संस्कृत से रोजगार

भारतीय भाषाओं में संस्कृत भाषा सबकी जननी भाषा रही है। यह देववाणी सुरभारती, गीर्वाणगिरा, देवभाषा, गीर्वाणवाणी इत्यादि अनेक नामों से सुसज्जित की जाती रही है। आज आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में संस्कृत की स्थिति तथा इसको पढ़ने वाले छात्रों के समक्ष रोजगार की स्थिति का परिणाम अच्छा नहीं है। संस्कृत भाषा को जहां विकसित देश सीखने - सीखाने व इस भाषा के जानकर को सहजता से रोजगार देने की स्थिति में है, ठीक उसी तरह हम विकासशील देश इस भाषा के जानकार को परम्परागत नौकरी देने के अलावा नवीनतम नौकरी के अवसर देने मे अक्षम है। कहने के लिए संस्कृत कम्प्यूटर में इस्तेमाल के लिए सबसे अच्छी भाषा है-फोडर्स पत्रिका 1987 परन्तु इस क्षेत्र में संस्कृत पढ़ने वालो को नौकरी के अवसर की साक्षात् व्यवस्था नहीं है। अगर कहीं है भी वहां संस्कृत के साथ कम्प्यूटशनल संस्कृत (जे00यू0) संस्कृत पढ़ने के बाद सम्भव है। इसी प्रकार योग एक नया विषय उभरकर सामने आया है, जिससे स्व रोजगार किया जा सकता है।
नवीनतम रोजगार
इस कम्प्यूटेशनल संस्कृत से पी0एच0डी0 करने के बाद सी-डैक कम्पनी में बहुत युवा कार्यरत है। इस शिक्षा को संस्कृत विश्वविद्यालयों, संस्थान के विभिन्न केंद्रो पर समुचित रूप से पढने का पाठयक्रम लागू होना चाहिए, ताकि ये अवसर अधिक से अधिक छात्रों को मिल सके। इस भाषा की समुचित योग्यता तथा अवसर की उपलब्धता पर रोजगार के अवसर निर्भर है। भारत में रोजगार के अवसर हेतु संस्कृत की योग्यता के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा की योग्यता चार चांद लगाता है। यूं कहे अंग्रेजी को साधन बनाकर संस्कृत को साध सकते है।

