संस्कृत के आधुनिक गीतकारों की प्रतिनिधि रचनायें (भाग-4)

संस्कृत के गीतिकाव्यों में स्फुट पद्य, संदेश काव्य, प्रशस्ति,शास्त्रकाव्य, समस्यापूर्ति,अन्योक्ति, श्लेष काव्य, स्तोत्र काव्य तथा चित्रकाव्य आते हैं। मैंने इस आलेख में वस्तुतः नवगीति का संकलन किया है,जो आधुनिक संस्कृत की नई विधा है। इसमें कुछ भाग में राग काव्य भी संकलित हैं। अनेक संगीतज्ञ संस्कृत विद्वानों ने राग काव्य के द्वारा संस्कृत भाषा को लोकप्रिय बनाने की दृष्टि से सरल गीतों की रचना की है। राजा विश्वनाथ कृत संगीत रघुनन्दन, रामवर्मा कुलशेखर कृत कुचेलोपाख्यान तथा अजामिलोपाख्यान,ओगेट्टी परीक्षित शर्मा कृत ललितगीती लहरी आदि राग काव्य प्राप्त होते हैं। भट्ट मथुरानाथ शास्त्री ने संस्कृत काव्य में नई प्रवृत्ति को जन्म दिया, जिसमें समाज के विभिन्न वर्गों या जनजीवन को गीतों का विषय बनाया गया है। 

      मैं अपने इस आलेख की श्रृंखला में अनेक अल्पज्ञात तथा अति नवीन रचनाकारों के प्रतिनिधि संस्कृत नवगीति (संस्कृत गीत) संकलित करते हुए उसके साथ रचयिता की संक्षिप्त जीवनी देने की कोशिश में लगा हूँ। गीत चयन में गीतों की लोकोपयोगिता को ध्यान में रखा है। अतः कुछ अच्छी रचना रहते हुए भी उसे यहाँ सम्मिलित नहीं करने की विवशता भी है। 

संस्कृत के आधुनिक गीतकारों की प्रतिनिधि रचनायें (भाग-4) में अधोलिखित गीतकारों के गीत संकलित हैं-

 गीतकारों के नाम             पुस्तक का नाम         गीतों की संख्या

शशिपाल शर्मा  'बालमित्र '  बालगीतम्                     09
इच्छाराम द्विवेदी                  समुज्जवला                    02
हरिदत्त शर्मा                        उत्कलिका                  04  
                                         बालगीताली                   1

शशिपाल शर्मा 'बालमित्र' का परिचय

19 जुलाई 1953(08/08/1953 प्रमाण पत्र अनुसार) धर्म सङ्घ परिसर दिल्ली में जन्म। माता स्वर्गीया श्रीमती शकुन्तला शर्मा, पिता स्वर्गीय श्रीबालमुकुन्द शर्मा।

दिल्ली विश्वविद्यालय से संस्कृत एम.ए, बीएड। पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी एम.ए। 1980 से 1999 तक मॉडर्न स्कूल वसंत विहार में संस्कृत अध्यापक। 1983 से 2015 तक आकाशवाणी/दूरदर्शन में संस्कृत वार्ता अनुवाद व प्रवाचन। 2008 से 2018 तक दिल्ली प्रेस, कॉन्वेंट पब्लिकेशंस, न्यू एज इंटरनेशनल पब्लिकेशंस, गोयल ब्रदर्स प्रकाशन आदि में हिंदी/संस्कृत संपादन और लेखन।

 

प्रकाशित पुस्तकें-

बालगीतम्

(नेशनल बुक ट्रस्ट)

गीतगोविन्दम्-हिंदी पद्यानुवाद

(नवशिला प्रकाशन)

तथा विभिन्न प्रकाशनों की स्कूली पुस्तकें।

सरकारी पुरस्कार

भारतेंदु पुरस्कार(बाल साहित्य)

दूरभाष- 99994 29270

सा सा सा

सा सा सा

(()) कमला दुर्गा शारदा ।

ते ते ते

(()) कन्ये 👯कलिके 🌷🌷ते महिले👰🏻🙎🏻।।

ताः ताः ताः

(()) चटकाः 🐥🐥🐥लताः च बालिकाः 👧🏻👧🏻👧🏻👧🏻👧🏻।।

सः सः सः

(()) बालः 👶🏻वृक्षः🌴 तथा गजः🐘

तौ तौ तौ

(()) अश्वौ 🐎🐎वृक्षौ 🌳🌴तौ सिंहौ 🐯🐯

ते ते ते

(()) सिंहाः 🐯🐯🐯अश्वाः🐎🐎🐎🐎🐎 ते च गजाः🐘🐘🐘🐘�� ।।

तत् तत् तत्

(()) कमलं 🍁पत्रं जलपात्रम्🍸

ते ते ते

(()) पात्रे🍸🍸 पुष्पे 🌹🌹तथा फले🍊🍊

तानि तानि वद कानि

(()) पत्राणि🍃🍂🍃🍂 पुष्पाणि 🌸🌹🌻🌺🍁फलानि 🍓🍎🍏🍊🍇🍒🍐।।

 

सरला सरलतमा मम भाषा

सरला सरलतमा मम भाषा

संस्कृतभाषा धन्यतमा।

क्रियापदानां यथाऽस्ति साम्यं

तथा न भाषा अन्यतमा।।

अहं पठामि अहं लिखामि

अहं वदामि वाक्यानि।।

सा लिखति सा पठति वदति च

सरलं सरले सरलानि।।

तस्मै कस्मै यस्मै अस्मै

पुँल्लिङ्गे रूपाणि यथा।

तस्यै कस्यै यस्यै अस्यै

स्त्रीलिङ्गे रूपाणि तथा।।

एकं ज्ञात्वा अन्यं ज्ञातुम्

अत्र लभ्यते सामर्थ्यम्।

ये कथयन्ति कठिना भाषा

मृषा वदन्ति ते व्यर्थम्।।

- शशिपाल शर्मा 'बालमित्रः

 

त्वमपि त्वं न मां विना

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त्वमपि त्वं न मां विना

यथाऽस्मि नैव त्वां विना।

कणोऽस्मि त्वं च सागरः

उभौ हि क्व, उभौ विना ?

कणे-कणे समुद्रता,

कणः कणो हि सागरः ।

तथापि जीवता मम

तवेशताऽपि सत्यता।।

त्वदीयपादयोः मम

सुखावहः सदाश्रयः।

अतो वसामि पादयोः

सदाश्रितः नतोन्नतः।।-

-शशिपाल शर्मा बालमित्र

 

गणना प्रश्नोत्तरी

**********

एका देवी एकं कमलं

    एकस्मिन् हस्ते धृत्वा।

अपरं कमलं करे द्वितीये

    स्वयमपि कमले विराजते॥

का सा देवी कस्य च पत्नी

  सर्वेभ्यो धनदानरता।

विष्णोः पत्नी सा जगदम्बा

    लक्ष्मीदेव्यै नमो नमः॥

कौ द्वौ वीरौ वनं गतौ यौ

             याभ्यां हताः क्रूर-दैत्याः।

रावण-वंश-विनाश-कारिणौ

              रामलक्ष्मणौ वयं नुमः॥

ते के त्रयः ईश्वराः जगतः

   सृष्टि-स्थिति-संहार-कराः।

ब्रह्मा विष्णुः शिवश्च येषां

   कृपया जीवति संसारः॥

चत्वारः के सन्ति भ्रातरः

  येषाम् आदर्शः स्नेहः।

रामलक्ष्मणौ भरतो वीरः

   शत्रुघ्नस्ते चत्वारः॥

के ते पञ्च कुरुक्षेत्रे यैः

   वीरैः विजयः सम्प्राप्तः।

युधिष्ठिरो भीमश्च अर्जुनः

   नकुलः सहदेवाः वीराः॥

कस्याभवन् मातरः षट् च

 कस्मिन् सप्त दिनानि पुनः।

कस्मिन् अष्टौ भवन्ति यामाः

साहित्ये के नव सन्ति॥

षट् मातरः क

  

पठति बालकः

पठति बालकः(प्रथमा) पुस्तकम्(द्वितीया)

नेत्राभ्याम् (तृतीया)अथ ज्ञानाय(चतुर्थी)।

वृक्षात् (पञ्चमी)पतन्ति पत्राणि(प्रथमा)

धरातले (सप्तमी)प्रस्थानाय(चतुर्थी)॥

कस्य(षष्ठी) बालकः(प्रथमा)? प्राज्ञस्य(षष्ठी)

कस्य(षष्ठी) च नेत्रे(प्रथमा)? बालस्य(षष्ठी)॥

कस्य(षष्ठी) तु वृक्षः? आम्रस्य(षष्ठी)

धरातलम्(प्रथमा)? उद्यानस्य(षष्ठी)॥

 

श्वेतं शुभ्रम्

श्वेतं शुभ्रम्

पङ्कात् विकसति

दिव्यं कमलम् ।

श्वेते कमले

वसति शारदा

भवति च कमलं

रम्यं दिव्यम्।।

  अत्र कपोतः, तत्र कपोतौ

अत्र कपोतः, तत्र कपोतौ

                      कति कपोताः वक्तव्यम्?

            एकः अत्र, तत्र तु द्वौ स्तः

                      त्रयः कपोताः ज्ञातव्यम्॥

            द्वौ मम हस्तौ, द्वौ तव हस्तौ

                    कति नः* हस्ताः वक्तव्यम्?

             तव मम द्वौ-द्वौ, मिलन्ति हस्ताः

                          चत्वारः ते ज्ञातव्यम्॥

             एकः मत्स्यः, मया चित्रितः

                    पञ्च त्वया, रचिताः मत्स्याः।

             सर्वे मत्स्याः, योगपूर्वकं

                      षट् सञ्जाताः, द्रष्टव्यम्॥

[*नः=अस्माकम्(हमारा/हमारे/हमारी)]

 

निखिले भुवने भारतदेशः

 

निखिले भुवने भारतदेशः

       धन्यो देशः पूजितदेशः।

राज्यं त्यक्त्वा श्रीरामस्य

       वनगमनमत्र मुनिसमवेशः।।

युद्धक्षेत्रे च कुरुक्षेत्रे

       कर्त्तव्यविमुखपाण्डवं प्रति।

कृष्णोक्ता श्रीभगवद्गीता

       पथदर्शकभगवत्सन्देशः।।

क्षेत्रे-क्षेत्रे कुरु रे धर्मं

       धर्मक्षेत्रं हरति क्लेशः।

परमो धर्मः हिंसात्यागः

        बुद्धस्य हितावह उपदेशः ।।

लक्ष्मीबाई-नाना-टोपे-

        मङ्गल-रामप्रसाद-वीराः।

देशस्य बन्धनं विच्छेतुं

        गतवन्तः साक्षी जगदीशः ।।

सर्वेषां वीराणां नित्यम्

       उच्चैः कुर्मो जय-जय-घोषम्।

विश्वे विभाति यो जगद्गुरुः

       जय जयतु जयतु भारतदेशः।।

-- शशिपालशर्मा 'बालमित्र'

12/08/2017

 

 

दुहितश्चल शयनं कर्तव्यम्

दुहितश्चल शयनं कर्तव्यम्

शोभनं क्रीडितं त्वया सुखम्।

तव निशाभोजनं प्रतीक्षते

त्वां विना न पितरौ भोजेते।

भोजने कृते अम्बाम्बायाः

शयने श्रोष्यसि रुचिरां सुकथाम्।

दुहितश्चल शयनं कर्त्तव्यम्।

        शशिपाल शर्मा 'बालमित्र'


कैषा नैतिकता

दानवतायाः पक्षपातिनी

मानवतायाः नाशकारिणी

सैषा भौतिकता,

लोकचेतनाया विमोहिनी

स्वार्थसाधने धर्मदोहनी

कैषा नैतिकता ?

अनुदिनमिह भोगानुवर्द्धनं

प्रतिकलमिह मोहानुवर्तनं

जनगणकृत औदार्यबोधनं

प्रवचनपटुभिः स्वार्थशोषणं

निर्बले जने शूरतावृता

लुण्ठकेषु या प्रीतिसंवृता

मेधा सावहिता,

कैषा नैतिकता?

परजनमरणं मेऽस्तु जीवनं

मम गृहभरणं तेऽस्तु काननं

श्रवणवचनयोः सैव चातुरी

निजहितकरणी सैव माधुरी

नश्वरेषु या रागकारिणी

            सर्वदैव सा धैर्यहारिणी

धन्या रोचकता

कैषा नैतिकता ?

जनगणविभुताप्राप्तयेऽनिशं

भुवि विषभरितं पापयोजनं

बहुमतमतसम्मानवर्जितं

विरलजनमतं सर्वथादृतं

छद्मनम्रता सर्वतोमुखी

रौति नम्रता दीनतामुखी

श्रद्धा संवलिता

कैषा नैतिकता ?


        समुज्ज्वला से साभार-

        लेखक- इच्छाराम द्विवेदी


इदन्तमः

 

वद! किमु ? विभाविहीनो भानुः

शीतलतामुपयाति कृशानुः

क्षुद्रकणं प्रणमति गिरिसानु:

कीदृशमिदं तमः

सखे! वद!

कीदृशमिदन्तम: ?

न जाने

कीदृशमिदन्तमः ?

जनसंसदि संहिता विलुप्ता

प्रतिहृदयं दुर्जनता गुप्ता

हिंसासुरी ताण्डवं कुरुते

लास्यमयी मानवता सुप्ता

खलकदर्थितं ज्ञानं

दृष्ट्वा-विलिपति हृदि निगमः

कीदृशमिदन्तमः ?

जाति-धर्म-भाषाविखण्डनं

देशलुण्ठनं गेहमण्डनं

गणतन्त्रे जनताविमर्दनं

तुच्छस्वार्थवृत्तेः समर्थनं

राष्ट्रपितुर्जातो मम देशे

व्यर्थः समुद्यमः

कीदृशमिदन्तम: ?

बकाः सरःसु समाधौ मग्नाः

हंसानां संकल्पा   भग्ना:

राष्ट्रदेवता          हृतवस्त्रेयं

भयविकम्पिता रोदिति नग्ना

तुच्छजम्बुकै सिंहजनानां

व्यर्थीकृतः श्रमः

कीदृशमिदन्तम: ?

मदिरामधुरं कल्यवर्तनं

त्रपाविहीनं नग्ननर्तनं

व्यथितास्ते संस्कृतिशकुन्तला

ह्यभद्रताया हन्त ! दर्शनं

सततं

निजसंस्कृतिविनाशनं

एष कृतो नियमः

कीदृशमिदन्तम: ?

महानसे प्रियतमाज्वालनं

तंत्रा पिशाचानां सुपालनं

प्रतिभूतीनामेव शोषणं

मञ्चे जनकल्याणघोषणं

वीक्ष्य चरित्रं

नरोत्तमानां

चेखिद्यते यमः

कीदृशमिदन्तमः?

विश्वबन्धुताया विचारणं

अण्वस्त्रैः वसुधाविदारणं

क्रव्यादैः गोष्ठीषु चिन्त्यते

धरातलस्याशान्तिकारणं

नवनागर-

सभ्यतासुतेभ्यः

दूरान्नमो नमः

कीदृशमिदन्तम: ?


समुज्ज्वला से साभार-

लेखक- इच्छाराम द्विवेदी


डॉ० हरिदत्त शर्मा परिचय

एम० ए०, आचार्य, डी० फिल०

आत्मज - स्व० पं० लहरी शङ्कर शर्मा

जन्म हाथरस, उत्तर प्रदेश; आश्वित कृष्ण नवमी वि० सं० २००५, २७ सितम्बर १६४८ ई० । अनुसन्धान, अध्यापन, शोध-निर्देशन -- इलाहाबाद विश्वविद्यालय

रचनाएँ-

संस्कृत काव्यशास्त्रीय भावों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन

- समीक्षा ग्रन्थ-  निबन्ध-निकुञ्जम्, संस्कृत निबन्ध

 नाट्य-सङ्कलन- त्रिपथगा (उ० प्र० संस्कृत अकादमी द्वारा विशेष पुरस्कार से पुरस्कृत)

-गीतिकाव्य बालगीताली, निर्झरिणी, गीत कन्दलिका (उ० प्र० संस्कृत अकादमी द्वारा पुरस्कृत)

प्रो. हरिदत्त शर्मा
प्रोफेसर हरिदत्त शर्मा का जन्म हाथरस, उत्तर प्रदेश में 27 सितंबर 1948 ईसवीं को हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित लहरी शंकर शर्मा था। M.A, आचार्य, डी. फिल., डिप्लोमा जर्मन तथा रसन की उपाधि लेकर आपने संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अपनी सेवाएं दी। आपने अनेक देशों का शैक्षिणिक भ्रमण किया तथा शिल्पाकार्न  यूनीवर्सिटी, बैंकाक,थाईलैंड में अभ्यागत आचार्य रहे हैं।  आप उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान,लखनऊ तथा दिल्ली संस्कृत अकादमी तथा राष्ट्रपति सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार आदि से पुरस्कृत हो चुके हैं। अबतक आपके 32 से अधिक शोध पत्र,10 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। आपने आधुनिक संस्कृत काव्य सर्जना के क्षेत्र में ख्याति अर्जित की है. आपने चार गीतिकाव्य उत्कलिका, गीतकंदलिका तथा लसल्लतिका तथा बालगीताली की रचना की। बालगीताली में बाल गीतों का संकलन है।  

साभार- बालगीताली (बाल गीतों का संकलन )

रुचिरं नृत्यति पुत्तलिका
रुचिरं नृत्यति पुत्तलिका !
आयातः पुत्तलिकाजीवी
खेलं दर्शयते                    ।          
ग्राम-बालिका बाल-समूहः।
तां दिशं श्रयते     ।।
यत्र दर्श्यते पुत्तलिका
रुचिरं नृत्यति पुत्तलिका
तां नर्तयति हि सूत्रधारकः
उच्चैरासीनः                     ।
मुखात् कलध्वानं करोति सः
संगीते लीनः                   ।।
मधुरं गायति पुत्तलिका
रुचिरं नृत्यति पुत्तलिका
वदति किमपि सा भावैर्भरिता
यथा निपुणवनिता           ।
रोदिति हसति च क्रुध्यति बहुलम्
आशा संवलिता   ।।
भावं व्यनक्ति पुत्तलिका।
रुचिरं नृत्यति पुत्तलिका
सा पतिगृहं कदाचिद् याति च
पतिप्रेमरक्त्ता                  ।
रुष्टा पुनरायाति निजगृहं
प्रणयमानसक्त्ता  ।।
मानं जहाति पुत्तलिका
रुचिरं नृत्यति पुत्तलिका
अस्ति तया सह पुरुषपुत्तलः
घनश्मश्रुधारी                 ।
तौ सहैव चाभिनयं कुरुतः
नरश्चापि नारी    ।।
निपुणं नटति हि पुत्तलिका
रुचिरं नृत्यति पुत्तलिका
जन्म विवाहोत्सवमारचयति
बहुकर्मसु लग्ना    ।
गृहयुद्धं कुरुते पत्या सह
वाक्कलहे मग्ना     ।।
भृशं विवदते पुत्तलिका
रुचिरं नृत्यति पुत्तलिका
काष्ठ-पत्र-वस्त्रादि-निर्मिता
अस्ति सजीवेव    ।
आकृतिरस्या अतिमनोहरा
रूपाजीवेव                     ।।
निपुणं पश्यति पुत्तलिका
रुचिरं नृत्यति पुत्तलिका
सदादृश्यते सुस्मितवदना
तूलिकया रचिता ।
विविध-वर्ण-संयोग-सुन्दरी
मणिभूषणखचिता           ।।
अधिकं चकास्ति पुत्तलिका
रुचिरं नृत्यति पुत्तलिका

सुचिरं नृत्यति पुत्तलिका

ईदृशो भवेयम्

 

इच्छामि जीवने तत्

यस्मिन् सुखं वसेयम् ।

वाच्छामि सुस्थलं तत्

स्वैरं यतः श्वसेयम् ।।

 

याच्ञा भवेन्न वचने

चाटूनि नैव लपने

न प्रसृतकरः कदाचिन् नोचान् प्रति व्रजेयम् ।

    इच्छामि.......

 

नयने न दीनभावः

न च हीनताप्रभावः

न मदान्धकुप्रभूणां द्वारे शिरो नमेयम् ।

    इच्छामि...

 

हृदये भवेन्न भीतिः

पणके न चातिप्रीतिः

उदरस्य पूरणार्थं मानं न च त्यजेयम् ।

    इच्छामि...

 

ईर्ष्यानले न दाहः

हृदि मे सुधाप्रवाहः

निष्कारणं विरोधे निजवैरिणं शमेयम्

    इच्छामि .....

 

अघमैस्तु स्यान्न सङ्गः

मानो भवेन्न भङ्गः

अमृतस्य मार्गणेऽहं बहुगरलमपि पिबेयम् ।

    इच्छामि......


शीतातपादिद्याताः

स्युर्वा हिमप्रपाताः

जनवचन-वज्रघातादात्मानमुद्धरेयम् ।

    इच्छामि......


विशदीभवेत् स्वहृदयम्

मालिन्यमेतु विलयम्

शाठ्यं छलं प्रपञ्चं न मनागपि स्पृशेयम् ।

    इच्छामि ..

 

विपदां भवन्तु वाताः

बहुदुःखशोकघाताः

कुसुमास्तरण इवाहं कण्टकपथे चलेयम्

    इच्छामि....

 

आत्मनि न दुर्बलत्वम् 

अधरीभवेन्न सत्त्वम्

परवशतया कदाचिन् नानीप्सितं विधेयम् ।

    इच्छामि.......

 

तरिकः स्वमानपोषः

नौर्दण्ड आत्मतोषः

आरुह्य शान्तितरणिं जगदर्णवं तरेयम् ।

    इच्छामि.......

    वाञ्छामि...

उत्कलिका से साभार

रचयिता - हरिदत्त शर्मा


 अयि मे विमानराज

    चल बहुदूरम्

    नय बहुदूरम्


अयि मे विमानराज रे !

अय्यम्बराधिराज रे !!

    चल बहुदूरम्

    नय बहुदूरम्

 

निर्मलता हृदयेषु न यत्र

व्यवहारे सारल्यम् ।

नीडं तं परिहाय खगपते

गगने भज तारल्यम् ॥

पक्षान् निजान् प्रसार्य रे

नवपवनं ह्याकार्य रे

    चल बहुदूरम्....

 

तमसावृतमन्तः करणं हा

नौज्ज्वल्यं न प्रकाशः ।

दीपो नैव रोचते नव्यो

निर्वाण तु प्रयासः ॥

 

अन्धत्वं संकृष्य रे 

नवमयनं सन्दर्श्य रे 

    चल बहुदूरम्....


शुचिशालासु समुन्नयनाय

यत्र खराणां चयनम् ।

गुणि-गुण- गणना-काले महता-

मवरुध्यति रे नयनम् ॥

गरलमपीह निपीय रे

घनजडतामपनीय रे

    नय ....


हृदये कटुता मुखे मधुरता

द्विजिह्वत्वमधिमश्वम्

आलापे ननु वागसंस्कृता

बहुवञ्चना - प्रपञ्चम्

बहुशो विद्धीभूय रे

नवशक्तिञ्च प्रसूय रे

    चल...

 

न मे हि रोचते मार्दवं तेभ्यः

सौन्दर्यं न सुगन्धः ।

कुसुमैः सह मर्दनं धूसरी

करणमेव सम्बन्धः ॥

गुणहन्तॄ सन्त्यज्य रे

पङ्किलताञ्च विसृज्य रे

    नय...

 

विकसतं कोरकं न सहते 

यत्र सुकण्टकजालम् ।

सततं सङ्घर्षण – परम्परा 

उद्धर्तुं स्वं नालम् ॥

तत् स्थानं त्वपहाय रे 

मालिन्यं हि विहाय रे 

    चल...


द्वारे द्वारे भ्रमति हि चन्द्रः 

रजतामृतं  दधानः ।

मिलितो नैव ग्रहीता कश्चिद्।

भुवि केवलमवमानः ॥

ह्लादकतामाकुञ्च्य रे

रसवर्षां सकुञ्च्य रे

    नय....

 

वाग्वज्रान्नो कठिनं झञ्झा 

नो वर्षा हिमपातः ।

मुक्ते प्रकृतिप्राङ्गणे न स्यान् 

मनुजकृतो ह्याघातः ॥

नवमुदयं संवीक्ष्य रे 

आशां नवां प्रतीक्ष्य रे

    चल...

    नय..

 

उड्डीयते विमानम्

उड्डीयते विमानम् ! 

गच्छति वियति विमानम् !!


भूमौ चलति सुमन्दं पूर्वं

पश्चाच्चलति सवेगम् ।

अवनितलादुत्थाय क्रमशो

धावतीदमभिमेघम्

    विदधत् तीव्रं ध्वानम् 

    उड्डीयते...


