भारतीय ज्योतिष में सूर्योदय
से ही दिन बदलता है। अंग्रेजी तारीख अथवा दिन रात १२ बजे से प्रारम्भ होकर अगली
रात में १२ बजे तक चलता है। अंग्रेजी में रात १२ से दिन में १२ बजे दोपहर तक ए.एम.
(दिन) तथा दोपहर १२ बजे से रात १२ बजे तक पी.एम. (रात) लिखा जाता है। अंग्रेजी कैलेन्डर के अनुसार रात १२ बजे से दिन बदल जाता है। इसीलिये अंग्रेजी तारीख भी रात १२ बजे से बदल जाती है। इसलिए
कुण्डली बनाते समय इसका ध्यान रखना चाहिए। रात में १२ बजे के बाद जो बालक पैदा
होगा,
उसके लिए अगली तारीख जैसे दिन में २० अप्रैल है,
और लड़का रात १ बजे पैदा हुआ है तो २१ अप्रैल ए.एम. लिखा
जायेगा। इसलिए कुण्डली बनाते समय पञ्चाङ्ग में २० अप्रैल की ही तिथि - नक्षत्र आदि
लिखना चाहिये। आजकल कुण्डली में अंग्रेजी तारीख भी लिखी जाती है,
अत: कुण्डली में २०/२१ अप्रैल रात्रि १ बजे लिखना चाहिए।
जिससे भ्रम न हो सके।
नक्षत्र
कुण्डली में
दिन के बाद नक्षत्र लिखा जाता है। कुल २७ नक्षत्र होते हैं -
१. अश्विनी,
२. भरणी, ३. कृत्तिका, ४. रोहिणी, ५. मृगशिरा, ६. आद्र्रा, ७. पुनर्वसु, ८. पुष्य, ९. अश्लेषा, १०. मघा, ११. पूर्वा फाल्गुनी, १२. उत्तरा फाल्गुनी, १३. हस्त, १४. चित्रा, १५. स्वाती, १६. विशाखा, १७. अनुराधा, १८. ज्येष्ठा, १९. मूल, २०. पूर्वाषाढ़ा, २१. उत्तराषाढ़ा, २२. श्रवण, २३. धनिष्ठा, २४. शतभिषा, २५. पूर्वाभाद्रपद, २६. उत्तरा भाद्रपद तथा २७. रेवती।
अभिजित
नक्षत्र - यह अलग से कोई नक्षत्र नही होता है। बल्कि उत्तराषाढ़ा की अन्तिम १५ घटी
तथा श्रवण की प्रारम्भ की ४ घटी के योग कुल १९ घटी का अभिजित नक्षत्र माना जाता है,
किन्तु यह कुण्डली में न लिखा जाता है और न पञ्चाङ्गों में
ही लिखा रहता है। नक्षत्र को ``ऋक्ष'' अथवा ``भ'' भी कहते हैं। जैसे गतार्क्ष में ऋक्ष है,
जिसका अर्थ है, गतऋक्ष (नक्षत्र)। इसी तरह ``भयात'' में ``भ'' का अर्थ नक्षत्र है। पञ्चाङ्गों में प्रतिदिन का नक्षत्र
तथा उसका मान (कब तक है) घटी-पल में लिखा रहता है। जिसे देखकर कुण्डली में लिखना
चाहिये।
चरण
प्रत्येक
नक्षत्र में ४-४ चरण होते हैं। कुल २७ नक्षत्र में २र्७ े ४ कुल १०८ चरण होंगे।
बालक का राशि नाम निकालने के लिए नक्षत्र का चरण निकालना जरूरी है।
योग
कुण्डली में
नक्षत्र के बाद योग लिखा जाता है। योग - सूर्य चन्द्रमा के बीच ८०० कला के अन्तर
पर एक योग बनता है। कुल २७ योग होते हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं — १. विष्कुम्भ, २. प्रीति, ३. आयुष्मान, ४. सौभाग्य, ५. शोभन, ६. अतिगण्ड, ७. सुकर्मा, ८. धृति, ९. शूल, १०. गण्ड, ११. वृद्धि, १२. ध्रुव, १३. व्याघात, १४. हर्षण, १५. वङ्का, १६. सिद्धि, १७. व्यतिपात, १८. वरियान, २०. परिघ, २१. सिद्ध, २२. साध्य, २३. शुभ, २४. शुक्ल, २५. ब्रह्म, २६. ऐन्द्र तथा २७. वैधृति। पञ्चाङ्ग में योग के आगे घटी-पल
लिखा रहता है। जिसका अर्थ है, सूर्योदय के बाद कब तक वह योग रहेगा। जिस तरह तिथि नक्षत्र
का क्षय तथा वृद्धि होती है, उसी तरह योग का भी क्षय तथा वृद्धि होती है। जब दो दिन
सूर्योदय में एक ही योग हो तो उस योग की वृद्धि होगी। जब दोनों दिन सूर्योदय के
समय जो योग नहीं है, तो उस योग का क्षय माना जाता है। तिथि,
नक्षत्र, योग का जो क्षय कहा गया है, उससे यह नहीं समझना चाहिए कि उस तिथि अथवा नक्षत्र अथवा योग का लोप हो गया है।
वह तिथि,
नक्षत्र, योग उस दिन रहेगा। केवल सूर्योदय के पूर्व समाप्त हो
जायेगा।
करण
कुण्डली में
योग के बाद करण लिखा जाता है। कुल ११ करण होते हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं — १. वव, २. वालव, ३. कौलव, ४. तैतिल, ५. गर, ६. वणिज, ७. विष्टि या भद्रा, ८. शकुनि, ९. चतुष्पद, १०. नाग, ११. किस्तुघ्न। इसमें १ से ७ तक के ७ करण चर संज्ञक हैं। जो
एक माह में लगभग ८ आवृत्ति करते हैं। अन्त का चार - ८ से ११ तक शकुनि,
चतुष्पद, नाग तथा विंâस्तुघ्न - करण स्थिर संज्ञक हैं। स्थिर करण सदा कृष्ण पक्ष
की चतुर्दशी के उत्तरार्ध से प्रारम्भ होते हैं। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को आधी
तिथि के बाद शकुनि करण। अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पद करण। अमावस्या के
उत्तरार्ध में नाग करण। शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में िंकस्तुघ्न करण
होता है। इसीलिए यह स्थिर संज्ञक है। एक तिथि में २ करण होते हैं। तिथि के आधे भाग
पूर्वार्ध में १ करण तथा तिथि के आधे भाग उत्तरार्ध में दूसरा करण होता है। अर्थात
`तिथि अर्धं करणं' अर्थात तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं या सूर्य चन्द्रमा
के बीच १२ अंश के आधे ६ अंश को करण कहते हैं। कुण्डली में जन्म के समय जो करण हो,
वही लिखा जाता है।
हंसक अथवा तत्त्व
षड्वर्गीय
कुण्डली में ``हंसक''
लिखा रहता है। अत: हंसक जानने की विधि दी जा रही है। हंसक
को तत्त्व भी कहते हैं। कुल ४ तत्त्व अथवा हंसक होते हैं —
१. अग्नि तत्त्व, २. भूमि तत्त्व, ३. वायु तत्त्व तथा ४. जल तत्त्व। ये तत्त्व राशि के अनुसार
होते हैं जैसे —
१. मेष राशि - अग्नि तत्त्व २. वृष राशि - भूमि तत्त्व ३. मिथुन राशि - वायु तत्त्व ४. कर्क राशि - जल तत्त्व ५. सिंह राशि - अग्नि तत्त्व ६. कन्या राशि - भूमि तत्त्व ७. तुला राशि - वायु तत्त्व ८. वृश्चिक राशि - जल तत्त्व ९. धनु राशि - अग्नि तत्त्व १०. मकर राशि - भूमि तत्त्व ११. कुम्भ राशि - वायु तत्त्व १२. मीन राशि - जल तत्त्व
|
जातक की जो
जन्म राशि हो, उसी के तत्त्व को हंसक के खाने में लिखना चाहिए।
युंजा परिचय
षड्वर्गीय
कुण्डली में ``युंजा'' भी लिखा होता है। कुल २७ नक्षत्र होते हैं। ६ नक्षत्र का पूर्वयुंजा १२
नक्षत्र का मध्यभाग के मध्ययुंजा तथा ९ नक्षत्र का परभाग अन्त्ययुंजा होता है। इसे
ही युंजा कहते हैं। पूर्वभाग के ६ नक्षत्र रेवती, अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी तथा मृगशिरा पूर्वयुंजा - मध्यभाग के १२ नक्षत्र-
आद्र्रा,
पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा तथा अनुराधा मध्ययुंजा एवं परभाग के ९ नक्षत्र -
ज्येष्ठा,
मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतमिषा, पूर्वाभाद्रपद तथा उत्तराभाद्रपद पर या अन्त्ययुंजा होता
है। जातक का जन्म नक्षत्र जिस भाग में पड़े वही भाग कुण्डली में लिखना चाहिए।
वर्ग विचार
षड्वर्गीय
कुण्डली में ``वर्ग स्थिते'' लिखा रहता है। इसका अर्थ है, जातक की जन्म राशि का नाम किस वर्ग में आता है। कुल ८ वर्ग
होते हैं। इसमें जो अक्षर आते हैं, वह इस प्रकार हैं —
वर्ग स्वामी १. अ - वर्ग
- अ, ई, उ, ए, ओ गरुड २. क - वर्ग - क, ख, ग, घ, ङ मार्जार ३. च - वर्ग
- च, छ, ज, झ, ञ
सिंह ४. ट - वर्ग
- ट, ठ, ड, ढ़, ण श्वान ५. त - वर्ग
- त, थ, द, ध, न सर्प ६. प - वर्ग
- प, फ, ब, भ, म
मूषक ७. य - वर्ग
- य, र, ल, व मृग ८. श - वर्ग - श, ष, स, ह मेष |
अपने से पंचम वर्ग से वैर, चतुर्थ से मित्रता तथा तीसरे से समता होती है। जातक की जन्म की राशि का पहला अक्षर जिस वर्ग में पड़े वही वर्ग लिखना चाहिए। जैसे- राशि नाम-पन्नालाल का पहला अक्षर प है, जो प वर्ग में पड़ता है। अत: कुण्डली में प वर्ग लिखना चाहिए।
वर्ग-गण-नाड़ी
पञ्चाङ्गों
में - प्रत्येक नक्षत्र के नीचे, राशि, वर्ण, वश्य, योनि, राशिस्वामी, गण तथा नाड़ी का नाम लिखा रहता है। उसे देखकर जातक का जो
जन्म नक्षत्र हो, उसके नीचे लिखे वर्ण, गण-नाड़ी आदि लिखना चाहिए। पञ्चाङ्गों में राशि स्वामी के
लिए ``राशीश'' लिखा रहता है। राशि स्वामी, राशीश तथा राशिपति - का एक ही अर्थ है। उस राशि का ग्रह
अर्थात् राशि का स्वामी ग्रह ही राशीश कहा जाता है। कृत्तिका नक्षत्र के नीचे १/३
लिखा है। मृगशिरा नक्षत्र में २-२ लिखा है। अत: यदि अपना जन्म नक्षत्र कृत्तिका का
प्रथम चरण है, तो मेष राशि, क्षत्रिय वर्ण, भौम राशीश होगा। यदि कृत्तिका २-३-४ चरण है,
तो वृष राशि, वैश्य वर्ण तथा शुक्र राशीश होगा। इसी तरह सर्वत्र समझना
चाहिए।
राशि और उसके स्वामी
कुल २७
नक्षत्र होते हैं। १-१ नक्षत्र में ४-४ चरण होते हैं। ९-९ चरण की १-१ राशि होती
है। कुल १२ राशियां हैं - जो इस प्रकार हैं — १. मेष, २. वृष, ३. मिथुन, ४. कर्वâ, ५. सिंह, ६. कन्या, ७. तुला, ८. वृश्चिक, ९. धनु, १०. मकर, ११. कुम्भ तथा १२. मीन इन १२ राशियों के स्वामी इस प्रकार है —
१. मेष - मंगल, २. वृष - शुक्र, ३. मिथुन - बुध, ४. कर्वâ - चन्द्र, ५. िंसह - सूर्य, ६. कन्या - बुध, ७. तुला - शुक्र, ८. वृश्चिक - मंगल, ९. धनु - गुरु, १०. मकर - शनि, ११. कुम्भ - शनि तथा १२. मीन - गुरु। राहु तथा केतु छाया
ग्रह हैं। ये दोनों किसी राशि के स्वामी नहीं होते हैं।
स्थानीय समय बनाना
भारत के रेखांश
८२० •
३०' में जातक के जन्म नगर के रेखांश का अन्तर करे। जो शेष बचे
उसमें ४ से गुणा करें। जो गुणनफल आयेगा, वह मिनट - सेकण्ड होगा। इस मिनट सेकण्ड को अपने समय में घटा
या जोड़ दें। यही जातक का शुद्ध जन्म समय होगा। यदि अपने जन्म नगर का रेखांश ८२० •
३०' से अधिक है तो अपने जन्म नगर के रेखांश में ८२० •
३०' घटा दें। जो शेष बचे उसे ४ से गुणा करें। यह गुणनफल
मिनट-सेकण्ड होगा। इस मिनट - सेकण्ड को जातक जन्म समय के मिनट-सेकण्ड में जोड़ दें
- यह अपना शुद्ध जन्म समय होगा।
वेलान्तर
पुस्तक में
वेलान्तर सारिणी लिखी होती है। वेलान्तर सारिणी में ऊपर मास तथा पाश्र्व में तारीख
लिखी होती है। जातक के अंग्रेजी जन्म मास-तारीख को सारिणी में देखें। माह - तारीख
के सामने कोष्ठक (खाने) में जो अंक मिले, उसे ले लें। यह अंक मिनट होगा। सारिणी में मिनट के पहले ऋण
(-) अथवा (±) का चिह्न बना रहता है। अत: ऋण (-) मिनट लिखा है, उसे मिनट को अपने जन्म शुद्ध समय में घटा दें। जहाँ धन (±)
मिनट लिखा है, उस मिनट को अपने शुद्ध समय में जोड़ दें। यही जातक का
स्थानीय शुद्ध जन्म समय होगा।
अयनांश साधन
जिस वर्ष का
अयनांश बनाना हो, उस वर्ष के शक में से १८०० घटाकर,
शेष गत वर्ष को दो स्थानों में रखें। प्रथम स्थान के शेष
में ७० से भाग दें तो लब्धि में अंश आता है। इसके शेष में ६० का गुणा कर पुन: ७०
से भाग दें तो लब्धि में कला आयेगी। इसके शेष में ६० का गुणा कर पुन: ७० से भाग
दें तो लब्धि में विकला प्राप्त होगी। ये पहिले शेष के अंशादि लब्धि होते हैं।
द्वितीय स्थान में रखे हुए शेष (शाके में से १८०० घटाकर जो शेष लाये हैं) गत वर्ष
में ५० से भाग दें तो लब्धि में कला, इसके शेष में ६० से गुणा कर पुन: ५० से भाग दें तो लब्धि
में विकला प्राप्त होगी। ये दूसरे शेष के कलादि होते हैं। प्रथम लब्धि के अंशादि
में से द्वितीय लब्धि के कलादि घटाकर शेष में २२ अंश,
८ कला, ३३ विकला जो़ ध्रुवांक है, दें तो अयनांश बन जाता है। इस अयनांश में प्रत्येक माह का
अयनांश जोड़ देने से स्पष्ट अयनांश बन जाता है।
उदाहरणार्थ -
शक १९२४ का अयनांश साधन करना है तो शक में १८०० घटाया। १९२४-१८०० •
१२४ गत वर्ष। पुन: १२४ में ७० का भाग दिया तो लब्ध अंश १
शेष ५४ में ६० का गुणा किया तो ३२४० आया। इसमें पुन: ७० का भाग दिया तो लब्धि ४६
कला आयी,
पुन: शेष २० में ६० का गुणा किया तो १२०० में ७० का भाग
दिया तो लब्धि १७ विकला हुई। अर्थात् १ अंश ४६ कला १७ विकला हुआ। अब पुन: गतवर्ष
१२४ में ५० से भाग दिया तो लब्धि २ कला तथा शेष २४ में ६० का गुणा किया तो १४४०
में पुन: ५० का भाग दिया तो लब्धि २८ विकला आयी। अर्थात् २ कला २८ विकला हुई। अब
प्रथम लब्धि अंशादि में द्वितीय प्राप्त कलादि को घटाया तो १।४३।४९ इसमें ध्रुवांक
२२।८।३३ जोड़ दिया तो २३।५२।२२ अयनांश सिद्ध हुआ।
उदाहरण -
जो लोग अधिक
गणित से बचना चाहते हैं, उन्हें अयनांश की सरल विधि जान लेनी चाहिए। एक वर्ष में
अयनांश की गति ५० विकला के लगभग होती है। वर्ष में १२ मास होते हैं,
अत: १२ मास में ५० विकला अयनांश चलता है तो एक मास में ४
विकला १० प्रतिकला अयनांश की गति होती है। इसी प्रकार दो मास में ८ विकला २० प्रति
कला गति होगी, तीन मास में १२ विकला ३० प्रतिकला ४ मास में १६ विकला ४० प्रतिकला गति होगी।
इसी प्रकार यदि शाके १९२४ में स्पष्ट सूर्य के ४।० राश्यादि पर रहने पर अयनांश
जानना हो तो ४ मास की अयनांश गति १६ विकला ४० प्रतिकला वर्ष के अयनांश में जोड़
दें।
वाह बहोत खुब
जवाब देंहटाएंवैर वर्ग ज आणि र चालतो का लग्नासाठी
जवाब देंहटाएंयुंजा म्हणजे काय ?
जवाब देंहटाएंक्या ज्योतिष पर आपकी लिखित कोई पुस्तक बाजार या आनलाइन उपलब्ध है कृपया जानकारी दे.जिस से फलित ज्योतिष की भी जानकारी हो सके धन्यवाद
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