भारतीय ज्योतिष में सूर्योदय से अगले सूर्योदय पर्यन्त काल को वार मानते हैं। ``सूर्योदयात् आरम्भ
सूर्योदयपर्यन्तं य: काल: स: वारो ज्ञेय:''। ये सातों वार क्रमश: इस प्रकार हैं —
रवि: सोमस्तथा भौमो बुधो गीष्पतिरेव च।
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संस्कृत सर्जना ई-पत्रिका
संस्कृत सर्जना ई-पत्रिका में आपकी रचनाएँ प्रकाशनार्थ सादर आमन्त्रित हैं। यह एक त्रैमासिक पत्रिका है जो प्रत्येक वर्ष के जनवरी, अप्रैल, जुलाई एवं अक्टूबर में संस्कृत, हिन्दी भाषा में प्रकाशित होती है। इसे संस्कृतसर्जना पर संस्थापित किया गया है।
सर्जनात्मक ई- पत्रिका के उद्देश्य
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ज्योतिष में तिथि
ज्योतिषशास्त्र में पञ्चाङ्ग शब्द से पांच अङ्गों का
बोध होता है। ये पांच अङ्ग हैं — तिथि, वार, नक्षत्र,
योग और करण। जैसा कि कहा भी गया है —
तिथिवारं च नक्षत्रं योग: करणमेव च।
यत्रैतत् पञ्चकं स्पष्टं पञ्चाङ्गं तदुदीरितम् ।।
तिथि...
संस्कृत ग्रन्थों का एक आमंत्रण
संस्कृत
भाषा में विविध ज्ञात विषयों पर अबतक लगभग 10 लाख से अधिक ग्रन्थ लिखे गये हैं। इन
ग्रन्थों में से लगभग आधे पुस्तकों का ही
प्रकाशन हो पाया है। अप्रकाशित पुस्तकों को पाण्डुलिपि कहा जाता है। वैदिक ग्रन्थ
सभी प्रकार के ज्ञान-विज्ञान का मूल उद्गम माना जाता है। उपनिषदों में मन और
मस्तिष्क दोनों को तार्किक दृष्टि से सन्तुष्ट करने की चेष्टा...
काव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में नायिका भेद
नायिका की चर्चा कामशास्त्र के पश्चात् अग्निपुराण में है, भरत के मत का अनुसरण करते हुए भोजदेव ने नायिका भेद का निरूपण सविस्तार किया है। भोज ने
भी यह भेद स्वीकारा है-
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