क्र. सं. नाम व स्थान वर्ष
1. स्वामी करपात्री जी महाराज, वाराणसी 1981
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संस्कृत के विकास में लिपि एक समस्या
संस्कृत भाषा के विकास में लिपि भी एक
समस्या है। आज संस्कृत की अधिसंख्य पुस्तकें देवनागरी लिपि में मुद्रित होती है। कारण यह हैं कि इस लिपि में पढ़ने वालों की संख्या या यूं कहें ग्राहकों की संख्या
ज्यादा है। अहिंदी भाषी क्षेत्र के छात्र देवनागरी लिपि में पढ़ने में ज्यादा
प्रवीण नहीं होते। संस्कृत...
संस्कृत भाषा का फलक, बाजार और कारक तत्व
जब से औद्योगिक
क्रान्ति हुआ शिक्षा को उद्येश्य में परिवर्तन हो गया। जहाँ पहले ज्ञानार्जन के
लिए अध्ययन किया जाता था, औद्योगिक क्रान्ति
के पश्चात् कौशल सम्पादन हेतु अध्ययन शुरु हुआ। औद्योगिक क्रान्ति के कारण
पारम्परिक कौशल एवं व्यवसाय समाप्त होते गये। पुनः औद्योगिक कौशल प्राप्त करने
हेतु शिक्षण केन्द्रों की आवश्यकता आ पड़ी। चुंकि पारम्परिक...
वैशेषिक दर्शन
वैशेषिक दर्शन में
पदार्थों का विश्लेषण किया गया है। यह दर्शन भौतिक शास्त्र का प्रर्वतक है,
जिसमें पदार्थों के विशिष्टत्व एवं पार्थक्य को दर्शाया गया है।
वैशेषिक दर्शन
कणाद द्वारा प्रणीत होने के कारण इसे कणाद दर्शन तथा प्रकाश का अभाव ‘तम’ को प्रतिपादित किया जाने से औलूक दर्शन से भी
अभिहित किया गया। श्री हर्ष अपने...
नाट्यशास्त्रीय ग्रन्थों में नायिका भेद
प्राचीन काल में अभिजात्य नागरजनों एवं विलास प्रिय
और साहित्य रसिक के लिए नायिका रसानुभूति का माध्यम तथा मनोरंजन का एक कलापूर्ण
साधन रहा है। लक्ष्मीवान् जन की विलास-भूमि का निर्मायक यह नायिका भेद विषयक कथन
प्रायः रसिक समाज-गोष्ठी में प्रचलित रहा। रसिक समाज में प्रायशः श्रृंगाररस
प्रधान नाटयकृतियां अभिनीत...
ज्योतिष में नक्षत्र
अनेक ताराओं के समुदाय को नक्षत्र की संज्ञा दी
जाती है। निरुक्तकार यास्क ने नक्षत्र शब्द का निर्वचन करते हुए लिखा है कि `न क्षते गतिकर्मण:' अर्थात् जिसकी गति का क्षत नहीं होता। अनन्त आकाश में जो असंख्य तारे हैं
उनमें कुछ तारों के समूह से गाड़ी—छकड़ा, हाथ, बैल, सर्प, घोड़ा आदि जो आकृतियाँ बनती हैं वे ही प्रकाशपुंज नक्षत्र कहलाते हैं।
क्रान्तिवृत्त या...