यूँ तो रामायण की कथा पर आधृत अनेक चंपूकाव्य प्रसिद्ध है। परंतु उनमें धार के प्रसिद्ध राजा भोज (1010 -1063 ई.) का 'रामायण चंपू' नामक चंपू अधिक प्रसिद्ध है। भोज ने इसमें किष्किन्धा कांड तक ही लिखा था और उसकी पूर्ति करते हुए लक्ष्मण भट्ट ने युद्ध कांड की रचना से पूर्ण की है। वेंकटराज ने इसमें उत्तरकांड जोड़ा । राजा भोज ने कुल 54 ग्रन्थों की रचना की,जिसमें से 21 ग्रन्थ ही प्राप्त होते हैं। उनमें उल्लेखनीय है - काव्यशास्त्र पर सरस्वतीकंठाभरण तथा शृंगारप्रकाश, व्याकरण पर सरस्वती कंठाभरण, आयुर्वेद पर राजमृगांक, शैवागम पर तत्त्वप्रकाश, वास्तु तथा शिल्पशास्त्र पर समरांगणसूत्रधार और युक्तिकल्पतरू तथा धर्मशास्त्र पर व्यवहारसमुच्चय तथा वृहद्राजमार्तण्ड ।
रामायण चंपू की रचना भोज के द्वारा बताए गए चंपूकाव्य
के मानदंड पर खरी उतरती है। उन्होंने पद्य के साथ गद्य की संगति, गायन के साथ वादन की भाँति
करते हुए लय और गेयता में रागात्मकता और ओजस्विता का अन्तर्गुंफन कर दिया है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें