तिलकमंजरी नामक कथा के प्रणेता महाकवि धनपाल धारा में राजा मुंज तथा भोज की छत्रछाया में रहे। इनका समय 953-1033 ई० तक माना जा सकता है। मुंज ने इन्हें सरस्वती की उपाधि दिया था।
'तिलकमंजरी' का कथानक मूलत: जैनागमों पर आधारित है । जैन परंपरा के प्रभाव से उसमें
आध्यात्मिक व दार्शनिक तत्वों का समावेश किया गया है। कादंबरी की ही भाँति में
कहानी को विभिन्न पात्रों के माध्यम से आगे बढ़ाया गया है। धनपाल की रीति वैदर्भी
मिश्रित पांचाली है।
तिलकमंजरी का नायक अयोध्या के चक्रवर्ती
सम्राट मेघवाहन का पुत्र हरिवाहन है और नायिका दक्षिण में वैताढ्य पर्वत पर स्थित
रथनुपुरचक्रपाल नगरी के विद्याधर चक्रवर्ती चित्रसेन की पुत्री तिलकमंजरी है।
सिंहल द्वीप के राजा चंद्रकेतु का पुत्र समरकेतु इस कथा मे सहनायक और कांची के राजा
कुसुमशेखर की पुत्री मलयसुंदरी सहनायिका है।
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