संस्कृत सप्ताह 2021

इस वर्ष 19 अगस्त से 25 अगस्त 2021 तक संस्कृत सप्ताह मनाया जा रहा है। प्रतिवर्ष मैं इस पावन पर्व का उत्सुकता से प्रतीक्षा करता हूं क्योंकि मैं इसे बहुत ही मनोयोग और धूमधाम से मनाता हूं। संस्कृत सप्ताह पर विविध प्रकार का आयोजन पूरे विश्व भर में होता है। कुछ आयोजन सामूहिक तो कुछ व्यक्तिगत होते हैं इसे 5 मिनट में भी मना कर पूरा किया जा सकता है और 7 दिन *12 घंटे निरंतर किया जा सकता है यह व्यक्ति की अभिरुचि तथा कार्य करने की क्षमता पर निर्भर करता है। मैं प्रतिवर्ष संसकृत सप्ताह पर आयोजित किये जाने योग्य कार्यों की एक सूची जारी करता हूँ। इससे आयोजकों तथा संस्कृत सप्ताह मनाने वाले को वैचारिकी मिल जाती है। 

संस्कृत में दो प्रकार की विद्यायें मिलती हैं। द्वे विद्ये वेदितव्ये परा अपरा चेति। संस्कृत में परा अर्थात् ब्रह्म विद्या को अपरा विद्या भौतिक प्रकृति पर आधारित ज्ञान से श्रेष्ठ माना जाता रहा है। संस्कृत में परा विद्या तथा अपरा विद्या पर लिखित पुस्तकों तथा लेखकों के बारे में अलग से चर्चा करूँगा। महर्षि भारद्वाज, कणाद, व्यास जैसे ऋषियों ने सृष्टि उत्पत्ति, भूगोल, गणित, खगोल आदि विषयों पर लिखा। कालक्रम से उस दिशा में अधिक शोध नहीं होने के कारण वह ज्ञान रोजगार देने में असमर्थ हो गया है। जीवन को सुगम तथा सुखमय करने के लिए मानवीय जीवन मूल्य, जीवों के साथ सह अस्तित्व, पर्यावरण संरक्षण तथा भौतिक संसाधन इन दोनों की आवश्यकता होती है। संस्कृत में निहित ज्ञान जितना सम्मान एक उल्लू को, एक सिंह को, एक चूहे को देता है, उतना ही मानव को । वृक्षों, पशुओं से लेकर सभी जीवों में ईश्वर का रूप देखने वाली विद्या संस्कृत विद्या है। क्योंकि उनके अस्तित्व से ही मानव जीवन का अस्तित्व है। अस्तु।

मैं प्रयास करता हूँ कि मैं प्रतिवर्ष एक ऐसा लेख लिखूँ, जिसमें संस्कृत के एक वर्ष का लेखा जोखा उपस्थित हो। इसमें मैं संस्कृत की वर्तमान स्थिति, इसके समक्ष उपस्थित चुनौतियाँ, संस्कृत क्षेत्र की प्रमुख समस्यायें, विद्यालयों में संस्कृत विषयों तथा अध्यापकों की स्थिति, शिक्षण में व्यावहारिक समस्यायें, संस्कृत शिक्षा के लिए उपलब्ध संसाधन, विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं में संस्कृत की स्थिति, छात्रावासों और पुस्तकालयों की स्थिति, भारत में विभिन्न राज्यों में संस्कृत के समक्ष उत्पन्न समस्यायें, यथा- किसी प्रतियोगी परीक्षा के लिए संस्कृत की उपाधि को अयोग्य ठहराना, संस्कृत शिक्षा के लिए स्थापित न्यासों तथा इसके लिए समर्पित अचल सम्पत्ति की स्थिति (विगत कुछ दशक से दाता की इच्छा के विरुद्ध उनका धन अंग्रेजी शिक्षा में लगाया जा रहा है अथवा उसकी सम्पत्ति को हड़पा जा रहा है) संस्कृत महाविद्यालयों के अध्यापकों/कर्मचारियों की वेतन विसंगति आदि विषयों पर तथ्यपरक लेख लिखता हूँ। मैं अपने लेख में सरकारों/ स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा संस्कृत के हित के लिए किये जा रहे कार्यों से भी परिचय कराता हूँ, ताकि सरकारों / स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा संचालित योजनाओं की जानकारी लोगों तक पहुँच सके। 

