चित्रकूट के महत्व का गुणगान आदि-कवि वाल्मीकि,
पुराणों
के रचयिता महर्षि व्यास, महाकवि
कालिदास, संस्कृत
नाटककार भवभूति, संतकवि
तुलसी, मुसलमान
कवि रहीम ने मुक्त कण्ठ से किया है।
मानवीय सृष्टि-सरणि में अवतारी पुरुष भगवान राम ने जिस स्थान को अपना निवास स्थान
चुना हो और जिसकी प्रशंसा के भाव भरे गीत गायें हों उसके प्रभाव तथा माहात्म्य के
बारे में कुछ कहना अशेष रह जाता है।
स्थान परिचयः-
चित्रकूट उत्तर प्रदेश के बांदा
जिले की करवी तहसील तथा मध्यप्रदेश के सतना जिले की सीमा पर स्थित है। यह प्रयाग
(इलाहाबाद) से 120
किलो-मीटर पश्चिम झाँसी-मानिकपुर (मध्य रेलवे) के बीच चित्रकूट-धाम-करवी रेलवे
स्टेशन से 8
किलोमीटर दक्षिण है। सामान्यतया करवी, सीतापुर
कामता, खोही
तथा नयागाँव- से पाँच बस्तियाँ और इनका समीपवर्ती विस्तृत वनांचल ‘चित्रकूट’
नाम
से विख्यात है।
चित्रकूट पहुँचने का साधनः-
चित्रकूट पहुँचने के लिए रेल बसों की सेवाएँ उपलब्ध हैं। चित्रकूट-धाम-करवी झाँसी-मानिकपुर (मध्य रेलवे) का स्टेशन है। इनके अतिरिक्त इलाहाबाद-जबलपुर मार्ग पर चलने वाली अन्य रेलगाडि़यो से यात्रा करने वाले यात्रियों को मानिकपुर जंक्शन पर उतरना पड़ता है। वहाँ से चित्रकूटधाम-करवी के लिए कोई रेलगाड़ी अथवा बस पकड़नी पड़ती है। मानिकपुर से चित्रकूटधाम-करवी की दूरी लगभग 25 किलोमीटर है। रेलों के अलावा आज कल तो ‘बसों’ का प्रचलन इतना अधिक हो गया है कि चाहे जिधर से चित्रकूट आना हो, सभी तरफ से बसें चित्रकूट के लिए मिल जाती है। प्रयाग से दिन भर घण्टे-घण्टे बाद रोडवेज की बसें आती रहती हैं। सतना से चित्रकूट का मार्ग बन जाने से वहाँ से भी बसें चित्रकूट तक चलने लगी है। सागर से होती हुई बसें चित्रकूट पहुँचती है।आवास की सुविधायेंः-
यात्रियों के ठहरने के लिए
सीतापुर (चित्रकूट) में कई धर्मशालायें है,
जिनमें
कलकत्ता वाली धर्मशाला, माँजी
की धर्मशाला, आगरा
वालों की धर्मशाला, तुमसर
धर्मशाला, श्रीराम
धर्मशाला तथा राठी की कोठी धर्मशाला अधिक प्रसिद्व है। इधर चित्रकूट में अनेक
जातीय धर्मशालायें बन गयी है अतः वहाँ भी यात्रियांे को आवास की सुविधायें मिल
जाती है। सीतापुर में चित्रकूटधाम नगरपालिका का यात्री-ग्रह तथा पयस्विनी के
किनारे मध्यप्रदेश सरकार द्वारा निर्मित सार्वजनिक निर्माण विभाग-डाकबंगला और वन
विभाग-डाकबंगला भी है। इनके अतिरिक्त चित्रकूट में सैकड़ों मठ व मन्दिर है,
जहाँ
यात्रियांे को निःशुल्क आवास की व्यवस्था कर दी जाती है। यहाँ पण्डे लोग भी
पर्याप्त संख्या में रहते हैं, जो
यात्रियों को हर सम्भव सुविधायें प्रदान करते है। हाल में यहाँ ‘जयपुरिया
भवन’ तथा पर्यटन विभाग
का ‘यात्रीगृह’
बन
जाने से उन यात्रियों को भी सुविधा मिल गई है जो आधुनिक ढ़ग का आवास पसन्द करते
है।
चित्रकूट के दर्शनीय स्थलः-
चित्रकूट एक आरण्यक
तीर्थ है। हरी-भरी वन-श्रेणियों के बीच स्थान-स्थान पर यहाँ ऐसे दर्शनीय स्थल हैं,
जो
रमणीयता और पवित्रता के लिए युगों से सुविख्यात है। केवल धार्मिक महत्व वाले
स्थानो की संख्या बहुत अधिक है, पर
अध्यात्म, संस्कृति
तथा पर्यटन-तीनों दृष्टियों से जो स्थान महत्वपूर्ण है,
उन्ही
का संक्षिप्त परिचय यहाँ दिया जा रहा है।
कामदगिरिः- चित्रकूट तीर्थ के मुख्य देव ‘श्री
कामदगिरि‘ है।
इसकी प्राकृतिक सुषमा बड़ी ही निराली है। महर्षि वाल्मीकि,
महाकवि
कालिदास तथा संत कवि तुलसी ने बड़े ही प्रभावशाली शब्दों में इसका वर्णन किया है।
इसके दर्शन एवं परिक्रमा करने से श्रद्धालु-यात्री के सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते
हैं। इसीलिए इसका नाम ‘कामदगिरि’
है। इस गिरिराज का प्रभाव यों तो अनादिकाल
से चला आ रहा है, पर
भगवान राम के प्रवास करने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है।
कामदगिरि
के दर्शन के लिए प्रतिमास की अमावस्या, चैत्र
रामनवमी और दीपमालिका को भारत के कोने-कोने से अंसख्य यात्री चित्रकूट आते हैं और
इसकी परिक्रमा कर स्वयं को धन्य मानते है। पर्वत के चारों ओर परिक्रमा के लिए
पक्का मार्ग बना हुआ है, जिसकी
परिधि लगीाग 3
मील है। परिक्रमा के किनारे-किनारे सैकड़ों देवालय बने हुए हैं,
जिनमें
राममुहल्ला, मुखारविन्द,
साखी
गोपाल, भरत-मिलाप
(चरण-पादुका) तथा पीली कोठी अधिक महत्वपूर्ण है।
पर्वत
के दक्षिण पाश्र्व में एक छोटी-सी पहाड़ी है,
जिसे
‘लक्ष्मण पहडि़या’
कहते
हैं। इसके शिखर पर श्री लक्ष्मण जी का मन्दिर बना हुआ है। जन-श्रुति के अनुसार राम
के वनवास-काल में लक्ष्मण जी का यही निवास स्थान था।
भरत-मिलाप (चरण-पादुका)ः- यह स्थान कामदगिरि के
दक्षिण पाश्र्व में परिक्रमा पथ पर है। यह वही स्थान है,
जहाँ
भरत राम का अश्रुप्रवाही मिलन हुआ था। वह मिलन,
जिसमें
पर्वतराज की कठिन शिलायें भी पिघल कर पानी-पानी हो गयी थी,
पक्षियांे
का कलरव शान्त पड़ गया था और वन खण्ड की तरु-लतायें भी चार आँसू रो पड़ी थीं। जहाँ
धर्म के समक्ष राजनीति ने मात्था टेका था और कर्तव्य ने वैभव को पैरों तले कुचल
राज्य-पद को कुन्दक बना कर इधर-उधर फेंका था। पिघली हुई उन शिलाओं का चिहनावशेष आज
भी उस अपूर्व मिलन की याद को ताजा कर देता है।
रामघाटः- चित्रकूट पर्वत से डेढ़ किलोमीटर पूर्व
पयस्विनी (मंदाकिनी) नदी तट निर्मित रामधाट भक्तों एवं श्रद्धालुओं के लिए बड़ा ही
पवित्र स्थान माना जाता है। यहाँ पर बैठ कर इधर-उधर दृष्टि डालने से वाराणसी में
गंगा के घाटों का स्मरण हो आता है।
रामघाट के ऊपर अनेक मन्दिर व मठ है,
जिनमें
श्री मत्तगयेन्द्र (मदगंजन स्वामी) शंकरजी का मन्दिर अधिक महत्वपूर्ण माना जाता
है। मन्दिरों के इस समुदाय को ‘पुरी’
कहते
है। इसके चतुर्दिक परिक्रमा बनी हुई है। लोग श्रद्धा के साथ पुरी की भी परिक्रमा
करते है।
प्रमोद वनः- रामधाट से एक किलोमीटर दक्षिण
चित्रकूट-सतना रोड पर पयस्विनी तट यह स्थान स्थित है। इसमें रीवां नरेश का बनवाया
हुआ श्री नारायण भगवान का मन्दिर है। इसके चारों ओर लगभग 300
कोठरियाँ बनी हुई है, जिनके
सम्बन्ध में कहा जाता है कि रीवां नरेश ने किसी दैवी बाधा की शान्ति के लिए इनका
निर्माण करा कर उतने ही पण्डितों द्वारा किसी विशेष अनुष्ठान का आयोजन किया था।
प्रमोद
वन के ठीक सामने पश्चिम में ‘दास
हनुमान’ नामक
स्थान है, जो
एक सिद्व जगह मानी जाती है।
जानकी कुण्डः- प्रमोद वन से एक फलाँग दक्षिण
स्थित जानकी कुण्ड आज कल चित्रकूट का सर्वाधिक रम्य आश्रम समझा जाता है। यहाँ
विरक्त महात्माओं की सैकडों गुफायें तथा कुटीरें है,
जहाँ
तीन-चार सौ महात्मा सदैव तपश्चर्या करते रहते है। इस आश्रम का प्राकृतिक दृश्य
बहुत सुहावना है। नीचे मंदाकिनी छल-छल करती हुई बह रही है। इसके दोनों किनारे सघन
वृक्षों की सुन्दर कतारें हैं, जो
दर्शक का मन हठात् मोह लेती है। मंदाकिनी के जल में यहाँ अंसख्य दीर्घकाल मछलियाँ
तैरती रहती है, जो
कुछ क्षणों के लिए पर्यटकों के मनोरंजन का साधन बन जाती है।
आश्रम
में स्व0
संत श्री रणछोरदास जी महाराज द्वारा स्थापित एक संस्कृत पाठशाला तथा रघुवीर जी का
भव्य मन्दिर है। यहाँ एक धर्मशाला तथा कई सुन्दर भजनाश्रम बने हुए है। स्वामी
पंजाबी भगवान् द्वारा निर्मित श्री हनुमान जी का मन्दिर भी विशेष दर्शनीय है।
प्रसिद्वि
है कि वनवास काल में महारानी जानकी जी यहाँ नित्य स्नान करने आती थीं,
इसीलिए
इसका नाम ‘जानकी
कुण्ड’ पड़ा।
स्फटिक शिलाः- यह स्थान जानकी कुण्ड से लगभग
डेढ़ किलोमीटर दक्षिण सधन वृक्षावली से आवृत्त पयस्विनी के तट पर है। यह वही स्थान
है जहाँ एक विशाल शिला-खण्ड पर भगवान राम के चरण-चिन्ह अंकित है। इसी शिला पर बैठी
हुई भगवती सीता पर इन्द्र-पुत्र जयन्त ने काक का रुप धारण कर चच्चु प्रहार किया
था। यहाँ का प्राकृतिक दृश्य अतीव आकर्षक,
मनोमुग्धकारी
और नेत्रानुरज्जनकारी है।
अनुसूया आश्रमः- जानकी कुण्ड से लगभग 15
किलोमीटर दक्षिण प्रकृति देवी की हरी-भरी गोद में अवस्थित महासती अनुसूया तथा
महर्षि अत्रि जी की तपश्चर्या का पवित्र स्थल ‘अनुसूया-आश्रम’
के
नाम से विख्यात है। पुण्यशील दम्पति (अत्रि-अनुसूया) के प्रभाव से इसका कण-कण परम
पवित्र तथा प्रेरणा स्त्रोत है। यह जन समूह के कोलाहल से दूर शान्ति का आगार परम रमणीक आश्रम है। इस आश्रम की पुनीत
शरण में अनेक महात्माओं ने परम सिद्वि प्राप्त की है। यहाँ अत्रि अनुसूया तथा उनके
पुत्र भगवान दत्रात्रय, दुर्वासा
और चन्द्रमा की मूर्तियाँ स्थापित है। प्राकृतिक,
धार्मिक
तथा सांस्कृतिक-तीनों दृष्टियों से यह स्थान महत्वपूर्ण है। यह वही स्थान है,
जहाँ
महासती अनुसूया ने महारानी सीता को ‘पतिव्रत
धर्म’ का
दिव्य उपदेश देकर नारी-जाति का स्वर्ग प्रशस्त किया था।
चित्रकूट-सतना
रोड से फूट कर एक पक्का उपमार्ग यहाँ तक जाता है। इसे मध्य प्रदेश शासन द्वारा
बनाया गया है। यहाँ एक सिद्व बाबा का बड़ा सुन्दर आश्रम बना है। नीचे अनुसूयाजी की
तपस्या में लाई गयी पयस्विनी (मन्दाकिनी) नदी बह रही है।
पर
विचारणीय बात यह है कि इतने सुन्दर तथा रमणीक आश्रम में पर्यटकों के आवासादि के
लिए न तो कोई धर्मशाला है, न
सरकारी विश्राम-गृह ही। देश के धर्मशील सम्पन्न परिवारों तथा शासन को इस ओर ध्यान
देना चाहिए।
गुप्त गोदावरीः- यह तीर्थस्थल अनुसूया आश्रम से
लगभग 6
किलोमीटर पश्चिम में है। एक लम्बी गुफा से निरन्तर जल स्त्राव होता रहता है। भीतर
अँधेरा होने से यात्री दीपक (गैस) के प्रकाश में अन्दर प्रवेश करते है। इसके भीतर
एक कुण्ड है, जिसे
सीता कुण्ड कहते है जो दरवाजे से 15-16
गज की दूरी पर है। गुफा से पानी की धारा कुण्डों पर गिरती है और वही लृप्त हो जाती
है, इसी से इसे गुप्त
गोदावरी कहते है। यहाँ का प्राकृतिक कला-कौशल अद्भुत है। जलवाही गुफा के बगल में
एक दूसरी विशाल गुफा है, जिसका
ऊपरी भाग काफी ऊँचा है। छत पर एक ऐसा पत्थर लटका हुआ है जो हिलता रहता है। इसे लोग
‘खटखटा चोर’
कहते
है, जिसके पीछे अनेक
किंवदन्तियाँ जुड़ी हुई है।
मड़फाः- गुप्त गोदावरी से 3-4
किलोमीटर दूर माण्डय ऋषि का परम प्राचीन आश्रम ‘मड़फा’
नाम
से प्रसिद्व है। एक छोटी पहाड़ी पर ध्वंसावशेष मात्र एक अति प्राचीन किला है,
जो
कालिंजर दुर्ग का ही एक अंग बताया जाता है। यहाँ का पर्वतीय प्राकृतिक दृश्य बहुत
ही चित्ताकर्षक है। भगवान श्री बाला जी का भव्य मन्दिर यहाँ बना है,
पास
में ही पंचमुखी शंकर जी की विशाल प्रतिमा भी स्थापित है। पहाड़ी से कई झरने झरते
है तथा नीचे ‘पाप-मोचन’
नामक
एक प्रसिद्व सरोवर है।
यह
आश्रम दुर्गम वनांचल में अवस्थित है, इसलिए
यहाँ सुरक्षा की दृष्टि से यात्रियों को बड़ी सावधानी से जाना चहिए।
भरत कूपः- यह श्री कामदगिरि से आठ किलोमीटर
पश्चिम तथा झाँसी-मानिकपुर रेलवे लाइन पर ऐतिहासिक कूप है,
जिसमें
भरत जी ने श्री रामचन्द्र जी के अभिषेकार्थ लाए हुए समस्त तीर्थों के जल को डाला
था। इसलिए इसके जल में स्नान का बड़ा महत्व माना जाता है।
कूप
के पास ही भरत जी का मन्दिर है। भरत जी की स्मृति में एक संस्कृत पाठशाला भी चलाई
जा रही है।
गणेश बागः- करवी से डेढ़ किलोमीटर दक्षिण में
देश के प्राचीन गौरव तथा समृद्वि का प्रतीक-स्वरुप गणेश बाग पेशवा नरेशों की
कीर्ति सँजोये खड़ा है। इसका निर्माण उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में श्रीमन्त
विनायकराव पेशवा ने अपने आमोद-प्रमोद के लिए कराया था। यहाँ की इमारतों का निर्माण
भारतीय स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। बीच में प्राचीन शैली का भव्य षट्कोणी
पंचमन्दिर है, जिसके
ऊपरी भाग में भित्ति-प्रस्तरों की बारीक कटाई करके ‘खजुराहो’
की
भाँति देवी-देवताओं की अंसख्य मूर्तियाँ उत्कीर्ण की गयी है। सामने एक सरोवर है,
जिससे
इसकी शोभा और भी बढ़ गयी है। पश्चिमी भाग में एक बड़ा ही भव्य जलाशय है,
जिसमें
कूप और वापी का सुन्दर सम्मिश्रण है। यह तीन खण्डों का है और इसके दो खण्ड प्रायः
पानी से भरे रहते है। गर्मियों में दूसरा खण्ड भी खुल जाता है। पर सरकार द्वारा
विधनतः संरक्षित-इमारत घोषिट किये जाने के बावजूद सुरक्षा तथा मरम्मत के अभाव में
भारतीय शिल्प मला का अद्भुत नमूना धीरे-धीरे धराशायी होता हुआ स्मृति-शेष ही रह
जाता दीख रहा है।
बाँके सिद्धः- गणेश बाग से 3
किलोमीटर दक्षिण-पूर्व हरे-भरे विन्ध्य पर्वत के पाश्र्व भाग में स्थित बाँके
सिद्ध अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध है।
सचमुच
यह देव निर्मित एक सुन्दर कन्दरा है। इसके निर्माण में भगवती प्रकृति देवी ने
अपूर्व चातुर्य दिखाया है। एक विशाल चट्टान के नीचे विस्तृत कक्ष बना हुआ है,
जो
धरातल से सैकड़ों फीट नीचा है। गुफा तक पहुँचने के लिए नीचे से पक्की सीढि़याँ बनी
हुई है। ऊपर से निर्मल जल वाला झरना गिर रहा है,
जिसका
दृश्य बड़ा ही मनोहर है। यह गुफा के उत्तरी भाग को नहलाता हुआ पर्वत के ही वक्ष
में विलीन हो जाता है।
कोतितीर्थः- बाँके सिद्व से डेढ़ किलोमीटर
दक्षिण इसी पर्वत पर ‘कोटितीर्थ’
नामक
रम्य स्थान है। इसका प्राकृतिक दृश्य भी सिद्व की भांति ही है। यहाँ भी एक झरना बह
रहा है, जो
पर्वत में ही अन्तर्लीन हो जाता है। कहा जाता है कि जब भगवान राम चित्रकूट पधारे
थे, तब उनके दर्शनार्थ
देवलोक से आए हुए करोड़ों देवता इसी स्थान पर रुके थे। इसीलिए इसे ‘कोतितीर्थ’
कहते
है।
देवड़गनाः- यह स्थान कोटितीर्थ से 2
किलोमीटर दक्षिण (करवी से 6
किलोमीटर दक्षिण अथवा रामघाट (चित्रकूट) से 3
मी पूर्व) कोटितीर्थ वाले पर्वत केक अच्चल में ही सुशोभित है। यहाँ का पर्वतीय
दृश्य तथा जल प्रपात का उद्गम बाँके सिद्व एवे कोटितीर्थ के ही सामान है।
प्रसिद्वि है कि राम के वनवास-काल में उनके दर्शनार्थ से आयी हुई विविध देवों की
स्त्रियाँ इस स्थान पर रुकी थीं, इसलिए
इसे देवड़गना कहते है।
हनुमान-धाराः- यह स्थान देवड़गना वाली पर्वत
श्रंृखला पर ही (चित्रकूट) से तीन किलोमीटर पूर्व स्थित है। यहाँ श्री हनुमान जी
की भव्य मूर्ति स्थापित है, जिनके
दर्शन के लिए यों तो यात्री प्रतिदिन पहुँचते रहते है,
पर
भाद्रपद शुक्ल पक्ष के अन्तिम मंगलवार (बुढ़वा मंगल) को यहाँ प्रतिवर्ष बड़ा भारी
मेला जगता है।
पर्वत
के भीतर से एक ऐसा झरना फूट निकला है, जिसकी
शुण्डाकार निर्मल जलधारा श्री हनुमान जी की बायीं भुजा पर पड़ती है। इसे देखने से
शंकर भगवान के मस्तक पर गंगावरण के दृश्य की कल्पना होने लगती है। मूर्ति के पास
तक पहुँचने के लिए नीचे से 360
सीढि़याँ बनी हुई है। यात्रियों के विश्राम के लिए एक छोटी-सी धर्मशाला भी यहाँ
है।
इसी
पर्वत श्रेणी में हनुमान-धारा के ऊपर ‘सीता
रसोई’ तथा
‘नरसिंह-धारा’
नामक
स्थान भी दर्शनीय है।
उल्लिखित
स्थानों के अतिरिक्त चित्रकूटधाम में और भी कई दर्शनीय स्थल है। जानकी कुण्ड के
मार्ग में ‘रामघाट’
तथा
दक्षिण ‘सिरसावन’,
परिक्रमा
मार्ग में पीली कोठी तथा सैकड़ों अन्य मन्दिर,
पीली
कोठी से थोड़ी दूर ‘राम
शैया’, करवी
से 6 किलोमीटर ‘सूर्य
कुण्ड’ आदि
पवित्र स्थान है, जो
दर्शन करने योग्य है। चित्रकूट के दक्षिणी वनाच्चल में शरभंग आश्रम तथा सुतीक्षण
आश्रम भी दर्शनीय है, पर
ये स्थान बड़े दुर्गम है।
वाल्मीकि आश्रमः- करवी से 16
किलोमीटर पूर्व चित्रकूट-इलाहाबाद राजमार्ग पर आदि-कवि महर्षि वाल्मीकि जा का पावन
आश्रम एक हरी-भरी पहाड़ी के शिखर पर स्थित है। पहाड़ी के नीचे वाल्मीकि नदी (ओहन
नदी) बहती है। पहाड़ी के शिखर पर एक मन्दिर है,
जिसमें
महर्षि वाल्मीकि की प्रतिमा स्थापित है। इसके दक्षिण-पूर्व में पाश्र्व मार्ग में
एक गुफा में अपेक प्रकार की प्राचीन मूतियाँ स्थापित है।
पहाड़ी
के शिखर के नीचे तल भाग से कुछ ऊपर प्रसिद्व असावर देवी (आशा मणि देवी) का मन्दिर
है, जिनके दर्शनार्थ
प्रति सोमवार को मेला लगता है। चैत्र राम नवमी को यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है,
जो
4-5 दिन तक चलता है।वाल्मीकि-आश्रम वही स्थान है,
जहाँ
महर्षि वाल्मीकि ने वनवासी भगवान राम कोचित्रकूट में वास करने का परामर्श दिया था
स्थान अत्यन्त रमणीक है।यहाँ एक संस्कृत पाठशाला भी स्थापित है।
ब्लाग लेखक- जगदानन्द झा, लखनऊ
ब्लाग लेखक- जगदानन्द झा, लखनऊ
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