पवने करौ प्रसार्य याति किं

गगने पवनसुतोऽयम् ।

खेचरराजः खे धावति किं

धृतलम्बित-पक्षोऽयम् ॥

    शिरसि हि धूत्वा मानम् 

    उड्डीयते...


उल्लसितं विलसितं जीवनं

खेलतीह सम्पूर्णम् ।

भूमेर्दूरं वाताभिमुखं

नभसि तु गच्छति तूर्णम् ॥

    यन्त्रनिर्मितं यानम् 

    उड्डीयते...


धवला धवला हिममाला वा

घनमाला गिरिमाला ।

जलनिधिजलमालाऽवलोक्यते

प्रकृतिसुलीलामाला

    विगतं भेदज्ञानम्

    उड्डीयते...

 

हिम-वर्षोपल-वात्याचक्रं 

दृढ़ं भेदयत् सर्वम् ।

मेघसमूहान्तरितमपीदं

याति निशासु सगर्वम् ।।

    विपरीतं सहमानम्

    उड्डीयते...

 

सुललितदेहाः सुस्मितशीला

नववसनानि दधानाः ।

परिचर्यानिरता नवबाला

रसवर्षा तन्वानाः ॥

आकर्षन्ति ध्यानम्

उड्डीयते …

 स्वादु भोजनं नव्यमोदनं

विविधफलरसं पेयम् ।

मिष्टान्नं लावणिकं शाकं

परिवेषयति मुदेयम् ॥

वर्षन्ती प्रेमाणम्

उड्डीयते...

 

अमरीकी रूसी फ्रांसीयो

भारत-जापानीयः

लङ्का चीन – जर्मनीवासी

कश्चिदाङ्ग्लदेशीयः

याति निजनिजं स्थानम्

उड्डीयते...

 

काचिदेकला तरुणी तरुणा

वृद्धाः केचिद् बालाः ।

केsपि समूहनिबद्धयात्रिणो

विविधजनानां मालाः ॥

भवति विविधताभानम्

उड्डीयते...

 

विश्वभ्रमणं स्वजनैः सह

मेलनं कर्तुमप्येके

शैक्षणिकीं सांस्कृतिकीं यात्रा-

मौद्योगिकीमनेके

कुर्वन्ति प्रस्थानम्

उड्डीयते...

 

नैकेषां देशानामिह

भूखण्डानां सङ्घटनम् ।

समग्रा हि वसुधैव कुटुम्बं

दृढोभवति वै वचनम् ॥

प्रसरति जगति ज्ञानम्

 उड्डीयते...

 

जीवननिधिमादायामूल्यं

शतमारोहति गगनम् ।

पुनरवतीर्य ददाति जनन्यै

भूम्यै सर्वं स्वजनम्

            सततं सेवादानम्

उड्डीयते ......


जाता सोत्कलिका

 

प्रथमं या बीजमिवाङ्कुरिता

कविशैशवकाले च स्फुरिता

कविता - कन्दलिका !

कन्दल दलवर्धनसमकालं जाता

सोत्कलिका !!

 

यथा यथा विगता ममायुषः प्राथमिकी बेला ।

तथा तथोत्कलिकाया मनसो भवति नवा खेला ।।

विश्वं बृहद् ज्ञेयताऽगम्या जाता

याति न पञ्झटिका

रसभावेषु निमज्जितेऽपि मयि तृष्णा नो क्षीणा ।

कर्णौ न तु तृप्ती हि वादिता साङ्गीतिकोणा ॥

गीतिराग सन्ततिस्त्वनन्ता

लय-ताल – मालिका जाता

अनुदिनमेव तपर्यते मत्या

जीवितगणितकथा ।

प्रश्नसमूहो नावसीयते

तूत्तरमंत्र अहो

दुर्गमा दुःसाध्येयं

जीवन-प्रहेलिका

जाता'

वृथा ॥

चित्र-विचित्रसंसृतेश्चित्रं

कथमिह रचयेयम् ।

रञ्जनोपकरणञ्च कल्पनं

कीदृक् कलयेयम् ।।

रञ्जनकर्मणि कृतेऽवरुध्यति

नो मे तु तूलिका

जाता'

शनैर्लघुकरे रिरोहति कविसर्जन - गगनम् ।

स्वकलया- ह्येकैकं नु दिनम् ॥


उत्कलिका से साभार


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