बाल्यावस्था के संस्कार- नामकरण
नामकरण एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण
संस्कार है । जीवन में सम्पूर्ण व्यवहार का आधार नाम पर ही निर्भर होता है
नामाखिलस्य
व्यवहारहेतुः शुभावहं कर्मसु भाग्यहेतुः ।
नाम्नैव कीर्तिंं लभते मनुष्यस्ततः प्रशस्तं खलु नामकर्म।-बी.मि.भा. 1
नाम्नैव कीर्तिंं लभते मनुष्यस्ततः प्रशस्तं खलु नामकर्म।-बी.मि.भा. 1
"नाम सम्पूर्ण व्यवहार का कारण है। यह कर्म में शुभ लाता है और यह भाग्य की जड़ है। नाम से ही
मनुष्य यश प्राप्त करता है। इसलिए नामकरण संस्कार प्रशंसनीय है।
उपर्युक्त
स्मृतिकार बृहस्पति के वचन से प्रमाणित है कि व्यक्ति संज्ञा का जीवन में सर्वोपरि
महत्त्व है अतः नामकरण संस्कार हिन्दू जीवन में बड़ा महत्त्व रखता है।
शतपथ
ब्राह्मण में उल्लेख है कि
तस्माद् पुत्रस्य जातस्य नाम कुर्यात्
पिता नाम करोति एकाक्षरं द्वक्षरं त्रयक्षरम् अपरिमिताक्षरम् वेति-वी.मि.
पिता नाम करोति एकाक्षरं द्वक्षरं त्रयक्षरम् अपरिमिताक्षरम् वेति-वी.मि.
द्वक्षरं प्रतिष्ठाकामश्चतुरक्षरं
ब्रह्मवर्चसकामः
प्रायः
बालकों के नाम सम अक्षरों में रखना चाहिए। महाभाष्यकार ने व्याकरण के महत्व का
प्रतिपादन करते हुए नामकरण संस्कार का उल्लेख किया ।
याज्ञिकाः
पठन्ति- ''दशम्युतरकालं जातस्य नाम विदध्यात्
घोष बदाद्यन्तरन्तस्थमवृद्धं त्रिापुरुषानुकम नरिप्रतिष्ठितम्।
घोष बदाद्यन्तरन्तस्थमवृद्धं त्रिापुरुषानुकम नरिप्रतिष्ठितम्।
तद्धि
प्रतिष्ठितमं भवति।
द्वक्षरं चतुरक्षरं वा नाम कुर्यात् न तद्धितम् इति।
न
चान्तरेण व्याकरणकृतस्तद्धिता वा शक्या विज्ञातुम्।-महाभाष्य
उपर्युक्त
कथन में तीन महत्त्वपूर्ण बातों का उल्लेख है-
(1) शब्द रचना (2) तीन पुस्त के पुरखों के अक्षरों का
योग (3) तद्धितान्त नहीं होना चाहिए अर्थात् विशेषणादि नहीं
कृत् प्रत्यान्त होना चाहिए।
विधि-विधान-गृह्य
सूत्रों के सामान्य नियम के अनुसार नामकरण संस्कार शिशु के जन्म के पश्चात् दसवें
या बारहवें दिन सम्पन्न करना चाहिए -
द्वादशाहे दशाहे वा जन्मतोऽपि त्रयोदशे।
षोडशैकोनविंशे वा द्वात्रिंशे वर्षतः क्रमात्॥
षोडशैकोनविंशे वा द्वात्रिंशे वर्षतः क्रमात्॥
संक्रान्ति, ग्रहण, और श्राद्धकाल में संस्कार मंगलमय नहीं माना
जाता। गणेशार्चन करके संक्षिप्त व्याहृतियों से हवन सम्पन्न कराकर कांस्य पात्रा
में चावल फैलाकर पांच पीपल के पत्तों पर पांच नामों का उल्लेख करते हुए उनका
पञ्चोपचार पूजन करे। पुनः माता की गोद में पूर्वाभिमुख बालक के दक्षिण कर्ण में
घर के बड़े पुरुष द्वारा पूजित नामों में से निर्धारित नाम सुनावे। हे शिशोᅠ! तव नाम अमुक शर्म-वर्म गुप्त दासाद्यस्ति''
आशीर्वचन देने के लिए निम्न ऋचाओं का पाठ करें-
''क्क वेदोऽसि येन त्वं देव वेद देवेभ्यो वेदो भवस्तेन मह्यां वेदो भूयाः।
क्क अङ्गादङ्गात्संभवसि हृदयादधिजायते आत्मा वै पुत्रनामासि सद्द्रजीव शरदः
शतम्'।
गोदान-छाया दान आदि कराया जाय। लोकाचार के अनुसार
अन्य आचार सम्पादित किये जायें।
बालिकाओं के नामकरण के लिए तद्धितान्त नामकरणकी विधि है।
बालिकाओं के नाम विषमाक्षर में किये जायें और वे आकारान्त या ईकारान्त हों।
उच्चारण में सुखकर, सरल, मनोहर मङ्गलसूचक
आशीर्वादात्मक होने चाहिए।
स्त्रीणां
च सुखमक्रूरं विस्पष्टार्थं मनोहरम्।
मंगल्यं दीर्घवर्णान्तमाशीर्वादाभिधानवत्। - वी.मि.
मंगल्यं दीर्घवर्णान्तमाशीर्वादाभिधानवत्। - वी.मि.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें