सामान्य रूप से रस नौ
होते हैं। संस्कृत काव्यशास्त्र के मूर्धन्य आचार्य मम्मट ने अपनी कृति ‘काव्य-प्रकाश’ की प्रथम कारिका में ही कवि निर्मित ‘कविता’ के लिए ‘‘नवरसरूचिराम्‘‘
विशेषण का प्रयोग किया है जिसकी व्याख्या प्रसिद्ध टीकाकार वामन ने
दो प्रकार से की है-‘‘नवसंख्याकाः रसाः श्रृगारदयो यस्यां सा
नवरसा,...
पुराणधर्मशास्त्रेषु आचारमीमांसा
आङ्पूर्वकाच्चरधातोः घञ्प्रत्यये कृते सत्याचारशब्दस्य निष्पत्तिर्भवति। आचरतीति व्युत्पत्या
आचार पदे लोके व्यावहारिक कृत्य एव गृह्îते।
गीतायामप्युक्तं यत् ‘‘यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो
जनः। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते’’ इत्यनेन स्पष्टो
भवति यत् श्रेष्ठोजनः तमेव कथ्यते यः शास्त्रविधानेन विहितं वर्णश्रमानुकूलं
कर्ममाचरति।...
रीति सम्प्रदाय
संस्कृत
अलंकार शास्त्र में रीति सम्प्रदाय का अपना विशेष महत्व रहा है। इन रीतियों का उद्भव
देश विशेष से जुड़ा हुआ है। ये शनैः शनैः प्रदेशगत शैलियों के विशिष्ट प्रकार से सार्वभौमिक
लेखन प्रकारों के रूप में प्रचलित हुई। रीति सम्प्रदाय के प्रधान प्रवर्तक आचार्य
वामन माने जाते है। वामन के पूर्ववर्ती आचार्य दण्डी...