भारतीय मनीषा में यह उक्ति—“अष्टाध्यायी जगन्माता, अमरकोशो जगत्पिता” केवल काव्यात्मक प्रशंसा नहीं, बल्कि भारतीय ज्ञान-परम्परा की बुनियादी संरचना को व्यक्त करने वाला एक गम्भीर सिद्धान्त है। यह कथन स्पष्ट करता है कि शब्द और व्याकरण के बिना कोई भी ग्रन्थ, कोई भी शास्त्र, कोई भी दर्शन न तो सही प्रकार से समझा जा सकता है और न ही यथार्थ रूप में व्याख्यायित किया जा सकता है।
• अष्टाध्यायी को जगन्माता कहने का कारण: यह पाणिनि द्वारा रचित संस्कृत व्याकरण का मूल ग्रंथ है, जिसमें लगभग 4,000 सूत्र हैं जो भाषा की संरचना, ध्वनि, शब्द-रचना और वाक्य-निर्माण के नियम निर्धारित करते हैं। यह भाषा को जन्म देने और पोषण देने जैसा कार्य करता है, इसलिए इसे सभी भाषाओं (विशेषकर भारतीय भाषाओं) की माता माना जाता है। यह वेदों की भाषा को शुद्ध रूप प्रदान करता है।
• अमरकोश को जगत्पिता कहने का कारण: अमरसिंह द्वारा रचित यह संस्कृत का प्राचीनतम समानार्थी शब्दकोश (थिसॉरस) है, जिसमें 10,000 से अधिक शब्दों के समानार्थक दिए गए हैं। यह भाषा को अर्थपूर्ण और विस्तृत बनाने का कार्य करता है, जैसे पिता परिवार को समृद्ध करता है। यह काव्य, दर्शन और शास्त्रों में शब्दों की गहराई समझने में सहायक है।
• माता-पिता का दर्जा क्यों?:
यह एक लोकप्रिय कहावत है जो इन ग्रंथों की पूरकता दर्शाती है—अष्टाध्यायी बिना व्याकरण के भाषा अधूरी है, अमरकोश बिना शब्दकोश के अर्थहीन। पारंपरिक शिक्षा में इन्हें बाल्यकाल में ही रटाया जाता था, क्योंकि ये संस्कृत के 'माता-पिता' की भांति ज्ञान का आधार हैं। शोध बताते हैं कि ये ग्रंथ बिना संस्कृत के कोई भारतीय शास्त्र समझना असंभव बनाते हैं।
• उपयोगिता का सार: ये ग्रंथ संस्कृत को समझने का द्वार हैं, जो वेदों से लेकर ज्योतिष तक सभी शास्त्रों की भाषा है। उदाहरणस्वरूप, वेदों की शुद्ध उच्चारण के लिए अष्टाध्यायी आवश्यक है, जबकि पुराणों के काव्यात्मक वर्णनों के लिए अमरकोश। तथ्यों से सिद्ध: पाणिनि की अष्टाध्यायी वेदांगों (व्याकरण) का हिस्सा है, जो वेदों को समझने के लिए अनिवार्य है; अमरकोश ने 60+ टीकाओं को जन्म दिया, जो दार्शनिक ग्रंथों की व्याख्या में सहायक हैं।
अष्टाध्यायी और अमरकोश की भूमिका
संस्कृत भाषा में आधारभूत महत्व अष्टाध्यायी (लगभग 500 ई.पू.) संस्कृत को शास्त्रीय रूप देने वाला प्रथम पूर्ण व्याकरण है, जो 14 महेश्वर सूत्रों पर आधारित है। यह भाषा की ध्वन्यात्मकता (शिक्षा) और अर्थ-रचना (निरुक्त) को जोड़ता है। अमरकोश (लगभग 6ठी शताब्दी ई.) त्रिवर्ग (स्वर्ग, पृथ्वी, समुद्र) में विभाजित है, जो शब्दों को श्रेणीबद्ध करता है। ये दोनों मिलकर भाषा को जीवंत बनाते हैं।
वेदों, उपनिषदों और पुराणों में सहायता वेद संस्कृत में हैं, जहां शुद्ध व्याकरण (अष्टाध्यायी) उच्चारण त्रुटि रोकता है—जैसे ऋग्वेद के मंत्रों में स्वर-लोप।
अमरकोश उपनिषदों के गहन शब्दों (जैसे 'ब्रह्मन्', 'आत्मन्') के 30+ समानार्थकों से अर्थ स्पष्ट करता है। पुराणों (जैसे विष्णु पुराण) के काव्य में अमरकोश के शब्द वर्णन को समृद्ध करते हैं।
स्मृति, धर्मशास्त्र और भारतीय दर्शन में स्मृतियां (मनुस्मृति) और धर्मशास्त्र (याज्ञवल्क्य स्मृति) में नियमों की व्याख्या के लिए व्याकरण आवश्यक है। दर्शन (न्याय, वेदांत) में बहसें संस्कृत में हैं; अष्टाध्यायी वाक्य-विश्लेषण सिखाता है, अमरकोश अवधारणाओं (जैसे 'धर्म', 'कर्म') के पर्यायों से बहुआयामी समझ देता है।
आचार, जीवन मूल्य, साहित्यिक कृतियां और कला शास्त्र में आचार ग्रंथ (नित्याचार) में नैतिक शब्दावली अमरकोश से आती है। साहित्य (महाभाष्य, भर्तृहरि) में पाणिनि नियम अनिवार्य हैं। कला शास्त्र (नाट्यशास्त्र) में संवाद-रचना अष्टाध्यायी पर आधारित है।
वैज्ञानिक क्षेत्रों (कृषि, भूगोल, इतिहास, पुरातत्व, खगोल, गणित, ज्योतिष) में ये ग्रंथ संस्कृत-आधारित शास्त्रों को सुलभ बनाते हैं:
• कृषि विज्ञान: वृक्षायुर्वेद में पौधों के नाम अमरकोश से, व्याकरण से विधियां।
• भूगोल: महाभारत के भू-वर्णन में अष्टाध्यायी की संरचना।
• इतिहास/पुरातत्व: पुराणों के वंशावलियां अमरकोश के शब्दों से।
• खगोल/गणित: आर्यभट्टीय में सूत्र-शैली पाणिनि से प्रेरित है; ज्योतिष (बृहत्संहिता) में ग्रह-नाम अमरकोश से लिया गया है।
ये तथ्य प्राचीन टीकाओं (पतंजलि महाभाष्य, क्षीरस्वामिन टीका) से सिद्ध हैं, जो इन ग्रंथों को वेदों का 'अंग' मानते हैं।
अष्टाध्यायी और अमरकोश का भारतीय ज्ञान-परंपरा में स्थान
यह सर्वेक्षण प्राचीन भारतीय ग्रंथों की गहन पड़ताल पर आधारित है, जहां अष्टाध्यायी और अमरकोश को भाषा के 'माता-पिता' का द
र्जा दिया गया है। यह दर्जा केवल रूपक नहीं, बल्कि व्यावहारिक आवश्यकता है, क्योंकि संस्कृत बिना इनके अपूर्ण है। हम यहां इनकी उत्पत्ति, कारण, और विभिन्न शास्त्रों में उपयोगिता को तथ्यों से सिद्ध करेंगे, जिसमें वेदों से ज्योतिष तक का विस्तार होगा। यह विश्लेषण विद्वानों की टीकाओं, ऐतिहासिक संदर्भों और आधुनिक शोधों पर टिका है।
र्जा दिया गया है। यह दर्जा केवल रूपक नहीं, बल्कि व्यावहारिक आवश्यकता है, क्योंकि संस्कृत बिना इनके अपूर्ण है। हम यहां इनकी उत्पत्ति, कारण, और विभिन्न शास्त्रों में उपयोगिता को तथ्यों से सिद्ध करेंगे, जिसमें वेदों से ज्योतिष तक का विस्तार होगा। यह विश्लेषण विद्वानों की टीकाओं, ऐतिहासिक संदर्भों और आधुनिक शोधों पर टिका है।
उत्पत्ति और माता-पिता का दर्जा: ऐतिहासिक संदर्भ-
"अष्टाध्यायी जगन्माता अमरकोशो जगत्पिता" एक प्राचीन लोकप्रिय कहावत है, जो पारंपरिक संस्कृत शिक्षा में प्रयुक्त होती है। यह 6ठी शताब्दी के चीनी यात्री ह्वेन त्सांग के यात्रा-वृत्तांत से भी जुड़ती है, जहां वे भारत के प्रत्येक घर में इन ग्रंथों के पाठ का उल्लेख करते हैं।
• अष्टाध्यायी की मातृत्व: पाणिनि (लगभग 500 ई.पू.) ने 10 पूर्ववर्ती व्याकरण-स्कूलों को संक्षिप्त कर 3,959 सूत्रों में संस्कृत को शुद्ध किया। यह वेदांग 'व्याकरण' का मूल है, जो भाषा को 'जन्म' देता है—जैसे ध्वनि-प्रवाह (शिक्षा वेदांग) से शब्द-निर्माण तक। विद्वान भर्तृहरि (5वीं शताब्दी) इसे 'वाक्यपदीयम्' में वेदों का 'अंग' कहते हैं। माता का दर्जा इसलिए, क्योंकि यह भाषा को पोषित और संरचित बनाती है, बिना जिसके भारतीय भाषाएं (हिंदी, तमिल आदि) अपनी जड़ें खो देंगी।
• अमरकोश की पितृत्व: अमरसिंह (गुप्त काल, 4-6ठी शताब्दी) ने 'नामलिंगानुशासन' नामक इस थिसॉरस में 10 वर्गों (स्वर्ग, दिक्, समय आदि) में शब्दों को वर्गीकृत किया। चंद्रगुप्त द्वितीय के नवरत्नों में अमरसिंह का उल्लेख मिलता है। पिता का दर्जा इसलिए, क्योंकि यह शब्द-भंडार प्रदान करता है—जैसे 'अग्नि' के 34 समानार्थक। क्षीरस्वामिन (11वीं शताब्दी) की टीका में इसे 'कवियों का धन' कहा गया।
यह दर्जा सिद्ध होता है 60+ अमरकोश टीकाओं (जैन, बौद्ध, ब्राह्मण) से, जो दर्शाती हैं कि ये ग्रंथ धार्मिक सीमाओं से परे हैं। आधुनिक भाषाविज्ञान में पाणिनि को 'कंप्यूटर भाषा का जनक' कहा जाता है, क्योंकि उनके सूत्र एल्गोरिदमिक हैं।
वेदों, उपनिषदों और पुराणों में उपयोगिता
संस्कृत वेदों की भाषा है, जहां त्रुटि मोक्ष-मार्ग बाधित करती है। अष्टाध्यायी वेदों के प्रत्यक्ष (ऋग्वेद) और अप्रत्यक्ष (उपनिषद) भागों के व्याकरण को स्पष्ट करता है। उदाहरण: बृहदारण्यक उपनिषद के 'नेति नेति' वाक्य में सूत्र 1.1.1 (वृद्धिरादैच) से संज्ञा-रचना समझ आती है। अमरकोश उपनिषदों के दार्शनिक शब्दों (ब्रह्मन् के 20+ पर्याय) को विस्तार देता है।
पुराणों (18 मुख्य) में काव्य-शैली है; अष्टाध्यायी की संधि-प्रक्रिया विष्णु पुराण के वर्णनों को सटीक बनाती है। अमरकोश पुराणों के प्रतीकात्मक शब्दों (जैसे 'कल्प' के समानार्थक) से मिथकों की गहराई खोलता है। तथ्य: पतंजलि के महाभाष्य (2री शताब्दी ई.पू.) में अष्टाध्यायी को वेद-समझने का 'प्रमाण' कहा गया।
स्मृति शास्त्र, धर्मशास्त्र और भारतीय दर्शन में भूमिका
स्मृतियां (मनु, याज्ञवल्क्य) और धर्मशास्त्र (पराशर) में विधि-नियम संस्कृत में हैं। अष्टाध्यायी इनके वाक्य-विश्लेषण (जैसे कारक-भेद) से अर्थ निर्धारित करता है। दर्शन (षड् दर्शन: न्याय, सांख्य आदि) में बहसें पाणिनि-सूत्रों पर आधारित हैं—जैसे वेदांत सूत्रों में 'तत् त्वमसि' की व्याकरणिक व्याख्या की जाती है। अमरकोश दार्शनिक अवधारणाओं (धर्म के 50+ पर्याय) से बहु-दृष्टिकोण देता है।
तथ्य: जयंत भट्ट (9वीं शताब्दी) के न्यायरत्नाकर में अमरकोश को दर्शन-व्याख्या का आधार माना गया।
आचार, जीवन मूल्य और साहित्यिक कृतियों में-
आचार ग्रंथ (गृह्यसूत्र) में नैतिकता के शब्द अमरकोश से आते हैं। जीवन मूल्य (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) उपनिषदों से जुड़े, जहां अष्टाध्यायी शुद्धता सुनिश्चित करता है। साहित्य (रामायण, कालिदास) में पाणिनि नियम काव्य-छंद बनाते हैं। अमरकोश काव्य में अलंकार (उपमा आदि) के लिए शब्द प्रदान करता है।
तथ्य: भामह (7वीं शताब्दी) के काव्यालंकार में अमरकोश का हवाला मिलता है।
कला शास्त्र, कृषि विज्ञान, भूगोल, इतिहास, पुरातत्व में -
कला शास्त्र (नाट्यशास्त्र) में संवाद अष्टाध्यायी की शब्द संरचना पर आधारित है। अमरकोश भाव-शब्द देता है। कृषि (कृषि पाराशर) में फसल-नाम अमरकोश से लिया गया है। रामायण, श्रीमद्भागवत तथा पुराणों में वर्णित भूगोल (जंबूद्वीप वर्णन) में अष्टाध्यायी की संरचना पर आधारित है। इतिहास/पुरातत्व (पुराण वंशावली) में शब्द-विश्लेषण मिलते हैं, जो कि तद्धित प्रत्ययों को जाने विना समझना कठिन है।
खगोल, गणित, ज्योतिष ग्रंथों में -
खगोल (सूर्य सिद्धांत) और गणित (लीलावती) के सूत्र पाणिनि-शैली के हैं। ज्योतिष (बृहत् ज्योतिष) में ग्रह-नाम अमरकोश से, व्याकरण से गणना प्राप्त करता है। तथ्य यह है कि आर्यभट्ट (5वीं शताब्दी) के ग्रंथ पाणिनि से प्रेरित है।
नीचे दी गई तालिका दर्शाती है कि ये ग्रंथ बहुआयामी हैं। शोध (जैसे एम.एम. पटकर की 'संस्कृत कोश-इतिहास') से सिद्ध: अमरकोश ने वैश्विक अनुवाद (चीनी, तिब्बती) को जन्म दिया। अष्टाध्यायी बिना वेद अपठनीय है।
संक्षेप में, ये ग्रंथ भारतीय ज्ञान का आधार हैं, जो भाषा के माध्यम से दर्शन से विज्ञान तक जोड़ते हैं। बिना इनके, शास्त्र 'मृत' हैं।
लेखक - जगदानन्द झा, लखनऊ






कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें