लगभग 15 वर्षों में प्रथम बार लखनऊ में संस्कृत भाषा
का सामाजिक अनुप्रयोग बहुस्तरीय स्तर पर देखने का सुअवसर मिला। मन गद्गद् हो गया। अवसर
था डाॅ योगमाया जी के पुत्री के विवाह का। डाॅ योगमाया संस्कृत की प्राध्यापिका हैं
और इनके पति अभियांत्रिकी विषय के प्राध्यापक
हैं। संस्कृत में शादी का कार्ड जब मेरे सम्मुख आया, मन पुल्लकित हो गया। अपने घर के सदस्यों के साथ योगमाया जी का संस्कृत
के प्रति इतना विनम्र आग्रह! शादी के निमंत्रण पत्र समाज के विशिष्ट तबकों के पास गया
होगा। सार्वजनिक स्थानों पर संस्कृत बोलने
से लोग घबराते हैं। यह किस प्रकार का धैर्य और विश्वास कि शादी जैसे सामाजिक कार्यों
में भी संस्कृत का सामाजिकी कारण! अद्भुत है। उनका संस्कृत के प्रति लगाव। शादी के
दिन तो और भी अचंभित करने वाला दृश्य था। शादी के लिये आरक्षित भव्य प्रांगण के मुख्य
द्वार पर वर वधू के नाम भी संस्कृत में ही लिखे थे। शादी का यह उपक्रम जितना भव्य था, उससे कही अधिक संस्कृत का भव्य प्रयोग। यह प्रयोग निश्चय ही अधिक
प्रेरणादायी हैं। मंच माईक, माला,
ऊचे पद और धन पाकर संस्कृत के नाम पर सिर्फ
वादे और नारे लगाने वाले भाषा की नहीं अपितु अपनी ही उन्नति में लगे रहने बालों के
लिए यह मुझे एक पाठशाला सा लगा। जयतु संस्कृतम् तो डा0 योगमाया ने करके दिखाया। इनका साहस अनिर्वचनीय हैं। इनके प्रतिबद्धता की जितनी प्रशंसा
की जाये कम हैं। क्योंकि पहला कार्य तो इन्होंने यह किया कि 1. अपने पारिवारिक स्तर पर संस्कृत को स्वीकृति दिलायी 2. अपने सगे सम्बन्धियों तथा उन परिचितों तक जो असंस्कृतज्ञ थे उन
तक संस्कृत भाषा पहुंचायी 3. संस्कृत भाषा का सामाजिक क्षेत्र में अनुप्रयोग
किया।
इनके द्वारा
किये गये प्रशंसनीय कार्य से प्रेरणा लेकर सभी संस्कृतज्ञों को समाज में संस्कृत के
प्रसार के लिये स्वयं में आत्मबल पैदा करना चाहिए तथा इनसे सीख लेनी चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें