संस्कृतभाषी
ब्लॉग का यह विशेष संकलन उन संस्कृत गीतों का संग्रह है जो भारत की सांस्कृतिक
चेतना,
भाषिक गौरव और राष्ट्रीय भावना को स्वर देते हैं। ये गीत न केवल
शुद्ध संस्कृत में रचे गए हैं, अपितु उनमें भावप्रवणता,
भक्ति, प्रेरणा और देशभक्ति का अद्भुत संगम
है। कुछ गीत पारंपरिक शास्त्रीय शैली में हैं तो कुछ आधुनिक संगीतबद्ध रचनाएँ हैं
जो विद्यार्थियों, अध्यापकों और संस्कृतप्रेमियों के लिए
प्रेरणादायक हैं। इन गीतों के
माध्यम से नारीशक्ति,
शिक्षा, संस्कृति, मातृभूमि
और भाषा के प्रति श्रद्धा को व्यक्त किया गया है।
यह संकलन
उन सभी के लिए उपयोगी है, जो संस्कृत गीतों के माध्यम से विद्यार्थियों में भाषा के
प्रति रुचि,
उच्चारण की शुद्धता और भावनात्मक जुड़ाव विकसित करना चाहते हैं। यह
पोस्ट विद्यालयीन प्रस्तुतियों, भाषणों, नाट्यशिक्षा एवं संस्कृत-सप्ताह आयोजन आदि में विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध
होगी।
इस संग्रह
में अधोलिखित संस्कृत गीत संकलित हैं:
1. अवनितलं
पुनरवतीर्णा स्यात्
संस्कृत भाषा की पुनरावृत्ति
एवं नवचेतना का आह्वान।
2. चिरनवीना
संस्कृता एषा
संस्कृत की सनातन नवीनता और
उसकी समयातीत महत्ता का वर्णन।
3. संस्कृतस्य
सेवनं संस्कृताय जीवनम्
संस्कृत सेवा के माध्यम से
आत्मविकास एवं राष्ट्रसेवा का सन्देश। संस्कृत भाषा को जीवन की धुरी
मानकर उसके प्रति समर्पण।
4. वन्दे
भारतमातरं वद
भारत माता की वन्दना और
मातृभूमि के प्रति श्रद्धा।
5. ध्येयपथिक
साधक
ध्येयपथ पर अग्रसर साधक की
प्रेरक गाथा।
6. जय जय
हे भगवति सुरभारति
भारती देवी की स्तुति और वाणी
की शक्ति का गुणगान।
7. आयाहि
रे ! आयाहि रे ! आऽऽयाहि रे
संस्कृत के पुनरागमन का
उल्लासपूर्ण आमंत्रण।
8. वीणानिनादिनि
देवि मातः शारदे शुभदे शुभे
सरस्वती देवी की करुणामयी
प्रार्थना और वाणी की शुभकामना।
9. सुन्दरसुरभाषा
संस्कृत की मधुरता, स्पष्टता और सौरभ का वर्णन।
10. राष्ट्ररक्षाविधौ
यास्ति काष्ठा परा
राष्ट्ररक्षा में जीवन समर्पण
की भावना और बलिदान की प्रेरणा।
11. भारतधरणीयं मामकजननीयम्
भारत की पावन धरती के प्रति आदर
और श्रद्धा। मातृभूमि को अपनी जननी के रूप
में स्वीकारना।
12. सुरभारति
देवि सरस्वति हे
सरस्वती देवी को ज्ञान की
अधिष्ठात्री के रूप में प्रणाम।
13. कुरुध्वमद्य
सज्जतां रणाय भोः
सामाजिक, सांस्कृतिक संघर्ष के लिए चेतना का आह्वान।
14. भजामि
शैलसुतारमणम्
पार्वतीपति शिव की आराधना।
15. पाठयेम
संस्कृतं जगति सर्वमानवान्
संपूर्ण मानवजाति में संस्कृत
शिक्षा के प्रसार की प्रतिज्ञा।
16. भारतं
भारतीयं नमामो वयम्
भारत और भारतीय संस्कृति को
प्रणाम करते हुए गौरवगान।
भारत को विश्वरत्न के रूप में
सम्मानित करते हुए गान। भारत को अपना निज राष्ट्र मानने
की गूढ़ भावना।
18. जय जय
हे भगवति सुरभारति
भारतीय
संस्कृति,
वाणी और विद्यादायिनी सरस्वती देवी की स्तुति में रचित गीत; संस्कृत भाषा के उत्थान और मातृशक्ति के गौरव का उत्सवपूर्ण गायन।
19.
वीणानिनादिनि देविमातः शारदे शुभदे शुभे
सरस्वती
देवी के वीणा-निनादमय दिव्य स्वरूप की वंदना; शुभता, ज्ञान और सरसता प्रदान करने वाली मातृरूपिणी शक्ति का भावपूर्ण गुणगान।
संस्कृतभाषी
ब्लॉग का यह विशेष संकलन उन संस्कृत गीतों का संग्रह है जो भारत की सांस्कृतिक
चेतना,
भाषिक गौरव और राष्ट्रीय भावना को स्वर देते हैं। ये गीत न केवल
शुद्ध संस्कृत में रचे गए हैं, अपितु उनमें भावप्रवणता,
भक्ति, प्रेरणा और देशभक्ति का अद्भुत संगम
है। कुछ गीत पारंपरिक शास्त्रीय शैली में हैं तो कुछ आधुनिक संगीतबद्ध रचनाएँ हैं
जो विद्यार्थियों, अध्यापकों और संस्कृतप्रेमियों के लिए
प्रेरणादायक हैं।
इस संग्रह
में अधोलिखित संस्कृत गीत संकलित हैं:
1. अवनितलं
पुनरवतीर्णा स्यात्
2. चिरनवीना
संस्कृता एषा
3. संस्कृतस्य
सेवनं
4. संस्कृताय
जीवनम्
5. वन्दे
भारतमातरं वद
6. ध्येयपथिक
साधक
7. जय जय
हे भगवति सुरभारति
8. आयाहि
रे ! आयाहि रे ! आऽऽयाहि रे
9. वीणानिनादिनि
देवि मातः शारदे शुभदे शुभे
10. सुन्दरसुरभाषा
11. राष्ट्ररक्षाविधौ
यास्ति काष्ठा परा
12. भारतधरणीयं
13. मामकजननीयम्
14. सुरभारति
देवि सरस्वति हे
15. कुरुध्वमद्य
सज्जतां रणाय भोः
16. भजामि
शैलसुतारमणम्
17. पाठयेम
संस्कृतं जगति सर्वमानवान्
18. भारतं
भारतीयं नमामो वयम्
19. सम्पूर्णविश्वरत्नम्
20. खलु
भारतम् स्वकीयम्.. स्वकीयम्
21. जय जय
हे भगवति सुरभारति
सरससुबोधा विश्वमनोज्ञा
सुरससुबोधा विश्वमनोज्ञा
ललिता हृद्या रमणीया।
अमृतवाणी संस्कृतभाषा
नैव क्लिष्टा न च कठिना॥ ॥ नैव क्लिष्टा॥
कविकोकिल-वाल्मीकि-विरचिता
रामायणरमणीय कथा।
अतीव-सरला मधुरमंजुला
नैव क्लिष्टा न च कठिना॥ ॥सरस.....॥
व्यासविरचिता गणेशलिखिता
महाभारते पुण्यकथा।
कौरव - पाण्डव -संगरमथिता
नैव क्लिष्टा न च कठिना॥ ॥ सरस.....॥
कुरूक्षेत्र-समरांगण - गीता
विश्ववन्दिता भगवद्गीता
अमृतमधुरा कर्मदीपिका
नैव क्लिष्टा न च कठिना॥ ॥ सरस.....॥
कविकुलगुरू - नव - रसोन्मेषजा
ऋतु - रघु - कुमार - कविता।
विक्रम - शाकुन्तल - मालविका
नैव क्लिष्टा न च कठिना॥ ॥ सरस.....॥
नैव क्लिष्टा न च कठिना॥
मृदपि च चन्दनमस्मिन्देशे, ग्रामो ग्रामः सिद्धवनम्
संस्कृत को अन्तर्जाल के माध्यम से प्रत्येक लाभार्थी तक पहुँचाने तथा संस्कृत विद्या में महती अभिरुचि के कारण ब्लॉग तक चला आया। संस्कृत पुस्तकों की ई- अध्ययन सामग्री निर्माण, आधुनिक
संस्कृत गीतकारों की प्रतिनिधि रचनायें के संकलन आदि कार्य में जुटा हूँ। इसका Text, Audio, Video यहाँ उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त मेरे अपने प्रिय शताधिक वैचारिक निबन्ध, हिन्दी कविताएँ, 21 हजार से अधिक संस्कृत पुस्तकों की सूची, 100 से अधिक संस्कृतज्ञ विद्वानों की जीवनी, व्याकरण आदि शास्त्रीय विषयों पर लेख, शिक्षण- प्रशिक्षण और भी बहुत कुछ इस ब्लॉग पर उपलब्ध है।
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धन्यवाद सर
जवाब देंहटाएंशोभनीय कार्यम
हटाएंआभारं प्रकटयामि।
हटाएंबहुत सुन्दर शोभनम्
हटाएंअतीवसुन्दरम्
जवाब देंहटाएंबहशोभनम्
जवाब देंहटाएंमनोहरम गीतम
जवाब देंहटाएंमनीहारणि गीतानि
जवाब देंहटाएं🙏🙏🌼👌👌हरिः शरणम🙏🙏
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंsundarm
जवाब देंहटाएंअतिशोभनम्! क्षम्यताम्! षष्ठं सप्तदशं च गीतं समानम्।
जवाब देंहटाएंभवता सूक्ष्मेक्षिकयावलोकितम् । भवते धन्यवादवचांसि। मया परिष्कृतञ्च ।
हटाएंBahut bahut dhanyawad mahoday pranaam 🙏
जवाब देंहटाएंअतीवशोभनम्, छात्रोपयोगी संकलनम् ।
जवाब देंहटाएंजय गुरुदेव
जवाब देंहटाएंशोभनीय कार्यम
जवाब देंहटाएंबहु शोभनम्।।धन्यवाद
जवाब देंहटाएं