नवसाहसांकचरित एक ऐसा ऐतिहासिक महाकाव्य है, जो आज उपलब्ध है । इसके रचियता महाकवि पद्मगुप्त परिमल का रचनाकाल दशमी शताब्दी के अंतिम चरण से लेकर ग्यारहवीं शताब्दी के प्रथम चरण तक है ।
इस महाकाव्य का प्रणयन 1005 ई० के लगभग हुआ। इस काव्य
में धारा के राजा नवसाहसांक उपाधिधारी सिंधुराज के राजकुमारी शशिप्रभा से विवाह का
वर्णन मुख्य रूप से हैं। इसमें 18 सर्ग है। इसके 12 वें सर्ग में नवसाहसांक के पूर्ववर्ती धारा के राजाओं का ऐतिहासिक क्रम से
उल्लेख किया गया है। नवसाहसांकचरित उच्चकोटि की सरस काव्य शैली और सुबोध भाषा में
लिखा गया है ।
बिल्हण काल - बिल्हण की काव्य प्रतिभा 11 वीं
शताब्दी के उत्तरार्ध में दिखाई देती है।
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