पंचवटी की स्थापना कैसे करें? कहाँ लगायें? वृक्षों के मध्य दूरी कितनी हो?

 पंचवटीकी स्थापना एक आदर्श परिकल्पना है। पंचवटी का सुरम्य वातावरण गोष्ठी हेतु सबसे उपयुक्त स्थल होता है। यहाँ शीतल, पोषक तथा ताजी हवा मिलती है। सामाजिक स्वास्थ्य, विकास  में इसका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।  पंचवटी के नीचे ग्राम सभा तथा इस प्रकार के आयोजन होते रहे हैं, जहाँ शून्य लागत से सभी के लिए छाया तथा प्राणवायु मिलता है। इसे प्रत्येक ग्राम तथा ऐसे स्थान पर स्थापित करना चाहिए, जहाँ पर्याप्त समतल भूमि उपलब्ध हो। सार्वजनिक स्थलों यथा शिक्षण संस्थानों, विकास भवन, रेल प्लेटफार्म के बाहर, मंदिरों तथा उपासना स्थलों के पास लगाया जाय।

पंचवटी कैसे लगायें ?

 पुराण में दो प्रकार की पंचवटी का वर्णन दिया गया है। प्रत्येक में पीपल, बेल, वट, आँवला व सीता अशोक (saraca indica) इन पाँच प्रजातियों की स्थापना विधि एक निश्चित दिशा, क्रम व अन्तर पर बतलाया गया है। पंचवटी सर्वप्रथम किसी समतल स्थान का चयन करना चाहिए। फिर केन्द्र से चारों दिशाओं में बीस-बीस हाथ (10-10 मीटर) पर निशान लगायें तथा पूरब एवं दक्षिण दिशा के मध्य अर्थात अग्नि कोण पर भी बीस हाथ (10 मी.) पर मध्य में एक निशान लगा लें। इन चिन्हित किये गये जगहों पर शीत ऋतु में 60 x 60 x 60 सेमी. का गड्ढा बना लें। फिर पाँच किलो प्रति गड्ढा के हिसाब से गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद डालकर प्रथम वर्षा के उपरान्त गड्ढा पाट दें। अब यह पौध रोपण हेतु पूरी तरह तैयार है।

वर्षा के दिनों में पूरब दिशा में पीपल,

दक्षिण दिशा में आँवला,

उत्तर दिशा में बेल,

पश्चिम दिशा में वट वृक्ष (बरगद) एवं अग्निकोण पर अशोक वृक्ष

का स्थापना पवित्र मन से करें।

रोपण का मुहुर्त-

निम्न मुहुर्त में वृक्षारोपण करना अत्यधिक फलदायी होता है।

शुक्लपक्षे तिथौ शस्ते शुक्रे चन्द्रगुरावपि । तरणा रोपणं शस्तं ध्रुवाक्षिप्रमृदूडुभिः ।। शुक्ल पक्ष के शुभ तिथियों में, शुक्र, चन्द्र तथा गुरु, इन दिनों में ध्रुव संज्ञक (तीनों उत्तरा, रोहिणी और शतभिषा), क्षिप्र संज्ञक नक्षत्र (अश्विनी, पुष्य और अभिजित), मृदु संज्ञक नक्षत्र (चित्रा, अनुराधा, मृगशिरा और रेवती) इन नक्षत्रों में वृक्षों का रोपण करना शुभ फलदायक होता है।" इन वृक्षों की निराई-गुड़ाई व आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए। पाँच वर्ष पश्चात् केन्द्र में चार हाथ लम्बा एवं चार हाथ चौड़ा (2 मी. x 2 मी.) वर्गाकार सुन्दर वेदी का निर्माण करना चाहिए। वेदी सभी ओर से समतल होना चाहिए एवं चारों दिशाओं में इसका मुख होना चाहिए।

वृहद् पंचवटी

यदि अधिक जगह उपलब्ध हो तो वृहद् पंचवटी की स्थापना करें। पौधों का रोपण विधि उपरोक्तानुसार ही होगा। परन्तु इसका परिकल्पना वस्तुतः वृत्ताकार है। सुन्दर वेदी की स्थापना पूर्ववत् ही होगा। सर्वप्रथम केन्द्र से चारों तरफ 5 मी. त्रिज्या, 10 मी. त्रिज्या, 20 मी. त्रिज्या, 25 मी. एवं तीस मीटर त्रिज्या का पाँच वृत (परिधि) बनायें।

अन्दर के प्रथम 5 मी. त्रिज्या के वृत पर चारों दिशाओं में चार वेल के वृक्ष की स्थापना करें।

इसके बाद 10 मी. त्रिज्या के द्वितीय वृत्त पर चारों कोनों में चार बरगद का वृक्ष स्थापित करें।

20 मी. त्रिज्या के तृतीय वृत्त की परिधि पर समान दूरी पर (लगभग 5 मी.) के अन्तराल पर 25 अशोक के करें।

 25 मी. त्रिज्या के चतुर्थ वृत की परिधि पर दक्षिण दिशा के लम्ब वृक्ष का रोपण से पाँच-पाँच मीटर पर दोनों तरफ दक्षिण दिशा में आँवला के दो वृक्ष चित्रानुसार स्थापित करने का विधान है।

आँवला के दो वृक्षों की परस्पर दूरी 10 मी. रहेगी। पाँचवे व अन्तिम 30 मी. त्रिज्या के वृत के परिधि पर चारों दिशाओं में पीपल के चार वृक्ष का रोपण करें। इस प्रकार कुल उन्तालिस (39) वृक्ष की स्थापना होगी। जिसमें चार वृक्ष बेल,

चार वृक्ष बगरद, 25 अशोक,दो वृक्ष आँवला एवं चार वृक्ष पीपल के होंगे।

वृहद् पंचवटी में वृक्षों की संख्या

बाहरी वृत्त पीपल = 4

दूसरा वृत्त-आंवला 2

तीसरा वृत्त-अशोक  = 25

चतुर्थ वृत्त- बरगद = 4

पंचम वृत्त- बेल = 4

योग = 39

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6 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार पंचवटी को रेखा चित्र के माध्यम से अपने बहुत ही सुन्दर और सरलता से समझाये है
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रश्न. वर्षा ऋतु के अलावा अन्य ऋतुओं में पंचवटी का रोपण करना क्या पुण्यमय नहीं होगा ?

    जवाब देंहटाएं
  3. पंचवटी को आपने चित्र के माध्यम से बहुत ही सरलता के साथ समझाया है।

    जवाब देंहटाएं
  4. नमस्कार, पंचवटी कम से कम कितनी दूरी पर लगाया जा सकता है ?

    जवाब देंहटाएं
  5. पंचवटी की उत्तर दिशा में कौन सा पेड़ लगेगा?

    जवाब देंहटाएं
  6. किस दिशा में अशोक वृक्ष की स्थापना करनी हैं?

    जवाब देंहटाएं

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