• कालिन्दी
एक गीति काव्य है।
• इसमें
131 संस्कृत गीत हैं।
• गीतों
में देवी देवताओं के गीत, भारत माता का गीत,
ऋतु गीत सहित आतंकवाद, भ्रूण हत्या आदि
समसामयिक विषयों पर गीत हैं। इसका एक गीत पढ़ें-
» वर्षणम्
आगता मेघमाला नभो मण्डलम् । दीयते कृष्णमेघैर्जलं पुष्कलम्।।
दृश्यते भास्करो नाद्य तेजोधनः । वर्तते चान्धकारस्तु गाढो घनः ।।
अम्बरञ्चाभवद् वारिदैः श्यामलम्। दीयते कृष्णमेघैर्जलं पुष्कलम्।।
श्रूयते चाम्बुदानां महागर्जनम्। लक्ष्यते कानने बर्हिणां नर्तनम् ।।
पीयते प्राणिवर्गैर्नवीनं जलम्। दीयते कृष्णमेघैर्जलं पुष्कलम्।।
तोयदैः सत्वरं दुन्दभी वाद्यते । दामिनीनर्तनं व्योम्नि सम्भ्राजते ।।
दर्दुरैर्गीयते सस्वरं मङ्गलम्। दीयते कृष्णमेघैर्जलं पुष्कलम्।।
वारिराशिर्नदीनां द्रुतं वर्धते । पर्वतैर्विन्दुघातो भृशं सह्यते ।।
वर्षया सुन्दरं भाति भूमेस्तलम् । दीयते कृष्णमेघैर्जलं पुष्कलम्।।
सप्तवर्णैर्युतं वै नभः प्राङ्गणे। ऐन्द्रचापन्नु दृष्ट्वा च सायंतने ।।
जायते मानसे भूरि कौतूहलम् । दीयते कृष्णमेघैर्जलं पुष्कलम्।।
गीतभारतम् से साभार-
भारतं स्वतन्त्रं जातं रे
गायत गायत भो समवेताः भारतं स्वतन्त्रं जातं रे
जातो निरङ्कुशो हिमालयः प्राङ्गणं स्वतन्त्रं जातं रे।।
आत्मीये भारतराष्ट्रे भो आत्मीयाः शासनकर्तारः
नो राजा कोऽपि प्रजा न वा, द्वयमपि स्वतन्त्रं जातं रे ।।
प्राणाहुतयो दत्ता वीरैः स्वातन्त्र्यमवाप्तुं दिवङ्गताः
अवशिष्टानां सौख्यं सम्प्रति, जीवनं स्वतन्त्रं जातं रे ।।
आकाश्मीरात् सिन्धुं यावद् भारतमेकतासूत्रबद्धम्
उत्थाप्य त्रिवर्णध्वजं करे घोषयति स्वतन्त्रं जातं रे !!
स्वातन्त्र्यमवाप्तं सौभाग्यात् दौर्भाग्याद्राष्ट्रं
विखण्डितम्
नो हास्यं नो रोदनं मुखे, ननु गृहं स्वतन्त्रं जातं रे !!
झञ्झाया हन्त विपाकोऽयं, किं भविता को ननु जानीते
आद्योन्मेषः
में पाँच उन्मेष
हैं,
जिनमें से पहली है देश की स्तुति, दूसरे
उन्मेष में देवताओं की स्तुति है, तीसरे उन्मेष में गुरु की
स्तुति है, चौथे उन्मेष में समसामयिक और पाँचवें उन्मेष में
विविध रचनायें हैं। इस प्रकार यहाँ 51 रचनाओं का संकलन किया गया है। देश की स्तुति
नमामि भव्यभारतम्
भारतम् से आरम्भ होता है। दिल्ली शतक इसका खास आकर्षण है।
यह आचार्य रमाकान्त
शुक्ल की कविता 'भाति मे भारतम्'
से पूरी तरह प्रभावित है। पुन: देवताओं की
स्तुति में संस्कृत भाषा के स्तुतियों का भी विस्तार से वर्णन किया गया है। गुरु
की स्तुति में लेखक के
सभी
गुरुओं का अभिवादन और अभिनंदन निहित है । समसामयिक उन्मेष में देश की समस्याओं को उठाया
गया है। विभिन्न रचनाओं में होली के गीत,
कहानियाँ, संस्मरण, शुभकामनाएँ,
व्हाट्सएप वार्तालाप और फेसबुक वार्तालाप शामिल हैं।
इस
संकलन में स्रग्विणी, पंचचामर, शिखरिणी, द्रुतविलम्बित, स्रग्धरा,
अनुष्टुप्, शार्दुलविक्रीडित, तोटक, वसन्ततिलका, मन्दाक्रान्ता,
आर्या, मालिनी, शालिनी, इन्द्रवज्रा, उपजाति आदि छन्दों का प्रयोग किया गया
है। इसके साथ ही इसमें व्रजलोकगीती, नौटंकीगीति आदि का भी
प्रयोग किया गया है।
कवि परिचय




















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