मैं आये दिन संस्कृत के समक्ष उपस्थित विविध प्रकार की समस्याओं से परिचित होते रहता रहता हूँ। मेरा मानना है कि भाषा के प्रसार में डिजिटल संसाधन तथा संस्कृत समाचार पत्र पत्रिकाओं की अहम भूमिका होती है। संस्कृत पत्रों की आत्मनिर्भरता विषय पर मेरे एक प्रश्न का उत्तर देते हुए सूरत से प्रकाशित दैनिक संस्कृत समाचार पत्र विश्वस्य वृत्तान्तः के मालिक श्री मान् मूर्तुजा ने बताया कि एक अंक के एक पत्र को प्रकाशित करने में लगभग 16 रूपये से 20 रूपये तक खर्च आता है। सरकार या अन्य प्रतिष्ठानों की ओर से संस्कृत पत्रों को विज्ञापन नहीं मिल पाता। गुजरात सरकार ने समाचार पत्र में विज्ञापन पाने के लिए न्यूनतम 50 हजार प्रतियां मुद्रितहोने का शर्त लगा रखी है। किसी भी संस्कृत समाचार पत्र के लिए इस लक्ष्य को हासिल करना असंभव है। संस्कृत पत्रों को इस कठोर शर्त से बाहर रखने की आवश्यकता है, जिससे हमें डी. ए. वी.पी. दर पर विज्ञापन मिल सके। सरकारों को विज्ञापन देना चाहिए। यदि हमें 1000 प्रतियों का ग्राहक मिल जायें तो हमारा पत्र आत्मनिर्भर हो सकता है। मैं संस्कृत पत्रों को विज्ञापन देना पसन्द करता हूँ। आशा है संस्कृत समाचार पत्रों को प्रति सप्ताह न्यूनतम 40 हजार रूपये तक का विज्ञापन सरकारों द्वारा मिल सकेगी।

संस्कृत क्षेत्र मे डिजिटल साक्षरता का घोर अभाव है। इसके पीछे वे गरीब लोग हैं, जो मंहगी शिक्षा के विकल्प के रूप में संस्कृत शिक्षा को देखते हैं। वे डि़जिटल संसाधन जुटाने में असमर्थ रहता हैं। यहाँ डिजिटल वातावरण भी नहीं है। जो शिक्षक वेतनभोगी हैं, वे भी काफी पिछड़े हैं। मैंने कम्प्यूटर द्वारा संस्कृत शिक्षा का आरम्भ करते हुए शिक्षकोों को विद्यालयों तक भेजा, परन्तु शिक्षकों में इसके प्रति आकर्षण का अभाव रहा। डिजिटल साक्षरता के अभाव में शिक्षण और सूचना की अवाप्ति में घोर अनियमितता व कठिनाईयां हैं। माध्यमिक कक्षाओं के पाठ्यक्रमों का ई- पाठ्यसामग्री निर्माण हेतु मैं कृत संकल्पित हूँ, ताकि बच्चे इस माध्यम से भी पढ़ सकें। विद्यालयों में शिक्षकों के अभाव का यह एक विकल्प हो सकता है। इस सामग्री के निर्माण में उन माध्यमिक शिक्षकों को आगे आना चाहिए, जो उन विषयों को कक्षा में प्रतिदिन पढ़ाते हैं। इस योजना में शिक्षकों की ओर से सकारात्मक पहल की प्रतीक्षा है।

समस्या ज्ञात हो जाने के बाद समाधान प्रस्तुत करना और अंत में उस समाधान को प्रस्तावों के रूप में शासन/ सरकार को प्रेषित करना, जिससे सरकारें संस्कृत के प्रति अनुकूल हो सके, मेरा लक्ष्य होता है।

इस वर्ष संस्कृत से जुड़े अच्छे व दुखद समाचार निम्नवत् हैं

उत्तर प्रदेश में संस्कृत के लिए सभी तरफ से सकारात्मक पहल की जा रही है।











उत्तर प्रदेश के माननीय  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यालय से अब संस्कृत भाषा में भी प्रेस रिलीज जारी हो रही है। मा. मुख्यमंत्री के निर्देश पर मुख्यमंत्री कार्यालय एवं सूचना विभाग ने संस्कृत में प्रथम प्रेस रिलीज जारी कर दिया है।

दिनांक 5 जून 2018 को अशासकीय सहायता प्राप्त संस्कृत विद्यालयों में रिक्त पदों का अधियाचन मांगा जा चुका है।

माध्यमिक संस्कृत शिक्षा बोर्ड से प्रथमा, पूर्व मध्यमा, एवं उत्तर मध्यमा में सर्वोच्च अंक पाए छात्रों के नाम समाचार पत्रों की हेडिंग बन रही है।

1 सितम्बर 2019 को पूर्वाह्न 11:00 बजे उत्तर प्रदेश माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद के प्रथमा, पूर्व मध्यमा और उत्तर मध्यमा की कक्षाओं में के टॉप टेन छात्रों को यूपी बोर्ड के छात्रों के साथ माननीय मुख्यमंत्री जी के कर कमलों के द्वारा एक भव्य समारोह में पारितोषिक दिया। अब यह कार्यक्रम प्रतिवर्ष आयोजित होने लगा है।



माननीय मुख्यमंत्री जी ऐसे मेधावी छात्रों को सम्मानित करने की घोषणा कर चुके हैं।

उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान संस्कृत पढ़ने वाले 1000 मेधावी छात्रों को छात्रवृत्ति देने लगा है। विद्यालयों का निःशुल्क पुस्तकें, कम्प्यूटर तथा फर्नीचर दे रहा है। आज दिनांक 20 अगस्त 2021 के समाचार पत्र से ज्ञात हुआ कि उत्तर प्रदेश सरकार संस्कृत छात्रों को छात्रवृत्ति देने जा रही है। ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए युवाओं को टैबलेट मिलेगा। आशा है कि इस योजना का लाभ संस्कृत छात्रों को भी मिल सकेगा। 

बेसिक शिक्षा विभाग में रिक्त 68500 पदों के लिए संपन्न परीक्षा में संस्कृत विषय को सम्मिलित कराने के फलस्वरूप संस्कृत पढ़ें छात्रों को नौकरी में जबरदस्त लाभ मिला। 

उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग की  नियुक्तियों में आचार्य उपाधि धारक को भी अवसर मिला।

उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान को संस्कृत के विकास के लिए प्रभूत धनराशि दी गई, जिसके फलस्वरूप प्रदेश के विभिन्न जनपदों में संभाषण कक्षाओं का संचालन किया जा रहा है।

संस्कृत विषय लेकर सिविल सेवा की तैयारी करने के लिए निःशुल्क कोचिंग खोली गयी। इसमें प्रत्येक छात्र को प्रतिमाह रु. 3000/- छात्रवृत्ति दी जाती है।

प्रयाग कुंभ के लोगो की थीम 'सर्वसिद्धिप्रदः कुम्भः' रखा गया। इस थीम को मैं तथा प्रो. प्रभुनाथ द्विवेदी ने मिलकर बनाया था। थीम बनाने में केवल 1 घंटे लगे।

दुखद समाचार

उत्तराखण्ड तथा राजस्थान में संस्कृत शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों के बीच घमासान छिड़ा । परंपरागत संस्कृत विद्यालयों में आधुनिक विधा के अध्यापक अध्यापन कर पाएंगे या नहीं? यहाँ संस्कृत को दो खेमे में बांटा गया, जबकि आधुनिक धारा तथा परम्परागत धारा के दोनों छात्र एक ही पुस्तकें पढ़ते हैं। परंपरागत शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों को अवसर दिया जाए अथवा आधुनिक संस्कृत धारा के लोगों को इस पर रह रहकर विवाद पैदा किया जाता है। इस प्रकार का प्रश्न उत्तर प्रदेश सहित तमाम राज्यों में उठता रहा है।

