लघुसिद्धान्तकौमुदी (तद्धिते प्राग्दिशीयाः)

अथ प्राग्‍दिशीयाः

१२०० प्राग्‍दिशो विभक्तिः
दिक्‍छब्‍देभ्‍य इत्‍यतः प्राग्‍वक्ष्यमाणाः प्रत्‍यया विभक्तिसंज्ञाः स्‍युः ।।
सूत्रार्थ - दिक्शब्देभ्यः. इस सूत्र से पहले के सूत्रों के द्वारा जो प्रत्यय कहे जायेंगे उनकी विभक्तिसंज्ञा होती है।
१२०१ किंसर्वनामबहुभ्‍योऽद्व्‍यादिभ्‍यः
किमः सर्वनाम्‍नो बहुशब्‍दाच्‍चेति प्राग्‍दिशोऽधिक्रियते ।।
सूत्रार्थ - दिक्शब्देभ्यः से पहले जो प्रत्यय कहे गये हैं, वे किम्, सर्वनाम शब्द और बहु शब्द से होते हैं। द्वि आदि शब्दों से ये प्रत्यय नहीं होते हैं। 
१२०२ पञ्चम्‍यास्‍तसिल्
पञ्चम्‍यन्‍तेभ्‍यः किमादिभ्‍यस्‍तसिल् वा स्‍यात् ।।
सूत्रार्थ - पञ्चम्यन्त किम् आदि शब्दों से विकल्प से तसिल् प्रत्यय होता है। 
तसिल् में इ और ल् की इत्संज्ञा तथा लोप होकर तस् शेष रहता है। 
१२०३ कु तिहोः
किमः कुः स्‍यात्तादौ हादौ च विभक्तौ परतः । कुतःकस्‍मात् ।।
सूत्रार्थ - तकारादि और हकारादि विभक्ति परे होने पर किम् शब्द को क आदेश होता है।
कुतः, कस्मात्- (किससे, कहाँ से)- इस विग्रह में पञ्चम्यन्त किम् शब्द से 'पञ्चम्यास्तसिल्' से तसिल् प्रत्यय, इ और ल् की इत्संज्ञा तथा लोप, किम् + इसि । तसिल इस स्थिति में 'कृत्तद्धितसमासाश्च' से प्रातिपदिकसंज्ञा तथा 'सुपो धातुप्रातिपादिकयोः' से 'ङसि' का लोप, 'कुतिहोः' से किम् को 'कु' आदेश, कु + तस् प्रातिपदिकसंज्ञा, सु प्रत्यय, अव्यय होने से सु का लोप तथा 'स्' को रुत्व-विसर्ग होकर 'कुतः' रूप बनता 
तसिल् के अभाव पक्ष में 'कस्मात्' रूप बनता है। 
विशेष-प्राग्दिशीय प्रत्ययों से बने शब्द अव्यय होते हैं। (तद्धितश्चासर्वविभक्तिः)। 

तसिल् आदि प्रत्यय पञ्चम्यन्त सुबन्त आदि शब्दों से होते हैं। जैसे-किम् + ङसि + तस्। सुप् का लोप हो जाता है। यह प्रक्रिया आगे के प्रयोगों में भी समझनी चाहिए। 
१२०४ इदम इश्
प्राग्‍दिशीये परे । इतः ।।
सूत्रार्थ - प्राग्दिशीय प्रत्यय परे होने पर इदम् को इशु आदेश होता है। व्याख्या-इश् में 'इ' शेष रहता है। 

इतः, अस्मात् (इससे, यहाँ से)- इस विग्रह में पञ्चम्यन्त इदम् शब्द से 'पञ्चम्यास्तसिल्' से तसिल (तस्) प्रत्यय, इदम् + डसि + तस्, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा इसि का लोप, 'इदम् इश' से 'इदम्' को 'इश' आदेश होता है। प्रातिपदिकसंज्ञा सु प्रत्यय, अव्यय होने से सु का लोप तथा 'स्' को रुत्व-विसर्ग होकर 'इतः' रूप बनता है। 
१२०५ अन्
एतदः प्राग्‍दिशीये । अनेकाल्‍त्‍वात्‍सर्वादेशः । अतः । अमुतः । यतः । ततः । बहुतः । द्व्‍यादेस्‍तु द्वाभ्‍याम् ।।
सूत्रार्थ - प्राग्दिशीय प्रत्यय परे होने पर 'एतद्' शब्द को 'अन्' आदेश होता है। व्याख्या-'अन्' में 'अ' शेष रहता है। 
यह पूरा सूत्र 'एतदोऽन्' है। योगविभाग के द्वारा 'एतदः' और 'अन' ये दो सूत्र बनाये गये हैं। 
अनेकालत्वादिति-अनेक वर्णों वाला होने से सम्पूर्ण एतद् शब्द के स्थान पर अन् । आदेश होता है। 

अतः-एतस्मात् (इससे, इसलिए)-इस विग्रह में पञ्चम्यन्त एतद शब्द से 'पञ्चम्यास्तसिल' से तसिल (तस) प्रत्यय होता है। एतद् + डसि + तस, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा उसि का लोप, 'अन्' से एतद् को अन् (अ) आदेश, प्रातपदिकसंज्ञा, स् प्रत्यय, सलोप तथा स् को रुत्व-विसर्ग होकर 'अतः' रूप बनता है। 
अमुतः-अमुष्मात् (उससे)-इस विग्रह में पञ्चम्यन्त अदस् शब्द से ‘पञ्चम्यास्तसिल्' से तसिल (तस्) प्रत्यय, अदस् + ङसि + तस्, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा इसि का लोप, अदस् । तस्, 'त्यदादीनामः' से सकार को अकार तथा पूर्व अकार का 'अतोगुणे' से पररूप, अद + तस् इस स्थिति में 'अदसोऽसेर्दादुदोमः' से दकार से अगले अकार को उकार और दकार को मकार होकर अमु + तस् यह स्थिति हुईं, प्रातिपदिकसंज्ञा, सु प्रत्यय, सु का लोप, 'स्' को रुत्व-विसर्ग होकर 'अमुतः' रूप बनता है। 
यतः, यस्मात् (जिससे)-इस विग्रह में पञ्चम्यन्त यद शब्द से ‘पञ्चम्यास्तसिल्' से तसिल (तस्) प्रत्यय, यद् + ङसि + तस्, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा इसि का लोप, 'त्यदादीनामः' से दकार को अकार, पूर्व अकार को 'अतोगुणे' से पररूप, य + तस् = यतस्, प्रातिपदिकसंज्ञा, सु प्रत्यय, सु का लोप, स् को रुत्व-विसर्ग होकर 'यतः' रूप बनता 
ततः, तस्मात् (उससे, वहाँ से)-इस विग्रह में पञ्चम्यन्त तद् शब्द से 'पञ्चम्यास्तसिल्' से तसिल् (तस्) प्रत्यय, तद् + डसि + तस्, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा इसि का लोप, 'त्यदादीनामः' से दकार को अकार, पूर्व अकार का 'अतोगुणे' से पररूप, त + तस्, प्रातिपदिकसंज्ञा, सु प्रत्यय, सुलोप, स् को रुत्व-विसर्ग होकर 'ततः' रूप बनता है। । 
बहुतः, बहोः (बहुतों से)-इस विग्रह में पञ्चम्यन्त 'बहु' शब्द से 'पञ्चम्यास्तसिल्' से तसिल (तस्) प्रत्यय, बहु + ङसि + तस्, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा डसि का लोप, बहु + तस् = बहुतस्, प्रातिपदिकसंज्ञा, सु प्रत्यय, सु का लोप, 'स्' को रुत्व-विसर्ग होकर 'बहुतः' रूप बनता है। 
दयादेरिति- द्वि आदि सर्वनाम शब्दों से प्राग्दिशीय प्रत्यय नहीं होते हैं। अतएव द्वि आदि शब्दों को पञ्चमी में 'द्वाभ्याम्' आदि रूप बनेगा। 
१२०६ पर्यभिभ्‍यां च
आभ्‍यां तसिल् स्‍यात् । परितः । सर्वत इत्‍यर्थः । अभितः । उभयत इत्‍यर्थः ।।
सूत्रार्थ - परि और अभि से तसिल् प्रत्यय होता है। 
परितः-सर्वत्र (चारों ओर)-इस विग्रह में 'परि' शब्द से 'पर्यभिभ्यां च' से तसिल (तस्) प्रत्यय, परि + तस् = परितस्, प्रातिपदिकसंज्ञा, सु प्रत्यय और सु का लोप, स् को रुत्व-विसर्ग होकर 'परितः' रूप बनता है। 

अभितः । उभयतः (दोनों ओर)-इस विग्रह में अभि शब्द से 'पर्यभिभ्यां च' से तसिल (तस) प्रत्यय, प्रातिपदिकसंज्ञा, सु प्रत्यय, सु का लोप और स् को रुत्वविसर्ग होकर 'अभितः' रूप बनता है।
१२०७ सप्‍तम्‍यास्‍त्रल्
कुत्र । यत्र । तत्र । बहुत्र ।।
सूत्रार्थ - सप्तम्यन्त किम् आदि शब्दों से बल् प्रत्यय होता है। व्याख्या-त्रल् में 'त्र' शेष रहता है। 
कुत्र-कस्मिन् (किसमें, कहाँ)-इस विग्रह में सप्तम्यन्त किम् शब्द से 'सप्तम्यास्त्रल' से त्रल् (त्र) प्रत्यय होता है। किम् + डि +त्र, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा डि का लोप, किम् + च, 'कु तिहोः' से किम् को कु आदेश, क + त्र = कुत्र, प्रातिपदिकसंज्ञा, सु प्रत्यय, अव्यय होने से सु का लोप होकर 'कुत्र' रूप बनता है। यत्र-यस्मिन् (जहाँ, जिसमें)-इस विग्रह में सप्तम्यन्त 'यद्' पद से 'सप्तम्यास्त्रल' से 'बल्' () प्रत्यय यद् + डि + त्र, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा डि का लोप, 'त्यदादीनामः' से दकार को अकार और पूर्व अकार का 'अतोगुणे' से पररूप, य +त्र = यत्र, प्रातिपदिकसंज्ञा, सु प्रत्यय तथा सु का लोप होकर 'यत्र' रूप बनता है। 
तत्र-तस्मिन् (वहाँ, उसमें)-इस विग्रह में सप्तम्यन्त तद् शब्द से 'सप्तम्यास्त्रल' से त्रल् (त्र) प्रत्यय, प्रातिपदिकसंज्ञा, डि का लोप 'त्यदादीनामः' से द को अ, 'अतोगुणे से पररूप, त +त्र = तत्र, प्रातिपदिकसंज्ञा, सु प्रत्यय, सु का लोप होकर 'तत्र' रूप बनता 

बहुत्र, बहुषु (बहुतों में)-इस विग्रह में सप्तम्यन्त बह शब्द से 'सप्तम्यास्त्रल' से त्रल् (त्र) प्रत्यय, बहु + सुप् +त्र, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा सुप् का लोप, पुनः प्रातिपदिकसंज्ञा, सु प्रत्यय, सु का लोप होकर 'बहुत्र' रूप बनता है। 
१२०८ इदमो हः
त्रलोऽपवादः । इह ।।
सप्तम्यन्त इदम् शब्द से ह प्रत्यय होता है। व्याख्या-ह प्रत्यय त्रल् का बाधक है। 
इह-अस्मिन् (यहाँ, इसमें)-इस विग्रह में सप्तम्यन्त इदम् शब्द से 'सप्तम्यास्त्रल' से प्राप्त बल् को बाधकर 'इदमोः हः' से ह प्रत्यय होता है। इदम् + डि + ह. प्रातिपदिकसंज्ञा तथा डि का लोप, 'इदम इश्' से इदम् को इश् (इ) आदेश, इ + ह = इह, प्रातिपदिकसंज्ञा, सु प्रत्यय, सु का लोप होकर 'इह' रूप बनता है। 

विशेष-अत्र रूप ‘एतस्मिन्' इस विग्रह में सप्तम्यन्त एतद् शब्द से त्रल् प्रत्यय तथा 'अन्' से एतद् को अ आदेश होकर बनता है।। 
१२०९ किमोऽत्
वाग्रहणमपकृष्‍यते । सप्‍तम्‍यन्‍तात्‍किमोऽद्वा स्‍यात् पक्षे त्रल् ।।
सूत्रार्थ - सप्तम्यन्त किम् शब्द से विकल्प से अत् प्रत्यय होता है। पक्ष में चल प्रत्यय होता है। 

वाग्रहणमिति- अग्रिम सूत्र वा ह च छन्दसि 51 3।13।। से वा ऊपर लाया गया है। इसीलिए अत् विकल्प से होता है। 
१२१० क्‍वाति
किमः क्‍वादेशः स्‍यादति । क्‍व । कुत्र ।।
सूत्रार्थ - अत् प्रत्यय परे होने पर किम को क्व आदेश होता है। 

क्व, कुत्र- कस्मिन्- (कहाँ, किसमें)-इस विग्रह में सप्तम्यन्त किम् शब्द से 'किमोऽत्' से विकल्प से अत् (अ) प्रत्यय, किम् + डि + अ, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा ङि का लोप, 'क्वाति' से किम् को क्व आदेश, क्व + अ, इस स्थिति में 'अतो गुणे' से पररूप, प्रातिपदिकसंज्ञा, सु प्रत्यय तथा सु का लोप होकर 'क्व' रूप बनता है। पक्ष में त्रल् प्रत्यय होकर कुत्र बनता है। 
१२११ इतराभ्‍योऽपि दृश्‍यन्‍ते
पञ्चमीसप्‍तमीतरविभक्‍त्‍यन्‍तादपि तसिलादयो दृश्‍यन्‍ते । दृशिग्रहणाद्भवदादियोग एव । स भवान् । ततो भवान् । तत्र भवान् । तम्‍भवन्‍तम् । ततो भवन्‍तम् । तत्र भवन्‍तम् । एवं दीर्घायुःदेवानाम्‍प्रियःआयुष्‍मान् ।।
सूत्रार्थ - पञ्चमी और सप्तमी से भिन्न विभक्ति वाले शब्दों से भी तसिल और बल आदि प्रत्यय दिखाई देते हैं। 
दशिग्रहणादिति-दृशि धातु के ग्रहण से भवद् आदि के योग में ही तसिल आदि प्रत्यय होते हैं। भाव यह है कि जहाँ अन्य विभक्तियों वाले शब्दों से तसिल आदि का प्रयोग देखा जाता है, वहीं ये प्रत्यय होते हैं। चूँकि भवद् आदि के योग में इनका प्रयोग देखा जाता है, अतएव ये भवद् आदि के ही योग में होते हैं। 
स भवान ततो भवान्, तत्र भवान्-(पूज्य आप) भवद् शब्द के योग में प्रथमान्त अर्थात् सः के अर्थ में तद् शब्द से तसिल, और त्रल् प्रत्यय होते हैं। 
तं भवन्तम् ततो भवन्तम्, तत्र भवन्तम् (पूज्य आपको)-यहाँ भवद् शब्द के योग में द्वितीयान्त तद् शब्द से तसिल और वल् प्रत्यय होते हैं।। 

एवमिति- इसी प्रकार दीर्घायुः, देवानां प्रियः तथा आयुष्मान् शब्दों के योग में भी। ततः और तत्र का प्रयोग होता है। जैसे-स दीर्घायुः, ततो दीर्घायुः तत्र दीर्घायुः इत्यादि। 
१२१२ सर्वैकान्‍यकिंयत्तदः काले दा
सप्‍तम्‍यन्‍तेभ्‍यः कालार्थेभ्‍यः स्‍वार्थे दा स्‍यात् ।।
सूत्रार्थ - सप्तम्यन्त कालबोधक सर्व, एक, अन्य, किम्, यद् और तद् इन शब्दों से स्वार्थ में दा प्रत्यय होता है।
१२१३ सर्वस्‍य सोऽन्‍यतरस्‍यां दि
दादौ प्राग्‍दिशीये सर्वस्‍य सो वा स्‍यात् । सर्वस्‍मिन् काले सदा सर्वदा । अन्‍यदा । कदा । यदा । तदा । काले किम् ? सर्वत्र देशे ।।
सूत्रार्थ - प्राग्दिशीय दकारादि प्रत्यय परे होने पर सर्व शब्द को विकल्प से स आदेश होता है। 
सदा, सर्वदा-सर्वस्मिन् काले (सब समय में)-इस विग्रह में सप्तम्यन्त सर्व शब्द से 'सर्वेकान्यकियत्तदः काले दा' से दा प्रत्यय, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा डि का लोप सर्व + दा, इस स्थिति में 'सर्वस्य सोऽन्यतरस्यां दि' से विकल्प से सर्व को स आदेश, प्रातिपदिकसंज्ञा, सु प्रत्यय तथा सु का लोप होकर 'सदा' रूप बनता है। 
पक्ष में 'सर्वदा' बनता है। 
एकदा-एकस्मिन् काले (एक बार)-इस विग्रह में सप्तम्यन्त एक शब्द से 'सर्वे कान्यकिंयत्तदः काले दा' से दा प्रत्यय, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा ङि विभक्ति का लोप, एक + दा = एकदा, प्रातिपदिकसंज्ञा, सु प्रत्यय तथा सु का लोप होकर 'एकदा' रूप बनता 
अन्यदा- अन्यस्मिन् काले (अन्य समय)-इस विग्रह में सप्तम्यन्त अन्य शब्द से 'सर्वेकान्यकिंयत्तदः काले दा' से दा प्रत्यय, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा ङि का लोप, अन्य + दा = अन्यदा, प्रातिपदिकसंज्ञा और सु प्रत्यय, सु का लोप होकर 'अन्यदा' रूप बनता 
कदा- कस्मिन् काले (किस समय, कब)-इस विग्रह में सप्तम्यन्त किम शब्द से 'सर्वेकान्यकियत्तदः काले दा' से दा प्रत्यय, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा ङि का लोप, किम् + दा इस स्थिति में किमः कः' से किम् को क आदेश, प्रातिपदिकसंज्ञा, सु प्रत्यय, सु का लोप होकर 'कदा' रूप बनता है। 
यदा- यस्मिन् काले (जब)-इस विग्रह में सप्तम्यन्त यद् शब्द से 'सर्वेकान्यकियत्तदः काले दा' से दा प्रत्यय, प्रातिपदिकसंज्ञा, ङि का लोप, यद् + दा, इस दशा में 'त्यदादीनामः' से द को अ 'अतो गुणे' से पररूप, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा स्वादिकार्य होकर यदा रूप बनता है। 
तदा- तस्मिन् काले (तब)-इस विग्रह में सप्तम्यन्त तद् शब्द से 'सर्वेकान्यकियत्तदः काले दा' से दा प्रत्यय, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा डि का लोप, 'त्यदादीनामः' से द को अ. 'अतो गणे' से पररूप, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा स्वादिकार्य होकर 'तदा' रूप बनता है। 

काले किमिति-सूत्र में काल अर्थ में दा प्रत्यय होता हैं ऐसा क्यों कहा गया है? इसलिए कि सर्वस्मिन् देशे-सर्वत्र यहाँ देश अर्थ है न कि काल इसलिए दा प्रत्यय नहीं होगा, अपितु त्रल् ही बना रहेगा। 
१२१४ इदमो र्हिल्
सप्‍तम्‍यन्‍तात् काल इत्‍येव ।।
सूत्रार्थ - सप्तम्यन्त इदम् पद से काल अर्थ में हिल् प्रत्यय होता है। 
हिल् में हि शेष रहता है। 
१२१५ एतेतौ रथोः
इदम्‍शब्‍दस्‍य एत इत् इत्‍यादेशौ स्‍तौ रेफादौ थकारादौ च प्राग्‍दिशीये परे। अस्‍मिन् काले एतर्हि। काले किम्इह देशे ।।
सूत्रार्थ - रेफादि तथा थकारादि प्राग्दिशीय प्रत्यय परे होने पर इदम् शब्द को क्रमशः एत और इत् आदेश होते हैं। 
व्याख्या- यदि बाद में 'र' होगा तो इदम् को एत आदेश होगा और यदि 'थ्' होगा तो इदम् को इत् आदेश होगा। 
एतर्हि-अस्मिन् काले (इस समय, अब)-इस विग्रह में सप्तम्यन्त इदम् शब्द से 'इदमो हिल्' से हिल् (हि) प्रत्यय, प्रातिपदिकसंज्ञा, ङि का लोप, इदम् + हि, इस स्थिति में एतेतौ रथोः' से इदम् को एत आदेश, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा स्वादिकार्य होकर 'एतहिं' रूप बनता है। 

काले किमिति-इदम् शब्द से काल अर्थ में हिल् प्रत्यय होता है। सूत्र में ऐसा क्यों कहा गया? इसलिए कि अस्मिन् देशे = इह देशे यहाँ हिल प्रत्यय नहीं होगा, क्योंकि यहाँ काल अर्थ न होकर देश अर्थ है अतएव 'ह' प्रत्यय होगा। 
१२१६ अनद्यतने र्हिलन्‍यतरस्‍याम्
कर्हिकदा । यर्हियदा । तर्हितदा ।।
सूत्रार्थ - अनद्यतन (जो आज का न हो) बोधक सप्तम्यन्त किम् आदि शब्दों से विकल्प से हिल्' प्रत्यय होता है। 
व्याख्या-पक्ष में दा प्रत्यय होता है। 
कर्हि, कदा-कस्मिन् काले (किस समय)-इस विग्रह में सप्तम्यन्त किम् शब्द से 'अनद्यतने हिलन्यतरस्याम' से विकल्प से हिल् (हि) प्रत्यय होता है। प्रातिपदिकसंजा तथा डि का लोप, 'किमः कः' से किम को 'क' आदेश, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा स्वादिकार्य होकर 'कर्हि' रूप बनता है। 

हिल के अभाव पक्ष में 'दा' प्रत्यय होकर 'कदा' रूप बनता है।। यर्हि, यदा-यस्मिन् काले (जिस समय, जब)-इस विग्रह में सप्तम्यन्त यद् शब्द से 'अनद्यतने हिलन्यतरस्याम' से विकल्प से हिल् (हिं) प्रत्यय, 'त्यदादीनामः' से 'द्' का अ, 'अता गणे' से पररूप, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा स्वादिकार्य होकर 'यर्हि' रूप बनता है। 
हिल' के अभाव पक्ष में 'दा' प्रत्यय होकर 'यदा' रुप बनता है। 
तर्हि, तदा-तस्मिन् काल (उस समय, तब)-इस विग्रह में सप्तम्यन्त तद् शब्द से 'अनद्यतने हिलन्यतरस्याम' से हिल (हि) प्रत्यय, सप्तमी-विभक्ति का लोप, 'त्यदादीनामः' से 'द्' को अ, 'अतो गुणे' से पररूप, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा स्वादिकार्य होकर 'तर्हि' रूप बनता है। हिल के अभाव पक्ष में दा प्रत्यय होकर 'तदा' रूप बनता है। 
१२१७ एतदः
एत इत् एतौ स्‍तौ रेफादौ थादौ च प्राग्‍दिशीये । एतस्‍मिन् काले एतर्हि ।।
सूत्रार्थ - रेफादि और थकारादि प्राग्दिशीय प्रत्यय परे होने पर एतद् शब्द को क्रमशः । एत और इत् आदेश होते हैं। 
एतर्हि- एतस्मिन् काले (अब, इस समय)-इस विग्रह में सप्तम्यन्त एतद् शब्द से 'अनद्यतने हिलन्यतरस्याम्' से हिल, (हिं) प्रत्यय, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा ङि का लाप, 'एतदः' से एतद् को एत आदेश, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा स्वादिकार्य होकर 'एतर्हि' रूप बनता है। 
१२१८ प्रकारवचने थाल्
प्रकारवृत्तिभ्‍यः किमादिभ्‍यस्‍थाल् स्‍यात् स्‍वार्थे । तेन प्रकारेण तथा । यथा ।।
सूत्रार्थ - प्रकार अर्थ में किम् आदि शब्दों से स्वार्थ में थाल् प्रत्यय होता है। व्याख्या-'थाल्' में 'था' शेष रहता है। 
तथा-तेन प्रकारेण (उस प्रकार से, वैसा)-इस विग्रह में तद् शब्द से 'प्रकारवचने थाल्' से थाल् (था) प्रत्यय, तद् + था, इस स्थिति में 'त्यदादीनामः' से द को अ, 'अतो गणे' से पूर्व अ को पररूप, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा स्वादिकार्य होकर 'तथा' रूप बनता 

यथा- येन प्रकारेण (जिस प्रकार से, जैसा)-इस विग्रह में यद् शब्द से 'प्रकारवचने थाल्' से थाल् (था) प्रत्यय, यद् + था, इस स्थिति में 'त्यदादीनामः' से 'द्' को अ, 'अतो गणे' से पररूप, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा स्वादिकार्य होकर 'यथा' रूप बनता है।। 
१२१९ इदमस्‍थमुः
थालोऽपवादः । (एतदोऽपि वाच्‍यः) । अनेन एतेन वा प्रकारेण इत्‍थम् ।।
सूत्रार्थ - इदम् शब्द से प्रकार अर्थ में स्वार्थ में थम्' प्रत्यय होता है।
एतद् शब्द से भी प्रकार अर्थ में स्वार्थ में थम् प्रत्यय होता है। 
इत्थम्- अनेन प्रकारण (इस प्रकार से)-इस विग्रह में 'इदम' शब्द से 'प्रकारवचने थाल्' से प्राप्त थाल् प्रत्यय को बाधकर 'इदमस्थमुः' से थमु (थम्) प्रत्यय, इदम् + थम्, इस स्थिति में 'एतेती रथोः' से इदम् को 'इत्' आदेश, प्रातिपदिकसंज्ञा तथा स्वादिकार्य होकर 'इत्थम्' रूप बनता है। 

विशेष-एतद् शब्द से भी इत्थम् रूप बनता है। एतेन प्रकारण-इस विग्रह में एतद् शब्द से 'एतदोऽपि वाच्यः' से थमु (थम्) प्रत्यय तथा 'एतदः' से एतद् को इत् आदेश होगा। 
१२२० किमश्‍च
केन प्रकारेण कथम् ।।
सूत्रार्थ - किम् शब्द से भी प्रकार अर्थ में थमु प्रत्यय होता है।
इति प्राग्‍दिशीयाः ।। १४ ।।
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