाट्य-कृति है। टीकाकार पृथ्वीधर के अनुसार प्रयुक्त प्राकृतों के नाम हैं- शौरसेनी, आवंतिका, प्राच्या मागधी, शकारी, चांडाली तथा ढक्की। टीकाकार ने विभिन्न पात्रों द्वारा प्रयुक्त प्राकृत का भी निर्देश किया है। इस नाटक का वस्तुविधान, संस्कृत साहित्य की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। संस्कृत का यह प्रथम यथार्थवादी नाटक है, जिसे दैवी कल्पनाओं एवं आभिजात्य वातावरण से मुक्त कर, कवि यथार्थ के कठोर धरातल पर अधिष्ठित करता है। शूद्रककालीन समाज (विशेषतः मध्यमवर्गीय) का जीवनयापन प्रकार इसमें यथार्थतया चित्रित है। वेश्याओं के ऐश्वर्य की झलक भी इसमें दिखती है, न्यायदान में भ्रष्टाचार भी इसमें दिखाई देता है तथा राजा से असंतुष्ट प्रजा, उसके विरोध में क्रांन्ति को सहायक होती है, यह भी प्रभावी रूप से चित्रित है। इसकी कथावस्तु भास के चारुदत्त से बहुत कुछ मिलती जुलती होने के कारण इसकी मौलिकता तथा भास और शूद्रक का पौर्वापर्य तथा दोनों नाटकों का लेखक एक ही व्यक्ति होने के विवाद निर्माण हुये। अवन्तिसुन्दरी कथासार के अन्तर्गत शूद्रक के जीवन पर जो प्रकाश पडता है उससे यह अनुमान हो सकता है कि आर्यक राजा ही शूद्रक है तथा चारुदत्त है उसका बालमित्र बन्धुदत्त ।

मृच्छकटिक के टीकाकार- 1) गणपति, 2) पृथ्वीधर, 3) राममय शर्मा, 4) जल्ला दीक्षित, 5) श्रीनिवासाचार्य, 6) विद्यासागर, और 7)  धरानन्द

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लघुसिद्धान्तकौमुदी पढ़ने के लिए उपयोगी यूट्यूब लिंक

 Jagdanand Jha

इस यूट्यूब चैनल में लघुसिद्धान्तकौमुदी के लिए दो प्रकार से playlists बनाया गया है। 1. प्रकरण के अनुसार यथा- संज्ञा प्रकरण, अच् सन्धि आदि । 2. लघुसिद्धान्तकौमुदी के लिए। इस चैनल में संज्ञा प्रकरण के 5, अच् सन्धि के 20, हल् सन्धि के 10, विसर्ग सन्धि के 3, अजन्तपुल्लिंग के 19, अजन्तस्त्रीलिंग के 14, अजन्तनपुंसकलिंग के 07 तथा हलन्तपुल्लिँग प्रकरण के 14 विडियो हैं। समास प्रकरण में 15 विडियो जोड़े गये हैं। इस प्रकार लघुसिद्धान्तकौमुदी के लिए यहाँ 110 विडियो है। विडियो के लिंक में लघुसिद्धान्तौमुदी का मूल पाठ तथा इसकी विस्तृत व्याख्या का लिंक भी दिया गया है।

निर्माता- जगदानन्द झा

पाठन माध्यम- हिन्दी, ह्वाइट बोर्ड पर।

लिंक-  https://www.youtube.com/user/jagdanand73/playlists


 Tikaram Pandeya

इस यूट्यूब चैनल पर  कारक, तद्धित, कृदन्त तथा समास का विडियो उपलब्ध है। इनका पाठनविधि अति उत्तम है। कभी कभी ह्वाइट बोर्ड पर भी लिखते हैं।

भाषा- संस्कृत

https://www.youtube.com/user/TIKARAMPANDEYA/playlists


सरलसंस्कृत व्याकरण (-अरुणः पाण्डेयः गोनर्दीयः’)

इस यूट्यूब चैनल के playlists में संज्ञा प्रकरण से अजन्तपुल्लिंग (सर्वनाम शब्द) तक 62 विडियो हैं। । अनुवृत्ति सहित पाठन।

