संस्कृत सर्जना ई-पत्रिका में आपकी रचनाएँ प्रकाशनार्थ सादर आमन्त्रित हैं। यह एक त्रैमासिक पत्रिका है जो प्रत्येक वर्ष के जनवरी, अप्रैल, जुलाई एवं अक्टूबर में संस्कृत, हिन्दी भाषा में प्रकाशित होती है। इसे संस्कृतसर्जना पर संस्थापित किया गया है।
सर्जनात्मक ई- पत्रिका के उद्देश्य
1- संस्कृत
सर्जकों (लघुकथा, एकांकी, गीत, गजल, निबन्ध, यात्रावृतान्त आदि लेखकों) को मंच प्रदान करना तथा उनकी प्रतिभा को पाठकों
के सम्मुख लाना ।
2. संस्कृत के
नूतन लेखकों, अध्येताओं, छात्रों में भाषा
विकास के साथ-साथ सर्जनात्मकता विकसित करना।
3. संस्कृत एवं
संस्कृतेतर जगत् को संस्कृत विद्या की जीवन्तता, इसमें
निगूढ़ तत्व से परिचित करना तथा समसामयिक, ज्ञानवर्द्धक तथा
जनोपयोगी जानकारी उपलब्ध कराना।
4. ऐसे समस्त
ज्ञान सम्पदा को प्रकाश में लाना, जो संस्कृत विद्या व भाषा के प्रसार-प्रचार में
उपयोगी हो।
विषयवस्तु
1. संस्थाओं,संगठनों
द्वारा आयोजित संस्कृत, पालि, प्राकृत
विषयक कार्यक्रमों की सूचना।
2. संस्कृत भाषा
के सम्वर्धन में प्रयुक्त किये जा रहे नवाचारों की रूपरेखा, तदर्थ
निर्मित योजनाओं पर
वैचारिक निबन्ध।
वैचारिक निबन्ध।
3. समसामयिक
संस्कृत से सम्बद्ध घटनाक्रमों, संस्कृत से जुडी समकालीन समस्या उसके निदान पर
विशेषज्ञ
विद्वानों के आलेख।
विद्वानों के आलेख।
4. नवीन मौलिक प्रकाशित
पुस्तक का समीक्षात्मक परिचय।
5. संस्कृत के
दिग्गज विद्वानों, प्रचार-प्रसार में संघर्षरत बुद्धिजीवियों के साक्षात्कार ।
6. संस्कृत को
बढ़ावा देने हेतु कार्यरत विविध संस्थाओं, संगठनों के क्रियाकलापों तथा उनके बारे में
परिचय।
परिचय।
7. संस्कृत के
पुरस्कार प्राप्त विद्वानों की जीवनी,संस्मरण ।
8. पर्यटन स्थल ,
यात्रावृतान्त, तीर्थ परिचय, संस्कृत से जुडी ऐतिहासिक घटना।
9. संस्कृत लघुकथा,
कविता, गजल, गीत. एकांकी नाटक, मनोरंजक सामग्री ।
10. बालोपयोगी
सामग्री,जो बच्चों में संस्कृत भाषा के विकास में सहायक हो।
11. जनोपयोगी
विषयः- यथा ज्योतिष, कर्मकाण्ड, धर्मशास्त्र,आयुर्वेद।
12. पुरस्कार,पदभार
ग्रहण, रोजगार, निधन आदि की सूचना।
13. अन्तर्जाल
पर उपलब्ध संस्कृत विषयक सामग्री की जानकारी देना।
14 पाठकों
द्वारा प्राप्त पत्र,संदेश इसमें प्रकाशित किये जायेगें।
इसमें लगभग 32 से 40 पृष्ठ होंते हैं । पत्रिका सचित्र व आकर्षक है । इस पत्रिका में प्रकाशित श्रेष्ठ सर्जना को वर्ष
में एक बार चयन कर पुरस्कृत करने पर विचार किया जा सकता है।
प्रत्येक लेख पर
स्वत्वाधिकार लेखकों एवं सम्पादकों का रहेगा । पत्रिका में प्रकाशित लेख से
सम्पादक/प्रकाशक का सहमत होना आवश्यक नहीं होगा। तथ्यों की प्रामाणिकता एवं
मौलिकता हेतु लेखक स्वयं उत्तरदायी होंगें। Kruti Dev 010 फाण्ट में अथवा देवनागरी यूनीकोड में अपनी रचना की टंकित प्रति sanskritsarjana@gmail.com पर प्रेषित करने का अनुरोध है।
सम्पादक सहित समस्त पद परिवर्तनीय एवं अवैतनिक हैं। न्यायिक परिवाद क्षेत्र लखनऊ होगा।
ई. पत्रिका में
अन्ताराष्ट्रीय मानकों का अनुपालन किया गया है ।
भवदीया
उषा किरण
उषा किरण
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