सेना का धर्मगुरु पद के लिए कुछ विश्वविद्यालय की उपाधि को मान्य नहीं किया गया। उड़ीसा में शिक्षा शास्त्री उपाधि को बी. एड. के समकक्ष नहीं माना गया।

सबसे चिंताजनक बात यह है कि अभी तक  कोई संस्था या सरकार इस प्रकार का डाटा कभी संकलित नहीं कराया कि अध्येताओं और रोजगार के बीच अनुपात क्या है? किसी संस्था के पास इसका डाटा नहीं है कि पूर्ववर्ती छात्रों में से कितने छात्रों को रोजगार मिल पाया ।

अनेक विश्वविद्यालय इंटीग्रेटेड कोर्स आरंभ कर चुका है। इसमें इंटर के बाद सीधे बी ए तथा बी एड का कोर्स किया जा सकता है। जागरूक छात्र वहां प्रवेश लेंगे और b.a. संस्कृत या शास्त्री करने वालों की संख्या और भी कम होगी।

पंजाब, गुजरात, मध्य प्रदेश आदि राज्यों से संस्कृत को विद्यालयों से निकाल बाहर करने का समाचार समाचार पत्रों तथा सोशल मीडिया पर आता रहता है। मध्यप्रदेश सरकार संस्कृत के विकल्प में कौशल विकास जैसे रोजगार परक पाठ्यक्रम को रख देती है। गुजरात सरकार द्वारा कक्षा 9 से अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा देने का समाचार हो या अंग्रेजी माध्यम के उत्कृष्ट विद्यालय खोले जाने की। इसको लेकर संस्कृत समाज कोई आक्षेप नहीं करता, परन्तु संस्कृत विद्यालयों के लिए जरूरी भवन मरम्मत व संसाधन के धनराशि न देना, वर्षों तक अध्यापकों के पद को खाली रखना दुखद है।

संस्कृत को मैकाले अर्थात् पूंजीवादी अर्थव्यवस्था से मुकाबला करने के लिए उसे अपने हाल पर छोड़ दिया गया है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था और प्रजातंत्र के उदय होने से संस्कृत अपने र्थिक आधार को खोता जा रहा है। साथ ही पूंजीवादी समाज के दुष्प्रभाव से संस्कृत समाज भी नहीं बचा। फलतः आर्थिक कारणों से इस विद्या से जुड़े लोग भी मैकाले को पीछे छोड़ आये हैं। यह एकाएक समझ में नहीं आता। उथले उदाहरणों से यह मुद्दा समझ में नहीं आता। भ्रमित तथा बुभुक्षित इस ओर आकर्षित है। जिनका पेट भरा है, वे अंतिम पंक्ति को प्राप्त हैं।  संस्कृत मर रही है। इसके सम्भावित लाश के दावेदारों में कॉव- कॉव हो रहा है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण सद्यः हमें हरिद्वार में देखने को मिला, जहाँ साहित्य अकादमी तथा अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से विभूषित संस्कृत के जाने माने विद्वान् डॉ. निरंजन मिश्र को जेल के सलाखों के पीछे डाल दिया गया।

डॉ. लक्ष्मीनाथ मिश्र जैसे लोग संस्कृत की दुरवस्था पर खेद प्रकट करते हुए कहते हैं- “अध्ययन अध्यापन में रुचि तभी हो सकती है, जब उदरम्भरी समस्या का समाधान हो सके” बुभुक्षितैर्व्याकरणं नभुज्यते । सरकारें मतदाता ढूंढती हैं । अपने पूर्वजों के ज्ञान की थाती को अनुरक्षित करने का आयास परमावश्यक है ।

संस्कृत पढ़ने वाले में से एक तबका ऐसा भी है, जो संस्कृत के समक्ष उपस्थित समस्याओं पर विमर्श करने पर उस विमर्श को संस्कृत को आधार बनाकर अपनी "जीविका" चलाने वालों की चिन्ता कहकर खारिज कर देते हैं। वे इस दुश्चिन्ता या समस्या को "व्यक्तिपरक" मानते है। उनके विचार से "संस्कृत देववाणी है" अतः यह अपनी दिव्यता के कारण सदैव अपने धारक का चयन करती रहेगी।

वर्तमान विश्व के लोग अपने दैनिक-जीवन में अनेक ऐसे दायित्व स्वेच्छा से उठा रहे हैं, जिनसे उन्हें असीम आनन्द मिलता है। संस्कृत-अध्ययन भी उनमें से एक है। निष्कर्षतः ऐसे लोगों के विचार से संस्कृत सम्पूर्ण देश ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में एक "Undercurrent" (अदृश्य धारा) के रूप में शनै: शनै: प्रसृत हो रही है। 

आईये देखें कि किस तरह से संस्कृत सप्ताह का आयोजक बना जा सकता है-

  1. जानकारी लेकर तथा जानकारी देकर.

 कई लोग संस्कृत सप्ताह में सम्मिलित होना चाहते, परंतु जानकारी के अभाव में वंचित रह जाते हैं. अपने-अपने क्षेत्र में आयोजित संस्कृत सप्ताह की सूचना का व्यापक प्रचार घर बैठे भी किया जा सकता है. अपने कार्यस्थल पर संस्कृत की वर्तमान स्थिति विषय को चर्चा का विषय बनाना चाहिए। विद्यालयों में जाकर संस्कृत साहित्य में उपस्थित वैज्ञानिक विषयों पर छात्रों एवं अध्यापकों का ध्यानाकर्षण करना चाहिए। संस्कृत साहित्य में विश्व के लिए मानव मूल्यों होतु मार्गदर्शन मिलता है। यह मानव अधिकारों का सबसे बड़ा लिखित दस्तावेज है। आधुनिक विज्ञान की आधारशिला तथा मानव मूल्यों की शिक्षा देने वाली संस्कृत भाषा के उन पक्षों से लोगों को परिचित कराया जाय। समाज हो या विद्यालय संस्कृत की अनुपस्थिति संस्कृत के लेखकों के चिंतन को सामाजिक एवं कलात्मक अभिव्यक्ति तक सीमित कर देती हैं । ऐसी स्थिति मे सारी विद्वत्ता या तो लिखित रूप में अथवा कर्मकाण्ड की भाषा के रूप में ही सीमित हो कर रह जाती है। संस्कृत को ऊर्ध्व की ओर उन्मुख करने हेतु विद्यालयों से लेकर विश्विद्यालय तक को भरपूर वित्तीय पोषण देना चाहिए। इससे संस्कृत में निबद्ध विषय वस्तु परिष्कृत एवं पाठ्यक्रमों एवं पाठ्य सामग्रियों को विस्तृत किए जा सकेंगें l आज संस्कृत की स्थिति उस व्यक्ति की तरह होती जा रही है, जैसे किसी को भाषा आती हो पर वह क्या कहें यही ज्ञात न हो ।

2. दृष्टिदान कर :-{ अनेक तरह के कार्यक्रमों की रूपरेखा का निर्माण:-)

कई युवा साथी संस्कृत दिवस को यादगार बनाना चाहते हैं परंतु वह सोच नहीं पाते कि इस अवसर पर क्या और कैसे किया जाए. इसके लिए कार्यक्रमों का विविध स्वरुप , उसकी रूपरेखा तैयार कर शिष्यों, साथी युवाओं को उपलब्ध कराया जा सकता है. इसका डॉक्यूमेंटेशन कर सर्व समाज के हित में जारी किया जा सकता है.

जैसा कि मैंने 16 अगस्त को फेसबुक पर लिखा-

इस अवसर पर उत्साह के साथ नये कार्य किये जायें। संस्कृत सप्ताह में स्कूली बच्चों तथा नागरिकों को संस्कृत बोलने का प्रशिक्षण दिया जाय। इसके लिए इस प्रकार की तैयारी व संचालन किया जा सकता है।

1. प्रशिक्षण का पाठ्यक्रम तथा पाठ्योपकरण तैयार करें।

2. प्रशिक्षण देने वालों के लिए दिशा निर्देश बना लें।

3. प्रशिक्षण केन्द्र का चयन कर लें।

4. सम्पूर्ण आयोजन के प्रबन्धन की रूपरेखा तैयार कर लें।

प्रशिक्षण देने के लिए उत्सुक विशेषज्ञों की कार्यशाला आयोजित करें। इस कार्यशाला में अधोलिखित कार्य किये जायें-

पाठ्यक्रम तथा पाठ्योपकरण की सहायक सामग्री का निर्माण

1. स्फोरक पत्र/ पी. पी. टी का निर्माण ।

इन पत्रकों के माध्यम से शिविर में अध्यापन कराया जाए। पाठ्यसामग्री में लगभग 25 से 30 प्रकार के पत्रक का निर्माण किया जाए।

2. प्रचार पत्रक का निर्माण।

सम्भाषण शिविर के व्यापक प्रचार हेतु विद्यालयों के सूचना पट्ट पर चस्पा करने, छात्रों के मध्य वितरित करने तथा अभिभावकों तक शिविर की सूचना पहुंचाने के लिए प्रचार पत्रक का निर्माण किया जाए।

3. संस्कृत गीत का चयन व अभ्यास

कक्षा के आरम्भ, मध्य तथा अंत में गीतों द्वारा संस्कृत वाचन का अभ्यास कराने के लिए उद्बोधन गीत, वर्णमाला गीत, संख्या स्मरण कराने के लिए गीतों का संकलन करें। यह गीत आयु एवं कक्षा के अनुरूप अलग-अलग निर्धारित किये जायें।

4. मंत्रों श्लोकों तथा सुभाषितों का उच्चारण ।

विभिन्न छन्दों में रचित मंत्रों, श्लोकों तथा सुभाषितों की लयात्मकता भिन्न-भिन्न होती है। पाठविन्दु में उद्धृत श्लोक का निर्धारित मानदण्ड के अनुसार उच्चारण निश्चित किये जायें।

5. मंत्रों, श्लोकों तथा सुभाषितों का अभ्यास पत्रक का निर्माण किया जाएगा।

6. सभी आयु एवं स्तर के अनुरूप विडियो/ दृश्य संसाधनों का संकलन एवं निर्माण किया जाए।

7. कथा-पाठ

कथा द्वारा भाषा सिखाना सरल होता है। आयु के अनुसार विभिन्न प्रकार की कथाओं का संकलन तथा लेखन किया जाए।

8. क्रीडा-

बच्चों को खेल के माध्यम से संस्कृत सिखाना अत्यन्त उपयोगी होगा। अनेक प्रकार के खेल और उसके नियमों पर चर्चा की जाय।

9. वस्तु प्रदर्शिनी-

दैनिक व्यवहार में आने वाली वस्तुओं को संस्कृत नाम के साथ प्रदर्शित कर शिक्षा देना अधिक आकर्षक होगा। इसमें ऐसे वस्तुओं के संस्कृत में नाम संकलित किये जायें। कुछ वस्तुओं का उपयोग कक्षा शिक्षण में भी किया जा सकता है।

10. अभ्यास पत्रक-

शिविर में समय, विभक्ति उपसर्ग, लिंग, वचन आदि का अभ्यास कराने के लिए लगभग 35 से 40 प्रकार के पत्रक का निर्माण किया जाय।

11. संभाषण सिखाने हेतु पाठ्यपुस्तकों/ पाठबिन्दुओं का निर्धारण किया जाए।

शिक्षक के लिए निर्देशिका का निर्माण किया जाए।

12. उद्घाटन, समापन एवं शिविर संचालन के लिए किये जाने वाले कार्यों की रूपरेखा का निर्माण कर लें।

13. शिविर का अभिलेखीकरण एवं रिपोर्टिंग के लिए किसी एक सदस्य को तैयार करें। 

14. शिविर आयोजन के समय मिडिया प्रबन्धन हेतु आवश्यक सामग्री तथा निर्देशिका का निर्माण कर लें।

अब आप संस्कृत सप्ताह में संस्कृत सिखाना आरम्भ करें।

दिनांक 7 अगस्त 2021 को यह पोस्टर जारी किया।

3. सामूहिक कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी द्वारा।

अपने - अपने विद्यालय, महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय के संस्कृत विभागों में इसका सामूहिक आयोजन करें. इसके अतिरिक्त और जहां कहीं भी संस्कृत सप्ताह का आयोजन हो रहा हो उसमें सक्रिय सहयोग करें. संस्कृत सप्ताह में प्रत्येक विद्यालय में संस्कृत में प्रार्थना कार्यक्रम, श्लोक पठन-गायन स्पर्धा, वक्तव्य, सुलेखन, चित्रप्रदर्शन करना चाहिए। बच्चों को अपने किन्हीं पांच पड़ोसियों से संस्कृत सप्ताह पर शुभकामना लिखवाकर लाने का कार्य किया जाय।  

4. व्यक्तिगत आयोजन के द्वारा।

आप अकेले भी संस्कृत सप्ताह को खुशनुमा माहौल दे सकते हैं. अपने मित्रों, परिचितों से मिलते जुलते समय संस्कृत सप्ताह की शुभकामना दीजिए. फोन,  SMS, WhatsApp, Facebook  पत्र आदि माध्यमों से सभी को शुभकामना संदेश भेजें. सभी प्रकार के संचार माध्यमों यथा-  दैनिक समाचार पत्र, पत्रिकाएं, पंपलेट, सभी प्रकार की सोशल मीडिया पर संस्कृत से जुड़े लेख लिख सकते हैं. आप स्वयं का छोटा सा वीडियो बनाकर भी प्रसारित कर सकते हैं. उसमें ऐसा संदेश या कथोपकथन हो जो दिल को छू जाए. अध्यापक बच्चों को प्रोजेक्ट वर्क भी दे सकते हैं

5. महिलाओं के बीच का आयोजन।

पिछले वर्ष मैंने मेहंदी प्रतियोगिता का आयोजन शुरू कराया था छात्राएं अपने हाथ में मेहंदी लगाती है और उसके बीच में संस्कृत से जुड़ा छोटा सा वाक्य लिखती है जैसे जयतु संस्कृतम्, पठतु संस्कृतम्  आदि। महिलाएं अपने घर में संस्कृत कजरी गायन का कार्यक्रम भी रख सकती है।

6. व्यापारिक आयोजन

संस्कृत सप्ताह के बीच किसी एक दिन जिससे आप सब्जियां या फल खरीदते हैं उसे सब्जियों तथा फलों का संस्कृत में नाम लिखकर प्रदर्शित करायें तथा उसकी दुकान के पीछे संस्कृत सप्ताह का बैनर लगवा दें। कुछ सब्जियां आप अपने मित्रों के साथ जाकर खरीदें। हो सके तो सब्जियों को खरीदने के लिए उसे अग्रिम धनराशि का भुगतान भी करें।

    उज्जैन निवासी डॉ. राजेश्वर शास्त्री मुसळगाँवकर का कहना है कि संस्कृत दिवस, संस्कृत सप्ताह, जैसे आत्मघाती कार्यक्रमों की आयोजना से बचें , क्योंकि दिवस उनके मनाएँ जाते हैं जो कालातीत हो जाते हैं  जैसे - पितरों की तिथि । संस्कृत जीवित है काल बाह्य नहीं है ।  उसका अकुण्ठित प्रवाह है    क्यों अपने ही हाथों से हम जीवित का श्राद्ध कर रहे हैं ? हिन्दी पखवाड़ा मनाने वाले इसका प्रत्यक्ष फल भोग रहे हैं हिन्दी को आजतक उसका स्थान प्राप्त न होने में यही एक मात्र हेतु है  । क्षणभर सोचने  की आवश्यकता है कि भारत में अंग्रेज़ी दिवस क्यों नहीं मनाया जाता ? दिवस मनाने की वकालात करनेवाले एक दुर्बल तर्क उपस्थापित करते हैं कि जन सामान्य के आकर्षण हेतु उक्त दिवस की परिकल्पना है । परन्तु इस तथ्य को भी भुलाया नहीं जा सकता है कि दिवस जिनके भी मने  वे अपमानित ही नहीं हुए हैं अपितु सम्प्रति अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं चाहे मातृ , पितृ ,मित्र, महिला, प्रेम और हिन्दी दिवस ही क्यों न हों ।

 संस्कृत को सम्भाषण तक ही सीमित करने का विचार भी एकदेशीय प्रतीत होता है , क्योंकि संस्कृत का महत्त्व जो आज तक अक्षुण्ण है वह इसमें निबद्ध वैश्विक विषयों के कारण है और प्रकृत में यह ध्यातव्य है कि उन ग्रन्थों की भाषा आज प्रचलित सम्भाषण की भाषा से सर्वथा पृथक् है । सम्भाषण पण्डितों को इस विषय में  विचार करने की महती आवश्यकता है ।

    हजारों वर्षों से लाखों वर्गमील में बसे हुए करोडों मनुष्यों ने कई पीढियों तक संस्कृत साहित्य का सृजन किया है और आज भी वह क्रिया बन्द नहीं हुई है । संस्कृत मे निबद्ध साहित्य की ओर सरसरी निगाह से देखने पर हजारों वर्षों से निरन्तर प्रवहमान मानवचिन्तन का विराट् स्रोत प्रत्यक्ष दिखाई दे जाता है । हम हजारों वर्षों के मनुष्य और उसके चिन्तन के साथ युगपत् एकसूत्र में आबद्ध हो जाते हैं । कितने संघर्षों के बाद मानवसमाज ने यह रूप ग्रहण किया है । विशाल शत्रुवाहिनी क्षुधित वृकराजि के समान इस देश में आईं हैं किन्तु उनका प्रचण्ड प्रतापानल थोडे ही दिनों में फेन बुद् बुद् के समान विलीन हो गया है । दुर्दान्त राजशक्तियाँ मेघघटा की भाँति घुमडकर आईं और अचानक आये हुए प्रचण्ड वायु के झोके से न जाने कहाँ विलीन हो गईं । संस्कृत का साहित्य हमें इतिहास की कठोर वास्तविकताओं के समक्ष खड़ा कर देता है । मनुष्य अन्त तक अजेय है , उसकी प्रगति अवरुद्ध नहीं हो सकती । उतावली व्यर्थ है । सबकुछ आज ही समाप्त नहीं हो जाता । चार दिन की शक्ति पर अभिमान करना व्यर्थ है ।

 सहसा विदधीत न क्रियाम् । बुद्ध्वा कर्माणि चारभेत् । क्षमस्व ।

संस्कृत सप्ताह के पक्ष तथा विपक्ष में कई लोग खड़े हैं। सबके अपने अपने विचार व तर्क हैं। स्थिति यह है कि आज देश ही नहीं विदेश में भी संस्कृत सप्ताह मनाया जा रहा है। भाजपानीत की सरकार हर संभव कोशिश करती है कि विद्यालयों में इसका आयोजन हो। इसके लिए समय-समय पर निर्देश भी जारी किये जाते हैं। इसका परिणाम यह है कि विद्यालयों के प्रातःकालीन प्रार्थनावधि में चार पाँच बच्चों से संस्कृत के किसी विधा की प्रस्तुति करवाया जा रहा हैं। कभी श्लोकगायन, कभी श्लोकान्त्याक्षरी, कभी छोटी एकांकी, कभी वाद विवाद तो कभी किसी विषय विशेष पर वक्तृता का आयोजन होता है । प्रार्थनावधि में आयोजन का लाभ यह है कि इसे सभी बच्चे सुनते समझते हैं। सप्ताह के अंतिम दिन विद्यालय सभागार में उत्कृष्ट प्रदर्शन करनेवालों को पुरस्कृत कर उन सभी का उत्साह वर्धन किया जाता है।

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