मृच्छकटिकम्

 मृच्छकटिकम् महाकवि शूद्रक विरचित प्रकरण है । इसमें चारुदत्त एवं वसंतसेना नामक वेश्या का प्रणय-प्रसंग, 10 अंकों में वर्णित है।

    प्रथम अंक में प्रस्तावना के पश्चात् चारुदत्त के निकट उसका मित्र मैत्रेय (विदूषक) अपने अन्य मित्र चूर्णवृद्ध द्वारा दिये गये जातीकुसुम से सुवासित उत्तरीय लेकर जाता है । चारुदत्त उसका स्वागत करते हुए उत्तरीय ग्रहण करता है। वह मैत्रेय को रदनिका दासी के साथ मातृ-देवियों को बलि चढाने के लिये जाने को कहता है, पर वह प्रदोष काल में जाने से भयभीत हो जाता है। चारुदत्त उसे ठहरने के लिये कह कर पूजादि कार्यों में संलग्न होजाता है। इसी बीच वसंतसेना का पीछा करते हुए शकार, विट और चेट पहुंच जाते हैं। शकार की उक्ति से वसंतसेना को ज्ञात होता है कि पास में ही चारुदत्त का घर है। मैत्रेय दीपक लेकर किवाड खोलता है और वसंतसेना शीघ्रता से दीपक बुझा कर भीतर प्रवेश कर जाती । इधर शकार, रदनिका को ही वसंतसेना समझ कर पकड़ लेता है, पर मैत्रेय डांट कर उसे छुड़ा लेता है। शकार विवाद करता हुआ मैत्रेय को धमकी देकर चला जाता है। विदूषक एवं रदनिका के भीतर प्रवेश करने पर वसंतसेना पहचान ली जाती है। वह अपने आभूषणों को चारुदत्त के यहां रख देती है और मैत्रेय तथा चारुदत्त उसे घर पहुंचा देते हैं। इस अंक में यह पता चल जाता है कि वसंतसेना ने जब चारुदत्त को सर्वप्रथम कामदेवायतनोद्यान में देखा था, तभी से वह उस पर अनुरक्त हो गई थी।

    द्वितीय अंक में वसंतसेना की अनुरागजन्य उत्कण्ठा दिखलाई गई है। इस अंक में संवाहक नामक व्यक्ति का चित्रण किया गया है जो पहले पाटलिपुत्र का एक संभ्रांत नागरिक था, पर समय के फेर से दरिद्र होने के कारण उज्जयिनी आकर संवाहक के रूो में चारुदत्त के यहां सेवक बन गया था। चारुदत्त के निर्धन हो जाने से उसे बाध्य होकर वहां से हटना पड़ा और वह जुआडी बन गया। जुए में 10 मोहरें हार जाने और उनके चुकाने में असमर्थ होने के कारण वह छिपा-छिपा फिरता है। उसका पीछा द्यूतकार और माथुर करते रहते हैं। वह एक मंदिर में छिप जाता है, और वे दोनों एकांत समझकर वहीं पर जुआ खेलने लगते हैं। संवाहक भी वहां आकर सम्मिलित होता है, पर द्यूतकार द्वारा पकड लिया जाता है। वह भाग कर वसंतसेना के घर छिप जाता । द्यूतकार व माथुर उसका पीछा करते हुए वहां पहुंच जाते हैं। संवाहक को चारुदत्त का पुराना सेवक जान कर वसंतसेना उसे अपने यहां स्थान देती है, और द्यूतकार को रुपये के बदले अपना हस्ताभरण देती है जिसे प्राप्त कर वे दोनों संतुष्ट होकर चले जाते हैं। संवाहक विरक्त होकर बौद्ध भिक्षु बन जाता है। तभी वसंतसेना का चेट एक बिगडैल हाथी से एक भिक्षुक को बचाने कारण चारुदत्त द्वारा प्रदत्त पुरस्कार स्वरूप एक प्रावारक लेकर प्रवेश करता । वह चारुदत्त की उदारता की प्रशंसा करता है, और वसंतसेना उसके प्रावारक को लेकर प्रसन्न होती है।

    तृतीय अंक में वसंतसेना की दासी मदनिका का प्रेमी शर्विलक, उसे दासता से मुक्ति दिलाने हेतु, चारुदत्त के घर से चोरी कर लाये वसंतसेना के आभूषण मदनिका को दे देता है। चारुदत्त जागने पर प्रसन्न और चिंतित दिखाई पड़ता है। चोर के खाली हाथ न लौटने से उसे प्रसन्नता है, पर वसंतसेना के न्यास को लौटाने की चिंता से वह दुःखी है। उसकी पत्नी धूता, उसे अपनी रत्नावली देती है, और मैत्रेय उसे लेकर वसंतसेना को देने के लिये चला जाता है।

    चतुर्थ अंक में राजा के साले शकार की गाडी, वसंतसेना के पास उसे लेने के लिये आती है। वसंतसेना की मां उसे जाने के लिये कहती है, पर वह नहीं जाती। शर्विलक वसंतसेना के घर पर जाकर मदनिका को चोरी का वृत्तांत सुनाता है। मदनिका, वसंतसेना के आभूषणों को देख कर उन्हें पहचान लेती है, और उन्हें अपनी स्वामिनी को लौटा देने के लिये कहती है। पहले तो शर्विलक उसके प्रस्ताव को अमान्य करता है, किन्तु अंततः उसे मानने को तैयार हो जाता है। वसंतसेना छिपकर दोनों प्रेमियों की बातचीत सुनती है, और प्रसन्नतापूर्वक मदनिका को मुक्त कर शर्विलक के हवाले कर देती है। रास्ते में शर्विलक को, राजा पालक द्वारा गोपालदारक को बंदी बनाये जाने की घोषणा सुनाई पड़ती है। अतः वह रेभिक के साथ मदनिका को भेजकर, स्वयं गोपालदारक को छुड़ाने के लिये चल देता है। शर्विलक के चले जाने के बाद, धूता की रत्नावली लेकर मैत्रेय आता है और वसंतसेना को बताता है कि चारुदत्त आपके आभूषणों को जूए में हार गया है, इसलिये रह रत्नावली उसने बदले में भिजवाई है। वसंतसेना मन-ही-मन प्रसन्न होकर रत्नावली रख लेती है, और संध्या समय चारुदत्त से मिलने संदेश देकर मैत्रेय को लौटा देती है। (इस प्रकरण के चतुर्थ अंक तक की कथा भासकृत चारुदत्त के समान है पर मृच्छकटिक में सज्जलक का नाम शर्विलक है) ।

    पंचम अंक में वसंतसेना चेटी के साथ चारुदत्त के घर जाती है। वसंतसेना सुवर्णभांड (हार इत्यादि आभूषण) चारुदत्त को देती है तभी शर्विलक कृत चोरी का सारा रहस्य खुलता है।

    षष्ठ अंक में वसंतसेना चारुदत्त के पुत्र को सोने की गाडी बनवाने के लिए आभूषण देती है। वसंतसेना प्रवहणके बदल जाने से शकार की गाड़ी में बैठ के उद्यान में चली जाती है और चारुदत्त की गाडी में कारागृह से भागा हुआ आर्यक आता है। वह उसके बंधन कटवा कर उसे विदा करता है।

    अष्टम अंक में शकार वसंतसेना का गला दबा कर उसे मारता है और उसके शरीर को पत्तों के ढेर में छिपाकर चला जाता है। बाद में भिक्षु को इस बात का पता चलता है। वह वसंतसेना को विहार में ले जाता है। । 

    नवम अंक में शकार चारुदत्त पर वसंतसेना के वध का अभियोग लगाता है जिसमें चारुदत्त को मृत्युदण्ड देने की घोषणा होती है। 

    दशम अंक में भिक्षु उक्त घोषणा को सुन कर वसंतसेना को लेकर वधस्थल पर पहुंचता है और चारुदत्त को मुक्त करता है। शर्विलक भी आकर आर्यक के राजा बनने की सूचना देते हैं। चारुदत्त वसंतसेना को पत्नी के रूप में स्वीकार करता है। इस प्रकरण में कुल आठ अर्थोपक्षेपक हैं।

    इनमें सात चूलिकाएं और 1 अंकास्य है। मृच्छकटिकयह नाम प्रतीकात्मक है, और असंतोष का प्रतीक हैं। इस नाटक के अधिकांश पात्र अपनी स्थिति से असंतुष्ट है। वसंतसेना धनी शकार से प्रेम न कर, सर्वगुणसंपन्न चारुदत्त को चाहती है। चारुदत्त का पुत्र मिट्टी की गाड़ी से संतुष्ट नहीं है, वह सोने की गाड़ी चाहता है। इसमें कवि ने यह दिखाया है कि जो लोग अपनी परिस्थितियों से असंतुष्ट होकर एक-दूसरे से ईर्ष्या करते हैं, वे जीवन में अनेक कष्ट उठाते हैं। इस प्रकार इसके पात्रों का असंतोष सर्वव्यापी है जिसके कारण प्रत्येक व्यक्ति को कष्ट उठाना पड़ता है। अतः इसका नाम सार्थक एवं मुख्य वृत्त का अंग है।

     "मृच्छकटिक" एक ऐसा प्रकरण है, जिसमें वसंतसेना के प्रेम का वर्णन किया होने से श्रृंगार अंगी है। इसमें हास्य और करुण रस की भी योजना की गई है। शूद्रक के हास्य वर्णन की अपनी विशेषता है जो संस्कृत साहित्य में विरल है। इस प्रकरण में हास्य, गंभीर, विचित्र तथा व्यंग के रूप में मिलता है । कवि ने हास्यास्पद चरित्र एवं हास्यास्पद परिस्थितियों के अतिरिक्त विचित्र वार्तालापों एवं श्लेष पूर्ण वचनों से भी हास्य की सृष्टि की है।

 "मृच्छकटिक" में सात प्रकार की प्राकृत भाषाओं का प्रयोग हुआ है, और इस दृष्टि से यह संस्कृत की अपूर्व नाट्य-कृति है। टीकाकार पृथ्वीधर के अनुसार प्रयुक्त प्राकृतों के नाम हैं- शौरसेनी, आवंतिका, प्राच्या मागधी, शकारी, चांडाली तथा ढक्की। टीकाकार ने विभिन्न पात्रों द्वारा प्रयुक्त प्राकृत का भी निर्देश किया है। इस नाटक का वस्तुविधान, संस्कृत साहित्य की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। संस्कृत का यह प्रथम यथार्थवादी नाटक है, जिसे दैवी कल्पनाओं एवं आभिजात्य वातावरण से मुक्त कर, कवि यथार्थ के कठोर धरातल पर अधिष्ठित करता है। शूद्रककालीन समाज (विशेषतः मध्यमवर्गीय) का जीवनयापन प्रकार इसमें यथार्थतया चित्रित है। वेश्याओं के ऐश्वर्य की झलक भी इसमें दिखती है, न्यायदान में भ्रष्टाचार भी इसमें दिखाई देता है तथा राजा से असंतुष्ट प्रजा, उसके विरोध में क्रांन्ति को सहायक होती है, यह भी प्रभावी रूप से चित्रित है। इसकी कथावस्तु भास के चारुदत्त से बहुत कुछ मिलती जुलती होने के कारण इसकी मौलिकता तथा भास और शूद्रक का पौर्वापर्य तथा दोनों नाटकों का लेखक एक ही व्यक्ति होने के विवाद निर्माण हुये। अवन्तिसुन्दरी कथासार के अन्तर्गत शूद्रक के जीवन पर जो प्रकाश पडता है उससे यह अनुमान हो सकता है कि आर्यक राजा ही शूद्रक है तथा चारुदत्त है उसका बालमित्र बन्धुदत्त ।

मृच्छकटिक के टीकाकार- 1) गणपति, 2) पृथ्वीधर, 3) राममय शर्मा, 4) जल्ला दीक्षित, 5) श्रीनिवासाचार्य, 6) विद्यासागर, और 7)  धरानन्द

Share:

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अनुवाद सुविधा

ब्लॉग की सामग्री यहाँ खोजें।

लोकप्रिय पोस्ट

जगदानन्द झा. Blogger द्वारा संचालित.

मास्तु प्रतिलिपिः

इस ब्लॉग के बारे में

संस्कृतभाषी ब्लॉग में मुख्यतः मेरा
वैचारिक लेख, कर्मकाण्ड,ज्योतिष, आयुर्वेद, विधि, विद्वानों की जीवनी, 15 हजार संस्कृत पुस्तकों, 4 हजार पाण्डुलिपियों के नाम, उ.प्र. के संस्कृत विद्यालयों, महाविद्यालयों आदि के नाम व पता, संस्कृत गीत
आदि विषयों पर सामग्री उपलब्ध हैं। आप लेवल में जाकर इच्छित विषय का चयन करें। ब्लॉग की सामग्री खोजने के लिए खोज सुविधा का उपयोग करें

