बाल्यावस्था के संस्कार - जातकर्म
जातक के जन्मग्रहण के पश्चात् पिता पुत्र मुख का दर्शन करे
और तत्पश्चात् नान्दी श्राद्धावसान जातकर्म विधि को सम्पन्न करे-
जातं
कुमारं स्वं दृष्ट्वा स्नात्वाऽनीय गुरुम् पिता।
नान्दी श्राद्धावसाने तु जातकर्म समाचरेत्
नान्दी श्राद्धावसाने तु जातकर्म समाचरेत्
विधि-पिता स्वर्णशलाका या अपनी चौथी अंगुली से जातक को जीभ
पर मधु और घृत महाव्याहृतियों के उच्चारण के साथ चटावे। गायत्री
मन्त्र के साथ ही घृत बिन्दु छोड़ा जाय। आयुर्वेद के ग्रंथों में जातकर्म-विधि का
विधान चर्चित है कि पिता बच्चे के कान में दीर्घायुष्य मंत्रों का जाप करे। इस
अवसर पर लग्नपत्रा बनाने और जातक के ग्रह नक्षत्रा की स्थिति की जानकारी भी
प्राप्त करने की प्रथा है और तदनुसार बच्चे के भावी संस्कारों को भी निश्चित किया
जाता है।
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