निर्माता- अरूण पाण्डेय

पाठन माध्यम- हिन्दी, व्यूबोर्ड पर।

लिंक- https://www.youtube.com/watch?v=wCwV663v3c&list=PL39UNnD3YL5iBLc4wTHYLBG6SzBxD8F-Z


 KNSwami Official

इस यूट्यूब चैनल के playlists में लघुसिद्धान्तकौमुदी के मूल पाठ का एक playlist तथा दूसरा लघुसिद्धान्तकौमुदी की व्याख्या का playlist है। नेपाली मातृभाषी होने के कारण मूल पाठ का उच्चारण शुद्ध नहीं है।

मूल पाठ में कुल 9 विडियो है। लघुसिद्धान्तकौमुदी की व्याख्या वाले playlist में संज्ञा प्रकरण से विसर्ग सन्धि तक के कुल 59 विडियो हैं।

निर्माता- KN Swami

पाठन माध्यम- नेपाली, विडियो एडिटर का उपयोग कर स्क्रिप्ट दिखाया गया है।

लिंक-  https://www.youtube.com/c/KNSwamiOfficial/playlists

 

शब्दसौरभम्

इस यूट्यूब चैनल के playlists में लघुसिद्धान्तकौमुदी के लिए 5 playlists बना दिया गया है। सन्धि, सपूर्ण संधि विवेचन में कुल 12 विडियो, लघुसिद्धान्तकौमुदी संज्ञा प्रकरण में 29 विडियो, कारक प्रकरण में 11 विडियो हैं।

निर्माता- कुलदीप गौड़ जिज्ञासु

पाठन माध्यम- हिन्दी, विडियो एडिटर का उपयोग कर स्क्रिप्ट को रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया है।

लिंक-   https://www.youtube.com/c/Kuldeepgaur/playlists

SANSKRITSHAURYAM

इस यूट्यूब चैनल के playlists में लघुसिद्धान्तकौमुदी संज्ञा प्रकरण से अजन्तपुल्लिंग के कुछ अंश तक के लिए कुल 38 विडियो हैं। यहाँ शिवराजविजयम्, उत्तररामचरितम्, अभिज्ञानशाकुन्तलम् आदि पुस्तकों के लिए भी विडियो है। छात्रों के लिए यह अति उपयोगी चैनल है।

निर्माता-  डॉ. राजकुमार

शिक्षक-  प्रो. भगवत्शरण शुक्ल, वाराणसी

पाठन माध्यम- हिन्दीविडियो एडिटर का उपयोग कर स्क्रिप्ट के द्वारा रोचक तरीके से समझाया गया है।

लिंक- https://www.youtube.com/c/SANSKRITSHAURYAM/playlists

 

Sanskritdevvani ganga

इस यूट्यूब चैनल के playlists में लघुसिद्धान्तकौमुदी अच् सन्धि तक के लिए कुल 45 विडियो हैं। यहाँ सूत्रों तथा वृत्तियों का अशुद्ध उच्चारण है। अध्ययनकर्ता इस विन्दु को ध्यान में रखकर प्रक्रिया समझने मात्र में इसकी सहायता लें।

निर्माता-  आदित्य नारायण

पाठन माध्यम- हिन्दी, ह्वाइट बोर्ड पर चॉक से लिखकर समझाया गया है।

लिंक- https://www.youtube.com/c/Sanskritdevvaniganga/playlists

 

संस्कृतप्रधीश sanskrit pradheesh

इस यूट्यूब चैनल के अनेक playlists में लघुसिद्धान्तकौमुदी के अनेक प्रकरण के विडियो मिलते हैं।  यहाँ अजन्त भाग के अतिरिक्त समास तथा कृदन्त के भी विडियो उपलब्ध हैं। यहाँ अनेक गणमान्य अध्यापकों द्वारा अनेक विषयों को पढ़ाया गया है। छात्रों के लिए यह अति उपयोगी चैनल है।

लिंक- https://www.youtube.com/channel/UCrKj9xffxiP74d29vz_3_ng/playlists

 

Dharm samaj sanskrit college Muzaffarpur

इस यूट्यूब चैनल पर लघुसिद्धान्तकौमुदी का सन्धि तथा समास प्रकरण का विडियो उपलब्ध है। इसमें पुस्तक के मूल पाठ को स्क्रीन पर रखकर ध्वनि संयोजन किया गया है।

https://www.youtube.com/channel/UCzvAEpx6ykcd9qPwTG3purQ/playlists


इस लिंक पर सिद्धान्त कौमुदी, तर्क संग्रह तथा संस्कृत संभाषण शिक्षण का विडियो है।

https://www.youtube.com/c/VedaVijnanaShodhaSamsthanam/videos 

इस The Vedangas- Sanskrit Online Classes यूट्यूब लिंक पर पंचसन्धि तक लघुसिद्धान्तकौमुदी का विडियो है। इसके अतिरिक्त यहाँ  NET संस्कृत 73 कोड के लिए विडियो उपलब्ध हैं। इसे Rudranarayan Das  ने निर्मित किया है।

https://www.youtube.com/c/TheVedangasSanskritOnlineClasses/playlists
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दशदिवसीयसम्भाषणशिविरस्य पाठ्यक्रमः (संस्कृतभारतीद्वाराप्रवर्तितः)

 

प्रथमं दिनम्

॥ गीतम् ॥

॥ मम नाम / भवतः नाम / भवत्याः नाम ॥

॥ सः कः ? /कः सः ?

॥ सा का ? /का सा ॥

॥ तत् किम् ? /किं तत् ?

॥ एषः कः ?/ कः एषः ?

॥ एषा का ?/ का एषा ॥

॥ एतत् किम् ? /किम् एतत् ?

॥ अहम् / भवान् / भवती ॥

॥ आम //व ॥

॥ अस्ति / नास्ति ॥

॥ अत्र / तत्र / कुत्र / अन्यत्र / सर्वत्र / एकत्र ॥

॥ तस्य /कस्य ॥ ॥ तस्याः / कस्याः ॥

॥ भवतः /भवत्याः ॥ मम / एतस्य / एतस्याः ॥

॥ बालकस्य / बालिकायाः /लेखन्याः / फलस्य / फलकेन ॥

॥ आवश्यकम् / मास्तु / पर्याप्तम् / धन्यवादः /स्वागतम् ॥

॥ क्रियापदम्- गच्छति /आगच्छति ॥

॥ गच्छतु / आगच्छतु ॥

॥संख्या १, , , , , , , , , १०, २०, ३०, ४०, ५०, ६०, ७०,८०, ६०,

॥ समय: .००वादनम्, .००वादनम्, .००वादनम्, .००वादनम्, . ०० ॥

॥ कथा ॥

॥ सूचना ॥

॥ ऐक्यमन्त्रः ॥

 

द्वितीयदिनम्

॥ गीतम् ॥

॥ पुनः स्मारणम् ॥

॥ बालकाः / बालिकाः / लेखन्याः / पुस्तकानि ॥

॥ ते के ?/ ताः काः ? /तानि कानि ?

॥ एते / एताः / एतानि ॥

॥ भवन्तः / भवत्यः वयम् ॥

॥ सन्ति / कति ?

॥ सप्तमी- हस्ते / पत्रिकायाम् / लेखन्याम् / पुस्तके (चित्रस्य प्रयोगः )

॥ कदा ॥

॥ उत्तराणां प्रश्नः रामः रात्रौ पठति ॥

॥ रामः कदा पठति ?

॥ अद्य / श्वः / परश्वः /प्रपरश्वः ॥

॥ ह्यः / परह्यः /प्रपरह्यः ॥

॥ गच्छन्ति / गच्छामः / गच्छन्तु ॥

॥ शिष्टाचारः -सुप्रभातम् / नमोनमः / शुभरात्रिः /क्षम्यताम् ॥

॥ चिन्तामास्तु ॥

॥ प्रातर्विधिः- दन्तधावनम् इत्यादि ॥

संख्या- १०, ११, १२, १३, १४, १५, १६, १७, १८, २०, ...............

