ज्योतिष विद्या

ज्योतिष शास्त्र भगवान् वेद का प्रधान अंग चक्षु कहा गया है। यह शास्त्र केवल वेदों का ही नेत्र नहीं है अपितु यह लोक का भी नेत्र है।  यज्ञयागादि अनुष्ठानों के लिये काल को प्रकाशित करने के कारण ज्योतिष शास्त्र की नेत्र संज्ञा है। ज्योतिषशास्त्रवेत्ता को भूत, भविष्य के साथ अतीन्द्रिय पदार्थों का भी प्रत्यक्ष बोध हो जाता है।  भविष्य जानने की इच्छा सभी युगों में मनुष्यों के मन में सर्वदा प्रबल रही है जिसकी परिणति यह फलित ज्योतिष है। कृषि, व्यापार, उद्योग, यज्ञ, सदाचार, धर्म, नौकरी, तथा जीवन यात्रा हेतु शुभकाल निर्णय के लिये ज्योतिष ही एकमात्र साधन है। ज्योतिष शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए उणादि आचार्यों ने `द्युतेरिसिन्नादेश्च ज:कहकर इस शब्द की निष्पत्ति किया है। अर्थात् ``द्युत् दीप्तौ'' धातु से इसिन् प्रत्यय तथा दकार को जकारादेश करके ज्योतिष् या ज्योति: शब्द बना, पुन: ``अर्शआदिभ्यो अच्'' (५।२।१२७) से अच् प्रत्यय करके ज्योतिष अकारान्त शब्द निर्मित हुआ है। पुन: ``तदधिकृत्य कृतो ग्रन्थ:'' इस पाणिनीय सूत्र से अण् प्रत्यय करने पर ज्यौतिष शब्द निष्पन्न होता है जिसका अर्थ होगा ज्योतिष सम्बन्धी सिद्धान्त या ग्रन्थ।
 इसे ज्योतिष शास्त्र से कर्मों करने के लिए श्रेष्ठ काल तथा उत्तम मुहूर्त जाना जा सकता है । कृषि आदि कर्मों में जौ, चना, मटर, गेहूँ, धान आदि का काल अलग-अलग है। इसी तरह मुहूर्त की उपयोगिता यज्ञादि कर्म के लिये है। शुभ समय जानने के लिये कालमान का जानना आवश्यक होता है। काल भी शुभाशुभ मिश्रित रहता है जैसे सृष्टि निर्माण में ब्रह्मा जी ने अच्छे बुरे दोनों को मिलाकर अर्थात् गुणदोषमयी सृष्टि बनायी है, उसी प्रकार काल भी गुणदोष युक्त है। कोई भी काल न तो सर्वथा निर्दोष है और न ही सर्वथा गुणवान। जैसा कि आचार्य बृहस्पति का कथन है
                    स्वभावादेव कालोऽयं शुभाशुभसमन्वित:।
                    अनादि निधनो सर्वो न निर्दोषो न निर्गुण:।। (बृहस्पति संहिता१/१४)
         ऐसी स्थिति में शुभाशुभ काल का निर्धारण आवश्यक हो जाता है। भारतीय ज्योर्तिवदों ने त्रुटि से लेकर प्रलय अर्थात् कल्पान्त पर्यन्त गणनाओं को सूक्ष्म विधि से निकालने का स्तुत्य कार्य किया है। भारतीय मनीषी आदिकाल से ही लौकिक एवं पारलौकिक सुख प्राप्ति हेतु यज्ञानुष्ठान करना अपना परम कर्तव्य मानते रहे हैं। कौन यज्ञ कब सम्पादित किये जायें इसका ज्ञान सूर्य एवं चन्द्रमा की गति, स्थिति एवं भिन्न भिन्न तिथियों नक्षत्रों पर आधारित थी, यही कारण है कि वशिष्ठादि ऋषियों ने इस शास्त्र को काल विधायक शास्त्र कहा है।
           क्रतुक्रियार्थं श्रुतय: प्रवृत्ता: कालाश्रयास्ते क्रतवो निरुक्ता:।
           शास्त्रादमुष्मात्किल कालबोधो वेदाङ्गताऽमुष्य तत: प्रसिद्धा।। (वशिष्ठ संहिता १/४)
ऋषियों ने नक्षत्रों, ग्रहों एवं राशियों का ज्योतिष नामकरण किया।
Share:

1 टिप्पणी:

अनुवाद सुविधा

ब्लॉग की सामग्री यहाँ खोजें।

लोकप्रिय पोस्ट

जगदानन्द झा. Blogger द्वारा संचालित.

मास्तु प्रतिलिपिः

इस ब्लॉग के बारे में

संस्कृतभाषी ब्लॉग में मुख्यतः मेरा
वैचारिक लेख, कर्मकाण्ड,ज्योतिष, आयुर्वेद, विधि, विद्वानों की जीवनी, 15 हजार संस्कृत पुस्तकों, 4 हजार पाण्डुलिपियों के नाम, उ.प्र. के संस्कृत विद्यालयों, महाविद्यालयों आदि के नाम व पता, संस्कृत गीत
आदि विषयों पर सामग्री उपलब्ध हैं। आप लेवल में जाकर इच्छित विषय का चयन करें। ब्लॉग की सामग्री खोजने के लिए खोज सुविधा का उपयोग करें

समर्थक एवं मित्र

सर्वाधिकार सुरक्षित

विषय श्रेणियाँ

ब्लॉग आर्काइव

संस्कृतसर्जना वर्ष 1 अंक 1

संस्कृतसर्जना वर्ष 1 अंक 2

संस्कृतसर्जना वर्ष 1 अंक 3

Sanskritsarjana वर्ष 2 अंक-1

Recent Posts

लेखानुक्रमणी

लेख सूचक पर क्लिक कर सामग्री खोजें

अभिनवगुप्त (1) अलंकार (3) आधुनिक संस्कृत गीत (16) आधुनिक संस्कृत साहित्य (5) उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान (1) उत्तराखंड (1) ऋग्वेद (1) ऋषिका (1) कणाद (1) करवा चौथ (1) कर्मकाण्ड (47) कहानी (1) कामशास्त्र (1) कारक (1) काल (2) काव्य (18) काव्यशास्त्र (27) काव्यशास्त्रकार (1) कुमाऊँ (1) कूर्मांचल (1) कृदन्त (3) कोजगरा (1) कोश (12) गंगा (1) गया (1) गाय (1) गीति काव्य (1) गृह कीट (1) गोविन्दराज (1) ग्रह (1) छन्द (6) छात्रवृत्ति (1) जगत् (1) जगदानन्द झा (3) जगन्नाथ (1) जीवनी (6) ज्योतिष (20) तकनीकि शिक्षा (21) तद्धित (11) तिङन्त (11) तिथि (1) तीर्थ (3) दर्शन (19) धन्वन्तरि (1) धर्म (1) धर्मशास्त्र (14) नक्षत्र (2) नाटक (4) नाट्यशास्त्र (2) नायिका (2) नीति (3) पतञ्जलि (3) पत्रकारिता (4) पत्रिका (6) पराङ्कुशाचार्य (2) पर्व (2) पाण्डुलिपि (2) पालि (3) पुरस्कार (13) पुराण (3) पुस्तक (1) पुस्तक संदर्शिका (1) पुस्तक सूची (14) पुस्तकालय (5) पूजा (1) प्रतियोगिता (1) प्रत्यभिज्ञा शास्त्र (1) प्रशस्तपाद (1) प्रहसन (1) प्रौद्योगिकी (1) बिल्हण (1) बौद्ध (6) बौद्ध दर्शन (2) ब्रह्मसूत्र (1) भरत (1) भर्तृहरि (2) भामह (1) भाषा (1) भाष्य (1) भोज प्रबन्ध (1) मगध (3) मनु (1) मनोरोग (1) महाविद्यालय (1) महोत्सव (2) मुहूर्त (1) योग (5) योग दिवस (2) रचनाकार (3) रस (1) रामसेतु (1) रामानुजाचार्य (4) रामायण (4) रोजगार (2) रोमशा (1) लघुसिद्धान्तकौमुदी (46) लिपि (1) वर्गीकरण (1) वल्लभ (1) वाल्मीकि (1) विद्यालय (1) विधि (1) विश्वनाथ (1) विश्वविद्यालय (1) वृष्टि (1) वेद (6) वैचारिक निबन्ध (26) वैशेषिक (1) व्याकरण (46) व्यास (2) व्रत (2) शंकाराचार्य (2) शरद् (1) शैव दर्शन (2) संख्या (1) संचार (1) संस्कार (19) संस्कृत (15) संस्कृत आयोग (1) संस्कृत कथा (11) संस्कृत गीतम्‌ (50) संस्कृत पत्रकारिता (2) संस्कृत प्रचार (1) संस्कृत लेखक (1) संस्कृत वाचन (1) संस्कृत विद्यालय (3) संस्कृत शिक्षा (6) संस्कृत सामान्य ज्ञान (1) संस्कृतसर्जना (5) सन्धि (3) समास (6) सम्मान (1) सामुद्रिक शास्त्र (1) साहित्य (7) साहित्यदर्पण (1) सुबन्त (6) सुभाषित (3) सूक्त (3) सूक्ति (1) सूचना (1) सोलर सिस्टम (1) सोशल मीडिया (2) स्तुति (2) स्तोत्र (11) स्मृति (12) स्वामि रङ्गरामानुजाचार्य (2) हास्य (1) हास्य काव्य (2) हुलासगंज (2) Devnagari script (2) Dharma (1) epic (1) jagdanand jha (1) JRF in Sanskrit (Code- 25) (3) Library (1) magazine (1) Mahabharata (1) Manuscriptology (2) Pustak Sangdarshika (1) Sanskrit (2) Sanskrit language (1) sanskrit saptaha (1) sanskritsarjana (3) sex (1) Student Contest (2) UGC NET/ JRF (4)