  एक संस्कृत का छात्र परम्परागत संस्कृत पढ़कर मध्यमा से स्नातकोत्तर, गवेषक, की उपाधि प्राप्त करता है परन्तु बी0एड0,नेट/जे00आर0एफ0, computatioral Sanskrit पढ़ने के बाद ये रोजगार पाते है। बिना बी0एड0 नेट/जे0आर0एफ00 किये सिविल सविर्सेज के क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं है। संस्कृत पढ़ने वाले छात्र को तात्कालिक लाभ यथा पूजा-पाठ-हवन-श्राद्ध, कथा वाचन आदि करवाकर रोजगार के अवसर से बचना चाहिए। छात्र भविष्योन्नमुखी दृष्टिकोण रखे। एकतरफा ज्ञान सिर्फ संस्कृत विषय का ही नहीं रखे । सामान्य अध्ययन, जी0के/जी0एस0 को भी पढ़े।  मध्यमा/मैट्रिक (समकक्षता दसवीं) से संस्कृत की वास्तविक योग्यता के साथ-साथ करेंट अफेयर्स पढ़ना शुरू कर दें । इससे रोजगार के अनेक द्वार यथा - संस्कृत समाचार वाचक, अनुवादक की नौकरी आसानी से पाया जा सकता है। IAS, IPS,IRS,IFS हेतु एक विषय ‘‘संस्कृत’’ लेकर अच्छे अंक प्राप्त किये जा सकते है। राज्यस्तरीय लोकसेवा आयोग यथा- उत्तर प्रदेश में लोअर पी सी एस, समीक्षा अधिकारी, लोअर सर्वाडिनेट आदि में एक विषय संस्कृत के रूप में ले तथा हिन्दी व्याकरण की समुचित जानकारी रखें। अगर आपने वाकई संस्कृत पढ़ा है तो हिन्दी व्याकरण वस्तुनिष्ठ, पत्र-लेखन, निबंध लेखन, संक्षेपण, गद्यांश आदि में अच्छे नम्बर लाकर एक अच्छे प्रशासक बन सकते है। संस्कृत विषय को पढ़कर अनेक परीक्षाओं में जहां सीधा लाभ होता है, वहीं अनेक परीक्षाओं में परोक्ष लाभ होता है। यदि आपने स्नातक तक अच्छे से संस्कृत व्याकरण पढ़ा है तो आपको सामान्य हिन्दी में, निबन्ध लेखन की शुद्धता में, मुख्य परीक्षा लेखन में वर्तनी शुद्धता में अप्रत्यक्ष लाभ होता है। साथ ही साथ आज सी0एस00टी0 के तहत ‘‘कम्प्रीहन्सन’’ से पूछे गये सवालों, जिसमें आप देखेगें शब्द की तीनों शक्ति, अभिधा, लक्षणा, व्यजना का सीधे प्रयोग को समझ सकते हैं। एक साधारण संस्कृत विषय में योग्यता रखने वाला छात्र तत्सम निष्ठ हिन्दी  का उत्तर , हिन्दी जानने वालों से बेहतर तेजी से, अच्छी तरह  व सहज रूप से दे सकता है। मैं आपको एक रोचक जानकारी दूं । आज आई00एस0 की नवीण पाठ्यक्रम के अनुसार लिखित परीक्षा के चतुर्थ पत्र में ‘‘नीतिशास्त्र, सत्यनिष्ठा और अभिक्षमता’’ है। इस विषय की समझ जितना अच्छा संस्कृत विषय का जानकार को होता है, उतना अन्य विषय के लोगों को नहीं, क्योंकि संस्कृत का नींव ही आचार, विचार की शुद्धता व नैतिकता व ईमानदारी के बल पर है। मैं मानता हूं कि संस्कृत पढ़ने वालो में विचार शुद्धता के साथ-साथ सत्यनिष्ठा भी रहती है। परन्तु सिविल सेवा हेतु इन उपरोक्त गुणों के साथ प्रशासनिक क्षमता का विकास भी अनिवार्य है। नीति शास्त्र पढ़कर कोई भी तब तक नैतिक नहीं हो सकता जब तक कि व्यवहार में वह उसे न उतारे। हम कहाँ-कहाँ अनैतिक काम कर रहे है इस बात की स्पष्ट समझ नीतिशास्त्र पढ़ने के बाद हो जाएगी। नैतिक मूल्यों और मानक नियमों का एक संवर्ग है, जिसे समाज अपने ही ऊपर लागू करता है । यह व्यवहार, विकल्पों और कार्यवाईयों के मार्ग दर्शन में सहायता करता है । वास्तविकता यह है कि कोई भी मूल्य या मानक नियम अपने आप के नैतिक व्यवहार में उतारने के लिए एक ईमानदार संस्कृति (रिबस्ट कल्चर) की सख्त जरूरत होती है। ये सारे गुण अध्यात्म के सबसे करीब संस्कृत विषय और इस विषय को जानने वाला जितना अपने समाज, धर्म, मानव धर्म, राष्ट्रधर्म को समझ सकता है, अनुभूत कर सकता है, उतना अन्य प्रोफेशनल विषय के जानकर नहीं। अतः अवसर को सुअवसर में बढ़ाने का समय है। इस परीक्षा की तैयारी में एक मात्र संस्कृत विषय के योग्य बनकर आप निबंध (प्रथम पत्र), इतिहास संस्कृति (द्वितीय पत्र) तथा (चतुर्थ पत्र) में अच्छे अंक ला सकते हैं। अर्थात् ‘‘संस्कृत’’ से स्नातक करने का वास्तविक लाभ इस परीक्षा में उठाया जा सकता है। वास्तविक लाभ उठाने वाले बहुत से छात्र है। जैसे- किशोर कुणाल, मुक्तानंद अग्रवाल, वंदना त्रिपाठी आदि। जिन्होंने संस्कृत को जीया है और आज संस्कृत उन्हें समाज में जिन्दा करके मिशाल कायम किया है। घिसी-पिटी परम्परागत रोजगार के अवसर से हटकर योग्यता के आधार पर संस्कृत से नवीनतम रोजगार पायें यथा-संस्कृत सम्भाषण सीखकर अंग्रेजी मीडियम के स्कूल में अच्छी नौकरी पायें।
संस्कृत का अल्पकालीन प्रशिक्षण रोजगार का द्वार खोलता है

आज संस्कृत का कई अल्पकालीन प्रशिक्षण पाठ्यक्रम उपलब्ध हो गया, जो तीन माह से लेकर एक वर्ष का होता है। ऐसे विषयों में ज्योतिष, कर्मकाण्ड, योग, नाट्य, संस्कृत सम्भाषण आदि प्रशिक्षण हैं। इसे सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान आदि संस्थायें संचालित करती है। इसमें योग्य अध्यापक सायं काल में गहन प्रशिक्षण देते हैं। 

ज्योतिष 
एक ऐसा एकलौता विषय है, जिसकी मांग सम्पूर्ण भारत में हैं। इसको करने के बाद ज्योतिष परामर्श केन्द्र खोला जा सकता है। आप दूरदर्शन में रोजगार पा सकते हैं। आज सैकड़ों चैनल हैं, जिन्हें ज्योतिषियों की आवश्यकता है। समाचार पत्रों में राशिफल से लेकर व्रत त्यौहारों के बारे में लेख प्रकाशित होते हैं। इससे आप रोजगार पा सकते हैं। ज्योतिष और कर्मकाण्ड में गहरा सम्बन्ध है। एक सफल ज्योतिषी दो- चार कर्मकाण्डियों को रोजगार उपलब्ध कराता है।
कर्मकाण्ड
शहरी क्षेत्र से लेकर ग्रामीण क्षेत्र तक कर्मकाण्ड के जानकारों की मांग है। कर्मकाण्ड सीखने के साथ कम्प्यूटर की जानकारी रखने से रोजगार में अपार वृद्धि होती है। आज कर्मकाण्ड का क्षेत्र संगठित रोजगार का रूप लेता जा रहा है। इसमें कम्प्यूटर, मोबाईल की महती भूमिका है। इसपर आप ऑनलाइन पूजन सामग्री की विक्री कर सकते हैं। कुछ लोगों ने अलग- अलग पूजा के लिए अलग – अलग पूजा थाल बनाकर विक्री करना आरम्भ किया है। लोगों को यदि सुविधा चाहिए तो आप सुविधा देकर ही रोजगार कर सकेंगें। वाट्सअप ग्रूप बनाकर समय – समय पर पर्व, व्रत, त्यौहार की सही जानकारी दे सकते हैं। इससे आप अपने यजमान के निकट बने रह सकते हैं।
           ओला और उबर कम्पनी के पास एक भी कार नहीं है, फिर भी यह कम्पनी दूर देश से आकर हमारे देश के अनेक शहरों में परिवहन की सुविधा देने लगी है। इसी प्रकार होटल व्यवसाय आदि की स्थिति है। ठीक उसी प्रकार आप भी तकनीक का प्रयोग करते हुए अपने घर बैठे रोजगार के लिए अवसर सृजित कर सकते हैं। आज के परिवेश में लोगों को घर बैठे सुविधायें और जानकारी मिलने लगी है। आप भी कर्मकाण्ड करने और कराने के लिए वेबसाइट बनवा सकते हैं। सोशल मीडिया पर अपने व्यवसाय के बारे में जानकारी दे सकते हैं। एक बार लोगों का विश्वास जीत लेने के बाद घन वर्षा सुनिश्चित है। 

             संस्कृत सम्भाषण सीख कर ‘‘गीता उच्चारण पाठ केंद्र’’ नवरात्रि के अवसर पर ‘‘शुद्ध उच्चारण दुर्गासप्तशती पाठ केंद्र’’ खोलकर, ज्योतिष विषय के साथ साक्षात् रोजगार के अवसर हैं। ‘‘अंकशास्त्र/अंकविज्ञान केंद्र’’ आयुर्वेद के सामान्य जानकारी से आप-आयुर्वेदिक औषधि हेतु ‘‘आयुर्वेदिक पौधे की खेती कैसे करे’’ आदि से सम्बन्धित सूचनात्मक केंद्र खोल सकते हैं। (सीमैप) से संपर्क करके बढ़ावा दे सकते है। आज का कार्पोरेट समूह अपने कर्मचारियों को ध्यान केन्द्रों में भेजने लगे हैं। निष्ठा तथा आत्मविश्वास पैदा करने वाले प्रेरक व्यक्ति की सप्ताहान्त कक्षाओं में लाखों लोगों को देखा जा रहा है। वहाँ पर संस्कृत के ग्रन्थों यथा योग वाशिष्ठ, गीता आदि के सन्दर्भों को मिलाकर अपनी दुकान चला रहे हैं।
            संस्कृत उच्चारण से मानव शरीर का तांत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है, जिससे व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश (पासिटिव चार्ज) के साथ सक्रिय हो जाता है-संदर्भ अमेरिकन हिन्दू यूनिवर्सिटी। इससे सम्बन्धित छात्र जो सिर्फ प्रतियोगिता तक शुद्ध श्लोक उच्चारण प्रतियोगिता तक सीमित रह जाते है वे संस्कृत उच्चारण रोग उपचार केंद्र’’ खोल सकते है और उन्हें अच्छे-अच्छे श्लोक के माध्यम से तनाव मुक्त कर सकते है। आज इसके लिए अनेक चिकित्सक प्रयासरत हैं। केंद्र से तात्पर्य छोटा क्लिनिक/दुकान इससे आप बी0पी0, मधुमेह, कोलेस्ट्राल, अनिद्रा का समुचित उपाय संभव है।
            संस्कृत के समुन्नत ज्ञान ज्योतिष, योग, आयुर्वेद, पंचकर्म, अष्टांगिक मार्ग, यम-नियम, ध्यान-प्राणायाम, आदि की सामान्य जानकारी लेकर अपना रोजगार खुद खड़ा कर सकते है। वास्तव में मनुष्य अपना शिल्पकार स्वयं है, संस्कृत अगर मातृभाषा है। सभी भाषाओं की ही नहीं, अपितु ज्ञानपरम्परा की अतुलनीय भंडार है तो रोजगार नहीं दे सकती ?नवीनतम सृजन करने की क्षमता एक मात्र इसी भाषा में है, अतः हमें नासा के एक रिपोर्ट को याद रखना चाहिए, जिसमें कहा गया है-छठी  पीढ़ी के सुपर कम्प्यूटर संस्कृत भाषा पर आधारित बना रहा है जिससे सुपर कम्प्यूटर अपनी अधिकतम सीमा तक उपयोग किया जा सके सीमा (2025) छठी पीढ़ी के लिए एक भाषा क्रान्ति होगी, जिसमें अग्रवाणी हमारी संस्कृत भाषा होगी। भाषा कोई भी हो सम्मानीय है। सीखना चाहिए परन्तु रोजगारपरक भाषा भारत में आज सीखने की होड़ है।
            वैश्वीकरण के युग में जहाँ भारत को विश्व सिर्फ बाजार के दृष्टिकोण से देखता है और यहां के लोग जर्मन, फ्रेंच, जैपनीज, पुर्तगीज, चायनीज सीख कर अपने को रोजगार उन्मुख बना रहे है। वहीं इन भाषाओं से मुद्रा कमाने वाले जब धन से धनपति बनते है और मानसिक भूख पैसे की समाप्त नहीं होती है तो मनोरोग के शिकार, मानसिक पीड़ा के शिकार लोग दानकर्म, चैरिटी ट्रस्ट आदि में पैसा लगाकर मन को शांत करते है। हमारी भाषा संस्कृत उन लोगों को अन्तिम तौर से मानसिक शांति, आध्यात्मिक शांति देने का कार्य अपने विभिन्न माध्यमों से करेगी। यही संस्कृत अन्तिम उद्धार की भाषा भी बनेगी। सम्पूर्ण रोजगार की भाषा भी बनेगी। अतः संस्कृत शोधर्थियों योग्य बनो। योग्यता के अवसर कदम चूम लेगें।
            संस्कृत भाषा के स्वरुप का विश्लेषण करने पर हम अतीतकालीन, मध्यकालीन और वर्तमानकालीन तीनों स्वरूपों का साक्षात्कार करते है। इस भाषा की अतीतकालीन संपदा पर हमारी भारतीय संस्कृति टिकी हुई है जिसका अक्षरशः उपभोग कर भारत आज फिर से विश्वगुरू बनने को तत्पर है। अपनी अतुलनीय असाधारण सांस्कृतिक प्रतिभा के कारण का रहस्य एक मात्र हमारी संस्कृत भाषा है।
वर्तमान परिदृश्य में संस्कृत शिक्षा
संस्कृत शिक्षा की स्थिति को लेकर आज सभी लोग चिंतित हैं। माध्यमिक विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय  तक के अध्यापक विद्यालयों में अपेक्षा से कम नामांकन को लेकर काफी परेशान है। कुछ अध्यापक नामांकन के समय सक्रिय होकर कार्यसाधक संख्या जुटा लेते हैं। अधिकारी भी संस्कृत अध्ययन केन्द्रों की लचर व्यवस्था तथा छात्र संख्या की कमी से अवगत है। दुर्भाग्य से समाज में भी इन विद्यालयों को लेकर नकारात्मक संदेश जा रहा है। संस्कृत विषय लेकर पढ़ने वालों की लगातार गिरती संख्या को लेकर कुछ लोग रोजगार पर ठीकरा फोड़ते हैं। कुछ लोग अंग्रेजी शिक्षा को कोसकर चुप हो जाते हैं।

