एहि एहि स्वागतं
विधेहि सौभगं प्रदेहि
सुन्दरी
शरत्समागता।।
मन्दमन्दपावनप्रसूनगन्धसंकुलः
स्पर्शसौख्यदायकः
प्रवाति शीतलोऽनिलः।
निर्वृतिप्रदायिनी
समस्ततापहारिणी
श्रेयसी
शरत्समागता।।1।।
नष्टसर्वदूषणा
विधौतपङ्कनिर्मला
स्वच्छवारिवाहिनी
पयस्विनी स्फुरज्जला
हृत्प्रसादिनी
विनष्टसर्वचित्तकल्मषा
पावनी
शरत्समागता।। 2।।
संयमेन
शान्तकच्छकोद्वहत्सरोघटा
कृच्छ्रमेव
बिभ्रती स्खलत्सरिच्छिरःपटा
ग्रामबालिकेव
सम्भ्रमेण सृतिविहारिणी
षोडशी
शरत्समागता।।3।।
स्वर्णशालिभूषणा
प्रवृद्धकासभासुरा
मन्थरैः
पदक्रमैश्च हंसनादनूपुरा
लज्जया प्रसह्य
भूरुहैर्हि गुण्ठितानना
मुग्धिका
शरत्समागता।।4।।
चन्द्रिकाम्बरा
निरभ्रशुभ्रकेशकुन्तला
शीर्षके हि
चन्द्रबिन्दुमण्डितेव सत्कला
चन्दनाङ्किताङ्वीतगरागसाधिकानिभा
तापसी शरत्समागता।।5।।
लेखिका- डाॅ0 नवलता
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