आचार्य मम्मट ने काव्य के ६ प्रयोजनों का उल्लेख किया है । "प्रयोजनमनुद्दिश्य
मन्दोऽपि न प्रवर्तते" । इस कथनानुसार कोई मूर्ख व्यक्ति भी किसी लाभ के बिना
अर्थात् प्रयोजन विशेष को लक्ष्य किये बिना किसी कार्य में प्रवृत्त नहीं होता है।
कोई मन्दबुद्धि भी छोटे से छोटे कार्य को प्रयोजन के बिना नहीं प्रारम्भ करता है।
क्योंकि जब तक कर्ता को (१) विषय (२)...
शब्दश्लेष तथा अर्थश्लेष का परिचय
काव्य
के अङ्गरूप शब्द और अर्थ को अलंकृत करने वाले धर्म को अलंकार कहते हैं। काव्य का
शरीर शब्द और अर्थ माना गया है। अतः अर्थ और शब्द दोनों को अलंकृत करने वाले को
(१) शब्दालंकार तथा (२) अर्थालंकार कहा गया है। इस तरह अलंकार के प्रमुख दो भेद होते हैं। (१) शब्दालंकार (२) अर्थालंकार । इनमें से
शब्दपरिवृत्ति असह को शब्दालंकार और शब्दपरिवृत्ति सह...
काव्य में गुण और अलंकारः अन्तर तथा स्थान
साहित्य
में अलंकारों का एक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है । अग्निपुराण के अनुसार अलंकार
रहित कवि की वाणी उसी प्रकार सुशोभित नहीं होती है, जैसे विधवा स्त्री समाज में सुशोभित नहीं होती है। इसके अतिरिक्त
ध्वनिवादी आचार्यों ने भी अलकारों के महत्व का अनुभव करके अलंकार ध्वनि को स्वीकार
करके अलंकारों की महत्ता को व्यक्त किया है। इस प्रकार काव्य में अलंकारों...
संस्कृत साहित्य की दृष्टि में शब्दशक्तिः उपयोग और महत्व
मम्मट ने अपने काव्य लक्षण में शब्द और अर्थ को काव्य का शरीर माना
है। इसमें शब्दों के ये तीन भेद किया। (१) वाचक (२) लक्षक (३) व्यञ्जक । इसी तरह
अर्थ के भी तीन भेद है- (१) वाच्य (२) लक्ष्य (३) व्यंग्य । मम्मट ने शब्द
शक्तियों के लिये (१) अभिधा (२) लक्षणा (३) व्यञ्जना, नामक तीन शक्तियों का निरूपण किया है।
शब्दों के भेद प्रदर्शित करते...
नैषधीयचरितम्
श्रीहर्ष
महाकवि
श्रीहर्ष का परिचय नैषधीयचरित महाकाव्य के
अंत में प्राप्त होता है। महाकवि ने यहाँ स्वयं के बारे में पर्याप्त जानकारी दी
है। आपके पिता श्रीहीर तथा माता मामल्ल देवी थीं।
श्रीहर्षं कविराजराजिमुकुटालङ्कारहीरः
श्रीहीरः सुषुवे जितेन्द्रियचयं मामल्लदेवी च यम् ।।
महाकवि
श्रीहर्ष के पिता श्रीहीर स्वयं एक उच्चकोटि के कवि थे। ऐसा...