 
सबसे बड़ी समस्या सकारात्मक सोच का अभाव
वस्तुतः संस्कृत के समक्ष बहुमुखी समस्या है । उसमें सबसे बड़ी समस्या है, सकारात्मक सोच का अभाव। यदि हम शिक्षा को रोजगार से जोड़कर देखते हैं तो बहुत हद तक भ्रम में है। धनार्जन से शिक्षा का बहुत अधिक संबंध नहीं होता, क्योंकि हम यह देखते हैं कि अधिकांश धनिक कम पढ़े लिखे होते हैं। कुछ लोग कार्य विशेष में योग्यता रखने के के कारण धन अर्जित करते हैं, परंतु उन्हें शिक्षित नहीं कहा जा सकता। शिक्षित व्यक्ति को समसामयिक समस्या, जीवन जीने की कला तथा जीवन से जुड़े हर मुद्दे की समझ होती है। शिक्षा वह तत्व है, जो व्यक्ति को जीवन की प्रत्येक विधा में पारंगत बना देती है। समस्या यह है कि हम शिक्षा का उद्येश्य नौकरी पाना मान बैठे हैं। आज विश्व में कोई भी शिक्षा शत प्रतिशत रोजगार की गारंटी नहीं देती। दूसरी बात कोई भी भाषा रोजगार नहीं देती अपितु भाषा में निहित ज्ञान रोजगार देता है। अब आप पर निर्भर करता है कि आप संस्कृत भाषा में निहित ज्ञान का उपयोग किस प्रकार कर पाते हैं।

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3 टिप्‍पणियां:

  1. On most forums Sanskrit is highly praised for it's Subhaashits and grammar. Hindi needs to take a lead by translating and composing all Subhaashits in rhyming poetic form to challenge Sanskrit propagators. So why not contact some Hindi poets? Other regional languages may follow Hindi's lead in this direction. This Sanskrit craze putting extra burden on students can be taken away by translating all Sanskrit literature in Hindi. Modern Sanskrit literature may not be praised the way the old literature is praised. Most Sanskrit pundits are promoting Sanskrit at the cost of their mother tongues. Also these pundits are fluent in English and are willing to translate Sanskrit literature in English but not in regional languages. Most Sanskrit literature is available in English but not in regional languages.Why?

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    उत्तर
    1. गोस्वामी तुलसीदास से लेकर भारतेन्दु,निराला और आज तक संस्कृत के सुभाषितों, धा्र्मिक ग्रन्थों का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद होता आ रहा है। आज भी संस्कृत के अनेक ग्रन्थ मिथिलाक्षर, बंग आदि लिपियों में लिखी है। इनका लिप्यन्तरण या भाषान्तरण नहीं हो सका, जैसा कि भोट में लिखे बौद्ध साहित्य का लिप्यन्तरण कर प्रकाशित किया जा रहा है। संस्कृत की लगभग 30 से 40 हजार पुस्तकें, जो देवनागरी में है, हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित है। हजारों वर्षों तक श्रुति तथा लिखित परम्परा को कुछ ही समय में अनुदित तथा लिप्यन्तरण करना श्रम साध्य है। एक आमंत्रण नामक लेख में मैंने लिखा है कि -
      संस्कृत भाषा में विविध ज्ञात विषयों पर अबतक लगभग 10 लाख से अधिक ग्रन्थ लिखे गये हैं। इन ग्रन्थों में से लगभग आधे पुस्तकों का ही प्रकाशन हो पाया है। अप्रकाशित पुस्तकों को पाण्डुलिपि कहा जाता है। वैदिक ग्रन्थ सभी प्रकार के ज्ञान-विज्ञान का मूल उद्गम माना जाता है। उपनिषदों में मन और मस्तिष्क दोनों को तार्किक दृष्टि से सन्तुष्ट करने की चेष्टा की गयी है। यहां आभ्यन्तर और अप्रत्यक्ष, अभौतिक विषयों के लिये तर्कोपस्थिति, कथानक आदि माध्यम द्वारा सरल और स्वाभाविक ढ़ंग अपनाया गया है। स्मृतियों एवं धर्मशास्त्रों में आचार-विचार, उपासना, हिन्दू रीति-रिवाज, जीवन व्यवस्था आदि के परिचय के साथ ही इसके पीछे निगूढ़ तत्वदर्शिता को भी अनावृत किया गया है। उपनिषदों, स्मृतियों एवं धर्मशास्त्रों में अनेक ऐसे पारिभाषिक शब्द आते है, जिनका अपने सन्दर्भ में विशेष महत्व हैं। ऐसे पारिभाषिक शब्दों के अन्य भाषाओं में अनुवाद के समय विशेष सावधानी की आवश्यकता होती हैं, अन्यथा उन शब्दों की आत्मा, उसके वातावरण एवं विशेष जीवन्तता खत्म ही नहीं होती अपितु अनर्थकारी व्याख्या प्रस्तुत करते हैं।

      संस्कृत ग्रन्थों को एक आमंत्रण के रूप में लिया जाना चाहिए। किसी भी आमंत्रण को अकारण उपेक्षा न की जाय।
      आप द्वारा उठाये शेष मुद्दे लम्बी बहस की ओर ले जाने वाला है। आप एक एक विषय को उठायें। मैं चर्चा को तैयार हूँ।

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