देव पूजा विधि Part-7 अधिदेवता प्रत्यधिदेवता स्थापन

अधिदेवतास्थापनम्

 सूर्य के दाहिने भाग में-
ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम्।। 
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योम्र्मुक्षीय मामृतात्। 
ॐ भूर्भुवः स्वः ईश्वर इहागच्छ इह तिष्ठ ॐ ईश्वराय नमः ईश्वरमाहयामि स्थापयामि।।1।। 
इसी प्रकार सभी जगह नाम लेकर आवाहयामि स्थापयामि कहें। 
चन्द्र के दाहिने भाग में-
ॐ श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम्। 
इष्णन्निषाणामुम्मऽइषाण सर्वलोकम्मऽइषाण। 
ॐ भू. उमे इहागच्छ इह तिष्ठ ॐ उमायै नमः उमामावाहयामि स्थापयामि ।।2।। 
मंगल के दाहिने भाग में 
ॐ यदक्रन्दः पथमञ्जाय-मानऽउद्यन्त्समुद्रादुतवा पुरीषात्। 
श्येनस्य पक्षा हरिणस्य बाहूऽउपस्तुत्यम्महि जातन्तेऽर्वन्। 
ॐ भू. स्कन्द इहागच्छ इह तिष्ठ. ॐ स्कन्दाय नमः स्कन्दमावाहयामि स्थापयामि ।।3।। 
बुध के दाहिने भाग में-
ॐ विष्णोरराटमसि विष्णोः श्नप्प्त्रेस्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णोधु्र्रवोसि। वैष्णवमसि विष्णवेत्वा। 
ॐ भू. विष्णो इहागच्छ इह तिष्ठ ॐ विष्णवे नमः, विष्णुमावाहयामि स्थापयामि ।।4।। 
गुरु के दाहिने भाग में-
ॐ आब्रह्मन्ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूरऽइषव्योतिव्याधी महारथो जायतान्दोग्घ्री धेनुर्वोढानड्वा नाशुः सप्तिः पुरन्धिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः। सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायतान्निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो नऽओषधयः पच्यन्तां योगक्षेमो नः कल्पताम्। 
ॐ भू. ब्रह्मण इहागच्छ इह तिष्ठ ॐ ब्रह्मणे नमः ब्रह्माणमावाहयामि स्थापयामि ।।5।। 
शुक्र के दाहिने भाग में-
ॐ स॒जोषा॑ऽइन्द्र॒ सग॑णो म॒रुद्भिः॒ सोमं॑ पिब वृत्र॒हा शू॑र वि॒द्वान्। ज॒हि शत्रूँ॒२रप॒ मृधो॑ नुद॒स्वाथाभ॑यं कृणुहि वि॒श्वतो॑ नः। ॐ भू. इन्द्र इहागच्छ इह तिष्ठ ॐ इन्द्राय नमः इन्द्रमावावाहयामि स्थापयामि ।।6।। 
शनि के दाहिने भाग में-
यमाय त्वांगिरस्वते पितृमते स्वाहा। स्वाहा धर्माय स्वाहा धर्म्मः पित्रे ।
ॐ भू. यम इहागच्छ इह तिष्ठ ॐ. यमाय नमः यममावाहयामि स्थापयामि ।।7।।
 राहु के दाहिने भाग में-
ॐ कार्षिरसि समुद्रस्य त्वाक्षित्याऽउन्नयामि। समापोऽअद्मिरग्मतसमोषधीमिरोषधीः। 
ॐ भू. काल इहा. कालाय नमः कालम् आवाहयामि स्थापयामि ।। 8।। 
केतु के दाहिने भाग में 
ॐ चित्रावसोः स्वस्ति ते पारमशीय। 
ॐ भू. चित्रगुप्त इहागच्छ इह तिष्ठ ॐ चित्रगुप्ताय नमः चित्रगुप्तमावाहयामि स्थापयामि ।। 9।। 
                                    इति अधिदेवता स्थापन।।

प्रत्यधिदेवतास्थापन

            अग्निरापो धरा विष्णुः शक्रेन्द्राणीपितामहः। 
            पत्रगार्कक्रमाद्वामे ग्रहप्रत्यधिदेवताः।। (स्कन्दपुराण)
सूर्य के बायें भाग में-
ॐ अग्निन्दूतम्पुरोदधे हव्यवाहमुपब्रुवे। देवाँ 2 ऽआसादयादिह।। भू. अग्ने इहा. ॐ अग्नये नमः। अग्निमा. ।।1।।
सोम के बायें भाग में-
ॐ आपो हिष्ठमयो भुवस्तानऊर्जे दधातन। महेरणाय चक्षसे। ॐ आप इहागच्छत. अद्भ्यो नमः, अप.।।2।।
मंगल के बायें भाग में-
ॐ स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरानिवेशनी। यच्छानः शर्म्मसप्रथा।। ॐ भू. पृथिवि इहा. ॐ पृथिव्यै नमः पृथिवीं.।।3।।
बुध के बायें भाग में-
ॐ इदम्विष्णुचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् समूढमस्यपां सुरे स्वाहा।। ॐ भू. विष्णो इहा. ॐ विष्णवे नमः विष्णुमावा.।।4।।
गुरु के बायें भाग में-
ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्र हवे हवेसुहव र्ठ. शूरमिन्द्रम्। ह्नयामिशक्रम्पुरुहूतमिन्द्र र्ठ. स्वस्तिनो मघवा धात्विन्द्रः।। ॐ भू. इन्द्र इहा. ॐ इन्द्राय. इन्द्रम्. ।।5।।
शुक्र के बायें भाग में-
ॐ आदित्यै रास्नासीन्द्राण्याऽउष्णीषः पूषासि धर्माय दीष्व।। ॐ भू. इन्द्राणि इहा. ॐ इन्द्राण्यै नमः इन्द्राणीम्.।।6।।
शनि के बायें भाग में-
ॐ प्रजापते न त्वदेतान्न्यन्यो विश्वारूपाणि परिता बभूव। यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नोऽअस्तु वयस्याम पतयो रयीणाम्।। ॐ भू. प्रजापते इहा. ॐ प्रजापतये नमः प्रजापतिम्. ।।7।।
राहु के बायें भाग में 
ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु। ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः। ॐ भू. सर्पा इहागच्छत इह तिष्ठत ॐ सर्पेभ्यो नमः ॐ सर्पान्. ।।8।।
केतु के बायें भाग में-
ॐ ब्रह्मयज्ञानं प्रथम्मपुरस्ताद्विसीमतः सुरुचोवेनऽआवः।। सबुन्ध्याऽउपमाऽअस्य विष्टाः सतश्च योनिमसतश्च व्विवः। ॐ भू. ब्रह्मन् ! इ. ॐ ब्रह्मणे नमः। ब्रह्माणमावाहयामि।।9।। 
                             इति प्रत्यधिदेवतास्थापना विधि।।

पञ्चलोकपालस्थापन

        गणेशश्चाम्बिका वायुराकाशश्चाश्विनौ तथा​। 
        ग्रहाणामुत्तरे पञ्चलोकपाला प्रकीर्तिताः।। (स्कन्दपुराण)
राहु से उत्तर-
ॐ ॐ गणानान्त्वा गणपति  हवामहे प्रियाणान्त्वा प्रियपति  हवामहे निधीनान्त्वा निधिपति हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम्। ॐ भू. गणपते इहा. ।।1।।
शनि से उत्तर 
ॐ अम्बेऽअम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम्। ॐ भू. दुर्गे इहा. दुर्गाये. ।।2।।
रवि से उत्तर-
ॐ आनो नियुद्भिः सतिनीभिरध्वर सहश्रिणीभिरुपयाहि यज्ञम्।। वायोऽअस्मिन्त्सवने मादयस्व यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः।। ॐ भू. वायो इहा. वायवे नमः।।3।।
राहू के दक्षिण-
ॐ घृतङ्ग घृतपावानः पिबत वसाम्वसा पावानः पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा दिशः प्रदिशऽआदिशो विदिशऽउद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा। ॐ भू. आकाश इहा. आकाशाय नमः।।4।।
केतु के दक्षिण-
ॐ यावाङ्कशामधुमत्यश्विना सूनृतावती तया यज्ञम्मिमिक्षताम्। ॐ भू. अश्विनौ इहागच्छाताम् अश्विभ्यां नमः।।5।।
अथ प्रागादितः पीठसमन्ताद्दिक्पालानावाहयेत्-
पूर्व में-
ॐ त्रातारमिन्द्र र्ठ. मवितारमिन्द्र हवे हवे सुहव शूरमिन्द्रम्। ह्नयामि शक्रम्पुरुहूतमिन्द्र र्ठ. स्वस्तिनो मघवा धात्विन्द्रः।। ॐ भू. इन्द्र इहा. इन्द्राय नमः।।1।।
अग्नि कोण में 
ॐ त्वन्नोऽअग्ने तव देव पायुभिर्मघोनो रक्षतन्वश्च वन्द्य। त्रातातोकस्य तनये गवामस्य निमेष रक्षमाणस्तव व्रते। ॐ अग्ने इहा. अग्नये. ।2
दक्षिण में-
ॐ यमाय त्वांगिरस्वते पितृमते स्वाहा। स्वाहा धर्माय स्वाहा धर्मः पित्रो।। ॐ भू. यम इहा. यमा0 ।।3।।
नैर्ऋति कोण में-
ॐ असुन्वन्तमयजमानमिच्छस्तेनस्येत्यामन्विहितस्करस्य अन्यमस्मदिच्छसातऽइत्या नमो देवि निर्ऋते तुभ्यमस्तु।। भू. निर्ऋते इहा.।।4।।
पश्चिम में-
ॐ तत्त्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविर्भिः।। अहेडमानो वरुणेहवोध्यरुश समानऽआयुः प्रमोषीः।। ॐ भू. वरुण इहा ।।5।।
वायु कोण में-
ॐ आनोनियुद्भिः शतिनीभिरध्वर सहश्रिणीभिरुपयाहि यज्ञम्। वायोऽअस्मिन्त्सवने मादयस्व यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः। ॐ भू. वायो इहा. ।। 6।।
उत्तर में-
ॐ वय ँ सोमव्रते तव मनस्तनूषु बिभ्रतः प्रजावन्तः सचेमहि।। ॐ भू सोम इहा. ।।7।।
ईशान कोण में-ॐ तमीशानञ्जगतस्तस्थुषस्पतिन्धियञ्िजन्वमवसेहूमहे वयम्।। पूषा नो यथावेदसामसद्वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये ॐ भू. ईश्वर इहा.।।8।।
पूर्व और ईशान के मध्य ऊपर में-
ॐ अस्मे रुद्रामेहनापर्वतासो वृत्राहत्त्येभरहूतौ सजोषाः।। यः श सतेस्तुवते धायिपज्ज इन्द्रज्येष्ठाऽअस्मा2ऽअवन्तु देवाः। ॐ भू. ब्रह्मन्0 ब्रह्मणे0।।9।।
निर्ऋति पश्चिम के मध्य नीचे में -
ॐ स्योना पृथिवी नो भवानृक्षरानिवेशनी यच्छानः शर्म सप्रथाः। ॐ भूर्भुवः स्वः अनन्त इहागच्छ इह तिष्ठ अनन्ताय नमः। अनन्तमावाहयामि।।10।।
पुनः यजमान हाथ में अक्षत लेकर ॐ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमन्तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु। विश्वेदेवा सऽइह मादयन्तामो3म्प्रतिष्ठ। ॐ भूर्भुवः स्वः आदित्यादिनवग्रहाः साङ्गाः सपरिवाराः सवाहना अधिदेवता-प्रत्यधिदेवता-विनायकादिपंचलोकपाल-वास्तोष्पतिक्षेत्राधिपतीन्द्रादि- दशदिक्पालसहिताः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु। अक्षत छोड़ दें।

श्रीसूर्यध्यान- पद्मासनः पद्मकरो द्विबाहुः पद्मद्युतिः सप्ततुरंगवाहनः।                                       
                    दिवाकरो लोकगुरुः किरीटी मयि प्रसादं विदधातु देवः।।
चन्द्रध्यान- ॐ श्वेताम्बरः श्वेतविभूषणश्च श्वेतद्युतिर्दण्डधरो द्विबाहुः।                                      
                    चन्द्रोऽमृतात्मा वरदः किरीटी मयि प्रसादं विदधातु देवः।।
भौमध्यान-     रक्ताम्बरो रक्तवपुः किरीटी चतुर्भुजो मेषगमो गदाधृक्।
                        धरासुतः शक्तिधरश्च शूली सदा मम स्याद्वरदः प्रशान्तः।।
बुधध्यान-          ॐ पीताम्बरः पीतवपुः किरीटी चतुर्भुजी दण्डधरश्च हारी।
                        चर्मासिभृत् सोमसुतः सदा मे सिंहाधिरूढो वरदो बुधोऽस्तु।।
बृहस्पति ध्यान-पीताम्बरः पीतवपुः किरीटी चतुर्भुजो देवगुरुः प्रशान्तः।
                    दधाति दण्डञ्च कमण्डलुञ्च तथाऽक्षसूत्रं वरदोऽस्तु मह्यम्।।
शुक्रध्यान-    ॐ श्वेताम्बरः श्वेतवपुः किरीटी चतुर्भुजो दैत्यगुरुःप्रभावान्।
                     तथाक्षसूत्रञ्च कमण्डलुञ्च दण्डञ्च विभ्रद्वरदोऽस्तु मह्यम्।।
शनैश्चरध्यान-ॐ नीलद्युतिः शूलधरः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान्।
                        चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रशान्तः सदास्तु मह्यं वरदोऽल्पगामी।।
राहुध्यान-          ॐ नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी करालवक्त्राः करवालशूली।
                        चतुर्भुश्चक्र-धरश्च राहुः सिंहाधिरूढो वरदोऽस्तु मह्यम्।।
केतुध्यान-          धूम्रो द्विबाहुर्वरदो गदाभृत् गृधासनस्थो विकृताननश्च।
                        किरीटकेयूरविभूषितो यः स चास्तु मे केतुरयं प्रशान्त्यै।।
ॐ अन्ये किरीटनः कार्या वरदाभयपाणयः।। ॐ भूर्भुवः स्वः सांगेभ्यः सपरिवारेभ्यः सायुधेभ्यः सशक्तिकेभ्यः अधिदेवता-प्रत्यधिदेवता- विनायकादिपञ्चलोकपाल-वास्तोष्पतिक्षेत्राधिपतीन्द्रादिदशदिक्पालसहितेभ्यो नवग्रहेभ्यो नमः आसनार्थे पुष्पाक्षतान् समर्पयामि।
इसी प्रकार-ओं भूर्भुवः स्वः सांगेभ्यः. पादयोः पाद्यं समर्पयामि। ॐ भूर्भुवः स्वः सांगेभ्यः हस्तयोरध्र्यं समर्पयामि। ओं भूर्भुवः स्वः सांगेभ्यः. अघ्र्याङ्गमाचमनीयं समर्पयामि।। स्नानं।। आचमनं।। वस्त्रां। यज्ञोपवोतं.।। गन्धं।। अक्षतं।। पुष्पं।। दूर्वांकुरं।। धूपमाघ्रापयामि।। दीपं दर्शयामि।। नैवेद्यं निवेदयामि।। हस्तप्रक्षालनं. ।। आचमनं. ।। फलं।। ताम्बूलं।। दक्षिणाद्रव्यं. नीराजनं समर्पयामि।। मन्त्रापुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।।
क्षमापनम्
                        मन्त्रहीनं  क्रियाहीनं  भक्तिहीनं सुरेश्वराः!।
                        यत्पूजितं मया देवाः। परिपूर्णं तदस्तु मे।।1।।
                        ॐ यत्कृतं पूजनं देवाः।! भक्ति-श्रद्धा-विवर्जितम्।
                        परिगृह्णन्तु  तत्सर्वं   सूर्याद्या  ग्रहनायकाः।।2।।
पुष्पाञ्जलि-
ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च। 
गुरुश्च शुक्रश्च शनिश्च राहुः केतुश्च सर्वे प्रदिशन्तु शं मे।।1।।
                        सूर्यः   शौर्यमथेन्दुरुच्चपदवीं   सन्मङ्गलं  मङ्गलः
                        सद्बुद्धिञ्च बुधो गुरुश्च गुरुतां शुक्रः सुखं शं शनिः।।
                        राहुर्बाहुबलं   करोतु   सततं केतुः कुलस्योन्नतिम्
                        नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते सर्वेऽनुकूला ग्रहाः।।2।।
हाथ जोड़कर प्रणाम करें-
            ॐ आयुश्च वित्तञ्च तथा सुखञ्च धर्मार्थलाभौ बहुपुत्रतां च।
            शत्रुक्षयं राजसु पूज्यताञ्च तुष्टा ग्रहाः क्षेमकरा भवन्तु।।

हाथ में जल लेकर ॐ अनया पूजया आवाहिता देवाः प्रीयन्ताम्।


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Learn Hieratic in Hindi Part -4 अन्त्येष्टि-4,पंचक मरण शान्ति

          पंचक में मृत्यु होने पर वंश के लिए अनिष्ट कारक होता है इसलिए जहाँ पर शव जलाना हो वहां भूमि शुद्धकर कुश से मनुष्याकृति की पाँच प्रतिमा बनाकर यव के आटे से उनका लेपन कर, अपसव्य हो पूजन संकल्प करें-
अद्योत्यादि॰ अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य धनिष्ठादि पंचकेभरण- सूचितवंशानिष्ट विनाशार्थं पंचकशान्ति करिष्ये।
प्रतिमाओं को स्थापित कर पूजन करे -
1. प्रेतवाहाय नमः।।                    2. प्रेतसखायै नमः।।
3. प्रेतपाय नमः।।                        4. प्रेतभूमिपाय नमः।।
5. प्रेत हत्र्रो नमः।।
नाम मंत्र से प्रत्येक प्रतिमा को गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीपक और नैवेद्य से पूजन कर दाह से पहले शव के ऊपर रख दें-
पहली प्रतिमा-शिर पर। दूसरी दक्षिण कुक्षी पर। तीसरी बांयी कुक्षी पर। चौथी नाभी के ऊपर। पांचवी पैरों के ऊपर रख घी को आहुति दें।
1- प्रेतवाहाय स्वाहा।।     2- प्रेतसखायै स्वाहा।।
3- प्रेतपाय स्वाहा।।         4- प्रेत भूमिपाय स्वाहा।।
5- प्रेत हत्र्रो स्वाहा।।
उपर्युक्त आहुति देकर पूर्व प्रकार से शव का दाह कर अशौचान्तर (ग्यारहवें, बारहवे दिन पंचक शान्ति करे।।
कर्मकर्ता नदी, तालाब तीर्थ आदि के पास जाकर श्राद्ध भूमि को साफ कर गोबर से लीप स्नान के बाद नया यज्ञोपवीत वस्त्र धारण करे। होम के लिए वेदी बनावे। कलश स्थापन पूर्व, दक्षिण, पश्चिम उत्तर तथा चारों के मध्य में करे। गणेश नवग्रह आदि का पूजन कर अपसव्य हो संकल्प करे-
अद्येत्यादि॰ अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य धनिष्ठादिपंचक जनित दुर्भरण दोष-निवृत्यर्थं (सव्य हो) मम गृहे सपरिवाराणामायुरारोग्य सुख प्राप्तर्थं विष्णुपूजनपूर्वकं पंचक शांतिकर्माहं करिष्ये।
संकल्प कर भगवान विष्णु (शालिग्राम) का पूजन षोडशोपचार से कर पुनः संकल्प करे -
अद्येत्यादि॰ अमुकप्रेतस्य पंचकशांतिकर्मांगतया विहितं कलशपंचक देवतानां स्थापनं प्रतिष्ठापूजनं च करिष्ये।

मुख्यतः श्राद्ध तीन प्रकार का होता है। 1. नित्य 2.  नैमित्तिक तथा 3. काम्य। इस अन्त्येष्टि संस्कार में नैमित्तिक श्राद्ध की विधि वताई गयी है। यह मृत व्यक्ति के निमित्त किया जाने वाला श्राद्ध है।

नित्यं नैमित्तिकं काम्यं वृद्धिश्राद्धं सपिंडनम्।।

पार्वणं चेति विज्ञेयं गोष्ठशुद्ध्यर्थमुत्तमम्।।

कर्मांगं नवमं प्रोक्तं वैदिकं दशमं स्मृतम् ।।६।। भविष्यपुराणम् / (ब्राह्मपर्व)/अध्यायः १८३

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Learn Hieratic in Hindi Part -4 अन्त्येष्टि-3,एकोद्दिष्ट श्राद्ध

         प्रातः स्नान कर श्वेत धुले वस्त्र पहन नित्यकर्माेपरान्त श्राद्धभूमि को गोबर से लीप उसके ऊपर जलता हुआ तृण घुमाकर पिण्ड के लिए चावल पकाकर, वेदी के ऊपर पितृरुप कुशा रख श्राद्ध के लिए तिल के तेल से दीपक जलाकर कर्मकर्ता पूर्व मुंह आचमन लेकर दोनों हाथों में पवित्री धारण कर प्राणायाम कर बाँयें हाथ में जल ले दाहिने हाथ से ॐअपवित्रः 0 मन्त्र से अभिमंत्रित करे-
ऐसा कह जल के छींटे श्राद्ध सामग्री तथा शरीर को लगावे, भूमि का पूजन कर ले-
ॐश्राद्धस्थलभूम्यै नमः।। ॐ भगवत्यै गयायै नमः।। ॐ भगवते गदाधरायः।। पूजन कर प्रार्थना करे-
                        पृथिवी त्वयाधृता0 कुश तिल जल हाथ में रख संकल्प बोले-
देशकालौ संकीर्त्य ॐअद्यामुकगोत्रस्य असमत्पितुः अमुकशर्मणो वसुरूपस्य सांवत्सरिकैकोद्दिष्टश्राद्धं करिष्ये।।
पूर्वमुख हो तीन बार गायत्री स्मरण करे-
                        ॐदेवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
                        नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमोनमः।।
दक्षिणमुख अपसव्य हो तिल सरसो दिशाओं में फेंके-
                        ॐनमो नमस्ते गोविन्द! पुराण पुरुषोत्तम!।
                        इदं श्राद्धं हृषीकेश! रक्षतां सर्वतो दिशः।।1।।
                        अग्निष्वाताः पितृगणाः प्राची रक्षंतुमेदिशम्।
                        तथाबर्हिषदः पातु याम्यां ये पितरस्थिताः।।2।।
                        प्रतीचीमाज्यपास्तद्वदुदीचीमपि सोमपाः।
                        अधोध्र्वमपिकोणेषु हविष्यन्तश्च सर्वदा।।3।।
                        रक्षोभूत पिशाचेभ्यस्तथैवासुर दोषतः।
                        सर्वतश्चाधिपस्तेषां यमोरक्षां करोतु वै।।4।।
सव्य हो श्राद्ध कर्ता दक्षिण मुख दीपक का पूजन करे-
                        भो देव दीप रूपस्त्वं कर्मसाक्षीह्यविघ्नकृत्।
                        यावत् श्राद्धसमाप्तिः स्यात्तावदत्रा स्थिरोभव।।
ब्राह्मण का भी पूजन करे-
                        यदर्चनं कृतं विप्र! तवविष्णुस्तद् रूपिणः।
                        प्रार्थना मम दीनस्य विष्णवेतु समर्पणम्।।
ब्राह्मण कर्मकर्ता को तिलक लगावे-
                        आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवाः सपैतृकाः।
                        तिलकं ते प्रयच्छन्तु इष्टकामार्थसिद्धये।।
अपसव्य हो कर्मपात्र में कुश छोड़े-
ॐपवित्रोस्थो वैष्णव्यो सवितुर्वः प्रसव उत्पनाम्यच्छिद्रेण पवित्रोण सूर्यस्य रश्मिभिः।। जल छोड़े-
ॐशन्नोदेवीरभिष्टयऽआपोभवन्तु पीतये। शंय्यो रभि श्रवन्तु नः।। तिल छोड़े-
ॐतिलोसि सोमदैवत्यो गोसवो देव निर्मितः। प्रत्नमभि पृक्तः
स्वधयापितृन्लोकान् प्रिणाहिनः स्वधा।
पात्र में गन्ध पुष्प छोड़कर तीन कुश से हिला देवे-
                        ॐयद्देवा देवहेडन देवासश्चकृमा वयम्।
                        अग्निर्मा तस्मादेनसो विश्वान्मुंचत्व˜हसः।।1।।
                        ॐयदि दिवा यदिनक्त मेना˜सिचकृमावयम्।
                        वायुर्मातस्मादेनसो विश्वान्मुंचत्व˜सहः।।2।।
                        ॐयदिजाग्रद्यदि स्वप्न एना˜सिचकृमावयम्।
                        सूर्योमा तस्मादेन सो विश्वान्मुंचत्व˜हसः।।3।।
श्राद्ध सामग्री के छीटे लगाकर संकल्प तिल, जल, कुश हाथ में लेकर अपसव्य हो बोले-
अद्यामुकगोत्रस्य वसुस्वरूपस्यास्मत्पितुरमुकशर्मणः सांवत्सरिकैकोद्दिष्ट श्राद्धे इदमासनं ते स्वधा।।
कुश आसन को पितृरूप कुश के पास रख वेदी पर तिल बिखेर दे-
ॐअपहता असुरा रक्षा˜सिवेदिषदः।।
एक दोने में अध्र्य बनाकर हाथ में तिल जल कुश रखकर कहे-
ॐअमुकगोत्राः अस्मत्पितः अमुक शर्मन् वसुरूप एष ते हस्ताध्र्यः
स्वधा।। कह कर दोने के जल को पितृ कुश पर छोड़ वेदी के बाँये रख दे, नीवि बन्धन कर पितृ पूजन करे-
ॐपितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधानमः। पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः
स्वधानमः। प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधानमः।। अक्षन्पितरो मीमदन्तपितरोऽतीतृपन्त पितरः पितरः सुन्धध्वम्।।
पितृरूप कुश का गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीपक, नैवेद्य, दक्षिणा, वस्त्रादि से पूजन कर संकल्प बोले-
अद्यामुकगोत्रस्य वसुस्वरूपास्मत्पितः अमुकशर्मन् साम्वत्सरिकैकोद्दिष्टश्राद्धे एतानि गन्धाक्षतपुष्पधूपदीपनैवेद्यताम्बूलदक्षिणावासांसि ते स्वधा।।
अन्न में मधु मिलाकर दक्षिण में जल पात्र, घी रख दाहिनें हाथ से अन्न पर हाथ रख पितृ को अर्पण करें-
ॐमधुव्वाता ऋतायते मधुक्षरन्ति सिन्धवः। माध्वीर्नः संत्वोषधीः।।1।।
मधुनक्तमुतोषसो  मधुमत्पार्थिव˜रजः  मधुद्यौरस्तुनः  पिता।।2।।
मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमां ऽ  अस्तु सूर्यः। माध्वीर्गावो भवन्तु नः।।3।।
मधु मधु मधु।। बांया हाथ जमीन पर रख दाहिना हाथ उसके नीचे रख अन्न दिखावे-
                        ॐपृथिवी ते पात्रां द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य।
                        मुखे ऽअमृते ऽअमृतं जुहोमि स्वधा।।
सव्य हो भगवान विष्णु का पूजन भी कर ले-
            ॐइदं विष्णु र्विचक्रमेत्रोधा निदधे पदम्। समूढमस्य पा˜सुरे।।
पूजन कर प्रार्थना करे-
                        कृष्ण कृष्ण! कृपालो! त्वं अगतिर्नाम गतिर्भव।
                        संसार भव मग्नानां प्रसीद पुरुषोत्तम!।।1।।
                        अन्नहीनं क्रियाहीनं मंत्रहीनं च यभवेत्।
                        तत्सर्व क्षम्यतां देव प्रसीद परमेश्वर।।2।।
पिण्ड के लिए प्रादेश मात्रा की वेदी बनाकर रक्षोघ्न सूक्त पढ़कर तिल वेदी के ऊपर बिखेर दे-
ॐकृष्णुष्वपाजः प्रसितिं न पृथ्वी याहि राजेवामवां 2 ऽ इमेन। तृष्वीमनु प्रसितिं द्रूणानो ऽ स्तासि विध्य रक्षसस्तपिष्ठै।।1।। तव भ्रमास ऽ आशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः। तपू˜ष्यग्ने जुह्ना पतúान सन्दितो विसृज विष्वगुल्काः।।2।। प्रतिष्पशो विसृज तूर्णितमो भवा पायुर्विशोऽ अस्या
अदब्धः। यो नो दूरे ऽ अघस˜सो यो अन्त्यग्ने माकिष्टे व्यथिराद
धर्षीत्।।3।। उदग्ने तिष्ठ प्रत्यातनुष्व न्यमित्रां 2ऽ ओषतात्तिग्म हेते। यो नोऽआराति˜समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यतसं न शुष्कम्।।4।। ऊध्र्वो भव प्रति विध्याध्यस्मदाविष्कृप्णुष्व दैव्यान्यग्ने। अवस्थिरा तनुहि यातुजूनां जामिमजामिं प्रमृणीहि शत्राून्। अग्नेष्ट्वा तेजसा सादयामि।।5।। अग्निमूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या ऽअयम्। अपा˜रेता˜सि जिन्वन्ति। इन्द्रस्य त्वौजसा सादयामि।।6।। भुवो यज्ञस्य रजसश्च नेता यत्रा नियुद्भिः सचसे शिवाभिः। दिवि मूद्र्धानं दधिषे स्वर्षां जिह्नामग्ने च कृषे हव्यवाहम्।।7।। ध्रुवासि
धरुणास्तृता विश्वकर्मणा। मात्वासमुद्रऽद्वधीन्मासुपर्णो ऽ व्यथमाना पृथिवीं ट्ट˜ह।।8।। प्रजापतिष्ट्वा सादयत्वपां पृष्ठेसमुद्रस्येमन्। व्यचस्वतींप्रथस्वतिं प्रथस्व पृथिव्यासि।।1।। ॐअंगिरसोनः पितरो नवग्वा अथर्वाणो भृगवः सोम्यासः तेषां वय˜ सुमतौ यज्ञियानामपि भद्रे सौमनसे स्याम।।10।। ॐएनः पूर्वे पितरः सोम्यासोऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः। तेभिर्यमः ˜स रराणो हवी˜ष्युशन्नु शभि प्रतिकाममत्तु।।11।।
पिण्ड निर्माण
कर्मकर्ता दोनों हाथों से विल्वफल प्रमाण का पिण्ड पायस से बनावे पिण्ड निर्माण समय ब्राह्मण पुरुष सूक्त के 16 मंत्र, आशुः शिशानो के 17 मंत्र, कृष्णष्वपाजः प्रसिति0 के 5 मंत्र, तथा निम्न मंत्र को कहे-
            ॐउदीरतामवर ऽ उत्परास ऽ उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
            असंुय  ऽईयुरवृकाऽऋतज्ञास्ते   नोऽवन्तु   पितरो   हवेषु।।
निम्न गाथा का गान भी करे-
                        सप्तव्याधा दशार्णेषु मृगाः कालंजरे गिरौ।
                        चक्रवाका सरद्वीपे हंसा सरसि मानसे।।1।।
                        तेभिजाता कुरुक्षेत्रो ब्राह्मणावेद पारगाः।।
                        प्रस्थितादूरमध्वानं यूयन्तेभ्योऽवसीदत।।2।।
पिण्ड स्थापन पूजन
पिण्ड निर्माण कर थाली में रख अपसव्य हो बांया जंघा नवाकर तीन कुशाओं को लेकर वेदी के पश्चिम भाग में रख दें-
                        असंस्कृतप्रमीतानां त्यागिनां कुलभागिनाम्।
                        आच्छिष्ट  भाग  धेयानां दर्भेषुविकिरासनम्।।
कुछ पका अन्न पत्ते पर उठाकर जल घुमाकर खड़े हो तीन कुशाओं के ऊपर रख दें-
            ॐअग्निदग्धाश्च ये जीवा ये ऽप्यादग्धा कुलेमम।
            भूमौ  दत्तेन  चान्नेन  तृप्तायान्तु  परा   गतिम्।।
सव्य हो भगवान का स्मरण करें-
            ॐदेवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
            नमः  स्वाहायै  स्वधायै  नित्यमेव नमो नमः।।
पुनः अपसव्य हो बांया घुटना नवाकर कुशा से वेदी के ऊपर दक्षिण से उत्तर को रेखा खींचे-ॐअपहता असुरा रक्षा सिवेदिषदः।
अब जलता हुआ अंगार लेकर कुशा से वेदी की रेखा के ऊपर घुमाकर दक्षिण की तरफ रख दे-
            ॐये रूपाणि प्रतिमंुचमाना ऽअसुराः संतः स्वध्याचरन्ति।
            परा  पुरोनिपुरो  ये  भरन्त्यनिष्टां  लोकात्प्रणुदात्यस्मात्।।
पुनः वेदी में जल छिड़क दें। दोनें में निम्न जलादि डाल दे-
                        शन्नोदेवीतिजलम्।। तिलोसीति तिलान्।।
                        गंधाक्षतपुष्पाणि  तूष्णी  निक्षिप्य।।
दोने को बांये हाथ में रख उसमें रखे कुश को वेदी में रख, कुश तिल जल हाथ में रख संकल्प कहे-
आद्यामुकगोत्र वसुस्वरूपास्मत्पितरमुकशर्मन् सांवत्सरिकैकोद्दिष्ट श्राद्धे पिण्डस्थाने ऽत्रावनेनिक्ष्व ते स्वधा।
दोने के थोडे़ जल को वेदी के कुशा के ऊपर छोड़ दोनें को पास रख पिण्ड पर घी, शहद लगा तिल, जल, कुश के साथ हाथ में रख संकल्प कहे-
आद्यामुकगोत्रमुकवसुस्वरूपो अस्पत्पितरमुकशर्मन् सांवत्सरिकश्राद्धे एष ते पिण्डः स्वधा नमः।।
वेदी के मध्य कुशासन के ऊपर पिण्ड को रख थाली में पिण्ड के शेष अन्न को पिण्ड के पास छोड़ दें-लेपभागभुजस्तृप्यन्तु
कुश मूल से हाथ पोंछ हाथ धो सव्य हो आचमन लेकर गायत्री स्मरण करे।
निश्वास ध्यान-कर्मकर्ता उत्तर की ओर मुंह कर प्राणायाम रीति से श्वास ले, दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर पितरों का ध्यान करते हुए श्वास ले और छोड़े-
मंत्र-      ॐ  अत्रा    पितर्मादयस्व  यथाभागमावृषायस्व।। श्वास ले।।
            ॐअमीमदन्तपितर्यथा भागमाबृषयिषत्।। स्वास छोड़े।।
अर्घ्य के पात्र को हाथ में लेकर अपसव्य हो जल को पिण्ड पर छोड़े-
अद्यामुकगोत्र वसुस्वरूपास्मत् पितर अमुक शर्मन् सांवत्सरिकैकोद्दिष्ट श्राद्धे पिण्ड प्रत्यवने निक्ष्वते स्वधा।
नीवी कुशा आदि को पिण्ड के पास रख सव्य होकर आचमन लेव पुनः अपसव्य होकर बांया जंघा नवा कर कपास सूत्रा हाथ में लेकर दक्षिण मुख हो पिण्ड पर चढ़ावे-
ॐनमस्ते पितरो रसाय नमस्ते पितः शोषाय नमस्ते पितर्जीवाय पितः स्वधायै नमस्ते पितर्घोराय नमस्ते पितर्मन्यवे नमस्ते पितः पितर्नमस्ते गृहान्नः पितर्देहि नमस्ते पितर्देष्म।। हाथ जोड़कर पिण्ड पर सूत्रा रख दें-ॐएतत्ते पितर्वासः।।
हाथ में तिल, कुश, जल रख संकल्प कहे-
अद्यामुकगोत्राः वसुस्वरूपास्पात्पितरमुक शर्मन् सांवत्सरिकैको श्राद्धे पिण्डे एतत्तेवासः स्वधा।
पिण्ड पर गंध, अक्षत, पुष्प तुलसी, धूप, दीप, ताम्बूल, दक्षिणा चढ़ा वस्त्र से ढक दे पिण्ड का शेष अन्न पिण्ड के पास छोडें़।
ॐशिवा आपः सन्तु। जल छोडे़। सौमनस्यमस्तु। पुष्प छोड़े।। अक्षतंचारिष्टं चास्तु। ऐसा कह यव और तिल को अन्न पर छोड़े। दोनें पर जल में तिल रख अक्षयोदक देवे-
अद्यामुक गोत्रस्यवसुस्वरूपस्यास्पत्पितर अमुक शर्मणः सांवत्सरिकैकोद्दिष्टः श्राद्धे प्राणाप्यापन कामनायै दत्तै तदन्नपानादिकं अक्षयं अस्तु।।
सव्य होकर पूर्वमुख हो आशीष ग्रहण करे-
ॐअघोरः पिताऽ स्तु।। ऐसा कह पुनः कहे-ॐगोत्रांनो वर्द्धतां दातारोनोभिवर्द्धंतां वेदा सन्ततिरेव च। श्रद्धा चनोमा व्यगमद्वहुदेयंचनोऽस्तु।। अन्नंचनो बहुभवेदतिथिंश्चलभेमहि। याचितारश्च नः संतुमाचयाचिष्म कंचन।। एताः सत्या आशिषः सन्तु।।
पुनः अपसव्य हो पिण्ड़ के ऊपर तीन कुशा रखे तथा जल धारा दें-
ॐउर्जं वहंती रमृतं घृतं पयः कीलालं परिश्रुतम्। स्वधास्थतर्पयतमे पितरम्।।
अर्घ्यपात्र को उल्टा कर दे। यथा शक्ति सुवर्ण दक्षिणा हाथ में लेकर संकल्प कहे-
ॐअमुकगोत्रस्यास्मत्पितुरमुक शर्मणो वसुरूपस्य कृतैतत्सांवत्स- रिकैकोद्दिष्ट श्राद्धप्रतिष्ठार्थमिदं रजतचन्द्र-दैवतममुक गोत्रयामुकशर्मणे ब्राह्मणाय दक्षिणात्वेन दातुमहमुत्सृजे।। ब्राह्मण को दक्षिणा दे नम्र हो पिण्ड को उठाकर सूंघ ले तथा थाली में रखे, कुश से जलते अंगार को अग्नि में डाल दीपक को बुझाकर हाथ पैर धो सव्य हो प्रार्थना करे-
                        प्रमादात् कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषुयत्।
                        स्मरणादेवतद्विष्णो संपूर्णं स्यादिति श्रुतिः।।
                        देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
                        नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमोनमः।
पितृरूप कुश को भी उठाकर पिण्ड के साथ रख जल में विसर्जन कर दे। एकोद्दिष्ट श्राद्ध में शय्यादान, वस्त्र, अन्न, आमान्न, गायदान, देकर प्रार्थना करे-
            कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा बुद्ध्यात्मनावाऽनु सृतः स्वभावात्।
            करोमि यद्यत्सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयामि।।
कमकर्ता पके हुए अन्न को तीन पत्तों पर रख अपसव्य हो काक को, जनेंऊ मालाकर कर श्वान को, सव्य हो कर गाय को खिलावे। ब्राह्मण से तिलक आशीष ग्रहण करें ब्राह्मण को भोजन देकर दक्षिणा से सन्तुष्ट करे स्वयं परिवार के साथ भोजन करें।

।। इति एकोद्दिष्ट श्राद्ध सम्पूर्ण ।।
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Learn Hieratic in Hindi Part -4 अन्त्येष्टि -2, सपिण्डन श्राद्ध

सपिण्डन श्राद्ध (द्वादशाह्न कृत्य)


द्वादशाहे त्रिपक्षे वा षण्मासे वत्सरेऽपि वा।

सपिण्डीकरणं प्रोक्तं मुनिभिस्तत्त्वदर्शिभिः॥२८॥

मया तु प्रोच्यते तार्क्ष्य शास्त्रधर्मानुसारतः।

चतुर्णामेव वर्णानां द्वादशाहे सपिण्डनम् ॥२९॥

अनित्यत्वात्कलिधर्माणां पुंसां चैवायुषः क्षयात् ।

अस्थिरत्वाच्छरीरस्य द्वादशाहे प्रशस्यते॥३०॥

व्रतबन्धोत्सवादीनि व्रतस्योद्यापनानि च ।

विवाहादि भवेन्नैव मृते च गृहमेधिनि॥३१॥

भिक्षुर्भिक्षां न गृह्णाति हन्तकारो न गृह्यते ।

नित्यं नैमित्तिकं लुप्येद्यावत्पिण्डो न मेलितः॥३२॥

कर्मलोपात् प्रत्यवायी भवेत्तस्मात्सपिण्डनम् ।

निरग्निकः साग्निको वा द्वादशाहे समाचरेत्॥३३॥

यत्फलं सर्वतीर्थेषु सर्वयज्ञेषु यत्फलम् ।

तत्फलं समवाप्नोति द्वादशाहे सपिण्डनात्॥३४॥

अतः स्नात्वा मृतस्थाने गोमयेनोपलेपिते।

शास्त्रोक्तेन विधानेन सपिण्डी कारयेत् सुतः॥ ३५॥ अध्याय 13 गरुडपुराण।

कलियुग में धर्म की अनित्यता, पुरुष की आयु कम होने से, शरीर के स्थिर न होने से विष्णु भगवान ने धर्म शास्त्रा के अनुसार चारों वर्णों को बारहवें दिन सपिण्डन कहा है। द्वादशाह के दिन प्रातः स्नानादि नित्यक्रियाकर मध्याद्द में कर्मकर्ता श्वेतवस्त्र धारण कर श्राद्ध भूमि को गोबर से लीपकर कर्मपात्र को जल से भर उसमें गन्ध तिल पुष्प डालकर कुशा से हिला देवे-ॐअपवित्र0 मंत्र से अपने शरीर तथा श्राद्धवस्तु को छींटा देवे-ॐपुण्डरीकाक्षः पुनातु।।
श्राद्ध भूमि का पूजन कर लेवे-ॐभगवत्यैगयायै नमः।। ॐभगवत्यै गदाधराय नमः।। ॐश्राद्धस्थलभूम्यै नमः।।
तीन कुश, तिल, जल हाथ में लेकर कर्मकर्ता संकल्प करें-अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्वनिवृत्तये सद्गतिप्राप्तर्थे सपिण्डीकरणश्राद्धमहं करिष्ये।।
पितृगायत्री स्मरण तीन बार करें-
                        ॐदेवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्यएव च।
                        नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।।
अपसव्य होकर दिशाओं में यव बिखेर दें-
                        ॐनमो नमस्ते गोविन्द! पुराणपुरुषोत्तम!।
                        इदं श्राद्धं हृषीकेश! रक्षतां सर्वतो दिशः।।
कर्मकर्ता बायें कमर भाग में सुपारी, कुश, पैसा अंट में दबा ले, एक कुशा आसन पर तथा एक कुशा शिखा में रख बायें हाथ में तीन कुशा तथा दांयें हाथ में दो कुशा की पवित्री पहन कर-एक दोने में जल रख कुशा से हिला लेवें-
                        ॐयेद्दवा देवहेडनं देवासश्चकृमा वयम्।
                        अग्निर्मातस्मादेनसो विश्वान् मुञ्चत्व˜हसः।।1।।
                        ॐयदि दिवा यदि नक्ततमेना˜सिचकृमा वयम्।
                        वायुर्मा तस्मादेनसो विश्वान् मुञ्चव˜हसः।।2।।
                        यदिजाग्रद्यदिस्वप्न एनासि चकृमा वयम्।
                        सूर्यो मातस्मादेनसो विश्वान् मुञ्चन्त्व˜हसः।।3।।
जल के छीटे पाक सामग्री एवं पूजन सामग्री पर देवें-
            ॐउदक्यादि दुष्टदृष्टिपातात् शूद्रादि।
            संपर्कदोषाच्च पाकादीनां  पवित्रातास्तु।।
उत्तर मुंह कर कर्मकर्ता विश्वेदेवा के लिए आसन हेतु तीन कुश, जल, तिल ले संकल्प करें-
अद्यास्मत्पितामहादित्रायश्राद्धसंबधिनः कामकाल संज्ञकान् विश्वान्देवा- नावाहयिष्ये।। जल विश्वेदेवा वेदी में छोड़ यव बिखेर दें-
            ॐविश्वेदवा स ऽ आगत श्रुणुताम्ऽ इम˜हवम्।
            एदंवर्हिर्निषीदत।। ॐयवोऽसियवयास्मद्वेषोयव यारातीः।।
विश्वेदेवा आवाहान
                        आगच्छतु महाभाग विश्वेदेवा महाबलाः।
                        ये यत्र विहिताः श्राद्धे सावधाना भवन्तु तेे।।
एक पत्ते पर कुश, जल छोड़कर निम्न मंत्र पढ़े।
            ॐशन्नोदेवीरभिष्टय ऽ आपोभवन्तुपीतये। शंय्योरभिश्रवंतुनः।।
             पत्ते पर जौ डाल दें-ॐयवो ऽसि यवयास्मद्वेषो यवयारातीः।।
यव डालकर चुपचाप उसमें गन्ध पुष्प तुलसीदल भी डाल दे। कुश से अध्र्यपात्र को अभिमंत्रित करे-
ॐयादिव्याऽ आपः पयसासंबभूवुर्या ऽ आन्तरिक्षा ऽ उत पार्थिवीर्याः। हिरण्यवर्णा यज्ञियास्तानऽ आपः शिवाः श˜स्योनाः सुहवा भवंतु।। अर्घ्यपात्र अभिमंत्रित कर दाहिने हाथ में तिल, जल, कुश लेकर-
ॐअद्यास्मत्पितामहादित्रायश्राद्धसंबंधिनः कामकालसंज्ञका विश्वेदेवा एषवोहस्तार्घः स्वाहानमः।।
दाहिने हाथ से देवतीर्थ द्वारा अर्घ्य विश्वेदेवा को देवे। विश्वेदेवा को वस्त्रा,
गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीपक, नैवेद्य, दक्षिणा आदि चढ़ाकर तीन कुश, जल एवं यव लेकर संकल्प करें-
ॐअद्यास्मत् पितामहादि त्रायश्राद्ध संबधिनः कामकालसंज्ञकाविश्वेदेवाः एतानि गन्धपुष्प धूपदीप तांबूलयज्ञोपवीतवासांसि वो नमः।। अनेन पूजनेन विश्वेदेवा प्रीयन्ताम्।।
पित्रोश्वरों का आवाहन तिल बिखेर कर करें। पित्रों के लिए आसन दक्षिण में, प्रेत के लिए पश्चिम में वेदी के ऊपर आसन रखे। दक्षिण मुंह कर बायां घुटना मोड़ अपसव्य हो पत्ते पर दो कुश रख संकल्प बोले-अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य सपिण्डीकरण श्राद्धे इदमासनमुपतिष्ठताम्।।
प्रेत के लिए आसन रख पितरों के लिए भी तीन आसन पत्ते पर तीन कुशा जल तिल हाथ में रख कहें-
1.         अमुकगोत्रस्य पितामहस्य अमुकशर्मणः वसुरूपस्य इदमासनं
स्वधानमः।।
2.         अमुकगोत्रस्य प्रपितामहस्य अमुकशर्मणो रुद्ररूपस्य इदमासनं
स्वधा नमः।।
3.         अमुकगोत्रस्य वृद्धप्रपितामहस्य अमुकशर्मण आदित्यस्वरूपस्य इदमासनं स्वधा नमः।।
आसनों को दक्षिण की वेदी के ऊपर रख-पितरों का आवाहन करें-
                        ॐउशन्तस्त्वानिधी मह्य सन्तः समिधीमहि।
                        अशन्नुशत  आवह  पितृन हविष  अत्तवे।।
पितरों की वेदी के ऊपर तिल बिखेर दे-
            ॐआयन्तु नः पितरः सोम्यासो अग्निष्वाता पथिभिर्देवयानैः।
            अस्मिन्     यज्ञे    स्वधया    मदन्तौधिबु्रवन्तुतेऽवन्त्वस्मान्।।
अब प्रेत के लिए अर्घ्य बनावे-दोने पर-शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंयोरभिश्रवन्तु नः।। मंत्र से जल डालकर उसमें तिल, पुष्प, गन्ध भी छोड़े। अर्घ्य उठाकर तिल, जल, कुश हाथ में ले अपसव्य हो संकल्प करें-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्व विमुक्तये सपिण्डीकरण श्राद्ध एषते हस्ताघ्र्यो मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।।
अर्घ्य पात्र से थोड़ा जल प्रेत कुश के ऊपर रख पितरों के लिए तीन अर्घ्य बनावे। ॐशन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तुपीतये। शंयोरभिःश्रवन्तु नः।। जल डालकर उसमें तिल, पुष्प, गन्ध, भी डालकर संकल्प करे-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्वनिवृत्तिपूर्वकपितृत्वप्राप्तये पितामह- प्रपितामह-बृद्धप्रपितामह-अमुक शर्मन् सपिण्डिकरणश्राद्धे एष हस्ताघ्र्यस्ते स्वधा।
ऐसा कहकर अंगूठे की तरफ से पितामह प्रपितामह बृद्धप्रपितामह को थोड़ा-थोड़ा जल दें। अब प्रेत पितरों के अर्घ्य मिलाने के लिए संकल्प कहें-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्वनिवृत्यर्थं सद्गति प्राप्त्यर्थं तत्पितृपितामह प्रपिताहानामध्र्यैः सह अर्घ्यसंयोजनं करिष्ये।।
प्रेत और पितरों के अर्घ्य को मिलाते हुए ये मंत्र बोले-
                        ये  समानाः  समनसो जीवा  जीवेषु  मामकाः।

                        तेषां श्रीर्मयी कल्पतामस्मिन् लोके शतं समाः।।

प्रेत के अर्घ्यपात्र को उठाकर कुश से पितामह प्रपितामह, बृद्धप्रपिताह के अर्घ्यपात्र में जल छोड़ दें। प्रेत के अध्र्य पात्र को प्रेत वेदी के पास उल्टा रख पितर वेदी के पास तीनों अर्घ्य पात्र को भी उल्टा कर रख दें। एक आचमन जल छोड़ दें।
अनेन अर्घसंयोजनेनप्रेतस्य सद्गत्युत्तम लोक प्राप्तिः।।
पिण्ड निर्माण
पकाये हुए चावलों में घी, तिल, शहद, गंगाजल मिलाकर, पुरुष सूक्त का स्मरण करते हुए पिण्ड बनावें-एक प्रेतपिण्ड लम्बा, पितरों के लिए तीन पिण्ड गोल, एक पिण्ड (विकर पिण्ड) छोटा। प्रेत वेदी पर एक कुशा गाँठ लगाकर प्रेत निमित्त रख, तीन कुशा इसी प्रकार पितर वेदी पर पितरों के निमित्त रख गन्धादि से पहले प्रेत का पूजन कर संकल्प करे-अमुक गोत्रस्य अमुकप्रेतस्य सपिण्डीकरणश्राद्धे एतानि
गंधपुष्पधूपदीपताम्बूलयज्ञोपवीतवासांसि ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।। पितरों का पूजन भी गंधादि से कर संकल्प करें।
अमुकगोत्रस्मत् पितामहप्रपिताहमबृद्धप्रपितामह अमुकशर्मन् एतानि
गंधपुष्पधूपदीपताम्बूलयज्ञोपवीतवासांसितुभ्यं स्वधा।।
कर्म कर्ता कहे पितृणामर्चनं सम्पूर्णमस्तु।
अब कर्मकर्ता प्रेत आसन के दक्षिण की तरफ एक पत्ता रख विकिर पिण्ड को हाथ में रख वंश में जिनकी अकाल मृत्यु हो गई हो उनकी तृप्ति के लिए पिण्ड देते हुए कहे-
                        अग्नि दग्धाý ये जीवा येऽपयदग्धा कुले मम।।
                        भूमौ दत्तेन तृप्यन्तु तृप्ता यांतु परां गतिम्।।
अब चार पत्तों पर अर्घ्य बनावे उसमें कुशा के एक-एक टुकड़े डालकर जल भरें-
ॐशन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तुपीतये। शंय्योरभिश्रवन्तु नः।। अर्घ्य पात्रों में पुष्प, गन्ध, तिल डालकर अर्धपात्रसंपत्तिरस्तुऐसा कहे। एक अध्र्यपात्र उठाकर अपसव्य होकर प्रेत के लिए संकल्प करे-अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य अघ्र्येऽवनेजनं मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।।
ऐसा कहकर अर्घ्य को प्रेत के आसन के ऊपर रख अर्घ्य के जल को प्रेत के आसन के पास रख दे। दूसरा अर्घ्य उठाकर संकल्प बोले-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य सपिण्डीकरण श्राद्ध निमित्तक अमुकगोत्र पितामह-अमुकशर्माणं पिण्डस्थाने कुशोपरिअर्धावनेजनं निक्षिप्यते स्वधा।
ऐसा कहकर अर्घ्य का थोड़ा जल पितामह के आसन वाले पत्ते पर छोड़ अर्घ्य को आसन के पास रख तीसरे अर्घ्य को हाथ में उठाकर संकल्प करे-
अमुक गोत्रस्य अमुकप्रेतस्य सपिंडीकरणश्राद्धे अमुकगोत्रप्रपितामह अमुकशर्मन् पिण्डस्थाने कुशोपरि अर्धावनेजनं निक्षिप्यते स्वधा।
ऐसा कह थोड़ा अर्घ्य का जल प्रपितामह के आसन के पत्ते पर छोड़ अर्घ्य पात्र को प्रपितामह के आसन के पास रख चैथा अर्घ्य हाथ में ले संकल्प करे-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य सपिंडीकरण श्राद्धे अमुकगोत्र वृद्धप्रपितामह अमुकशर्मन् पिण्डस्थाने कुशोपरि अर्धावनेजनं निक्षिप्यते स्वधा।।
ऐसा कह थोड़ा जल वृद्ध प्रपितामह के आसन पर छोड़ अघ्यपात्र को वृद्ध प्रपितामह के आसन के पास रख दें।
पिण्डदान
पहले प्रेत पिण्ड जो लम्बे आकार में बनाया था अपसव्य होकर कर्मकर्ता उसे उठाकर तिल, कुश, जल हाथ में ले संकल्प करें-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतसपिंडीकरणश्राद्धे एष ते पिण्डो मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।।
ऐसा कह पिण्ड को प्रेत के पास आसन के ऊपर अंगूठे की ओर रख पितामह के लिए दूसरे पिण्ड का संकल्प करे।
अमुकगोत्राः पितामहः अमुकशर्मन् वसुरूप एष ते पिण्डः स्वधा नमः।। पिण्ड को पितामह के पास आसन के ऊपर रख तीसरा पिण्ड लेकर संकल्प करे-
अमुकगोत्राः प्रपितामहः अमुकर्शन् आदित्यरूप एष ते पिण्डः स्वधा नमः।। पिण्ड को वृद्ध प्रपितामह के पास आसन पर रख प्रेत के अर्घ्य से थोड़ा जल प्रेत के पिण्ड पर छोड़े-
अमुकगोत्रअमुकप्रेतसपिंडीकरणश्राद्धे प्रत्यवने अवनेजनं मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।। अब पितामह, प्रपितामह, वृद्धप्रपितामह के अर्घ्यों  से भी पिण्ड पर जल छोड़े-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य सपिंडीकरणश्राद्धनिमित्तं अमुकगोत्रणां पितामह-प्रपितामह वृद्धप्रपितामहानां पिण्डोपरि अवनेजनं तेभ्यः स्वधा नमः।।
पिण्ड देने के बाद पके हुए चावलों का शेष जो हाथ पर रहे बांये हाथ में कुश लेकर दाहिने हाथ को साफ करे और कहे-
ॐनमो वः पितरो रसायनमो वः पितर शोषाय नमो वः पितरः
जीवाय नमो वः पितरो स्वधायै नमो वः पितरो घोराय नमो वः पितरो मन्यवे नमो वः पितरः नमो वः पितरो नमो वः गृहान्नः पितरो दत्त सतो वः पितरो द्वैष्मै तद्वः पितरो वास आधत।।
अपसव्य हो कर्मकर्ता प्रेतपिण्ड का पूजन करे-पिण्ड का पूजन गन्ध, यव अक्षत, पुष्प, तुलसीपत्रा, धूप, दीपक, नैवेद्य, ताम्बूल, दक्षिणा आदि चढ़ाकर पितामह, प्रपिताह और वृद्धपितामह के पिण्डों का पूर्ववत् पूजन कर कर्मकर्ता उत्तर मुँह कर प्राणायाम रीति से बाँये नांक से श्वास ले दक्षिण की दिशा की तरफ श्वास छोड़ते हुए पितरों व सूर्य का ध्यान करे।
पिण्ड संयोजन
अपसव्य हो कर्मकर्ता सुवर्ण या रजत शलाका (अभाव में कुश) से प्रेत पिण्ड के तीन समान भाग करे तथा तिल, जल, कुश हाथ में लेकर संकल्प करे-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्वनिवृत्तिपूर्वकपितृसमप्राप्त्यर्थं वस्वादिलोक प्राप्त्यर्थं च अमुकगोत्रणां तत्पितृपितामहप्रपितामहानां पिण्डैः सहप्रेतस्य पिण्ड संयोजनं करिष्ये।।
प्रेतपिण्ड का पहला भाग बाँये हाथ में लेकर संकल्प-अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रथमं पिण्डशकलं अमुकपितामहस्यामुकशर्मणो वसुरूपस्य पिण्डेन सह संयोजयिष्ये।। प्रेतपिण्ड के पहले भाग के साथ पितामह के पिण्ड के साथ मिला दे-
                        ॐये समानाः समनसः पितरोयमराज्ये।
                        तेषां लोकः स्वधा नमो यज्ञो देवेषु कल्पताम्।।1।।
                        ये समानाः समनसो जीवाजीवेषु मामकाः।
                        तेषां श्रीर्मयि कल्पतामस्मिन् लोके शतं समाः।।2।।
पिण्ड गोलकर पितामह के आसन पर रख पुनः प्रेत पिण्ड का दूसरा भाग उठाकर संकल्प बोले-
अमुक  गोत्रस्य  अमुकप्रेतस्य  द्वितीयपिण्डशकलं   अमुक प्रपितामहस्यामुकशर्मणः रुद्ररूपस्य पिण्डेन सह संयोजयिष्ये। ऐसा कह ये समानाः॰के दोनों मंत्र कहते हुये प्रेत पिण्ड के दूसरे भाग के साथ प्रपितामह के पिण्ड को गोलाकार बनाकर प्रपिताह के आसन के ऊपर रख दे। प्रेत पिण्ड के तीसरे भाग को उठाकर संकल्प बोले-
अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य तृतीयं पिण्डशकलं अमुक वृद्धपितामहस्यामुक शर्मणः आदित्यरूपस्य पिण्डेनसह संयोजयिष्ये।।
ऐसा कह ये समानाः॰ के दोनों मंत्र कहते हुए प्रेतपिण्ड के तीसरे भाग के साथ वृद्ध पितामह का पिण्ड मिला के आसन के ऊपर रखे। अब शेष अर्घ्य के जल को हाथ में लेकर संकल्प-
अमुकगोत्रणां पितामह-प्रपितामह-वृद्धप्रपितामहानां पिण्डोपरि अवनेजनं तेभ्यः स्वधा नमः।।
जल देकर नीवी मोचन (अंट में रखे पैसा कुशा सुपारी) पिण्डो के पास रख सव्य होकर प्रार्थना करे-ॐनमो वः पितरो रसायनमो वः पितर शोषाय नमो वः पितरो जीवाय नमो वः पितरः स्वधायै नमो वः पितरो घोराय नमो वः पितरो मन्यवे नमो वः पितरः पितरो नमो वः गृहान्नः पितरो दत्त सतो वः पितरो द्वैष्मै तद्वः पितरो वास आधत।।
पिण्डों का पूजन पुनः वस्त्राः तीन सूत्रा, अक्षत, पुष्प, धूप, दीपक, नैवेद्य आदि से कर कर्मकर्ता उत्तर की दिशा को मुंह कर प्राणायाम की रीति से श्वास चढ़ाकर दक्षिण की तरफ छोड़े।
भगवान् विष्णु को पकवान चढ़ावे-
                        ॐ नाभ्या आसीदन्तरिक्ष शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत।
                         पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्राँत्तथा लोकाँ2 अकल्पयन्।।
विश्वेदेवा को भी पकवान का भोग लगावे-
कालकाम संज्ञक विश्वेदेवानां पक्वान्ननैवेद्यं अहमुत्सृजे।।
कर्मकर्ता हाथ जोड़कर पितरों से आशीर्वाद मांगे-
            ॐगोत्रां नो वर्द्धतां दातारो नोऽभिवर्द्धन्ताम्।
            वेदाः संततिरेव च। श्रद्धा च नो मा व्यगमद् बहुदेयं सदास्तुनः।
            अन्नंचनो बहु भवेदतिथींश्चलभामहे।
            याचितारश्च नः सन्तु मा च याचिष्म कंचन।।
अब पिण्डों पर दूध की धारा देकर पितरों को प्रणाम कर बीच के पिण्ड को हिला देवे। अब अपसव्य हो पिण्डों को उठाकर सूघं ले और पिण्डों को विसर्जन के लिए थाली में रख सव्य हो थाली को रुपये से बजा देवे।
मंत्र
            ॐवाजे वाजेऽवत वाजिनो नो धनेषु विभा अमृता ऋतज्ञाः।
            अस्य  मध्वः  पिबत मादयध्वं तृप्ता यात पथिभिर्देवयान्यैः।।
ब्राह्मण को दक्षिणा संकल्प-
ॐविष्णुः 3 देशकालौ संकीर्त्य पितृअमुक गोत्रपित्रादित्रयश्राद्धसम्बन्धिनां कालसज्ञकानां विश्वेषां देवानां प्रीतये कृतस्य सपिण्डीकरण श्राद्धान्तर्गतविश्वदैविककर्मणः सांगतासिद्धयर्थं साद्गुणार्थं च इमां सुवर्णदक्षिणातन्निष्क्रयद्रव्यं वा ब्राह्मणाय दास्ये।।
कर्मकर्ता ब्राह्मण को दक्षिणा देकर अपसव्य से दीपक बुझा पितरों को उठाये-
ॐउत्तिष्ठन्तु पितरः।। देवताओं का विसर्जन अक्षत चढ़ाकर करे-देवाः स्वस्थानं यान्तु।। प्रदक्षिणा भी कर लें-
            ॐअमावाजस्य प्रसवो जगम्यादेमेद्यावा पृथिवी विश्वरूपे।
            आमा गन्तां पितरा मातरा वामा सोमो अमृतत्वेन  गम्यात्।।
            प्रार्थना-             प्रमादात् कुर्वतां कर्म  प्रत्यवेताध्वरेषु  यत्।
                                    स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्णंस्यादिति श्रुति।।
कर्मकर्ता पिण्ड वेदी को साफ कर पिण्डों को जल में डाल दे या गाय को खिला देवे। गौ, श्वान, काक बजि।
तीन पत्तो पर बने हुए आहार से ग्रास निकाल कर निम्न प्रकार दे- गो ग्रास सव्य होकर-
सौरभेय सर्वहिताः पवित्राः पुण्यराशयः। 
प्रतिगृह्णन्तु मे ग्रासं गावोत्रैल्यमातरः।। श्वान बलि (जनेऊ मालाकार कर)
                        द्वौ श्वानौ श्याम शवलौ वैवश्वतकुलोभ्वौ।
                        ताभ्यामन्नं प्रदास्यामि स्यातामेतावहिंसकौ।।
काकबलि (अपसव्य) होकर-
                        ऐन्द्रवारुण वायव्याः सौम्या वै नैर्ऋतास्तथा।
                        वायसाः प्रतिगृहणन्तु भूमावन्नं मयार्पितम्।।
शय्यादान
पलंग पर गद्दा चद्दर तकिया आदि बिछाकर शैय्या उत्तर दक्षिण रख सुन्दर ढंग से शैय्या को सजाकर मृतक को जो वस्तुयें जीवनकाल में प्रिय लगती थी उनको भी शैय्या के पास रख, घृत कुंभ, जल कुंभ, बर्तन, वस्त्रा आदि रख, शैय्या के ऊपर सुवर्ण से बनी लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा एवं शालग्राम को दूध जल से धोकर प्रतिष्ठापित करे-
                        ॐएतन्त्ते देव सवितुर्यज्ञं प्राहुर्बृहस्पतये ब्रह्मणे।
                        तेन यज्ञमव तेन यज्ञपतिं तेन मामव।।1।।
मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ˜समिमं दधातु। विश्वेदेवास ऽइह मादयन्तामो 3म्प्रतिष्ठ।।
प्रतिष्ठापन कर-
            नमोस्त्वनंतायसहश्रमूर्तये, सहश्रपादाक्षिशिरोरुवाहवे।
            सहश्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते सहश्रकोटी युग धारिणे नमः।।
            नमः कमलनाभाय नमस्तेजलशायिने।
            नमस्ते केशवानन्त वासुदेव नमोस्तुते।।
लक्ष्मीनारायण को पुष्प अर्पण कर पूजन पुरुष सूक्त से कर ब्राह्मण का पूजन कर दें-
                        नमो  ब्रह्मण्यदेवाय गोब्राह्मण हिताय च।
                        जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः।।
कर्मकर्ता ब्राह्मण के मौली बांध शय्या के ऊपर बिठाकर हाथ में तिल, जल, कुशा रख यह संकल्प कहे-ॐविष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्येत्यादि अमुकगोत्रस्या अमुकनामाहं मम  पितुः  विष्णुलोके  सुखशयनार्थं  इमां  शय्यां  सोपस्करां श्री लक्ष्मीनारायणकांचनप्रतिमासहितां विष्णुदैवत्यां अमुकगोत्रय अमुकशर्मणे ब्राह्मणाय तुभ्यमहं संप्रददे।।
हाथ के जलतिलकुश को ब्राह्मण के हाथ में दे शय्या को हिला देवे, ब्राह्मण को प्रणाम करें-
                        यदर्चनं कृतं विप्रं तव विष्णुस्तद् रूपिणः।
                        प्रार्थना मम दीनस्य विष्णवेतु समर्पणम्।।
ब्राह्मण संकल्प हाथ में लेकर स्वस्तिकह दे। दाता शय्यादान सांगतासिद्धि के लिए स्वर्ण या रजत द्रव्य हाथ में रख यह संकल्प कहे-
अद्यकृतैतत्सोपकरणशय्यादानकर्मणः सांगता-सिद्धîर्थमिदं हिरण्यमग्निदैवतं अमुकगोत्रयामुकशर्मणे ब्राह्मणाय दक्षिणात्वेन तुभ्यमहं सम्प्रददे।।
दाता शय्या की प्रदक्षिणा करें-
                        यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
                        तानि  तानि  विनश्यन्ति  प्रदक्षिण पदे पदे।।
प्रार्थना वाक्य कहे-
                        यथा न कृष्णशयनं शून्यं सागरजातया।
                        शय्याममाप्यशून्याऽस्तु तथा जन्मनिजन्मनि।।
                        यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु।
                        न्यूनं सम्पूणर््तां  याति  सद्यो वन्दे  तमच्युतम्।।
इति शय्यादान

त्रयोदश पद दान
तेरह पददान में निम्न द्रव्य वस्तु यथा शक्ति रखे-1-आसन। 2-उपानह। 3- छत्र। 4- मुद्रिका। 5-जलपात्र। 6- आमान्न 7- जल। 8-पाँच बर्तन। 9-वस्त्र। 10- यज्ञोपवीत। 11- घी। 12- दण्ड। 13- ताम्बूल।
उक्त वस्तुयें रख कर्मकर्ता हाथ में जल, तिल, कुश, रख यह संकल्प कहे-
ॐविष्णुर्विष्णुः अद्यः अमुकगोत्रोत्पन्नो अमुकशर्माहं अमुकगोत्रय मम पितुः अमुकनाम्नः शुद्धश्राद्धान्तरे परलोके सुखप्राप्तर्थं असद्गतिनिवारणार्थं इमानि आसनोपानहच्छत्रामुद्रिका-कमण्डल्वन्नजलभाजन-वस्त्राज्ययज्ञो- पवीतदण्डताम्बूलानित्रायोदश-पदानि नानादैवतानि नानानामगोत्रोभ्यो ब्राह्मणेभ्यो दातुमहमुत्सृजे। कर्मकर्ता अलग-अलग ब्राह्मणों को अलग-अलग वस्तुयें देकर सन्तुष्ट करें।
गोदान
कर्मकर्ता ब्राह्मण से आचमन लेकर आसन पूजन भूशूद्धि कर गाय के ऊपर तिल छोड़े-ॐआयं गौः पृश्निरक्रमीदसदन्मातरं पुरः। पितरं च प्रयन्त्स्वः।।
पूजन क्रम-
आवाहन-           आवाहयाम्यहं देवीं गां त्वां त्रैलोक्यमातरम्।
                        यस्या  शरणमाविष्टः  सर्वपापैः प्रमुच्यते।।
पाद्य-                त्वं देवी त्वं जगन्माता त्वमेवासि वसुन्धरा।
                        गायत्री त्वं च सावित्री गंगा त्वं च सरस्वती।।
                        तृणानि भक्षसे नित्यं अमृतं श्रवसे प्रभो।
                        भूतप्रेतपिशाचांश्च पितृदैवतमानुषान्।
                        सर्वांस्तारयसे देवि नरकात् पापसंकटात्।।
वस्त्र-                आच्छादनं सदाशुद्धं मयादत्तं सुनिर्मलम्।
                        सुरभिर्वस्त्रदानेन प्रीता भव सदा मयि।।
आभूषण-           स्वर्णश्रृंगद्वयं रौप्यं खुराचातुष्कमुत्तमम्।
                        ताम्रपृष्टं मुक्तपुच्छं स्वर्णबिन्दु च शोभितम्।।
                        यत्तेमयार्पितं शुद्धं घण्टा चामरसंयुतम्।
                        धेनोर्गृहाण सततं मयादत्तं नमोऽस्तुते।।
चन्दन-  सर्वदेव प्रियं देवि चन्दनं चन्द्रकान्तिदम्।
                        कस्तूरीकुुंकुमाढ्यं च गोगन्धः प्रतिगृहîताम्।।
अक्षत-   अक्षतान्धवलान्देवि रक्तचनदनसंयुतान्।
                        गृहाण परयाप्रित्या यतस्त्वं त्रिदशार्चिता।।
पुष्प-                 पुष्पमाला तथाजाति पाटली चम्पकानि च।
                        सुपुष्पाणि गृहाणत्वं सर्वविघ्नं प्रणाशिनी।।
अंगपूजन-          ॐआस्यायनमः।। ॐश्रृगाभ्यांनमः।।
                        ॐपृष्ठाभ्यांनमः।। ॐपुच्छाय नमः।।
                        ॐअग्रपादाभ्यां नमः।। ॐपृष्ठपादाभ्यांनमः।।
धूप-                  वनस्पतिरसोभूतो गंधाढ्योगन्धउत्तमः।
                        आघ्रेयः सर्वतोधेनो धूपोऽयं प्रतिगृहयताम्।।
दीप-                 साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वद्दिना योजितं मया।
                        दीपं गृहाण सुरभे! मयादत्तं हि भक्तितः।।
नैवेद्य-               सुरभि वैष्णवी माता नित्य विष्णु पदे स्थिते।
                        नैवेद्यंहिमयादतं गृह्यतां पापहारिणी।।
जल-                 सर्वपापहरं दिव्यं गागेयं निर्मलं जलम्।
                        आचमनं मयादत्तं गृह्यतां परमेश्वरि।।
गोपुच्छ तर्पण
पूर्व मुख हो कर्मकर्ता हाथ में यव, कुश, जल, तिल, हाथ में रख गो की पूँछ पकड़ सव्य हो देवतीर्थ से तर्पण करे-
                        गणपतिस्तथा ब्रह्मा माधवो रुद्र देवता।
                        लक्ष्मी सरस्वती चैव कार्तिकश्च नवग्रहाः।।
                        देवाधिदेवताः सर्वास्तथा प्रत्यधि देवता।
                        ते सर्वे तृप्तिमायान्तु गोपुच्छोदकतर्पणैः।
                        किन्नराश्चपिशाचाश्च यक्षगंधर्वराक्षसाः।।
                        दैत्याश्च दानवाश्चैव ये चान्येऽप्सरसांगणाः।।
                        ते सर्वे तृप्तिमायान्तु गोपुच्छोदकतर्पणैः।।
जनेंऊ कण्ठी कर उत्तरमुख कार्यतीर्थ से तिल, यव, कुश, जल हाथ में रख तर्पण करे-
                        सनकः सनन्दनश्चैव सनातनस्तथैव च।
                        कपिलश्च सुरैश्चैव बोढुपंचशिखस्तथा।।
                        ते सर्वे तृप्तिमायान्तु गोपुच्छोदकतर्पणैः।।
अपसव्य हो दक्षिण मुँह, पितृतीर्थ से तिल, यव, कुश जल हाथ में रख तर्पण करे-
                        पिता पितामहश्चैव तथैव प्रपितामहः।
                        मातामहस्तत्पिता च वृद्धमातामहस्तथा।।
                        ते सर्वे तृप्तिमायान्तु गोपुच्छोदकतर्पणैः।।
                        माता पितामहीचैव तथैव प्रपितामही।
                        मातामह्यादयः सर्वास्तथैवान्याश्च गोत्रजाः।।
                        ता सर्वा तृप्तिमायान्तु गोपुच्छोदकतर्पणैः।।
                        पितृवंशेमृतायेच मातृवंशे तथैव च।
                        गुरुश्वसुर बन्धूनां ये चान्ये बांधवाः स्मृताः।
                        ते सर्वे तृप्तिमायान्तु गोपुच्छोदकतर्पणैः।।
सव्य हो कर्मकर्ता आचमन लेकर प्रार्थना वाक्य कहे-
                        या लक्ष्मीः सर्वभूतानां या च देवेष्ववस्थिता।
                        धेनुरूपेण सादेवी मम पापं व्यपोहतु।।
गोदान संकल्प
पूर्व मुख गाय, उत्तरमुख ब्राह्मण हो, कर्मकर्ता गो की पूँछ की तरफ, गोपुच्छ, तीन कुशा, जल, तिल, हाथ में रख संकल्प कहे-
अद्येत्यादि॰ अमुकगोत्रस्य अस्मत्पितुरमुक नाम्नः स्वर्गकाम इमां गां सवत्सां सुपूजितां पयस्विनीं सुवर्णश्रृंगीरौप्यखुरां ताम्रपृष्ठां वस्श्रयुगच्छनां कांस्यपानीयपात्रां पैत्तिलदोहां रुद्रदैवताममुक-गोत्रयामुकशर्मणे ब्राह्मणायतुभ्यमहं सम्प्रददे।।
हाथ में रखे तिल, जल आदि को ब्राह्मण के हाथ में देवें पश्चात् सुवर्ण दक्षिणा हाथ में रख निम्न संकल्प कहे-
अद्यकृतैतद्गोदानप्रतिष्ठार्थं   इमां   सुवर्णदक्षिणामग्निदैवता- ममुकगोत्रयाकशर्मणे ब्राह्मणाय तुभ्यमहं सम्प्रददे।।
ब्राह्मण दक्षिणा लेकर ॐस्वस्तिऐसा कहे। कर्मकर्ता चार बार गो प्रदक्षिणा करे-
                        यानिकानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
                        तानि नाशय धेनो त्वं प्रदक्षिणा पदे पदे।।
ब्राह्मण तर्पण जल से कर्मकर्ता को सपरिवार छीटे दे कर्मकर्ता प्रार्थना वाक्य कहे-
                        नमो ब्रह्मण्य देवाय गो ब्राह्मण हिताय च।
                        जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः।।

।। इति गोदान ।।

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