समर्थक एवं मित्र

सर्वाधिकार सुरक्षित

विषय श्रेणियाँ

ब्लॉग आर्काइव

संस्कृतसर्जना वर्ष 1 अंक 1

संस्कृतसर्जना वर्ष 1 अंक 2

संस्कृतसर्जना वर्ष 1 अंक 3

Sanskritsarjana वर्ष 2 अंक-1

Recent Posts

लेखानुक्रमणी

लेख सूचक पर क्लिक कर सामग्री खोजें

अभिनवगुप्त (1) अलंकार (3) आधुनिक संस्कृत गीत (14) आधुनिक संस्कृत साहित्य (5) उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान (1) उत्तराखंड (1) ऋग्वेद (1) ऋषिका (1) कणाद (1) करवा चौथ (1) कर्मकाण्ड (47) कहानी (1) कामशास्त्र (1) कारक (1) काल (2) काव्य (17) काव्यशास्त्र (27) काव्यशास्त्रकार (1) कुमाऊँ (1) कूर्मांचल (1) कृदन्त (3) कोजगरा (1) कोश (12) गंगा (1) गया (1) गाय (1) गीति काव्य (1) गृह कीट (1) गोविन्दराज (1) ग्रह (1) छन्द (6) छात्रवृत्ति (1) जगत् (1) जगदानन्द झा (3) जगन्नाथ (1) जीवनी (6) ज्योतिष (20) तकनीकि शिक्षा (21) तद्धित (11) तिङन्त (11) तिथि (1) तीर्थ (3) दर्शन (19) धन्वन्तरि (1) धर्म (1) धर्मशास्त्र (14) नक्षत्र (2) नाटक (4) नाट्यशास्त्र (2) नायिका (2) नीति (3) पतञ्जलि (3) पत्रकारिता (4) पत्रिका (6) पराङ्कुशाचार्य (2) पर्व (2) पाण्डुलिपि (2) पालि (3) पुरस्कार (13) पुराण (3) पुस्तक (1) पुस्तक संदर्शिका (1) पुस्तक सूची (14) पुस्तकालय (5) पूजा (1) प्रत्यभिज्ञा शास्त्र (1) प्रशस्तपाद (1) प्रहसन (1) प्रौद्योगिकी (1) बिल्हण (1) बौद्ध (6) बौद्ध दर्शन (2) ब्रह्मसूत्र (1) भरत (1) भर्तृहरि (2) भामह (1) भाषा (1) भाष्य (1) भोज प्रबन्ध (1) मगध (3) मनु (1) मनोरोग (1) महाविद्यालय (1) महोत्सव (2) मुहूर्त (1) योग (5) योग दिवस (2) रचनाकार (3) रस (1) रामसेतु (1) रामानुजाचार्य (4) रामायण (3) रोजगार (2) रोमशा (1) लघुसिद्धान्तकौमुदी (46) लिपि (1) वर्गीकरण (1) वल्लभ (1) वाल्मीकि (1) विद्यालय (1) विधि (1) विश्वनाथ (1) विश्वविद्यालय (1) वृष्टि (1) वेद (6) वैचारिक निबन्ध (26) वैशेषिक (1) व्याकरण (46) व्यास (2) व्रत (2) शंकाराचार्य (2) शरद् (1) शैव दर्शन (2) संख्या (1) संचार (1) संस्कार (19) संस्कृत (15) संस्कृत आयोग (1) संस्कृत कथा (11) संस्कृत गीतम्‌ (50) संस्कृत पत्रकारिता (2) संस्कृत प्रचार (1) संस्कृत लेखक (1) संस्कृत वाचन (1) संस्कृत विद्यालय (3) संस्कृत शिक्षा (6) संस्कृत सामान्य ज्ञान (1) संस्कृतसर्जना (5) सन्धि (3) समास (6) सम्मान (1) सामुद्रिक शास्त्र (1) साहित्य (7) साहित्यदर्पण (1) सुबन्त (6) सुभाषित (3) सूक्त (3) सूक्ति (1) सूचना (1) सोलर सिस्टम (1) सोशल मीडिया (2) स्तुति (2) स्तोत्र (11) स्मृति (12) स्वामि रङ्गरामानुजाचार्य (2) हास्य (1) हास्य काव्य (2) हुलासगंज (2) Devnagari script (2) Dharma (1) epic (1) jagdanand jha (1) JRF in Sanskrit (Code- 25) (3) Library (1) magazine (1) Mahabharata (1) Manuscriptology (2) Pustak Sangdarshika (1) Sanskrit (2) Sanskrit language (1) sanskrit saptaha (1) sanskritsarjana (3) sex (1) Student Contest (2) UGC NET/ JRF (4)