कुमारदास ने सातवीं शताब्दी में जानकीहरण महाकाव्य की रचना की । कवि का जन्म भारत में हुआ या लंका में यह विवादास्पद है। कुमारदास रचित जानकीहरण की प्रथम प्राप्ति लंका में हुई थी। और तत्संबंधी अनुश्रुतियों की जन्मभूमि प्राय: लंका ही है। कुमारदास की एक खलु शब्द के प्रयोग करने से पता चलता है कि वे 600 ई० के है । कीथ के अनुसार ये माघ से पहले हुए। ज्ञानकीहरण में रामायण की पूरी कथा कही गई है, किंतु सारी कथा का केंद्रबिंदु जानकी के हरण को घटना बनाया गया है। इसमें 20 सर्ग है। काव्यशैली के माध्यम रामचरित में मनोरम वर्णनों का गुम्फन कुमार दास की प्रथम विशेषता है । इसमें 1426 श्लोक हैं।
जानकीहरण
 संस्कृत, हमारी अमूल्य धरोहर, को अन्तर्जाल के माध्यम से विश्व के प्रत्येक कोने तक पहुँचाने और इस प्राचीन ज्ञान-राशि में नवीन पीढ़ी की रुचि जागृत करने की प्रबल इच्छा ने मुझे इस ब्लॉग की स्थापना की ओर अग्रसर किया। मैं निरन्तर प्रयासरत हूँ ई-शिक्षण सामग्री के निर्माण में, जिसमें संस्कृत पुस्तकों का डिजिटल संग्रह, आधुनिक संस्कृत गीतकारों की उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन और बहुआयामी ऑडियो-वीडियो संसाधन शामिल हैं। यहाँ आपको निम्नलिखित का लाभ मिलेगा:      शास्त्रीय समृद्धि: मेरे 100 से अधिक वैचारिक निबन्ध, हिन्दी कविताएँ, 20 से अधिक ग्रन्थों का ट्यूटोरियल और 21,000 से अधिक संस्कृत पुस्तकों की विस्तृत सूची। यहाँ 100 से अधिक संस्कृतज्ञ विद्वानों की प्रेरणादायी जीवनी मिलेगी। शिक्षण और ज्ञान: व्याकरण, ज्योतिष, आयुर्वेद, कर्मकाण्ड जैसे शास्त्रीय विषयों पर गहन लेख, साथ ही शिक्षण-प्रशिक्षण सामग्री।  संसाधन: टेक्स्ट, ऑडियो, और वीडियो प्रारूप में उपलब्ध समृद्ध सामग्री।  मेरा उद्देश्य संस्कृत को जीवन्त बनाना और इसे आधुनिक युग में प्रासंगिक रखना है। इस पवित्र कार्य में आपका सहयोग अपेक्षित है। यदि आप संस्कृत पुस्तकों के मुद्रण हेतु दान देना चाहते हैं, तो कृपया दूरभाष संख्या 73 8888 33 06 पर सम्पर्क करें। आपके वित्तीय योगदान को पुस्तक पर सम्मानपूर्वक अंकित किया जाएगा।
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