वेद
विश्व-संस्कृति के आधार-स्तम्भ है। आदिकाल से ही वेद मानवजाति के लिए प्रकाश-स्तम्भ
रहे हैं। वेदों में ज्ञान और
विज्ञान
का अनन्त भण्डार विद्यमान है। अतएव मनु ने वेदों को सर्वज्ञानमय कहा है, अर्थात्
वेदों में सभी प्रकार का ज्ञान
और
विज्ञान निहित है।1 आयुर्वेद शास्त्र की दृष्टि से वेदों का अनुशीलन करने पर ज्ञात
होता है कि चारों वेदों में आयुर्वेद
के
विभिन्न अंगों और उपांगों का यथास्थान विशद वर्णन हुआ है।
ऋग्वेद
और आयुर्वेद- ऋग्वेद में आयुर्वेद के महत्वपूर्ण तथ्यों का यथास्थान विवेचन प्राप्त
होता है। इसमें आयुर्वेद का
उद्देश्य
वैद्य के गुण-कर्म,
विविध औषधियों के लाभ आदि, शरीर के विभिन्न
अंग, विविध चिकित्साएँ, अग्नि-चिकित्सा,
जलचिकित्सा, वायुचिकित्सा,
सूर्यचिकित्सा, शल्यचिकित्सा, हस्तस्पर्श-चिकित्सा, यज्ञचिकित्सा, कुस्वप्न-नाशन आदि का
विशिष्ट
वर्णन प्राप्त होता है।
यजुर्वेद
और आयुर्वेद- यजुर्वेद में आयुर्वेद से सम्बद्ध निम्नलिखित विषयों की सामग्री
प्राप्त होती है:- वैद्य के गुण-कर्म
विभिन्न
औषधियों के नाम आदि शरीर के विभिन्न अंग, चिकित्सा, दीर्घायुष्य नीरोगता, तेज, वर्चस्,
बल, अग्नि और जल
के
गुण-कर्म आदि।
सामवेद
और आयुर्वेद- सामवेद में आयुर्वेद-विषयक सामग्री अत्यन्त न्यून है। इसमें आयुर्वेद
से सम्बद्ध कुछ मंत्र निम्नलिखित विषयों के प्रतिपादक हैंः-वैद्य, चिकित्सा,
दीर्घायुष्य, तेज, ज्योति,
बल, शक्ति आदि।
अथर्ववेद
और आयुर्वेद- आयुर्वेद की दृष्टि से अथर्ववेद अत्यन्त महनीय ग्रन्थ है। इसमें
आयुर्वेद के प्रायः सभी अंगों और
उपांगों
का विस्तृत वर्णन मिलता है। अथर्ववेद, आयुर्वेद का मूल आधार
है। इसमें आयुर्वेद से सम्बद्ध निम्नलिखित
विषयों
का वर्णन प्राप्त होता है-भिषज् या वैद्य के गुण-कर्म, भैषज्य,
शरीरांग, दीर्घायुष्य नीरोगता, तेज, वर्चस्, वशीकरण,
बाजीकरण, रोगनाशक
विभिन्न मणियाँ, विविध औषधियों के नाम और गुण-धर्म रोगनाम
एवं चिकित्सा, कृमिनाशन, सूर्यचिकित्सा,
जलचिकित्सा, विषचिकित्सा, पशुचिकित्सा, प्राण-चिकित्सा शल्य-चिकित्सा आदि।
अथर्ववेद
में भी इस वेद को भेषज या भिषग्वेदनाम से पुकारा गया है। गोपथ ब्राह्मण में
अथर्ववेद के मंत्रों को आयुर्वेद से
सम्बद्ध बताया गया है और अथर्वा का अर्थ भेषज किया गया है। शतपथ ब्राह्मण में यजुर्वेद के एक मंत्र की व्याख्या में प्राण को अथर्वा कहा गया है। इसका अभिप्राय यह है कि प्राणविद्या या जीवन-विद्या आथर्वण विद्या है1।
अथर्ववेद
का एक नाम ब्रह्मवेद भी है। गोपथ ब्राह्मण के अनुसार ब्रह्म शब्द भी भेषज और
भिषग्वेद का बोधक है जो
अथर्वा
है, वह भेषज है, जो भेषज है, वह
अमृत है, जो अमृत है, वह ब्रह्म है।
अर्थात् भेषज और ब्रह्म शब्द समानार्थक
है।
गोपथ ब्राह्मण के अनुसार अंगिरस का सम्बन्ध आयुर्वेद और शरीर विज्ञान से है। अंगों
के रसों अर्थात तत्वों का जिसमें
वर्णन
किया जाता है वह अंगिरस है। अंगों से जो रस निकलता है, वह
अंगरस है, उसी को अंगिरस् कहा जाता है।
गोपथ में अन्यत्र वर्णन है कि रस या रसायन-विज्ञान को अंगिरस् कहते हैं।
अथर्ववेद और आयुर्वेद मे योग का क्या महत्व है ?
जवाब देंहटाएंआयुर्वेद की दृष्टि से अथर्ववेद अत्यंत महनीय ग्रंथ है। अथर्ववेद में आयुर्वेद के सभी उपांगो का विस्तृत जानकारी दी गई है।
हटाएंअथर्ववेद को आयुर्वेद का मूल आधार माना जाता है,वर्तमान समय में भी आयुवेद का एक अलग ही महत्व देखने को मिलता है।
आयुर्वेद में प्राणी जगत का भी वर्णन मिलता है।
वर्तमान परिपेक्ष्य में इसकी उपयोगिता कैसे सिद्ध करे ।
जवाब देंहटाएंशास्त्र ज्ञान प्राय: बहुत से स्थानों पर मिलते हैं लेकिन प्रयोग नहीं।
अथर्ववेद मे ही क्यूँ इतने सारे आयुर्वेदिक तथ्यों की चर्चा की गई है? सामवेद में क्यु नही?
जवाब देंहटाएंअथर्ववेद और आयुर्वेद में योग का क्या हिस्सा है।
जवाब देंहटाएंअथर्ववेद और आयुर्वेद में योग का क्या महत्व है।
जवाब देंहटाएंअथर्ववेद मे सूर्य,प्राण,शल्यादि चिकित्साओं का वर्णन प्राप्त होता है,क्या वर्तमान समय मे अथर्ववेद की इन विधियों का प्रयोग हो सकता है यदि होता है तो किस प्रकार से स्पष्ट कीजिए।
जवाब देंहटाएंसामवेद और यजुर्वेद का सामान्य जीवन में क्या महत्व है?
जवाब देंहटाएंअथर्ववेद और आयुर्वेद का उपयोग वर्तमान समय मे कैसे कर सकते है?
जवाब देंहटाएंजी नमस्कार जैसा की आपने यहां पर गोपथब्राम्हणम को आधार बता कर अथर्वा तथा व अंगिरास शब्द का वर्णन किया है गोपथब्राम्हणम में कहा वर्णित है अगर आप मुझे बताने का कष्ट करे
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