इसलिए संस्कृत की जरूरत है


1. हमारी जीवन पद्धति, परम्परा और संस्कार संस्कृत के ग्रन्थों में लिखित हैं।
2. हमारे पूर्वजों का गौरवमय इतिहास संस्कृत की पुस्तकों में मिलता हैं।
3. हम अपनी विकास यात्रा की कहानी इन पुस्तकों में पाते हैं।
4. इस विद्या के माध्यम से हम अपने पूर्वजों के बौद्धिक चरमोत्कर्ष से परिचित होते हैं, जिससे आज सम्पूर्ण विश्व लाभान्वित हैं।
5. यही विद्या सम्पूर्ण भारत में सांस्कृतिक एकता लाती रही है, भले ही समय, काल, परिस्थिति अलग अलग रही हो।
6. गणित, रसायन, गीत, नाट्य, चिकित्सा, खगोल, अर्थशास्त्र, विधि आदि सभी विद्याओं की यह जननी है। इसी के बल पर यह देश 5 हजार वर्ष से अधिक समय तक अपनी सुखमय विकास यात्रा पूर्ण किया।
7. संस्कृत विद्या सभ्य, शान्त और सभी का कल्याण चाहने वाले नागरिक का निर्माण करती है।
8. इसको पढ़ने वाले मानते हैं कि धन गरीबों के कल्याण के लिए है। अपनी आवश्यकता को न्यूनतम स्तर पर बनाए रखो।
9. विश्व के समस्त भाषाओं के समस्त नियम संस्कृतव्याकरण में एकत्र मिल जाते हैं। यथा - अंग्रेजी में नामधातु milking
10. भारत की शिक्षा नीति 1968 और 1986 में स्पष्ट रूप से संस्कृत के अध्ययन के महत्व को स्वीकार  किया गया।
11. संस्कृत को छोड़ना अर्थात् जिस भाषा में हजारों वर्षों तक लाखों बुद्धिजीवियों ने अपने गहन शोध से इसे पुष्ट      किया। अपने विचारों से सजाया, उससे हाथ धो बैठना।
12. संस्कृत एक भाषा या विषय तक सीमित नहीं है, अपितु इसकी मूल पूंजी इसमें व्यक्त विचार हैं। ये विचार हमें वसुधैव कुटुम्बकम्, परोपकारः पुण्याय, परपीडनम् पापाय आदि के द्वारा सच्चा मानव तथा सामाजिक प्राणी बनाती है।
13.विश्व की सबसे पुरानी पुस्तक ऋग्वेद है, जिसकी भाषा संस्कृत है।
14. इसका व्यवस्थित व्याकरण और वर्णमाला है,जिसकी वैज्ञानिकता के कारण यह अन्य भाषाओं में सर्वश्रेष्ठ है।
15. विश्व की अनेक भाषाओं में केवल एकवचन और बहुवचन होते हैं जबकि संस्कृत में द्विवचन भी होता है। भारतीय संस्कृति में नर- नारी, पिता- पुत्र, स्वर्ग- नर्क, भाई- बहन, दिन-रात, प्रकाश- अंधकार आदि परस्पर में जुड़े दो समान या विपरीत सत्ता को स्वीकार किया जाता है,जिसकी अभिव्यक्ति के लिए यहाँ द्विवचन का प्रयोग किया जाता है।
16. संस्कृत पढ़ने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
17. संस्कृत वाक्यों में शब्दों को किसी भी क्रम में रखा जा सकता है। इससे अर्थ बदलने की सम्भावना बहुत कम होती है। इसके सभी शब्द विभक्तियों और वचनों के अर्थ नियत हैं,जिससे क्रम बदलने पर भी सही अर्थ सुरक्षित रहता है।
 18. संस्कृत पढ़ने वाले का जीभ को लचीला हो जाता हैं। इससे तुतलाहट दूर होती है।
 इसको पढ़ने वाले छात्रों की तर्क शक्ति तेज हो जाती है। इसका छात्र समस्याओं को शीध्र समझ कर सुलझाने में दक्ष हो जाता है। अतएव ये छात्र गणित, विज्ञान आदि विषयों एवं अन्य भाषाओं को जल्दी से सीख पाते हैं।
 19. संस्कृत अपने ध्वनि तन्त्र और लिपियों के कारण अधिक उन्नत है।
संस्कृत भाषा को किसी भी लिपियों में लिखा जा सकता है। देवनागरी लिपि के हरेक अक्षर के लिए केवल एक ही ध्वनि है। 

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3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति 92वां जन्मदिन - वी. शांता और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।

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  2. साधू साधू ! संस्कृत भाषा के महत्व को बखूबी व्यक्त करती पोस्ट !

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