हिन्दू जीवन के संस्कारों में अन्त्येष्टि ऐहिक जीवन का
अन्तिम अध्याय है। आत्मा की अमरता एवं लोक परलोक का विश्वासी हिन्दू जीवन इस लोक
की अपेक्षा पारलौकिक कल्याण की सतत कामना करता है। मरणोत्तर संस्कार से ही
पारलौकिक विजय प्राप्त होती है -
जात
संस्कारेणेमं लोकमभिजयति
मृतसंस्कारेणामुं लोकम् - वी.मि. 3-1
मृतसंस्कारेणामुं लोकम् - वी.मि. 3-1
विधि-विधान, आतुरकालिक दान, वैतरणीदान, मृत्युकाल में भू शयनव्यवस्था
मृत्युकालिक स्नान, मरणोत्तर स्नान, पिण्डदान,
(मलिन षोडशी) के 6 पिण्ड दशगात्रायावत्
तिलाञ्जलि, घटस्थापन दीपदान, दशाह
के दिन मलिन षोडशी के शेष पिण्डदान एकादशाह के षोडश श्राद्ध, विष्णुपूजन शैय़्यादान आदि। सपिण्डीकरण, शय्यादान एवं
लोक व्यवस्था के अनुसार उत्तर कर्म आयोजित कराने चाहिए। इन सभी कर्मों के लिए
प्रान्त देशकाल के अनुसार पद्धतियां उपलब्ध हैं तदनुसार उन कर्मों का आयोजन किया
जाना चाहिए।
षोडश संस्कारों के अतिरिक्त
निम्नांकित संस्कारों के विधि-विधान जानना आवश्यक हैᅠ-
(1) गृहारंभ (शिलान्यास)
(2) गृह प्रवेश
(3) जन्मोत्सव-गण्डान्त शान्ति
(4) व्रतोद्यापन विविध शान्ति कर्म और काम्य अनुष्ठान
aur bistar purvak dena chahiye taki jansadharan ko samjh me aana chahiye ,, dhanyvad,,
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