लेखक- त्रिविक्रमभट्ट।
पिता- नेमादित्य।
ई.-10 वीं शती।
विषय- महाराज नल व भीमसुता
दमयंती की प्रणय कथा ।
प्रस्तुत काव्य का विभाजन 7 उच्छ्वासों में किया गया है।
प्रथम उच्छ्वास- इसका प्रारंभ चंद्रशेखर भगवान् शंकर व कवियों के वाग्विलास की प्रशंसा से हुआ है। सत्काव्य-प्रशंसा, खल-निंदा व सज्जन प्रशंसा के पश्चात् वाल्मीकि व्यास, गुणाढ्य व बाण की प्रशंसा की गई है। तदनंतर वर्षा वर्णन के बाद एक उपद्रवी शूकर का कथन किया गया है, जिसे मारने के लिये राजा नल आखेट के लिये प्रस्थान करता है। आखेट के कारण थके हुए नल का शालवृक्ष के नीचे विश्राम करना वर्णित है। इसी बीच दक्षिण देश से आया हुआ पथिक दमयंती का वर्णन करता है। पथिक ने यह भी सूचना दी कि दमयंती के समक्ष राजा नल की भी प्रशंसा किसी पथिक द्वारा हो रही थी। उसके रूपसौंदर्य का वर्णन सुनकर दमयंती के प्रति नल का आकर्षण होता है और पथिक चला जाता है।
द्वितीय
उच्छ्वास - इसमें वर्षा काल की समाप्ति व शरद् ऋतु का आगमन, विनोद के हेतु घूमते हुए नल के समक्ष हंसों की मंडली उतरती
है। उनमे से एक को नल पकड लेता है। आकाशवाणीद्वारा यह सूचना प्राप्त होती है कि
दमयंती को आकृष्ट करने के लिये यह हंस दूतत्व करेगा राजा दमयंती के विषय में हंस
से पूछता है। हंस कुंडिनपुर के राजा भीम व उनकी रानी प्रियंगुमंजरी का वर्णन करता
हैं।
तृतीय
उच्छ्वास- रानी प्रियंगुमंजरी को दमनक मुनि के वरदान से दमयंती कन्या
होती है। उसके शैशव, शिक्षा एवं तारुण्य का वर्णन है।
चतुर्थ
उच्छ्वास- हंस द्वारा दमयंती के सौंदर्य का वर्णन सुनकर राजा नल की
उत्कंठा बढती है। हंस-विहार, हंस का
कुंडिनपुर जाना व नल के रूप-गुण का वर्णन सुनकर दमयंती रोमांचित होती है। नल के
लिये सालंकायन का उपदेश, वीरसेन द्वारा सालंकायन की नीति का
समर्थन, नल का राज्याभिषेक वर्णन, पत्नी
के साथ वीरसेन का वानप्रस्थ अवस्था व्यतीत करने हेतु वन-प्रस्थान व पिता के अभाव
में नल की उदासीनता का वर्णन है।
पंचम
उच्छ्वास- नल के गुणों का वर्णन श्रवण कर दमयंती के मन में नल विषयक
उत्कंठा होती है। वह नल को देने के लिए हंस को अपनी हारलता देती है। दमयंती के
स्वयंवर की तैयारी, उत्तर दिशा में निमंत्रण देने जाने वाले
दूत से दमयंती की श्लिष्ट शब्दों में बातचीत, सेना के साथ नल
का विदर्भ देश से लिये प्रस्थान, नर्मदा के तट पर इंद्रादि
लोकपालों द्वारा दमयंती- दौत्य-कार्य में नल की नियुक्ति। लोकपालों का दूत बनने के
कारण नल चिंतित होता है, श्रुतशील नल को सांत्वना देता है।
षष्ठ उच्छ्वास- इसमें प्रभात काल और विंध्याटवी का वर्णन है। विदर्भ देश
के मार्ग में दमयंती का दूत पुष्कराक्ष दमयंती का प्रणयपत्र नल को अर्पित करता है।
नल व पुष्कराक्षसंवाद। पयोष्णी-तट पर सेना का विश्राम, दमयंती द्वारा प्रेषित किन्नरमिथुन द्वारा दमयंती वर्णन-
विषयक गीत, रात्रि में नल का विश्राम, प्रातः
अग्रिम यात्रा की तैयारी व कुंडिनपुर में नल के आगमन के उपलक्ष्य में हर्ष।
सप्तम
उच्छ्वास- इसमें नल के समीप विदर्भराज का आगमन, अन्यान्य कुशल-प्रश्न. दमयंती द्वारा भेजी गई किरात कन्याओं
का नल के समीप आगमन। नलद्वारा प्रवर्तक, पुष्कराक्ष व
किन्नरमिथुन दमयंती के पास भेजे जाते हैं। नल का मनोविनोद व औत्सुक्य, दमयंती के यहां से पर्वतक लौट कर अंतःपुर एवं दमयंती का वर्णन करता है।
इंद्र के वर प्रभाव से कन्यांतःपुर में नल का प्रकट होना व दमयंती तथा उसकी सखियों
का विस्मय। नल-दमयंती का अन्योन्य दर्शन व तन्मूलक रसानुभूति। नलद्वारा दमयंती के
समक्ष इन्द्र का संदेश सुनाया जाता है। दमयंती विषण्ण होती है। दयमंती के भवन से
नल प्रस्थान करता है और उत्कंठापूर्ण स्थिति में हर-चरण-सरोजध्यान के साथ किसी
भांति नल रात्रि यापन करता है।
शोभनम्
जवाब देंहटाएं