भारतीय परम्परा में काल गणना -1

भास्कराचार्य ने सिद्धान्तशिरोमणि नामक ग्रन्थ में त्रुटि को ही काल की सर्वाधिक छोटी इकाई कहा है। यथा -
            त्र्युट्यादि प्रलयान्तकालगणनामानप्रभेद: क्रमात् 
            चारश्चद्युसदां द्विधा च गणितं प्रश्नास्तथा सोत्तरा:।
             भूधिष्ण्यग्रहसंस्थितेश्च कथनं यन्त्रादि यत्रोच्यते,
              सिद्धान्त: स उदाहृतोऽत्र गणितस्कन्धप्रबन्धे बुधै:।।
सिद्धान्त ग्रन्थों में त्रुटि से लेकर प्रलयकाल तक की गणना की गयी है। समय की सर्वाधिक छोटी इकाई का नाम त्रुटि है। यद्यपि कहीं-कहीं निमेष को सूक्ष्मातिसूक्ष्म माना गया है।
     त्रुटि कहते हैं कमल के पत्ते में सुई से छेद करने में लगने वाले समय को। जैसा कि कहा भी गया है— ``सूच्याभिन्ने पद्मपत्रे त्रुटिरित्यभिधीयते''। त्रुटि के हजारवें (सहस्रम्) भाग को लग्न कहा गया है, इसे ब्रह्मा भी नहीं जानते पामरजनों की क्या बात कही जाय। यथा -
                 त्रुटे: सहस्रभागं यो लग्नकाल: स उच्यते। 
                 ब्रह्माऽपि तं न जानाति िंक पुन: पामरो जना:।।
मनुस्मृति में १८ निमेष (पलक गिरने का समय) की १ काष्ठा, ३० काष्ठा की १ कला, ३० कला का १ मुहूर्त (२ घटी, १ घटी २४ मिनट) और ३० मुहूर्त को अहोरात्र कहते हैं। यथा
                  निमेषे दश चाष्टौ च काष्ठा त्रिंशत्तु ता: कला।
                   त्रिंशत्कला मुहूर्त: स्यादहोरात्रंतु तावत:।। - मनुस्मृति १।६४
विष्णुपुराण में पन्द्रह निमेष की १ काष्ठा, तीस (३०) काष्ठा की १ कला तथा तीस कला का १ मुहूर्त होता है। तीस मुहूर्त का एक दिन एवं रात्रि मनुष्यों की होती है। तीस अहोरात्र का एक मास होता है। यथा
                   काष्ठा पञ्चदशाख्याता निमेषा मुनित्तम।
                   काष्ठात्रिंशत्कला त्रिंशत्कला मौर्हूित्तको विधि:।।
                   तावत्संख्यैरहोरात्रं मुहूर्तैर्मानुषं स्मृतम् ।
                   अहोरात्राणि तावन्ति मास: पक्षद्वयात्मक:।। - विष्णुपुराण १।३।८-९
महाभारत में भी काल का विभाग किया गया है 
                काष्ठा निमेषा दश पञ्च चैव त्रिंशत् काष्ठा गणयेत् कलां ताम् ।
                त्रिशंत्कलाश्चापि भवेन्मुहूर्तो भाग: कलाया: दशमश्च य: स्यात् ।।
                त्रिंशन्मुहूर्तन्तु भवेदहश्च रात्रिश्च संख्या मुनिभि: प्रणीता।
                मास: स्मृतो रात्र्यहनी च त्रिंशत् संवत्सरो द्वादशमास उक्त:।।
श्रीमद्भागवत महापुराण में काल प्रपञ्च की सूक्ष्मातिसूक्ष्म अवस्था को परमाणु कहा गया है। अर्थात् झरोखे से जब सूर्य की किरणें घर में प्रवेश करती हैं तो उस प्रकाश में उड़ने वाला जो सूक्ष्मकण दिखायी पड़ता है उसका छठा भाग ही परमाणु कहा गया है।
                   जालान्तरगते भानौ सूक्ष्मं यद् दृश्यते रज:।
                   तस्य षष्ठतमो भाग: परमाणु: स कथ्यते।।
तीन त्रसरेणुओं को पार करने में सूर्य को जितना समय लगता है उसे त्रुटि कहते हैं। इससे सौ गुना काल `वेध' कहलाता है तथा तीन वेध का एक `लव' होता है। तीन लव को एक निमेष और तीन निमेष को एक क्षण कहते हैं। पांच क्षण की १ काष्ठा होती है और १५ काष्ठा का १ लघु। पन्द्रह लघु की एक नाडी या दण्ड कहा जाता है। दो नाडी का एक मुहूर्त होता है, छ: नाडी का १ प्रहर तथा आठ प्रहर की दिन-रात्रि (अहोरात्र), १५ अहोरात्र का १ पक्ष तथा दो पक्षों का १ मास कहा गया है। यथा
                 अणुर्द्वौ परमाणू स्यात्त्रसरेणुस्त्रय: स्मृत:।
                 जालार्करश्म्यवगत: खमेवानुपतन्नगात् ।।
                त्रसरेणुत्रिकं  भुङ्क्ते य: काल: स त्रुटि: स्मृत:।
                शताभागस्तु वेध: स्यात्तैस्त्रिभिस्तु लव: स्मृत:।।
                 निमेषस्त्रिलवो ज्ञेय आम्नातस्ते त्रय: क्षण:।
                क्षणान् पञ्च विदु: काष्ठां लघु ता दश पञ्च च।। श्रीमद्भागवतमहापुराण ३।११।५-६-७
अमरकोशकार ने १८ निमेष को १ काष्ठा माना है
                अष्टादश निमेषास्तु काष्ठा त्रिंशत्तु ता: कला।
                तास्तु त्रिंशत्क्षण: ते तु मुहूर्तो द्वादशास्त्रियाम् ।। - अमरकोश १।४।११
सभी आचार्यों, ऋषियों तथा मनीषियों के मतों को देखकर कालमान परिभाषा इस प्रकार की जा सकती है।
२          अणु       =          द्व्यणुक।
३          द्व्यणुक   =          १ त्रसरेणु
३          त्रसरेणु  =          १ त्रुटि
२          त्रुटि      =          १ निमेष = २४ प्रति सेकण्ड = १/१० असु = १ विपल
१०       निमेष    =          १ प्राण = ४ सेकण्ड = १ असु = १० विपल।
६          प्राण      =          १ पल = २४ सेकण्ड = ६ असु = ६० विपल
२१/२    पल       =          १ मिनट = ६० सेकण्ड = १५ असु
६०       पल       =          १ घटी = २४ मिनट = ३६० असु
२१/२    घटी      =          १ घंटा = ६० मिनट = ९०० असु
६०       घटी      =          २४ घंटा = १ अहोरात्र (दिन-रात्रि)
६०       कला     =          १ अंश
३०       अंश       =          १ राशि
१२       राशि     =          १ भगण
अन्य मत से काल की सबसे सूक्ष्म इकाई त्रुटि है।
२          परमाणु =          १ त्रुटि
२          त्रुटि      =          १ लव
२          लव       =          १ निमेष
५          निमेष    =          १ काष्ठा
१०       काष्ठा     =          १ कला
४०       कला     =          १ नाडी
२          नाडी     =          १ मुहूर्त
१५       मुहूर्त     =          १ अहोरात्र
७          अहोरात्र            =          १ सप्ताह
१५       अहोरात्र            =          १ पक्ष
२          पक्ष       =          १ मास
१२       पक्ष       =          १ अयन
१२       मास      =          १वर्ष
             ६० सेकण्ड का १ मिनट
            ६० मिनट का १ घंटा
            २४ घंटा का १ दिन-रात
            ६० प्रतिपल का १ विपल
            ६० विपल का १ पल
            ६० पल का १ घटी या दण्ड
            ६० घटी या दण्ड का १ दिन-रात
            ६० प्रति विकला का १ विकला
            ६० विकला का १ कला
            ६० कला का १ अंश अथवा १ दिन (सौरमान से)
            ३० अंश का १ राशि अथवा १ मास (सौरमान से)
            १२ राशि या ३६०० का १ भगण अथवा १ वर्ष (सौरमान से)
            २।। (२-३०) विपल का १ सेकण्ड
            २।। (२-३०) पल का १ मिनट
            २।। (२-३०) घटी का १ घंटा
            ६० घटी या दण्ड का १ दिन-रात (अहोरात्र)

अहोरात्र - दिन और रात्रि को मिलाकर एक अहोरात्र बनता है जो ६० घटी का होता है।
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1 टिप्पणी:

  1. प्रभु जी आप बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं
    संस्कृत का ज्ञान सभी के सामने आना चाहिए
    ताकि लोग इसे सीखने के उत्सुक है
    ताकि जो ज्ञान भारत के लोगों से छुपा दिया गया है वह पूरे विश्व के सामने प्रकट हो और विश्व में भारतीय संस्कृत ज्ञान को पूरे विश्व मे सम्मान मिले
    मैं भी पहले संस्कृत के ज्ञान से अपरिचित था
    लेकिन जैसे-जैसे ये जानने की इच्छा हुई
    तो ज्ञात हुआ जैसे इसमें पूरे ब्रम्हांड का ज्ञान विज्ञान छुपा हुआ है इससे शरीर मन ही नहीं आत्मा भी प्रसन्न होती है
    और यह ज्ञान अपूर्ण से पूर्ण की ओर ले जाता है
    जहां जाकर आत्मा और परमात्मा एक हो जाते हैं
    और मनुष्य के भीतर छुपे ईश्वर का साक्षात्कार होता है
    और असली आनंद की प्राप्ति होती है

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