लोक कथाओं का सर्वाधिक प्राचीनतम ग्रंथ गुणाढ्य कृत 'बृहत्कथा' ही है। कुछ लेखकों ने इसे
पंचम शतक की रचना कहा है। डॉ०व्यूलर इसका रचनाकाल प्रथम या द्वितीय शताब्दी मानते हैं। अधिकांश विद्वानों ने बृहत्कथा का रचनाकाल विक्रम की प्रथम शताब्दी माना है। मूल बृहत्कथा पैशाची प्राकृत भाषा में लिखी गई थी। उसमें एक लाख पद्यों का होना माना गया है। परंतु अब वह उपलब्ध नहीं है। संस्कृत साहित्य की संपूर्ण
परंपरा पर रामायण और महाभारत के बाद जिस ग्रंथ का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा, वह बृहत्कथा ही है। इसलिए गुणाढ्य को प्राचीन रचनाकारों ने व्यास और वाल्मीकि के समान ही वंदनीय माना है। उसके तीन संस्कृत अनुवाद उपलब्ध हैं-
1. वुधस्वामी कृत बृहत्कथा श्लोक संग्रह
2. क्षेमेन्द्र कृत बृहत्कथा मंजरी
3. सोमदेव कृत कथासरित्सागर
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