॥ समयः- .१५ सपाद, .३०सार्द्ध, .४५ पादोन् इत्यादि ॥

॥ स्वागतसम्भाषणम् ॥

॥ रटनाभ्यासः ॥

॥ कथा ॥

॥ सूचना ॥

॥ ऐक्यमन्त्रः ॥

 

तृतीयदिनम्

 

गीतम् ॥

॥ पुनः स्मारणम् ॥

क्रिया-बहुचनरूपाणि- गच्छन्ति, पठन्ति, लिखन्ति इत्यादयः ॥

॥ परिवर्तनाभ्यासः ॥

॥ द्वितीयाविभक्तिः कृपया ददातु ॥

॥ पुरतः / पृष्ठतः / वामतः /दक्षिणतः / उपरि / अधः ॥

॥ पञ्चमी विभक्तिः हस्ततः / ग्रामतः ॥

॥ शीघ्रम् / मन्दम् ॥ । उच्चै / नीचैः

॥ सप्तककारः किम् / कुत्र ?/कदा ?/ कुतः ? /कथम् ?/ किमर्थम् ?

अपि / अस्तु / अहं न जानामि ॥

कोष्टक द्वारा भूतकालस्य वाचनम्- गतवान् / पठितवान्  ॥ गतवती / पठितवती आदि ॥

॥ भविष्यकालस्य वाचनम-गमिष्यति, पठिष्यति आदि ॥

॥ सम्बोधनम् - भोः श्रीमान ! मान्ये ! मित्र ! राम !

॥ संख्या-ॐ क्रीडा द्वारा ॥

समयः ॥

॥ सम्भाषणस्य प्रदर्शनम् ॥

॥ वाक्यत्रयाणां वाचनीयम् ॥

॥ कथा ॥

॥ सूचना ॥

॥ ऐक्यमन्त्रः ॥

 

चतुर्थदिनम्

 

॥ गीतम् ॥

॥ पुनः स्मारणम् ॥

॥ च / अतः / एवम् / इति / यत् ॥

॥ अस्मि ॥

॥ यदि / तर्हि ॥

॥ यथा / तथा ॥

॥ यदा / तदा ॥

॥ क्रियापदानां परिवर्तनाभ्यासः- गच्छति गतवान् आदि ॥

॥ तः / पर्यन्तम् ॥

॥ अद्यारभ्य / कृते ॥

॥ विशेषणपाठनम्- आसीत, आसन्, आसम्॥

॥ करोमि / कुर्मः ॥

॥ करोति / कुर्वन्ति / ददामि /द्मः ॥

॥ ददाति / ददति ॥

॥ लेखिष्यति / नेष्यति / ज्ञाष्यति / पास्यति ॥

॥ लिङ्गभेदज्ञापनम्- एकः, एका, एकम् ॥

॥ भोजनसम्बन्धीशब्दाः- सूपः, शाकम, ओदनम्, रोटिका ॥

॥ संख्या ॥

॥ कथा ॥

॥ चत्वारि वाक्यानि ॥

॥ सम्भाषणप्रदर्शनम् ॥

॥ सूचना ॥

॥ ऐक्यमन्त्रः ॥

 

पञ्चमं दिनम्

 

॥ गीतम् ॥

॥ पुनः स्मारणम् ॥

॥ तृतीया विभक्तिः ॥

॥ सह / विना ॥

॥ अद्यतन / ह्यस्तन ॥

॥ श्वस्तन् / पूर्वतन् /इदानीन्तन् ॥

॥ गत / आगामी ॥

॥ स्म / अभवत् ॥

॥ क्त्वा प्रयोगः ॥

॥ बन्धुवाचकशब्दाः ॥

॥ वर्णाः ॥

॥ रचयः ॥

वाहनानां नामानि ॥

॥ वेशभूषाणां नामानि ॥

॥ क्रीडा ॥

॥ पञचवाक्यानि ॥

॥ कथा ॥

॥ सूचना ॥

॥ ऐक्यमन्त्रः ॥

 

 

षष्ठं दिनम्

 

॥ गीतम् ॥

॥ पुनःस्मारणम् ॥

॥ बहु / किञ्चित् ॥

॥ दीर्घः / ह्रस्वः ॥

॥ उन्नतः / वामनः

॥ स्थूलः / कृशः ॥

॥ एतादृशः / तादृशः / कीदृशः ॥

॥ तुमुन् प्रयोगः ॥

॥ निश्चयेन ॥

॥ किल ॥

॥ अपेक्षया ॥

॥ इव ॥

॥ बहुशः / प्रायशः ॥

॥ शक्नोति ॥

॥ विशेषण-विशेष्य-भावस्य अभ्यासः ॥

॥ प्राणीनां नामानि ॥

॥ वाक्य विस्तारः ॥

॥ इतः पूर्वतः ॥

॥ षड्वाक्यानि ॥

॥ कथा ॥

॥ सूचना ॥

॥ ऐक्यमन्त्रः ॥

 

 

सप्तमं दिनम्

॥ गीतम् ॥

॥ पुनः स्मारणम् ॥

॥ यल्लिङ्गं यद् चनं या च विभक्तिर्विशेष्यस्य ॥

॥ तल्लिङ्गं तद् चनं सा च विभक्तिर्विशेषणस्य ॥

॥ क्त्त्वा-तुमुन परिवर्तनम् ॥

॥ बहिः / अन्तः ॥ रिक्तम् / पूर्णम् ॥

॥ इतोऽपि ॥ ।

। अन्ते ॥

॥ चेत् / नोचेत् ॥

॥ वैद्यरोगी सम्भाषणम् ॥

॥ प्रश्नोत्तरी स्पर्धा ॥

ऋषिणां नामानि ॥

॥ कथा-छात्राः वाक्यानि वदिष्यन्ति ॥

॥ संख्या ॥

॥ षडवाक्यानि ॥

॥ प्रश्नोत्तरी ॥

॥ ऐक्यमन्त्रः ॥

 

अष्टमं दिनम्

॥ गीतम् ॥

॥ पुनः स्मारणम् ॥

॥ वारम् ॥

॥ अतः /यतः ॥

॥ यद्यपि / तथापि ॥

॥ यत् / तत् ॥ ॥ यः / सः ॥

॥ या / सा ॥

॥ यत्र / तत्र ॥ ।

। कति / कियत् / भेदज्ञापनम् ॥

॥ यावत् / तावत् ॥

॥ कथा ॥

॥ चर्चा ॥

॥ एकश्वासेन संख्याकथनम् ॥

॥ अष्टवाक्यानि ॥

॥ विनोदकणिका ॥

॥ ऐक्यमन्त्रः ॥

 

नवमदिनम्

 

॥ गीतम् ॥

॥ पुनः स्मारणम् ॥

॥ चित्/ चन् प्रयोगः ॥

॥ द्वयम् ॥

॥ संख्यालिङ्गभेदज्ञापनम् - एकः, एका एकम् ॥

॥ अहं वैद्यः ॥

॥ अर्थम् ॥

॥ तव्यत् / अनीयर ॥

॥ अनन्तकथायाः रचना ॥

॥ संख्यायोजनम् ॥

॥ प्रश्नोत्तरम्-पत्रलेखनम्-दूरवाणी-प्रयोगः ॥

॥ मार्गनिर्देशनम् ॥

सान्दर्भिकसम्भाषणम् ॥

॥ ऐक्यमन्त्रः ॥

 

दशमं दिनम्

॥ गीतम् ॥

॥ पुनःस्मारणम् ॥

॥ सम्भाषणप्रदर्शनम् ॥

॥ निबन्धलेखनम् ॥

॥ स्वचिन्तनाधारितकथालेखनम् ॥

॥ अखण्डवार्ता ॥

॥ स्पर्धात्मकसम्भाषणम् ॥

॥ अनुभवलेखनम् ॥

॥ समाचारपत्रलेखनम् ॥

॥ छात्रैः पाठ्यविन्दोः पाठनम् ॥

॥ स्वागतसम्भाषणम् ॥

॥ मञ्चसञचालनम् ॥

॥ सूचना ॥

॥ दायित्वदानम्॥

॥ ऐक्यमन्त्रः॥

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